Him Sparsh - 22 in Hindi Fiction Stories by Vrajesh Shashikant Dave books and stories PDF | हिम स्पर्श 22

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हिम स्पर्श 22

वफ़ाई के जाने के पश्चात जीत व्याकुल था। वह झूले पर बैठ गया। वफ़ाई के साथ व्यतीत क्षणों के स्मरण में खो गया। उसने एक एक क्षण को पकड़ना चाहा जो उसने वफ़ाई के साथ व्यतीत की थी। अपनी कल्पना में उसे पुन: जीने का प्रयास करने लगा, वह विफल रहा।

उसने झूला छोड़ दिया, यहाँ से वहाँ घूमता रहा। झूले से चित्राधार तक, वहाँ से कक्ष में, कक्ष से घर के पीछे तक और पुन: झूले तक।

हार कर जीत ने वफ़ाई के स्मरणों को भूलना चाहा, वह पुन: विफल हो गया।

घर के प्रत्येक कोने में वफ़ाई की उपस्थिती थी। पवन की प्रत्येक लहर वफ़ाई की सुगंध से भरी थी। घर की प्रत्येक वस्तु को वफ़ाई ने अपना स्पर्श दिया था। अत: वह वफ़ाई के विचारों से मुक्त नहीं हो सका।

वैसे तो तुम एक दो दिवस ही मेरे साथ रही हो किन्तु तुम्हारा स्मरण मेरे मन से जाता क्यों नहीं? तुम्हारे स्मरण के कारावास से मैं मुक्त क्यों नहीं हो पाता हूँ? तुम्हें भूल जाने के मेरे तमाम प्रयास विफल क्यों हो जाते हैं? वफ़ाई, तेरे स्मरण के सामने मैं पराजित हो गया हूँ। अब मैं तुम्हें तथा तुम्हारे स्मरणों को नहीं रोकूँगा। आ जाओ, मेरे हृदय में प्रवेश कर लो, बस जाओ इस में। मेरे ह्रदय का प्रत्येक कोना तुम्हारे लिए है। मेरी नसों में रक्त बनकर बहते रहो। मैं मैं ना रहूँ, मैं तुम बन जाऊं। मैं जीत से वफ़ाई बन जाऊं तब तक तुम मेरे में बसे रहो। मेरी नसों में विस्फोट कर दो, मुझे राख़ में मिला दो। मेरे अस्तित्व को नष्ट कर दो। मेरे में से नए व्यक्ति को जन्म दे दो। मुझे वफ़ाई बना दो। तुम्हें अनुमति है मुझे मिटा देने की। मैं विवश हूँ, मैं कुछ नहीं कर सकता।

जीत स्वयम से विद्रोह करने लगा। वह स्वयम से पराजित हो गया।

अंतत: सारी शक्तियाँ जोड़कर वह केनवास के समीप गया।

इस मरुभूमि में चंद्रमा के साथ साथ तुम ही मेरे साथी हो। जब भी एकांत का अनुभव होता है, जब भी किसी के साथ की मनशा करता हूं, तब तुम ही मेरे साथ होते हो। जब भी मेरे मन में कोई भाव जन्म लेते हैं, मैं तुम्हारे पास ही आता हूं, रंग और तूलिका के द्वारा मेरे मन के भावों को तुम पर लिख देता हूं।

जीत केनवास के सामने था। उसने केनवास को स्मित दिया। केनवास ने जवाबी स्मित दिया। जीत सकारात्मक ऊर्जा से भर गया। गहरी सांस लेकर जीत शांत हो गया। पुराना केनवास हटा दिया। नया, खाली, श्वेत केनवास लगा दिया। रंगों को घोलने लगा, तूलिका उठाई और श्वेत केनवास को रंग का पहला स्पर्श दिया। केनवास का कौमार्य भंग हो गया।

तूलिका केनवास पर वफ़ाई का चित्र अंकित करना चाहती थी, अनायास ही, अज्ञात मन से ही। तूलिका ने अनेक रंग भर दिये किन्तु वफ़ाई की तस्वीर बन नहीं रही थी। जीत ने यहाँ-वहाँ, ऊपर-नीचे, दायें-बाएँ, एक कोने से दुसरे कोने तक रंग भर दिया किन्तु वफ़ाई का चित्र नहीं बन पा रहा था। उस ने रंगों और आकृतियों को अनेक बार बदला किन्तु वफ़ाई का चित्र नहीं बना पाया।

