Krushn yogi bhi, bhogi bhi in Hindi Philosophy by Ajay Amitabh Suman books and stories PDF | कृष्ण योगी भी , भोगी भी

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कृष्ण योगी भी , भोगी भी

मेरे एक मित्र ने कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर सोशल मीडिया पे वायरल हो रहे एक मैसेज दिखाया। इसमें भगवान श्रीकृष्ण को काफी नकारात्मक रूप से दर्शाया गया है। उनके जीवन की झांकी जिस तरह से प्रस्तुत की गई थी उसका अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ।

"1.नग्न लड़कियों के कपड़े चुराए, माखन की चोरी की,

2. कंकड़ मार कर लडकियों के साथ छेड़खानी की,

3.अनेक युवतियों के साथ रासलीला किए,

4.राधा का इस्तेमाल करके फेक दिए,

5.रुक्मिणी का किडनैपिंग कर शादी किए,

6. जरासंध से हारकर भाग गए,

7. 16000 लड़कियों से शादी किए,

8. अपनी बहन सुभद्रा को बड़े भाई बलराम के इक्छा के विरुद्ध अर्जुन के साथ भगवा दिए,

9.महान वीर बर्बरीक को मार दिए,

10 दुर्योधन के पास जाकर संधि प्रस्ताव गलत तरीके से प्रस्तुत कर उसकी क्रोधाग्नि को भड़काए,

11.दुर्योधन के साथ छल कर उसे केला का पत्ता पहनकर माता गांधारी के पास भेजा ताकि जांघ का हिस्सा कमजोर रहे,

12.अर्जुन को बहकाकर महाभारत युद्ध लड़वाए,

13.अपना वचन भंग कर भीष्म के खिलाफ शस्त्र उठा लिए,

14.कर्ण, भीष्म, द्रोणाचार्य, दुर्योधन,जरासंध , जयद्रथ आदि का वध गलत तरीके से करवाए

15.और अंत मे एक शिकारी के हाथों मारे गए।"

मेरे मित्र काफी उत्साहित होकर इन सारे तथ्यों को मेरे सामने प्रस्तुत कर रहे थे। काफी सारे लोग मजाक में हीं सही, बज अनुमोदन कर रहे थे। उन्हें मुझसे भी अनुमोदन की अपेक्षा थी। मुझे मैसेज पढ़कर अति आश्चर्य हुआ।आजकल सोसल मीडिया ज्ञान के प्रसारण का बहुत सशक्त माध्यम बन गई है। परंतु इससे अति भ्रामक सूचनाएं भी प्रसारित की जा रही हैं।ईधर मैंने एक गीत भी सुना:

"वो करे तो रासलीला, हम करें तो कैरेक्टर ढीला"

इस तरह के गीत भी आजकल श्रीकृष्ण को गलत तरीके से समझ कर लिखे जा रहे हैं। मुझे इस तरह की मानसिकता वाले लोगो पर तरस आता है।ऐसे माहौल में, जहां भगवान श्रीकृष्ण को गाली देना एक फैशन स्टेटमेंट बन गया है।मैंने सोचा, उनके व्यक्तित्व को सही तरीके से प्रस्तुत किया जाना जरूरी है। इससे उनके बारे मे किये जा रहे भ्रामक प्रचार को फैलने से रोका जा सकता है। इसी विचार से मैंने यह लेख लिखा है।

सबसे पहली बात श्रीकृष्ण अपरिमित, असीमित हैं। उनके बारे में लिखना सूरज को दिया दिखाने के समान है। मेरे जैसे सीमित योग्यता वाला व्यक्ति यह कल्पना भी कैसे कर सकता है कृष्ण की संपूर्णता को व्यक्त करने का। मैं अपने इस धृष्टता के लिए सबसे पहले क्षमा मांगकर हीं शुरुआत करना श्रेयकर समझता हूं।

