“दिखाओ तुमने कैसी तस्वीरें ली है।“जीत वफ़ाई की तरफ मुडा। वफ़ाई ने केमरा खोल दिया। तस्वीरें दिखने लगी.... जीत, चित्राधार, उस पर केनवास, केनवास पर चित्र, चित्र में बादल, गगन के रंग, दूर क्षितिज में सूरज।
चित्राधार के पीछे वास्तविक गगन एवं तस्वीर का गगन एक समान थे। यह बात अदभूत थी।
तस्वीरें जीत को पसंद तो आई किन्तु वह प्रसन्न नहीं था। उसने फिर से वफ़ाई से केमरा खींचा और सारी तस्वीरें केमरे से हटा कर लेपटोप में डाल दी। वफ़ाई ने ना तो विरोध किया ना विद्रोह। वह बस देखती रही। उसने मन में कुछ योजना बना ली।
जीत लौटा और खाली केमेरा वफ़ाई को दे दिया। वफ़ाई ने चुपचाप उसे ले लिया। वह कुछ क्षण मौन रही।
“जीत, मुझे मेरी सभी तस्वीरें लौटा दो। तुम चाहो तो वह सभी लेपटोप में भी रख सकते हो। पर मुझे वह सब दे दो।“ वफ़ाई ने मौन से विद्रोह कर दिया।
‘दो वीरोधी विचारों से संघर्ष करना पड़ रहा है मुझे। यह कैसी विडम्बना है कि एक तरफ तो वफ़ाई पर क्रोध आ रहा है कि इस लड़की ने मेरी अनुमति के बिना तस्वीरें ले ली और दूसरी तरफ मुझे यही लड़की, वफ़ाई, की उपस्थिती पसंद भी आ रही है। क्यों मुझे वफ़ाई के सान्निध्य की झंखना है? मेरे क्रोध और मेरे ह्रदय के बीच यह कैसा यूध्ध चल रहा है?’
जीत मन में हो रहे यूध्ध को शांत मन से देख रहा था। समय रहते वह यूध्ध समाप्त हो गया। ह्रदय विजयी हो गया। वफ़ाई का सान्निध्य बना रहे ऐसी वह योजना बनाने लगा।
जीत ने पूछा,”क्या तुम्हें वास्तव में तुम्हारी तस्वीरें वापिस चाहिए?”
“कोई संदेह है क्या?”
“किन्तु मैं उसे कभी भी नहीं लौटाऊंगा।“
“यह बात अनुचित है। वह मेरी संपत्ति है।“
“तुमने जिस स्थान की तस्वीरें ली है वह स्थान मेरा है। और इस की सभी तस्वीरें तुमने बिना मेरी अनुमति के खींची है।“
“तो क्या हुआ? मैंने कभी किसी की अनुमती नहीं ली। पहाड़, गगन, बादल, रेत, मरुभूमि....”
“किन्तु मेरी तसवीरों के लिए, मेरे साम्राज्य की तसवीरों के लिए तुम्हें मेरी अनुमति लेनी आवश्यक है। यह मेरा साम्राज्य है और मैं यहाँ का राजा हूँ।“
“तुम और राजा? मैं नहीं मानती। तुम केवल एक साधारण मनुष्य ही हो। समझे श्रीमान जीत?”
“वह तुम्हारी समस्या है। मैं तुम्हें अनुमति नहीं देता कि तुम....”
दोनों ने खूब दलीलें की किन्तु जीत उन तस्वीरों को लौटाने को सहमत नहीं हुआ।
अंत में वफ़ाई निराश एवं क्रोधित हो गई,”तो यह तुम्हारा अंतिम निर्णय है कि तुम मुझे मेरी तस्वीरें नहीं लौटाओगे?”
“बात स्पष्ट है।“ जीत ने कहा।
“ठीक है, तुम्हारे साथ मुझे समय व्यर्थ नष्ट नहीं करना चाहिए, मैं चली जाती हूँ।“ वफ़ाई जाने लगी।
“वफ़ाई, तुम कहाँ जाना चाहती हो?”
“मैं मेरे घर जाऊँगी।“
“कहाँ है तुम्हारा वह घर?”