“वफ़ाई मेरी हथेली से, सरकती रेत की भांति, सरक रही है। वफ़ाई को मुट्ठी में पकड़ने का प्रत्येक प्रयास विफल हो रहा है। मैं बारंबार प्रयास कर रहा हूँ किन्तु विफल हो रहा हूँ। वफ़ाई तुम मुझसे दूर निकल गई हो, इतनी दूर कि मैं अब तुम्हें केनवास पर भी उतार नहीं पा रहा हूँ। वफ़ाई।” जीत विचलित हो गया।

केनवास को छोड़ कर वह दूर खड़ा केनवास को निहारता रहा।

“एक लड़की का चित्र तो बन रहा है, किन्तु वह वफ़ाई नहीं है। किसी भी रूप में वह वफ़ाई नहीं है। कुछ बात तो है, कुछ तो ...।”

जीत केनवास के समीप गया, तूलिका उठाई और तूलिका से रंग भरने को हाथ बढ़ाया ही था तब उसके कानों में शब्द पड़े,”जीत, वफ़ाई का चित्र बनाना इतना सरल नहीं है। श्रीमान चित्रकार, तुम विफल हो गए।” उस ध्वनि के साथ हास्य घुल गया।

“यह तो वफ़ाई के शब्द लगते हैं, यह ध्वनि उसकी ही है।”जीत ने केनवास को देखा।

“तुम केनवास में से बोल रही हो?” जीत ने देखा कि केनवास तो मौन था। वह हंस पड़ा।

”केनवास कभी नहीं बोलता। चित्र अवश्य बोलते हैं किन्तु शब्दों से नहीं। चित्र की भाषा भिन्न होती है। किन्तु यह तो मनुष्य के शब्द थे। कौन बोला इन शब्दों को? अथवा मेरा भ्रम है?”

“जीत, यहाँ कोई नहीं है। वफ़ाई जा चुकी है। वफ़ाई के जाने के पश्चात तुम केवल वफ़ाई का ही ध्यान धरे हो, हो सकता है यह ध्वनि तुम्हारे हृदय से आई हो। अपने हृदय की ध्वनि को मत सुनो, यहाँ कोई नहीं है।”

“श्रीमान जीत, तुम मुझे केनवास पर नहीं उतार सकते। वह तुम्हारी कल्पना और कला से भी परे है।” जीत ने फिर शब्द सुने।

“मैं कोई शब्द नहीं सुनना चाहता, भ्रमित नहीं होना चाहता।” जीत ने दोनों कानों पर हाथ रख दिये, आँखें बंध कर ली और दीवार के सहारे खड़ा हो गया। जीत वहीं स्थिर हो गया। उसके हाथ में कुछ चुभा, उसे पीड़ा हुई। कोनी में किसी स्पर्श का अनुभव हुआ। वह स्पर्श मीठा था किन्तु चुभता था, जैसे किसी ने हाथ में छेद कर दिया हो।

“यहाँ कोई नहीं है, कुछ भी नहीं है, अत: यह छेद भी वास्तविक नहीं है। यह भी भ्रमणा ही है, मैं इसकी पीड़ा को नकारता हूँ।” जीत मन ही मन बोलता रहा। वह निश्चल सा स्थिर खड़ा रहा। गहरी सांसें लेता रहा।

जीत को अनुभव हुआ कि किसी ने उसके हाथों में खरोंच कर दि हो। वह थोड़ा अधिक पीड़ादायक था तथापि जीत ने आँखें नहीं खोली, कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

“जीत, आँखें खोलो। यह कोई भ्रम नहीं है। यह वास्तवीक है। देखो इसे, अनुभव करो इसे, मानो इसे।“ वफ़ाई के शब्द पुन: जीत के कानों पर पड़े। वह उस की उपेक्षा नहीं कर सका।

जीत ने आँखें खोली। वफ़ाई को सामने पाया, साक्षात पाया।

“यह स्वप्न है अथवा नया भ्रम? अथवा समय का कोई नया छल?” जीत ने कोनी पर पड़ी खरोंचो को देखा, वह वास्तविक थी, पीड़ा भी वास्तविक थी।

“यदि खरोच वास्तविक है, पीड़ा वास्तविक है तो वफ़ाई भी वास्तविक ही होगी। किन्तु मैं विश्वास नहीं करता। मैं तुम्हारे अस्तित्व और यहाँ होने को अस्वीकार करता हूँ।“ जीत ने वफ़ाई को अनदेखा कर दिया।

एक नए मौन ने जन्म ले लिया। मौन वहीं रुक गया। प्रगाढ़ मौन के साथ जीत कक्ष में चला गया। वफ़ाई उस मौन में डूब गई जो जीत अपने पीछे छोड़ गया था।