भगवान श्रीकृष्ण को समझना बहुत ही दुरूह और दुशाध्य कार्य है। राधा को वो असीमित प्रेम करते है। जब भी श्री कृष्ण के प्रेम की बात की जाती है तो राधा का हीं नाम आता है, उनकी पत्नी रुक्मिणी या सत्यभामा का नहीं। उनका प्रेम राधा के प्रति वासना मुक्त है। आप कहीं भी जाएंगे तो आपको कृष्ण रुक्मणी या कृष्ण सत्यभामा का मंदिर नजर नहीं आता। हर जगह कृष्ण और राधा का ही नाम आता है। हर जगह कृष्ण और राधा के ही मंदिर नजर आते हैं। यहां तक कि मंदिरों में आपको कृष्ण और राधा की ही मूर्तियां नजर आएंगी ना कि रुक्मणी कृष्ण और सत्यभामा कृष्ण के । कृष्ण जानते थे कि यदि वह राधा के प्रेम में ही रह गए तो आने वाले दिनों में उन्हें भविष्य में जो बड़े-बड़े काम करने हैं, वह उन्हें पूर्ण करने से वंचित रह जाएंगे या उन कामों को करने में बाधा आएगी। इसी कारण से कृष्ण अपनी प्रेमिका राधा को छोड़ देते हैं और जीवन में आगे बढ़ जाते हैं। कृष्ण का राधा के प्रति प्रेम वासना से मुक्त है। कृष्ण जब अपने जीवन में आगे बढ़ जाते हैं तो राधा की तरफ फिर पीछे मुड़कर नहीं देखते और ना हीं राधा उनके पीछे कभी आती हैं। ऊपरी तौर से कृष्ण भले हीं राधा के प्रति आसक्त दिखते हों लेकिन अन्तरतम में वो निरासक्त हैं।

कृष्ण पर यह भी आरोप लगता है कि वह बचपन में जवान नग्न लड़कियों के कपड़े चुराते हैं । लोग यह भूल जाते हैं कि इसका उद्देश्य केवल यही था कि लड़कियां यह जाने कि तालाब में बिल्कुल नग्न होकर नहीं नहाना चाहिए। उन्हें यह सबक सिखाना था। उन्हें यह शिक्षा देनी थी ।यदि वह बचपन में लड़कियों के कपड़े चुराते हैं ,माखन खाते हैं, या लड़कियों के मटको को फोड़ते हैं तो इसका कोई इतना ही मतलब है कि अपने इस तरह के नटखट कामों से उनका का दिल बहलाते थे ।

श्रीकृष्ण को लोग यह देखते हैं कि बचपन में वह लड़कियों के कपड़े चुराता है। उन्हें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जब द्रोपती का चीर हरण हो रहा होता है तो यह कृष्ण ही है जो कि द्रौपदी के मान-सम्मान की रक्षा करते हैं।

वह ना केवल मनुष्य का ख्याल रखते हैं बल्कि अपने साथ जाने वाली गायों का भी ख्याल रखते हैं। जब उनकी बांसुरी उनके होठों पर लग जाती तो सारी गाएं उनके पास आकर मंत्रमुग्ध होकर सुनने बैठ जाती।कृष्ण दुष्टों को छोड़ते भी नहीं है । चाहे वो आदमी हो , स्त्री हो ,देवता हो या कि जानवर। उन्हें बचपन में मारने की इच्छा से जब पुतना अपने स्तन में जहर लगाकर आती है तो कृष्ण उसके स्तन से हीं उसके प्राण हर लेते हैं । जब कालिया नाग आकर यमुना नदी में अपने विष फैला देता है , तो फिर उस का मान मर्दन करते हैं।कृष्ण देवताओं को भी सबक सिखाने से नहीं चूकते। एक समय आता है जब कृष्ण इन्द्र को सबक सिखाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लेते हैं।

ये बात ठीक है कि वह बहुत सारी गोपियों के साथ रासलीला करते हैं । पर कृष्ण को कभी भी किसी स्त्री की जरूरत नहीं थी। वास्तव में सारी गोपियाँ ही कृष्ण से प्रेम करती थी। गोपियों के प्रेम को तुष्ट करने के लिए कृष्णा अपनी योग माया से उन सारी गोपियों के साथ प्रेम लीला करते थे ,रास रचाते थे। इनमें वासना का कोई भी तत्व मौजूद नहीं था। अपितु ये करुणा वश किया जाने वाला प्रेम था।

इस बात पर भी कृष्ण की आलोचना होती है कि वो रुक्मिणी से शादी उसका अपहरण करके करते हैं ।वास्तविकता यह है कि रुक्मणी कृष्ण से अति प्रेम करती थी, और कृष्ण रुक्मणी की प्रेम की तुष्टि के लिए ही उसकी इच्छा के अनुसार उसका अपहरण कर शादी करते हैं । इस बात के लिए भी कृष्ण को बहुत आश्चर्य से देखा जाता है कि उनकी 16,000 रानियां थी ।पर बहुत कम लोगों को ये ज्ञात है कि नरकासुर के पास 16,000 लड़कियां बंदी थी। उनसे शादी करके कृष्ण ने उन पर उपकार किया और उन्हें समाज में सम्मानजनक दर्जा प्रदान किया। वो प्रेम के समर्थक हैं। जब उनको ये ज्ञात हुआ कि उनकी बहन सुभद्रा अर्जुन से प्रेम करती है ,तो वह अपने भाई बलराम की इच्छा के विरुद्ध जाकर सुभद्रा की सहायता करते हैं और अर्जुन को प्रेरित करते हैं कि वह सुभद्रा का अपहरण करके उससे शादी करें।

