शांतनु
लेखक: सिद्धार्थ छाया
(मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण)
बारह
“अनु?...अनु?” शांतनु के सुझाव के बारे में क्या किया जाय उसकी सोच में डूबी अनुश्री का शांतनु ने ध्यान भंग किया|
“हमम? क्या?” अनुश्री भी अचानक नींद से जागी हो उस तरह शांतनु को देखने लगी|
“मेरे घर जायें?” शांतनु ने फ़िरसे पूछा|
“हममम... लगता है और कोई रास्ता भी नहीं, पर मुझे मम्मा को बताना होगा|” अनुश्री की आँखे भीगी हुई थी, उसे अभी भी अपने घर ही जाना था वो उसके चेहरे से स्पष्ट दिखाई दे रहा था पर वो हालात से मजबूर थी|
“श्योर, आप उनसे बात कीजिये और परिस्थिति को समझाने की कोशिश कीजिये, वो ज़रूर समझ जायेंगी| सेफ़्टी फ़र्स्ट राईट?” शांतनु ने हो सके उतनी नरमी और अपनेपन से अनुश्री को अच्छा महसूस हो उस तरह अपने चेहरे पर मुस्कान ला कर उसे ढाढस बंधाने की कोशिश करते हुए कहा|
अनुश्री ने अपने घर कौल लगाया और अपने मम्मा को परिस्थिति से अवगत कराया| शायद उसका भाई सुवास भी तब तक अपने घर पहुँच गया था ऐसा अनुश्री की बातों से शांतनु को लगा| थोड़ी देर बात करने के बाद अनुश्री ने शांतनु के सामने अपना सैलफोन बढ़ाया|
“मम्मा और भैया को आपसे बात करनी है|” सैलफोन शांतनु की ओर बढ़ाते हुए अनुश्री ने कहा|
“हल्लो? हाँ आंटी जी... आप...आप ज़रा भी फ़िक्र ना कीजियेगा...मैं घर जा कर पप्पा से भी आपकी बात करवाऊंगा... जी... अनु मेरी अच्छी दोस्त हैं उनकी सेफ़्टी मेरे लिये... जी...जी... सर, श्योर...जैसे ही बारिश रूकती है... जी...जी... यु केन कौल मी एनी टाइम.. मैं मेरा और मेरे पप्पा का नंबर आपको मैसेज कर देता हूँ...यु नीड़ नोट टू वरी...” इस तरह शांतनु ने अनुश्री के मम्मा और भाई सुवास के साथ बात कर अनुश्री को अपने घर ले जाने की मंज़ूरी ले ली|
शांतनु के घर जाने के लिये अपनी मम्मा और भाई की मंज़ूरी मिलने से अब शायद अनुश्री को भी थोड़ी सी राहत हुई हो ऐसा लगा क्यूंकि थोड़ी देर पहेले जो अनुश्री लगभग रोने की तयारी में थी उसके चहेरे पर चाहे फीकी ही सही पर अब मुस्कान थी| दोनों फ़िर से बाइक पर बैठे और सिर्फ़ दो से तीन मिनट में वो शांतनु के घर पहुँच गये| शांतनु ने डोरबेल बजाया और ज्वलंतभाईने मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोला|
“कहाँ थे शांतनुभाई, इतनी देर कहाँ लगाई?” ज्वलंतभाई ने अपने चितपरिचित अंदाज़ में प्रास मिलाते हुए शांतनु का स्वागत किया|
जवाब में शांतनु ने अपने होंठ पर ऊँगली रख कर अपने अंगूठे के इशारे से उन्हें अपने पीछे देखने को कहा, पर ज्वलंतभाई को कुछ समझ में नहीं आया|
