Ek paheli jivan in Hindi Fiction Stories by Deepak pawar (rishir books and stories PDF | एक पहेली जीवन

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एक पहेली जीवन

सुबह करीब 7 बज रहे थे मे अभी अभी नीद से जाएगा था ।

अभी मेरी उम्र 12 साल ही है और एक संकेत ने मुझे यह सोचने पर मजबूर किया कि अब आगे की जिंदगी कैसे होगी ।

यह संकेत था मेरे मा पिता की गंभीर बीमारी से होने वाली मृत्यु का जिसे मेने चुपके से कल ही रात सुना था जो मा पिता आपस मे इस बात को ले कर परेशान हो रहे थे ।

बहौत ही ज्यादा रात भर सोचा नींद आ गई अब सुबह भी इस बारे में ही सोच रहा हु आखिर कैसे में अपने माँ पिता की जिंदगी बचाऊ या उनके बाद अपनी जिंदगी कैसे होगी ।

इस बात से इनकार नही की मेरे मा पिता जी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त हो चुके थे अब या तो विकल्प डॉक्टर या स्वयम ही कुछ करने का था ।

भारत के वेदों में दर्ज कई ऐसी गाथाये है जिनमे म्रुत्यु को प्राप्त व्यक्तियों को भी जीवन दिया गया था । सबके बारे में जांनने के बाद दिल किया क्या यह हो सकता है या वह सभी एक भ्रांतियां है ।?

सुबह मेरी माँ :- दीपू उठ चाय नास्ता रेडी है ....वह प्यार से दीपक की जगह मुझे दीपू कहती थी ।

मेने कुछ नही कहा बस उठहुआ था तो उन्हें देखा उन्होंने मुझे देखा और एक बड़ी सी मुस्कान के बाद वह चली गई पर फिर भी मुझे एहसास हुआ था कि वह दुखी थी ।।

खैर आज सुबह नास्ता करके में स्कूल पहुचा दिन भर खोया सा अपने माँ पिता को खोने का एहसास होता । बहौत झलहाहट भी हो रही थी ।

तभी एक दोस्त ने कहा:- क्या बताया कि महाभारत और रामायण काल मे जो सैनिक या राजाओ की मौत होती थी तब संजीवन बूटी या ऐसी ही कोई दवा का इस्तेमाल कर उनको जीवित किया जाता था या उनके रोगों को ठीक भी किया जाता था जिसका उल्लेख भारत के वेदों में दिया गया है ।

इस बात से में तुरंत प्रभावित हुआ मेरे मा पिता जी का सवाल था ।

मेने 12 साल की उम्र में अब वेदों को जो हिंदी में ट्रांसलेट थे पढ़ना शुरू किया एक जगह मुझे समझ आया कि तब शायद भाषा मे अन्य प्रयोग शब्द अभी समझना आसान नही पर एक वेद पढ़ते हुए एक महत्व की जानकारी मिली कि आज भी भारत देश के सुदुर्व में एक पहाड़ी पर ऐसी ओषधि मौजूद है जो किसी भी प्रकार के ना इलाज बीमारी को ठीक करने में शक्षम है ।।

बस इस जानकारी ने मेरे मा पिता का चेहरा मेरे सामने खड़ा कर दिया और में कुछ हफ्ते बाद ही रात को पिता जी के कबाट से 1000 रुपये चुराकर हिमालय के दिशा में घर छोड़ उनके औषधियों की तलाश में निकल पड़ा । पर मुझे पता नही था कि यह आगे मेरे जीवन मे किस तरह से नए आयामों के शुरू करने की प्रक्रिया थी । रात 12 बजे मुम्बई से जम्मू की ट्रेन में सवार होते होते सवाल बहौत घूमने लगे थे ।

रात बीत रही थी ट्रेन अपने पूरे गति से गंतव्य की ओर बढ़ रही थी मुझे भी अब अपने सामने बैठे अंकल अंटी तथा दाड़ी वाले बाबा और अन्य मुसाफिर लोगो नजदीकियां का एहसास होने लगा था अब आँखे नींद में बंद हो रही थी यहां ना मेरी माँ थी जो प्यार से चद्दर या रजाई मुझपर डालने वाली थी ना पापा थे जो मेरे नींद में जाने से पहले मेरे सर पर हाथ फिराने वाले थे बस एक ट्रेन का डिब्बा था जिसमे में तेज हवाओं के झोंके से सराबोर खिड़की के पास बैठा था और भूख को नीद ने भुला दिया था । ना कोई अपना ना पहचान का पर फिर भी में सबसे मुस्कुराता हुआ सोने की कोशिश कर रहा था ।