लोग इस बात को बहुत जोर देकर कहते हैं कि वो जरासंध से डरकर युद्ध में भाग गए थे । लोग यह समझते हैं कि कृष्ण मथुरा से भागकर द्वारका केवल जरासंध के भय से गए थे। लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि बचपन में यह वही कृष्ण थे जिन्होंने अपने कानी उंगली पर पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा रखा था। इस तरह का शक्तिशाली व्यक्ति क्यों भय खाता। कृष्ण सर्वशक्तिमान है । उन्हें भूत, वर्तमान और भविष्य की जानकारी है। उन्हें यह ज्ञात है कि जरासंध की मृत्यु केवल भीम के द्वारा ही होने वाली है। भविष्य में होने वाली घटनाओं पर कोई भी हस्तक्षेप नहीं करना चाहते ।इसीलिए अपनी पूरी प्रजा को बचाने के लिए वह मथुरा से द्वारका चले जाते हैं ।इसके द्वारा कृष्ण यह भी शिक्षा देते हैं कि एक आदमी को केवल जीत के प्रति आसक्त नहीं होना चाहिए ।जरूरत पड़ने पर प्रजा की भलाई के लिए हार को भी स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है। जिस कृष्ण में मृत परीक्षित को भी जिंदा करने की शक्ति है, वोही प्रजा के हितों के रक्षार्थ रणछोड़ नाम को भी धारण करने से नहीं हिचकिचाता।

कृष्ण पर इस बात का भी आरोप लगता है कि उन्होंने अर्जुन को बहकाकर युद्ध करवाया। कृष्ण यह जानते थे कि पांडव धर्म के प्रतीक थे और कौरव अधर्म के।जिस अर्जुन का मन डावाँडोल हो रहा था उस समय कृष्ण ने अर्जुन के मन की तमाम विगतियों को दूर किया।एक योद्धा का धर्म केवल युद्ध करना होता है, और कृष्ण ने अर्जुन को यह बताकर बिल्कुल सही काम किया ।

कृष्ण ने महात्मा बर्बरीक का वध कर दिया। गुरु द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह, महाबली कर्ण ,दुर्योधन जरासंध ,जयद्रथ ,इन सब का वध गलत तरीके से करवाया।इसका मुख्य कारण यह था कि ये सारे अधर्म का साथ दे रहे थे। इनकी मृत्यु अपरिहार्य थी।

यदि कृष्ण दुर्योधन के साथ छल करते हैं तो इसका कुल कारण यह है कि दुर्योधन जीवन भर छल और प्रपंच को ही प्राथमिकता देता है। यह वही दुर्योधन है जो बचपन में भीम को जहर देकर मारने की कोशिश करता है। यह वही दुर्योधन है जो लक्षा गृह में षड्यंत्र कर पांडवों को जला कर मार देने की कोशिश करता है।ऐसे व्यक्ति के सामने धर्म का पाठ पढ़ाने से कुछ नहीं मिलता। कृष्ण के सामने सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि किस तरह से धर्म का रक्षण हो। इसी कारण से कृष्ण दुर्योधन के साथ छल करने में नहीं चूकते।

जब युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया था और उस समय जब सारे योद्धा सबसे पूजनीय व्यक्ति को चुन रहे थे तो भीष्म पितामह ने स्वयं हीं कृष्ण का नाम क्यों आगे कर दिया सबसे पूजनीय व्यक्ति के रूप में ? जब कृष्ण ने सारे लोगों के सामने शिशुपाल का वध कर दिया तो किसी की भी हिम्मत क्यों नहीं हुई एक भी शब्द बोलने की।