“क्या हुआ? होठों पर क्यों रखी ऊँगली...क्या आपकी हालत है कुछ पतली?” ज्वलंतभाईने फ़िर से प्रास बिठाया|
“पप्पा, यह अनुश्री हैं, मेरी दोस्त, मेरे सामनेवाली ऑफ़िस में ही जॉब करती है| इनका घर बोपल में है और फ़िलहाल वहां बहुत बड़ा जलभराव हो गया है, इस लिये वो कुछ समय हमारे घर रुकेंगी|” शांतनु ने ज्वलंतभाई का कन्फ्यूजन और बढ़ाने से बेहतर अनुश्री को उनके सामने खड़ा कर देना ही ठीक समझा|
ज्वलंतभाई को थोडा आश्चर्य ज़रूर हुआ... “शांतनु और लड़की? और वो भी अपने घर ले कर आए?” यह बात कोई भी नहीं मानेगा तो फ़िर शांतनु के पिता तो कैसे मानेंगे? पर उन्हों ने रेनकोट में लिपटी अनुश्री को देख कर परिस्थिति की गंभीरता को भांप लिया|
“प्लीज़ कम इन.. बोथ ऑफ़ यु|” ज्वलंतभाई ने हंस कर दोनों का स्वागत किया| अनुश्री ने नर्वस स्माइल दे कर ज्वलंतभाई को नमस्ते किया|
दरवाज़े पर ही शांतनु को अपना रेनकोट उतारते देख अनुश्री ने भी अपना रेनकोट उतारना शुरू कर दिया, पर ज्वलंतभाईने दोनों को ऐसा करते हुए रोका|
ज्वलंतभाई के आदेश अनुसार शांतनु और अनुश्री दोनों सीधे शांतनु के रूम की गेलेरी में चले गये और वहीं अपने अपने रेनकोट उतारे| ज्वलंतभाई भी उनके पीछे पीछे ही आए| रेनकोट पहने हुए थे फ़िर भी बारिश का ज़ोर इतना था की दोनों अच्छेखासे भीग गये थे|
“शांतनु, आप अपने कपड़े ले कर बाथरूम में चेंज कर लीजिये|” ज्वलंतभाई ने कहा|
“ओके पप्पा पर अनुश्री? उसके कपड़े?” शांतनु ने महत्त्वपूर्ण सवाल उठाया|
“नो नो नो... आई एम फाइन, सुख जायेंगे और जल्द ही बारिश भी बंद हो जायेगी फ़िर तो घर ही जाना है?” अनुश्री बोली|
“अनुश्री, तब तक तो आप को सर्दी हो जायेगी| शांतनु, आप एक काम कीजिये, आप अपना कोई एक टी शर्ट और अपना कोई ट्रेक स्यूट अनुश्री को दीजिये, शी विल फ़ील कम्फर्टेबल और हाँ आप उन्हें अपना एक्स्ट्रा वाला टॉवेल भी दे दीजियेगा|” अनुभवी ज्वलंतभाईने लगभग आदेश के स्वर में कहा|
“हाँ अनुश्री वही सही रहेगा, सर्दी होने से तो बहेतर ये रहेगा की आप फ्रेश हो जायें|” शांतनु ने भी ज्वलंतभाई के सूर में सूर मिलाया और अनुश्री भी बात समझ गई और अपना सर हिला कर अपनी सहमती जताई|
शांतनु ने सोच समझकर अपना फेवरिट ब्लेक टी शर्ट और ऐश कलर का ट्रेक पेंट अनुश्री को पहनने को दिया और अपने बाथरूम की लाईट कर अनुश्री को अपनी मुस्कान दी| अनुश्री को इन दोनों को तकलीफ़ देना अच्छा नहीं लग रहा था पर ज्वलंतभाई की सलाह भी उसको भा गयी इस लिये वो बाथरूम में गई और लोक किया, जबकि शांतनु अपने कपड़े बदलने के लिये ज्वलंतभाई के कमरे की ओर बढ़ा...
