Pahla pyar adhuri dasta in Hindi Love Stories by NR Omprakash Saini books and stories PDF |  पहला प्यार अधूरी दास्ता....

Featured Books
Categories
Share

 पहला प्यार अधूरी दास्ता....




उस रोज मेरा कॉलेज का पहला दिन था। कॉलेज मेरे गाँव से ३५ किमी दूर था ओर आस पास गाँव के लडके लडकीया सभी इसी कोलेज में पडते थे ओर चार गाँव से होकर हमारे गाँव से शहर को जोडने वाली एक बस जो हर रोज प्रात: ८ बजे हमारे गाँव मे पहुचती थी। अब कोलेज  का पहला दिन  था तो मैं भी बाइक की बजय बस से जाना पसंद किया ओर बस का सफर भी मेरे लिए पहला सफर था वैसे बचपन में किया था मम्मी के साथ उसके बाद यह पहला सफर ही था जो मैं बस से शहर तक जा रहा था। अनुभव के अभाव में मैं बस के पास भीड बढने की वजह से रूक गया २ मिन्ट स्टोप के बाद बस चल पडी ओर मैं बस के पीछे भागा। मुझे तो लगा आज मेरी बस छूटने वाली हैं। लेकिन बस के दरवाजे से मेरी तरफ इशारा करता हुअा हाथ को थाम्बकर मैं बस पर चढ गया।
थैंक्यू
नो मनशन
वो लडकी थी शायद हमारे पाडोसी गाँव अकाशपुर की होगी।
बस में काफी भींड थी हम दोनो गली में एक दूसरे के बिलकुल करिब, सामने खडे थे। बस की खिडकी से होकर आने वाली हवा में उडती हुई उसकी जुल्फे बार बार आँखों पर आती ओर वह मुस्कुराती हुई उनको हटाती गुलाबी रंग में पहने परिधान में वह ओर भी हसीन ओर खुबसूरत दिखती। ऊफ… यह क्या हो रहा था। आज पहली बार दिल मे कुछ अजीब सी फिलींग्स हो रही थी। बस पूरी राह उसको देखता रहा। जूबां होते हुवे भी मैं बेअवाज था। यह मेरा आकर्षण था या प्यार मेरी समझ से बाहर था। 
बोलना तो बहूत कुछ चाहता था परन्तु लब्ज साथ नहीं  थे।
बस कॉलेज के सामने जा रूकी। योगी कॉलेज स्टेशन। बस कनेक्टर ने आवाज दी। ओर हम सभी बस से उतर कर कॉलेज की तरफ निकल पडे। मेरी नजर बार बार भीड मे बस उसको ही ढूंढ रही। शायद हमारा मिलन यहा तक ही था अब मिलना नहीं होगा।
हं…हं…????
लेकिन किस्मत को कुछ ओर ही मंजूर था। मैं आई कमीन सर। 
नो। मेरी नजर कलांश रूम के दरवाजे की तरफ गयी। जितनी हसीन वो थी उसकी आवाज उससे भी कहीं गुना मधुर ओर कर्णशोभित थी। यह वही बस वाली थी। कैसा प्रोफेसर है भला इतने हसीन, जवां ओर खुबसूरती को नो कैसे बोल सकता। मैं अपने पास बैठे लडके से कहां। हं…ह़… (कुछ पल एक दूसरे के सामने देखा फिर हम दोनो हंस पडें) कोन है यह बतमिज। यू स्टेंडअप एन्ड आयूट, आयूट । 
हंं…हं…?? ओर इस कदर मैं भी कलांश से बाहर हो गया। 

