Kachcha kahanikaar - anu katha in Hindi Short Stories by Deepak Shah books and stories PDF | कच्चा कहानीकार - अणु कथा

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कच्चा कहानीकार - अणु कथा



कच्चा कहानीकार - अणु कथा


रमता : बस एक आख़री बार! एक आख़री बार मुझे कल मंच पर जाना है।

सखी : मैंने तुमको कभी नहीं रोका।

रमता : जनता हूँ। तुमने हमेशा मेरा साथ दिया है। तुमको कह कर शायद मैं ख़ुद से इजाज़त ले रहा हूँ। 


अगले दिन


संयोजक ने ये कह कर कि, “लेखकों, कवियों को एक अच्छा मंच चाहिए। और समाज को अच्छे लेखक, अच्छे कवि। जो समाज को सही रास्ता दिखा सकें। हम वही मंच हैं।” 

और सभा शुरू हुई। रमता ने जब मंच पर कहानी पढ़ी तो श्रोता सन्न रह गए। कहानी का एक-एक शब्द समाज को नंगा करता जान पड़ रहा था। बीच-बीच में दो-चार तालियों की आवाज़ भी उठ जाती थी। शायद समाज अपना सच बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। या समझ नहीं पा रहा था। 


कहानी के अन्त में कुछ लोगों ने, जो कहानी का मर्म समझे उन्होंने कहानी पर तालियाँ बजा दीं। बाक़ी को भी औपचारिकता वश पीछे बजानी पड़ीं। कहीं ताली बजाने वाला पड़ोसी ये न समझे कि ये ताली न बजाने वाला रूढ़िवादी या नासमझ है।


गोष्ठि के अन्त में रमता ने संयोजक से पूछा: आप मेरी कहानी का वीडियो कब तक रिलीज़ करेंगे?

संयोजक : रमता भाई आपका कॉन्टेंट हमेशा ज़बरदस्त होता है। पर पता नहीं क्यों आपके वीडियो पर ज़्यादा वियूज़ नहीं आते। 

एक और लेखक : आप सच बड़ी तीख़ी ज़ुबान में बोलते हैं। अपनी कहानी को थोड़ा मैलौ डाऊन करो। थोड़ा चटपटा। लोगों को सुनने का मज़ा आए। कहानी को थोड़ा पकाओ।

रमता : मतलब डॉक्टर ऑपेरशन करते वक़्त मरीज़ की सहूलियत देख कर चीरा लगाए। मर्ज़ देख कर नहीं। लेखक वो लिखे जो बिकता है। वो नहीं जो समाज को चाहिये। वाह!... जिसके सुन्दर शब्दों में आत्मा न हो वो लेखक उस बाँझ औरत की तरह है जिसमें हुस्न तो है सृजन नहीं। और औरत की सुन्दरता उसके जिस्म में नहीं सृजन की ताकत में होती है।

रमता ने संयोजक को नमस्कार किया : जवाब के लिए धन्यवाद!

कुछ रुक कर फिर रमता बोला : और हाँ! मैं कहानीकार हूँ। चाटपकौड़ी वाला नहीं।


अगली सुबहा;


सखी : तुम सुबहा-सुबहा ये कहाँ की तैयारी कर रहे हो। और तुमने अपनी सभी कहानियों की फाईल्स को पासवर्ड क्यों लगा दिया।


रमता : जो आईना देखने को तैयार न हो उसके आगे आईना नहीं रखना चाहिए। ये समाज अभी मेरी कहानियों के लिए तैयार नहीं। दस बजे मुझे एक इंटरव्यू के लिए पहुँचना है। बाक़ी बात शाम को करेंगे। 


सखी का मुँह खुला रह गया। और रमता का लैपटॉप बन्द।


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कुछ शब्द पाठकों से

"रमता" मात्र काल्पनिक पात्र नहीं। रमता हमारी अन्तरात्मा का प्रतीक है। जो मेरी हर कहानी का एक पात्र है। जिसका मुख्य होना अनिवार्य नहीं। पर हर कहानी में होना अनिवार्य है। रमता एक दर्शक की तरह पूरी घटना देखता/ कहता या जीता है। पर किसी कहानी का निष्कर्ष नहीं निकलता। निष्कर्ष निकालने का काम वह पाठक के विवेक पे छोड़ देता है। कहानी का अन्तिम निर्णायक पाठक का विवेक है। रमता का कथन नहीं।

आशा करता हूँ कहानी आपको विचार के लिए प्रेरित करेगी। आपकी राय का स्वागत है।