Mahabharat ka Nayak kaun ? in Hindi Mythological Stories by Ajay Amitabh Suman books and stories PDF | महाभारत का नायक कौन?

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महाभारत का नायक कौन?

आपके सामने जब भी प्रश्न पूछा जाता है कि महाभारत का नायक कौन है? तो आपके सामने अनेक योद्धाओं के चित्र सामने आने लगते हैं। कभी आपके सामने कृष्ण तो कभी भीम, कभी अर्जुन के नाम आते हैं। यहां पर मैंने यही जानने की कोशिश की है कि महाभारत का नायक असल में कौन है?


इस बात में कोई संदेह नहीं है कि कृष्ण ही महाभारत के सबसे उज्जवल व्यक्तित्व हैं, फिर भी कृष्ण की तुलना अन्य पात्रों से करना निहायत ही बेवकूफी वाली बात होगी। कृष्ण भगवान है और भगवान की तुलना किसी भी व्यक्ति से नहीं की जा सकती। तो उनको इस श्रेणी से बाहर रखना ही उचित है।


अब यदि हम बात करते हैं अर्जुन की , भीम की, युधिष्ठिर की, कर्ण की, दुर्योधन की तो निर्विवाद रुप से यह कहा जा सकता है कि कर्ण, अर्जुन और भीम बहुत ही शक्तिशाली थे। लेकिन कर्ण बुराई का साथ देते हैं। अर्जुन और भीम अहंकारी हैं। एक बार अर्जुन अपने बड़े भाई युधिष्ठिर पर हमला करने को तत्तपर हो जाते हैं जब युधिष्ठिर अर्जुन के गांडीव के बारे में बुरा कहते है।


इन पात्रों के विपरीत युधिष्ठर हमेशा धर्म में स्थिर रहने वाले व्यक्ति हैं। एक बार युधिष्ठर के चारो भाई भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव मृत हो जाते हैं। जब यक्ष युधिष्ठिर से प्रसन्न होकर किसी एक भाई को जीवित करने का वरदान देते हैं तो युधिष्ठिर अर्जुन या भीम का चुनाव न कर अपनी सौतेली माँ माद्री के बेटे को चुनते है। ये घटना युधिष्ठिर की धर्म में आस्था को दिखाती है।


महाभारत के बिल्कुल अंत में देखते हैं तो कि युधिष्ठिर अपने पांचों भाइयों और पत्नी द्रौपदी के साथ स्वर्ग सशरीर जाने की कोशिश करते हैं। आश्चर्य की बात है कि जब युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग जाने की कोशिश करते हैं तो एक-एक करके उनके सारे भाई यहां तक कि अर्जुन भीम नकुल सहदेव और उनकी पत्नी द्रौपदी भी रास्ते में शरीर का त्याग कर देते हैं। महाभारत के अंत में यह केवल युधिष्ठिर ही है जो सशरीर स्वर्ग में जाते हैं। यह साबित करता है कि महाभारत के सारे पात्रों में सबसे योग्य पात्र निश्चित रूप से युधिष्ठिर हैं है जो अंत में सशरीर स्वर्ग जाने के योग्य माने जाते हैं।


महाभारत में यह भी सीख मिलती है कि सबसे ज्यादा योग्य होना या सबसे ज्यादा शक्तिशाली होना महत्वपूर्ण नहीं है ।महत्वपूर्ण यह है कि किसने धर्म का अच्छी तरीके से पालन किया है। किसने स्वयं की बुराइयों पर विजय पाई है। भीम और अर्जुन में दुर्गुण था। वे दोनों शक्तिशाली थे और अपने आप को शक्तिशाली समझते भी थे। अर्जुन और भीम में अहंकार का भाव बहुत ज्यादा था ।वहीं नकुल और सहदेव थे वह भी अपने आप में बहुत अहम का भाव रखते थे। कर्ण ने धर्म का साथ दिया। यह बात युधिष्ठिर पर लागू नहीं होती।


युधिष्ठिर हमेशा से धर्म प्रयत्न व्यक्ति रहे हैं। उन्हें किसी भी तरह का घमंड का भाव नहीं है। वह हमेशा मर्यादा में रहते हैं और मर्यादा का पालन करते हैं । महाभारत के अंत में एक और सीख मिलती है। जब युधिष्ठिर स्वर्ग जाते हैं तो वहां पर अपने किसी भी भाई को नहीं पाते हैं और उन्हें इस बात पर बड़ा आश्चर्य होता है कि वहां पर सारे दुर्योधन और उनके सारे कुटिल भाई स्वर्ग में हैं ।


जब युधिष्ठिर नरक जाते हैं तो वहां पर उनके सारे भाई भीम अर्जुन नकुल सहदेव द्रोपदी यहां तक कि कर्ण भी मिलतें है।युधिष्ठिर के मन में ईश्वर के न्याय के प्रति शंका पैदा होती है। युधिष्ठिर सोचते हैं कि दुर्योधन इतना कुकर्मी होकर भी स्वर्ग में है और उनके भाई धर्म का पालन करते हुए भी नरक में है ऐसा क्यों? तभी स्वर्ग में एक आवाज निकलती है और उन्हें बताया जाता है कि उनके मन में अभी भी दुर्योधन के प्रति ईर्ष्या का भाव है जो कि अनुचित है।


महाभारत अंत में इस बात पर खत्म होती है की युधिष्ठिर के मन में दुर्योधन के प्रति ईर्ष्या का भाव खत्म हो जाता है सबके प्रति प्रेम जग जाता है। इस तरीके से महाभारत शिक्षा देती है कि वही व्यक्ति नायक है जो धर्म का पालन करता है। जिसके मन में सबके प्रति प्रेम का भाव होता है। जो अपनी बुराइयों पर विजय पाता है। इसी कारण से युधिष्ठिर ही सशरीर स्वर्ग में जाने के योग्य माने जाते हैं भीम और अर्जुन नहीं। जब युधिष्ठिर अपने मन में ईर्ष्या की भावना पर विजय प्राप्त कर लेते हैं तब महाभारत समाप्त हो जाता है। यही वो व्यक्ति युधिष्ठिर है जो स्वयं पे जीत हासिल करता है। इस तरह से महाभारत के नायक युधिष्ठिर ही है।


अजय अमिताभ सुमन