हाई…
हाई…. क्या हुआ? आप बाहर कैसे?
कुछ नहीं… प्रोफेसर खडूस है।
आपने पहले दिन में ही पता लगा दिया।
क्यो? आपको नहीं लगता।
हम्म्… लगता है।
हं….ह…  फिर हम दोनो साथ में ह़स पडे।
कुछ पल मोन एक दूसरे को देखते रहे। फिर हम दोनो इधर उधर देखने लगे। पता नही वो क्या सोच रही थी? शायद वही जो मैं सोच रहा था। 
वैसे प्रग्या…
सविता… सविता नाम है मेरा। यह कहकर मुस्काने लगी।
हाँ ! सविता… 
वैसे आप कहाँ रह गये जो देर हो गई ।
आपको उससे क्या? 
नहीं । कुछ नहीं ।
कुछ पल मोन रही फिर बोल पडी-
फ्रेन्ड के साथ पार्क मे रूक गयी। 
ओह्.. बोय..
नहीं… गर्ल..
अच्छा…।
हम्म्.. वैसे आपके पास नाम पूछने का तरीका अच्छा है। प्रग्या_हंं…हं… अच्छा नाम हैं। वो हस पडी ओर मैं भी ।
सरद… सरद नाम है मैरा। 
अच्छा है।
आप पूछो इससे पहले सोचा मैं ही बातादूँ।
हं…हं…??? वैसे मैं पूछने वाली नहीं थी
मुझे लगा की आप… मतलब आप पूछोगें। 
हम्म् … अच्छा…। ओर यह प्रग्या कौन है । 
प्रग्या! यह..ये मेरी दोस्त है । 
स्कूल फ्रेन्ड ।
हम्म्.. स्कूल फ्रेन्ड ओर बचपन  की भी ।
अच्छा.. इसलिए आपको मुझमे भी वो….
नहीं ऐसा कु़छ नही बस एक अच्छी दोस्त है ।
ओह् …
वैसे आप चाहो तो एक कॉलेज फ्रेन्ड बना सकती हो।
हम्म् … 
मुझे…
पहले प्रग्या से प्रमिशन लेकर आना।
प्रग्या ! वो… हम्म्म्… अच्छी है़… एक अच्छी दोस्त है कुछ नहीं बोलेगी। 
मजाक कर रही हूँ यार…हं…हं… हंसती हुई अपना हाथ बढाया।
मैं भी हाथ मिलाता हुआ। दोस्त…
हम्म्… लेकिन सिर्फ दोस्त… ओर कुछ नहीं ।
हम्म्…! हं…हं…. हम हस पडे।
खडूस प्रोफेसर की कलांश पूरी हुई। हमने सोचा कुछ बोलेगे लेकिन देखते हुए निकल गये।
हम दोनो कलांश में जा बैठे। लगातार दो कलांश के बाद हम कॉलेज से निकल गये। हम दोनो का कॉलेज में पहला दिन ही था। 
अब कहा चले। सविता!
मतलब।
मतलब की गाँव की बस तो १ घण्टे बाद की है तो…
अच्छा… तो यह बात है। हम्म्म्… कुछ देर कॉलेज गार्डन में रूकते है। आगे की फिर सोचेंगे।
ठीक है। तो फिर चलो। आज कुछ अच्छा सा लग रहा था। उसके साथ कुछ पलो का बिताना… मतलब क्या बताऊ… यह फिलिंग्स ही कुछ अजीब सी होती है। कुछ छण खामोशी लिये बैठे रहे फिर सोचा अब मुझे ही शुरूआत करनी होगी…। ओर बताओ सविता
क्या?
अपने बारे में… 
बहूत जल्दी है आपको मेरे बारे में जानने की।
नहीं। जल्दी की बात नहीं हैं बस ऐसे ही। वैसे तूम चाहो तो मत बताओ।
तूम…! हं…हं… आप से सीधे तूम… बहूत जल्दी ओकाद पर आ गये।
क्या…? क्या….? मतलब इसमे हसने वाली बात कहाँ है अब हम दोस्त है तो यह सब चलता ही हैं।
हम्म्… लगता है बहूत कुछ सीखने को मिलेगा तूमसे।
मैं अकाशपुर में अपने मामा जी के वहाँ रहती हूँ। मैं परिवार पाली से है । परिवार में बडे भैया-भाभी ओर माँ है।
ओर पापा…
पापा… पापा को तो बरसो हो गये गुजरे ने। यह कहते हुए उसके हसते चहरे पर उदासी छा गई।वह भाव्युक हो पडी।
सोरी…
इट्स ओके यार… तू बता अपने बारे में….
