Vo ek din in Hindi Love Stories by Pratibha Gautam books and stories PDF | वो एक दिन

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वो एक दिन

मैं आभा एक सीधी सिंपल, अपनी पढ़ाई से मतलब रखने वाली लडकी। जिसके २० वर्ष साधारण और रोजमर्रा के कामों को करते हुए कब बीत गए पता ही नहीं चला। परिवर्तन क्या होता है इस बात से बेखबर उस दिन भी मैं अपनी दिनचर्या के काम करके कॉलेज जा रही थी। लेकिन यह दिन मेरे लिए कुछ अलग लेकर आने वाला था जो मुझे और मेरे जीने के तरीके को बदलने वाला था।
           तेज रफ़्तार से चलते हुए मैं अपनी क्लास की तरफ बढ़ रही थी। रोज की तरह उस दिन भी मैं लेट थी लेकिन फिर भी इस जद्दोजहद में थी कि कैसे भी बस  9 बजे क्लास में पहुँच जाऊँ। 
 उस वक्त सारी दुनिया एक तरफ और क्लास में सही वक्त पर पहुँचने की मेरी कोशिश एक तरफ।  जिसके चलते मेरे कानों में पड़ने वाली मेरे नाम की पुकार को भी मैं नजरअंदाज कर बस मैराथन में जीत हासिल करने की फिलिंग लिए भाग रही थी। चलते-2 घडी देखी तो 9 बजने में 1 मिनट शेष था। मैं उस घडी को जो कलाई से थोडी ऊपर चढ़ आयी थी, को पुन:स्थिति में लाने का प्रयास कर ही रही थी कि तभी न जाने कहाँ से वो लडका मेरे सामने आ गया जिससे मैं अपना एक कदम आगे बढ़ाने पर टकराने वाली थी। हम दोनों ने अपनी तेज रफ्तार को अचानक ब्रेक दिया। उस ब्रेक ने पूर्णरूप से हमें जड़ बना दिया था। हम वास्तविक दुनिया से दूर किसी और ही दुनिया में खो गए लेकिन अचानक पास से निकलती लडकी जैसे ही मुझसे टकरायी तो हम दोनों वापस असल दुनिया में लौटे जहाँ वो शांति नदारद थी जिसमें दो मिनट पहले तक हम खोये थे। एक-दूसरे से नजरे हटाते हुए आगे बढ़ने लगे तो दोनों एक ही तरफ से आगे बढते और टकराने से बचने की कोशिश करते लेकिन यह दो-तीन बार होने के पश्चात उसने अपने हाथ के इशारे से मुझे रोका और लेडिज फर्स्ट बोलते हुए मुझे जाने का रास्ता दिया। थोडा आगे जाकर न जाने क्यों मैं उस दिन दोबारा मुडी़ जबकि मैं पहले ही लेट थी लेकिन फिर भी मेरे चेहरे पर एक हल्की मुस्कान तैर गई। वो लम्हा मुझे एक अलग अहसास दे रहा था जिसके चलते मुझे लगा जैसे मैं किसी नए-से रंग में रंग गई हूँ।
           दरवाजे को ढकेलते हुए जैसे ही मैं क्लास की ओर बढ़ी तो सबकी निगाहें मुझपर ठहर गयी जोकि एक साधारण बात थी लेकिन न जाने क्यों वो नजरें मुझे घूरती हुई प्रतीत हो रही थी जैसे किसी ने मेरी चोरी पकड़ ली हो। आज मैनें नजरों को ऊपर न उठाया और जाकर पीछे खाली पडी डेस्क पर अकेली बैठ गयी। रोज की तरह आज मेरी नजरे अपने टीचर की तरफ न होकर डेस्क में गढ़ी  रही। सब लेक्चर के दौरान खामोश थे और मैं भी लेकिन अंतर था तो सिर्फ इतना कि वो सब क्लास में ही थे लेकिन मैं क्लास में रहकर भी कहीं और। शायद उस लडके के ख्यालों में जिसके नाम से भी मैं अनजान थी। एक घंटा कब बीत गया पता ही नहीं चला। मैं अभी भी अपनी दुनिया में मशगूल थी इसी कारण जब सर ने मेरा नाम पुकारते हुए कहा कि आभा आज कोई क्वेशन नहीं? ( अक्चुली लेक्चर समाप्त होने के बाद 10 मिनट मेरे द्वारा पूछे जाने वाले अजीबोगरीब क्वेशन में जाने तय होते थे।) तो मैं थोड़ा चौंकते हुए वापस वर्तमान में लौटी और ना में सिर हिलाया तो सभी आश्चर्यचकित नजरों से मुझे देखने लगे। सर भी हँसते हुए क्लास से बाहर चले गए। दो मिनट पश्चात देखा तो क्लास के बच्चों का झुंड मेरे चारों ओर घेरा बनाए खडा़ था। इन्हीं सब में खड़ी मेरी बेस्ट फ्रेंड मुझसे बोली, आभू तुझे क्या हुआ आज कोई क्वेशन नहीं! वर्ना तो चुप करवाने से भी चुप नहीं होती थी। मैं शर्म से घिरी थी, बोलने के लिए कुछ सोचती तभी दूसरी तरफ से आवाज आयी अरे मीनू देख तो जरा कहीं आज सूरज पश्चिम से तो नहीं निकला न? सब ठहाके मारते हुए जोर से हँसने लगे और मैं तो जैसे वहीं पानी -पानी हो गयी। अब मैं खड़े होते बोली क्या यार तुम सब भी न। वो बस आज सिर में थोड़ा दर्द है। चलो मै लाइब्रेरी जा रहीं हूँ। वहाँ सब शांत होगा तो ठीक हो जाऊँगी, कहते हुए मैं लाइब्रेरी की तरफ बढ़ चली।