शांतनु जब ज्वलंतभाई के कमरे से लिविंग रूम में आया तब अनुश्री ऑलरेडी वहां बैठी हुई थी| ब्लेक टी-शर्ट और ऐश ट्रेक पेंट में गिले बालों वाली अनुश्री अत्यंत आकर्षक लग रही थी और शांतनु अपनी नज़रें उस पर गड़ाये हुए खड़ा रहा| फ़िलहाल वो अपने सैलफोन पर सीरतदीप से बात कर रही थी| उतने में ही ज्वलंतभाई एक ट्रे में चाय के तीन कप और थोड़े बिस्कुट ले कर आए|
“चलो दोनों गरमागरम मसालेदार चाय पी लो, थोड़े बिस्कुट कहा कर फ्रेश हो जाओ| सौरी अनुश्री महाराज नहीं आए वरना आपको गरमागरम नाश्ता ही करवाता|” ट्रे को टेबल पर रखते हुए ज्वलंतभाई बोले|
“वेरी सौरी अंकल, मैं आप दोनों को तकलीफ दे रखी हूँ|” अनुश्री बोली|
“अरे? उसमें तकलीफ़ कैसी? आप शांतनु की दोस्त हो तो यह घर आपका ही है|” ज्वलंतभाई ने जवाब दिया|
शांतनु को ज्वलंतभाई का ‘यह घर आपका ही है’ बोलना बहुत अच्छा लगा और वो मन ही मन में ‘आमीन’ बोला, ताकी भगवान ने भी अगर यह बात सुनी हो तो वे भविष्य में यह घर अनुश्री का ही हो जाये उसका कोई रास्ता निकाल दे|
तीनों ने चाय नाश्ता किया और बातें करने लगे| अनुश्री बार बार खिड़की के बाहर देख रही थी पर बारिश बंद तो क्या कम होने का भी नाम नहीं ले रही थी| जिस स्पीड से उसने दोपहर को बरसना शुरू किया था उसमे बिलकुल भी कमी नहीं हुई थी| शांतनु यह सब नोटिस कर रहा था और अचानक उसे अपना प्रोमिस याद आया...
“अरे पप्पा... आप ज़रा अनुश्री के मम्मा जी और भाई से बात करेंगे? वो लोग अनु की बहुत चिंता कर रहे होंगे, कुछ भी हो हम तो उनके लिये अनजान ही है ना?” शांतनु का ऐसा बोलना अनुश्री को अच्छा लगा|
“क्यूँ नहीं? शांतनु यह बात आपको मुझे पहले बतानी चाहिये थी, वो लोग इनकी ज़रूर चिंता कर रहे होंगे, लाइये उनका नंबर जोड़ दीजिये|” ज्वलंतभाई बोले|
शांतनु ने अनुश्री से सुवास का नंबर लिया और डायल किया और फ़िर अपना सैलफोन अनुश्री को दिया|
“हां भाई, अनु.. मैं बिलकुल सेफ़ हूँ और शांतनु के घर पर ही हूँ, आप और मम्मा मेरी ज़रा भी फ़िक्र मत कीजिये| मैं शांतनु के पापा को फ़ोन दे रही हूँ वो आपसे बात करना चाहते हैं, और बाद में मम्मा को भी दीजियेगा, उन्हें उनसे भी बात करनी है|” अनुश्री ने ज्वलंतभाई की ओर सैलफोन देते हुए कहा|
इस दौरान शांतनु ने ज्वलंतभाई को अनुश्री के भाई का नाम और उनके बारे में वो जितना भी जानता था वो सारी डिटेल ज्वलंतभाई को दे दी|
“जी, नमस्ते सुवासभाई, मैं ज्वलंत बुच, रिटायर्ड चीफ़ सेक्रेटरी टू ध मिनिस्टर ऑफ़ नर्मदा प्रोजेक्ट...” ज्वलंतभाईने बात शुरू की| उन्हों ने उसके बाद अनुश्री के मम्मा से भी काफ़ी बातें की और अपने अनुभव को काम लगा कर उनको अनुश्री के बारे में ज़रा भी चिंता न करने को कहा और उनकी बातों ने कमाल कर दिया|
