महिला यौन उत्पीड़न ना केवल भारत देश में अपनी जड़ों को जमा चुका है अपितु विदेशों में भी अपनी पकड़ बनाये हुए है, इसी के तहत एक नई सोच जो #मीटू के नाम से विख्यात हुई है वो बाढ़ की तरह अपनी सीमाओं को लगातार लाँघ रही है, #मीटू के तहत हर वो महिला या पुरूष जो अपने जीवन में यौन उत्पीड़न का शिकार हुए है अपनी समस्याओं को जाहिर कर रहे है, #मी टू कहने को तो मात्र दो लब्ज़ है पर इन्ही दो लब्जो के जरिये लाखों लोगों ने अपने साथ हुई यौन शोषण की बातें ज़ाहिर की है,
ये मीटू हमारे भारत देश की उपज नही बल्कि अमेरिका की गोद में जन्मा है जो अब अपना विशाल रूप लेकर विश्व के हर कोने में अपना रुख बड़ा चुका है,
अमेरिका में सबसे पहले हॉलीवुड अभिनेत्री एलिसा मिलानो ने अपने ट्विटर अकाउंट पर एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने सैक्शुअली हैरेस होने की बात लिखी और लिखा कि हर वो शख्स जो कभी भी यौन उत्पीड़न का शिकार हुआ हो वो ट्वीट के कमेंट पर आकर #Metoo लिखे। वही से बढ़ता हुआ ये आज हमारे डेढ़ की सीमा तक आ पहुँचा,लाखों लड़के-लड़कियों ने इस हैशटैग के साथ अपनी बात लिखी। इस कैंपेन में ना सिर्फ आम लड़के-लड़की बल्कि बॉलीवुड से लेकर टीवी कलाकारों तक ने लिखा।
सरकार ने 2013 में एक कानून बनाया था। इसके बाद कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 अस्तित्व में आया
पर क्या #मीटू कैम्पेन आगे बढ़ाने से महिला उत्पीड़न की समस्या हल हो गयी, क्या उनके साथ हुआ यौन उत्पीड़न केवल वजह है ,हज़ारो महिलाएं अपने ख़ुद के घर में उत्पीड़न का शिकार होती है उनका इससे लेना देना नही, क्या वो इसका हिस्सा नही, हज़ारो महिलाएं शादी शुदा होने बावजूद अपने ही पति की जबर्दस्ती का शिकार होती है क्या वो महिला उत्पीड़न नही, पर वो बदनामी की वजह से चुप रहती है और इसे अपनी नियति मान कर अपना जीवन बिता देती है ये उत्पीड़न नही, हजारो माँ अपने परिवार की जिद की वजह से अपनी कोख़ से लड़की गिरा देती है ये उत्पीड़न नही, हज़ारो महिलाओं को अपने सास ननद पति के तानों और बुरे बर्ताव की वजह से आत्महत्या करनी पड़ती है क्या ये महिला उत्पीड़न नही, महिलाओं का अस्तित्व केवल चार दीवारी की शोभा बनकर रह गया क्या ये उत्पीड़न नही? पर हमेशा की तरह ये सवाल भी उतने ही अधूरे है जितने की इनके जवाव,
भारत मे लगभग हर महिला किसी ना किसी तरह से उत्पीड़न का शिकार होती है, शारिरिक कष्ट के साथ मानसिक यातनायें झेलना भी महिला उत्पीड़न का ही हिस्सा है, जिससे महिलाओ को सुरक्षा दिलाना लगभग असंभव है,ये बात अलग है कि जिनकी पहुच दूर तक होती है या जो अपने आप मे खुद सक्षम होती है वो पूरी दुनिया के सामने आने का दम रखती है,इसके अलावा हमारे देश मे लगभग इतनी आबादी ऐसी है जो महिलाओं को न केवल उत्पीड़न झेलने के लिए कहती है बल्कि आजीवन उसका हिस्सा बनाकर रखते है।
बातें सामने रखना और समस्या का निदान दो अलग हिस्से है,
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धन्यवाद
सोनिया चेतन कानूनगों