भीष्म पितामह अपने वचन में बंध कर चीरहरण का प्रतिरोध नहीं करते हैं ।भीष्म पितामह अपने वचन को प्रमुखता देते हैं । तो कृष्ण अपने वचन को प्रमुखता नहीं देते हैं। वह महाभारत युद्ध होने से पहले उन्होंने प्रण लेते हैं कि महाभारत युद्ध में कभी भी वह शस्त्र नहीं उठाएंगे ।लेकिन जब उन्होंने देखा कि भीष्म पितामह अपने वाणों से पांडवों की सेना का विध्वंस करते ही चले जा रहे हैं ,तो कृष्ण अपना प्रण छोड़ कर शस्त्र उठा लेते हैं।यहाँ वो भीष्म को ये शिक्षा देते है कि धर्म का मान रखना ज्यादा जरूरी है, बजाए कि प्रण के।

जहां तक कृष्ण का एक शिकारी के वाण से घायल होकर मरने का सवाल है तो यहां पर मैं यह कहना चाहता हूं कि जो भी शरीर धारण करता है उसका एक न एक दिन तो देह का त्याग जरूर करना होता है । लेकिन एक व्यक्ति की मृत्यु किस तरह से होती है उससे व्यक्ति की महानता का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। गौतम बुद्ध की मृत्यु मांस खाने से हुई थी। ईसा मसीह को सूली पर लटका कर मार दिया गया था। रामजी ने भी जल समाधि ली थी। जो भी महान पुरुष हुए हैं उनकी मृत्यु भी बिल्कुल साधारण तरीके से हुई है। कृष्ण जी यदि मानव का शरीर धारण किए हैं तो शरीर का जाना तय हीं था। केवल इस बात से श्रीकृष्ण की महानता कम नहीं हो जाती कि उनकी मृत्यु एक शिकार शिकारी के वाण के लगने से हुई थी।

महाभारत के अंत में सारे पांडवों में इस बात की चर्चा हो रही थी कि महाभारत युद्ध को जीतने का श्रेय किसके पास है, और सारे के सारे लोग जब बर्बरीक के पास पहुंचे तो बर्बरीक ने कहा मैंने तो पूरे महाभारत में यही देखा कि कृष्ण हीं लड़ रहे हैं ।मैंने देखा कि कृष्ण ही कृष्ण को काट रहे हैं। कृष्ण ही कटवा रहे हैं। कृष्ण हीं योद्धा है , कृष्ण हीं मरने वाले व्यक्ति हैं । कृष्ण के बारे में बचा खुचा संदेह तब खत्म हो जाता है जब वो अर्जुन के मन मे चल रहे द्वंद्व को खत्म करने के लिए गीता ज्ञान देते है और अपने सम्पूर्ण विभूतियों को अपने योगमाया द्वारा प्रकट करते हैं।

कृष्ण पंडितों के सामने पंडित हैं ,दुर्योधन के सामने दुर्योधन, शकुनि के सामने शकुनि। सूरज तो रोज ही होता है, लेकिन देखने वाला व्यक्ति अपनी यदि आंख बंद कर ले तो वह बिल्कुल कह सकता है कि सूरज नहीं है ।या यदि देखने वाला व्यक्ति अपनी आंख में लाल रंग का चश्मा पहन ले तो वह यह कह सकता है कि सूरज का रंग हमेशा के लिए लाल ही हैं। उसी तरीके से यदि कोई व्यक्ति किसी को गलत तरीके से देखना चाहता है तो उसे केवल दोष नजर आएगा।इसमें कृष्ण काकोई दोष नहीं है, बल्कि देखने वाले के नजरिये का दोष है।

कृष्ण शत्रुओं के शत्रु ,और मित्रों के मित्र हैं। वह शकनियों के शकुनि दुर्योधन के दुर्योधन हैं ।सुदामा के मित्र ,राधा के प्रेमी, रुकमणी के पति, एक राजनेता ,एक राजा, नर्तक ,योद्धा, कूटनीतिज्ञ, योगी, भोगी ,गायक ,माखन चोर ,मुरलीधर ,सुदर्शन चक्र धारी, शास्त्र , रणछोड़ । उनके सामने एक ही लक्ष्य था वह था धर्म की स्थापना ।

धर्म की स्थापना के लिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार थे। वह भोगिराज भी थे और योगीराज भी। ये तो आदमी की दशा पे निर्भर करता है कि वो कृष्ण को योगी माने या भोगी। योद्धा या रणछोड़ , गायक , नर्तक या की कुशल राजनीतिज्ञ। इतिहास में कृष्ण जेसे व्यक्तित्व का मिलना लगभग नामुमकिन है ,क्योंकि कृष्ण एक साथ सारे विपरीत गुण को परिपूर्णता में परिलक्षित करते हैं।


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