क्या बताऊ । घर में मम्मी-पापा, बडे भैया ओर एक छुटकी बहना है। ओर प्रग्या भी। जो बहूत प्यारी ओर शरारती है। पापाजी खेती करते है। भैया नोकरी ओर छुटकी मेरे से झगडा करती रहती है।
ओर तूम।
मैं तो अभी पढ रहा हूँ । आगे का अभी सोचा नहीं ।
उसने मेरा लॉ का रजिस्टर खोला जिसके पीछे कुछ कविताएँ लिखी हुई थी।
वाऊ…पॉईटरीज। तूम पॉईटरी करते हो।
हम्म्। कभी कभी ।
कविताए मुझे बहुत पसंद है। 
अब चले वरन् बस छूट जायेगी। 
हम्म्। चलो ।
ओर हम वहा से चल पडे। बस में बिच राह तक दोनो तरफ से कोई बात नहीं हूई। मेरे स्टोप से कुछ देर पहले वो बोली कल आओंगे?
हम्म्। लेकिन बाइक से। 
अच्छा। बाय।
बाय….!
ऐसे ही हमारी दोस्ती की बाते साल भर चली। बाइक पर साथ आना-जाना। चाय-कॉफी इस बीच उसका ओर प्रग्या  का भी मिलना हो गया। मेरी तरफ से प्यार की बात कन्फार्म थी। काश वह भी मुझे करती। 
ओर फिर एक दिन कॉलेज लाईबरी में वो आई ओर बोली-  सरू
हम्म् । बोलो सवि! वक्त का कुछ पता भी नहीं चला हम कब एक दूसरे इतने सॉर्ट हो गये।
वो सरू तूम्हसे बात करनी थी।
हाँ बोलो क्या बात है। मैने उसके सामने देखा ऐसा लगा की वो बोलना तो बहूत कुछ चाहती थी लेकिन वह अपने लबो पर आई हुई बात लब्जो में बता नहीं पा रही थी। क्या हुआ। बोलो।
वो सरू कल मैं पाली जा रही हूँ ।
अच्छा तो यही बताने आयी।
नहीं। वो भैया ने तूम्हको भी बुलाया है। 
क्यो?
बस यूही। तूमसे मिलना चाहते है।
अच्छा तो फिर  ठीक है। चलते है कल। कब ओर कहा आना है समय बता देना बंदा हाजीर है।
कल सुबह ट्रेन में।
ठीक है। मैं आजाऊंगा।
दूसरे दिन सुबह वो ट्रेन में अपने मामा जी के छोटे लडके के साथ आयी ओर हमारा सफर पाली की ओर शुरू हुआ। 
भैया आपको पता है। जिजी सारे दिन मम्मी-पापा से आपके बारे में बात करती रहती है। उसने कहाँ !
अच्छा।
हूम्मम्… ओर आज जीजी आपको….
चुप…युग! ऐसे कहती हुई वह उसके ओठो पर हाथ रखा।
आरे बोलने दो ना। 
नहीं फालतू बकवाश करता रहता है । ओर वो यह कहती हुई नजरे चुराने लगी। मैं उसके दिल की बैचनी को महसूस कर रहा था। पहले तो मैं भी समझ नहीं पाया लेकिन जब हम पाली पहुंचे तो स्टेशन पर उसके भैया हमे लेने आये। ओर पूरी राह मेरे ओर परिवार के बारे में सवाल जवाब करते रहे। ओर घर पहुंचने पर उसकी माँ-  बेटा हर रोज सविता तूम्हारे बारे में फोन पर बतियाती रहती। तूम बिलकुल वैसे ही जैसे यह हमेशा बताया करती थी। तूमरी ओर सविता की जोडी बिलकुल राधा-कृष्ण जैसी लगेगी।
क्या मतलब ।
मतलब सविता की शादी…
सोरी आन्टी जी इसके बारे में मैंने अभी कुछ सोचा नहीं । वैसे भी इसका फैसला मैंरे परिवार वाले करेंगे। मैं नहीं ।
प्यार तो बहूत करता था। लेकिन इस कदर सीधे शादी की बात…ओर अभी तो मैं मेरे करियर के बारे में सोच रहा था। शादी जैसे बडे फैसले परिवार के बडे-बूर्जुग करे तो अच्छा लगता है। प्यार करता था लेकिन जिंदगी के इस फैसले में परिवार की अहमियत महसूस होती है। मैं अपने इस फैसले को स्वयं करके अपने संस्कारो का गला नहीं घोटना चाहता था शायद इसलिए इस फैसले को स्वयं नहीं करना चाहा।