          शायद आज किस्मत को कुछ और ही मंजूर था तभी तो जैसे ही रीडिंग हॉल की तरफ जाने का रूख किया तो कदम फिर एक बार ठिठक गए।  सामने वहीं अनजाना लेकिन जाना-पहचाना सा चेहरा था। मैं असहज महसूस कर रही थी लेकिन फिर भी अपनी तेज होती धड़कनों को काबू करने का प्रयास करते हुए आगे बढ़ी तो लाइब्रेरी में हुई एक हल्की हलचल से उसकी नजरें मुझ पर पड़ी। हमारी नज़रे आपस में मिली और मैं उसकी तरफ बढ़ी लेकिन  उसके पास से होते हुए आगे बढ़ गयी। न जाने क्यों उस दिन मेरा मन शरारती हो चला था। मैं किताब को टेबल पर रखकर कनखियों से उसे देखने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो पढ़ने में मशगूल था अत: मैने भी किताब को खोलकर पढ़ना शुरू किया। एक पेज पढ़ने के बाद अहसास हुआ कि मैने सिर्फ रीडिंग की है। शायद मेरा मन अभी भी उस चेहरे में अटका था। मैं परेशान हो उठी। एक तरफ एग्जाम्स नजदीक थे और स्नातक का अंतिम वर्ष भी। मैं खुद को मन-ही-मन डाँट लगाते हुए बोली - आभा क्या कर रही है तू? कैसे किसी को अपने मन पर हावी होने दे सकती है? तू जानती है न, कितने लोगों की उम्मीद जुड़ी है तुझसे? और तेरे खुद के सपने, उनका क्या? भूल गई सब? और अगर नहीं तो फिर क्या है यह सब? इन सब बातों ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया। मेरी रूह काँप उठी। अब वास्तव में मेरे सिर में दर्द होने लगा था। मैं भी खुद को मजबूती देते हुए खड़ी हुई और रीडिंग हॉल से वापस जाने लगी। मन तो कर रहा था कि एक बार देख लू बस लेकिन फिर से  एक अंदरूनी आवाज आई - 'क्या करेगी एक बार देखकर ? क्या कोई मतलब है इन सब का? आभा क्या हो गया है तुझे? तू तो ऐसी न थी।' 
            मेरे अंदर दर्द का सैलाब उमड़ आया था और आँखे माने बारिश वाले बादल बन चुके थे जिनसे एक बार शुरू होकर फिर न रुकने वाला पानी किसी भी पल बरसने को तैयार था। मैं लंबी साँसे लेते हुए आगे बढ़ चली। अपने दर्द पर हल्की मुस्कान का का पर्दा डालकर। खुद को सामान्य करने की कोशिश करते हुए लाइब्रेरी से बाहर आयी ही थी कि फ्रेंड से सामना हुआ। मिलते ही बोली आभू चल ना एक टॉपिक डिस्कस करना है, वैसे भी कल से कॉलेज बंद है। जब मैं कुछ न बोली तो उसने मुझे थोडा झकझोरते हुए कहा, आभू कहाँ खोयी है? चल ना। मैने जैसे ही उसकी तरफ देखा तो मेरी आंखों से आँसू छलक आए शायद लव-एट-फर्स्ट-साइट का ही असर था। मेरी फ्रेंड ने मेरे आँसू पोछते हुए पूछा- आभू क्या हुआ तुझे ? मैं क्या कहती कि प्यार हो गया है मुझे, जिससे मिलने से पहले ही दूर हो गई मैं। इसलिए मैने कह दिया कि यार सिर में बहुत दर्द हो रहा है पता नहीं क्यों। उसने मुझे प्यार से सहलाते हुए कहा कोई बात नहीं तू मेरे  साथ रह । अच्छा चल सिर दर्द की गोली लेकर आते है। मैं कुछ कहती उससे पहले ही बोल पडी अब 'ना' नहीं सुनना मुझे। अपना ध्यान तो रखना नहीं है तुझे। चल अब चुपचाप। वह प्यार भरी डाँट पिलाते हुए बोली। मैं उसे देखते हुए हल्का सा मुस्कुरा उठी। वो कुछ पूछती उससे पहले ही मैं कह उठी आई लव यू यार। वो असमंजस में मुझे देखती और कहती तू पागल हो गई है आज। वैसे आई लव यू टू। हम दोनों न एक-दूसरे को गले लगाया तो मेरे सामने एक बार फिर वहीं जाना-पहचाना अनजान चेहरा था लेकिन इस बार मैनें उसे इग्नोर करते हुए अपनी फ्रैंड को और भी जोर से हग कर लिया। लेकिन उसने मुझे प्यार से डाँटते हुए कहा कि 'ओए मार डालेगी क्या आज?' तो मैनें भी मजाकिया लहजे में 'हाँ' कह दिया और हम दोनों जोर-से हँसने लगे।
   
          उस दिन समझ गई थी कि प्यार तो हर रिश्ते में मौजूद है। बस हम ही अंधे हो जाते है। अब मैं खुश थी। क्या खोया था वो तो नहीं पता लेकिन बहुत कुछ पा लिया था जिसके कारण मैं खुशी से गदगद हो उठी...