बारिश का ज़ोर अभी भी उतना ही होने से अनुश्री के मम्मा ने अनुश्री को आज की रात शांतनु के घर ही रुक जाने को कहा क्यूंकि अगर बारिश थोड़ी देर में भी बंद हो जायेगी तो भी पानी का स्तर कम होने में घंटो लगनेवाले थे और रात के समय कोई भी रिस्क लेने से उन्होंने और सुवास दोनों ने अनुश्री को साफ़ मना किया| ज्वलंतभाई की एक एक बात पर जैसे की उन दोनों को विश्वास बैठ गया था की अनुश्री उनके और शांतनु के पास ही सुरक्षित रहेगी| थोड़ी बहुत झिजक के बाद अनुश्री भी शांतनु के घर रात रुकने को तैयार हो गयी|
शांतनु के लिये ये सब चमत्कार से कम नहीं था| उसने मन ही मन वरुण देव का धन्यवाद किया क्यूंकि अगर वो उसकी मदद न करते तो अनुश्री शायद कभी भी उसके घर इतनी आसानी से नहीं आती|
अनुश्री अब पूरी रात वहीँ रुकनेवाली है और अब उसे अनुश्री के साथ देर रात तक बातें करने का मौका मिलनेवाला है यह सोच कर ही शांतनु के चहेरे पर मुस्कान सी आ गयी| पर शांतनु ने अपने उत्साह पर कंट्रोल कर दिया और अपने चहेरे के हावभाव बदल लिये|
शांतनु ने टीवी ओन किया ताकी अनुश्री का मूड चेंज हो सके और फ़िलहाल बातें कर के अनुश्री को ज़्यादा तकलीफ न देने का निर्णय भी लिया| उस तरफ़ अनुश्री भी अब धीरे धीरे रिलेक्स फ़ील करने लगी थी और टीवी पर चल रहे किसी कोमेड़ी शो को एन्जॉय कर रही थी| शांतनु ज्वलंतभाई और अनुश्री का ख्याल रख कर बीच बीच में अनुश्री को देख लेता था और तभी ज्वलंतभाई की आवाज़ने उसका और अनुश्री का ध्यान उनकी ओर खींचा|”
“भाइयों और बहनों, एक मुसीबत आन पड़ी है, महाराज का कौल था की आज वो आनेवाले नहीं है|” ज्वलंतभाई ने अपने सैलफोन पर महाराज का कौल कट करते हुए कहा|
“तो अब हम क्या करेंगे? घर आए मेहमान को क्या भूखा मारेंगे?” शांतनु ने अनुश्री की ओर इशारा किया और प्रास में ही जवाब दिया|
“ऐसे मेहमान को भूखा कैसे मार सकते हैं? पुरे भारत में हम ख़ुद को शर्मसार कैसे कर सकते हैं? ज्वलंतभाईने भी ताबड़तोड़ जवाब दिया|
“तो परिस्थिति को समझते हैं और बाहर से ही कुछ ऑर्डर करते हैं|” शांतनु अनुश्री के अपने घर आने के आनंद को और भी बढ़ा रहा था|
“पर ऐसी ज़बरदस्त बारिश में हम बहार जा सकते नहीं और कोई घर आ कर खाना दे जायेगा ऐसा तो सोच सकते नहीं|” ज्वलंतभाई की बातों में दम था|
“पर चाय-बिस्कुट से पेट नहीं भर सकते और मेहमान को ऐसे परेशान नहीं कर सकते|” वैसे तो शांतनु को थोड़े समय बाद प्रास मिलाने में दिक्कत होती थी पर आज अनुश्री की मौजूदगी ने उसकी उस दिक्कत को भी दूर कर दी थी|
वैसे भी शांतनु को इस तरह बात कर के अनुश्री को इम्प्रेस करना था इस लिये वो लगातार सही प्रास मिला रहा था और अनुश्री भी शायद इम्प्रेस हो भी रही थी| वो ध्यान से बाप बेटे की बातों को समझने की कोशिश कर रही थी और मंद मंद मुस्कुरा रही थी|