कोई नहीं  सरद हम तूम्हारे परिवार वालो से बात करेंगे। सवि के भाई ने मेरे से कहा।
कुछ देर सवि के घर रूका फिर लोट आया। मैने सोचा भैया मेरे परिवार वालो से बात करेंगे। लेकिन किस्मत कुछ ओर ही मंजूर था।
दो दिन बाद सवि का कॉल आया।
हेलो... सरद ।
हम्म्…बोल सवि।
सोरी सरू मैं जानती हूँ तूमे बूरा लगा लेकिन मुझे ऐसा नहीं करना था।
क्या हुआ?सवि! तूम क्या बोल रही हो? मेरे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा। 
मैं मानती हूँ की मैने गलती करी हैं। यह जानते हुए कि तूम अंजली से बहूत प्यार करते हो। मैने तूमे अपने परिवार से मिलाने ले आयी। सोरी… तूम दोनो एक दूसरे के लिए ही बने हो पता नही मै बीच मे कहा से आ गयी।
ऐसी बात नहीं है सवि…
यही सचाई है। सरू। प्रग्या बहूत किस्मत वाली हैं। जिसे तूम्हारे जैसा जीवन साथी मिला। वैसे मेरा हमसफर मुझे मिल गया है।कल मेरी सगाई है। तूम आओंगे ना।
बस वही सबकुछ बोले जा रही थी। उसको क्या पता की अंजली तो मेरी दोस्त है सिर्फ एक अच्छी दोस्त । मैरा पहला प्यार तो वही है। उसका इस कदर सगाई में बुलाना मुझे ऐसा लग रहा था जैसे अपने खुद की बर्बादी का तमाशा दिखाने को बूला रही हो।हं…हं…???
हम्म् । जरूर आयूंगा।
थैंक्यू । मुझे पता था तूम जरूर हा करोंगे। मैं तूम्हारे जीवन की हमसफर नहीं बन सकी तो क्या? एक दोस्त तो हूँ। बस मेरे लिए इतना ही काफी हैं। तूम सुन रहे होना सरू।
हम्म् सुन रहा हूँ ।
उसने तो अपनी तरफ से इस काहनी को यहीं खत्म कर दी। ओर मेरी यह प्यार की कहानी अधूरी रह गई।हं…हं…कुछ कहानीयाँ पूरी नहीं होती। बस यही सच्चाई हैं।
अगर आप किसी से प्यार करते हो तो समय रहते इजहार करदो वरन् फिर कहीं देर नहीं हो जाये। ओर फिर मेरी तरह एक ओर कहानी अधूरी नहीं रह जाये।हं…हं…?????हम्म्म्  प्यार की एक अजीब दास्ता है। अजीब सी मनोभूति होती है।
हं…हं…हं…???????

        ✒ - एन आर ओमप्रकाश ।

blog : firt love incomplete  story...
nromprakash.blogspot.com