“आप दोनों कविता कर रहे हो?” अनुश्री ने भोलेपन में अपना आश्चर्य मिला कर मुस्कुरा कर पूछा|
“टाइम प्लीज़ पप्पा.. बट सौरी मुझे अनुश्री को एक्सप्लेन करना पड़ेगा|” शांतनु ने समय पर टाइम प्लीज़ भी कह दिया... देखा? आज उससे ज़रा भी चूक नहीं हो रही थी|
“ज़रूर, क्यूँ नहीं, उन्हें इस तकलीफ़ से दूर तो करना ही होगा|” ज्वलंतभाईने शांतनु के प्रास में प्रास मिलाया|
पर अब तक अनुश्री बाप बेटे के प्रासानुप्रास के इस खेल को अहोभाव से देख रही थी शांतनु के टाइम प्लीज़ कहने पर अब उसको इस खेल के नियम कुछ कुछ समझ में आ गये थे|
“रेग्युलर ढंग से बात करने से मज़ा नहीं आता कुछ ख़ास इसीलिये आप दोनों कुछ पल बात करते हो मिला कर प्रास!” अनुश्री अचानक से हंसते हंसते बोली|
“वाह वाह अनुश्री क्या बात है, इसका मतलब है की आपमें भी है प्रास मिलाने का टेलेंट कुछ ख़ास|” ज्वलंतभाईने अनुश्री की तारीफ़ की|
“टेलेंट का तो पता नहीं पर अब लग रहा है की इस खेल के लिये मैं नई नहीं|” अब अनुश्री दिल खोल कर हंस रही थीं|
“पर सिर्फ़ प्रास बिठाने से पेट नहीं भरेगा, पेटपूजा की तयारी कौन करेगा?” शांतनु ने महत्वपूर्ण सवाल उठाया|
“हम दोनों तो सिर्फ़ प्रास बिठाने में हैं होंशियार, जब रसोई की बात आए तो हमें आने लगते हैं चक्कर चार|” ज्वलंतभाई बोले|
“रसोई की आप मत कीजिये फिकर, व्हेन अनु इज़ हियर!” अनुश्री ने फटाक से जवाब दिया|
“टाइम प्लीज़...टाइम प्लीज़... टाइम प्लीज़... हम तीनों की ओर से मेरा टाइम प्लीज़|” शांतनु ने प्रास से भरी बातों को रोका|
“क्यूं? क्या हुआ?” अनुश्री बोली, ऐसे बात करने में उसको शायद मज़ा आ रहा था|
“कम ओन अनु, आप हमारे मेहमान हो, और हम आपसे कैसे कुकिंग करवा सकते हैं?” शांतनु ने अपना विरोध दर्ज करवाया|
“मैं भी शांतनु की बात से सहमत हूँ अनुश्री, आप ऐसे कैसे रसोई बना सकते हैं? आप तो..” ज्वलंतभाई ने भी शांतनु की बात को समर्थन दिया|
“क्यूँ? आप दोनों को डर लग रहा है की में बकवास खाना बनाउंगी? देखिये, हर शाम और संडे दोनों टाइम घर पर मैं ही खाना बनाती हूँ और सुवासभाई तो मेरी कुकिंग के दीवाने हैं|” अनुश्री ने अपना पक्ष रखा|
“वो मैं समझ सकता हूँ अनु, पर आप ऑलरेडी थोड़े से टेंशन में हो और ऐसे कैसे?” शांतनु ने दलील करना चाही|
“ऐसे या वैसे, मुझे पक्का यकीन है की मैं आप दोनों से तो अच्छा खाना ही बना लूँगी और जैसा तुमने कहा की न तो हम खाना खाने बाहर जा सकते हैं और नहीं कोई खाना घर पर डिलीवर करवा सकता है, प्लस मैं तुम्हारी अच्छी दोस्त हूँ ना शांतनु? और अभी अभी तो अंकल जी ने कहा की इसे मैं अपना ही घर समझूं तो फ़िर हम लोगों को एक दूसरे से शरमाने की या एक दूसरे के लिये इतना फोर्मल होने की क्या जरूरत है? मैं ठीक कह रही हूँ ना अंकल?” अनुश्री ज्वलंतभाई की ओर देखने लगी और उनके निर्णय का इंतजार करने लगी|
क्रमशः