“यहाँ से दूर।“
“वहाँ तक जाने का मार्ग ज्ञात है तुम्हें?”
“हाँ। मैं जानती हूँ। पिछले तीन चार दिनों से मैं मरुभूमि में घूम रही हूँ। मैं रात्रि से पहले मेरे घर तक...‘
“वफ़ाई, संध्या पहले ही ढल चुकी है, बल्कि रात्री आरंभ हो चुकी है। ऐसे में मार्ग ...”
“मार्ग सभी मेरे मित्र बन चुके हैं।“
“वफ़ाई, तुम मरुभूमि को नहीं जानती।“
“मैं उसे जानती हूँ, श्रीमान।“
“तुम भूल कर रही हो वफ़ाई। रात्रि की मरुभूमि, दिवस के प्रकाश में दिखाई देने वाली मरुभूमि से, भिन्न होती है। ज्ञात मार्ग भी अज्ञात से लगते हैं।“
“तो तुम क्या चाहते हो मुझ से?” वफ़ाई त्रस्त हो गई।
“कुछ विशेष नहीं। आज की रात्रि यहीं रुक जाओ, कल प्रभात होते ही जहां जाना चाहो चली जाना।“
“मेरी इतनी चिंता क्यूँ कर रहे हो श्रीमान?”
“मैं तो इस मरुभूमि...”
“यदि मेरी इतनी ही चिंता है तो मुझे मेरा सामान लौटा दो।“
“वफ़ाई, हठ मत करो।“
“जीत, हठ तो तुम कर रहे हो। एक नहीं दो, दो। एक, तुम मेरी सारी तस्वीरें मुझे नहीं दे रहे हो। दुसरा यहीं रात्रि रुकने को कह रहे हो। मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती।”
“यदि तुम जाना चाहती हो तो मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा। बस इतना ध्यान रहे कि इस मरुभूमि में कहीं तुम खो ना जाओ।“
“मुझे कोई चिंता नहीं है।“वफ़ाई त्वरा से उठी और जीत का घर छोड़ गई। जीप की तरफ भागी। जीप का द्वार खोला और अंदर कूद पड़ी, सोये हुए जीप के एंजिन को जागृत किया। वफ़ाई अंधकार में लंबे, रेतमय और अज्ञात मार्ग पर निकल पड़ी।
जीत, उसे जाते हुए स्थिर सा देखता रहा। जीप और वफ़ाई उस से दूर होती जा रही थी। शांत मार्ग दौड़ती हुई जीप की ध्वनि से जाग उठा।
लंबे अंतराल तक जीत वहीं खड़ा रहा, अंतत: कक्ष के अंदर चला गया।
समय बीत गया। शीतल रात्री ने मरुभूमि पर प्रवेश कर लिया। रात्रि सदा की भांति शीतल थी, किन्तु जीत के अंदर कुछ उष्ण बह रहा था।
सोने से पहले जीत सदैव दूसरे दिन की चित्रकारी की तैयारी कर लेता था। चित्र के विषय में विचार करता था, उसके मन में चित्र जन्म लेता था जो दूसरे दिन केनवास पर प्रकट होता था। अजन्मे चित्र जीत को स्वप्न में मार्ग दिखते थे।
किन्तु उस रात्रि भिन्न थी।
पाँच महीनों के बाद कोई उसके घर आया था और उसने बातें भी की थी। घर के मौन को अनेक बार उसने भंग किया था।
‘मरुभूमि के मौन को मैं सदा पसंद करता रहा हूं। किन्तु लंबे समय के पश्चात आज मैंने ध्वनि सुनी है, मनुष्य के मुख से शब्द सुने है, जिनके कारण मेरा व्यक्तिगत और ज्ञात मौन अनेक टुकड़ों में बिखर गया है।
इन पाँच महीनों में किसी से भी बात करना मुझे पसंद नहीं था, स्वयम से भी नहीं। किन्तु, आज संध्या समय पर मैंने बातें की है, अधिक बातें की है, स्वयं के साथ भी, वफ़ाई के साथ भी। न केवल बातें किन्तु लड़ाई भी की है, दलीलें भी की है, क्रोध भी किया और स्मित भी।‘ जीत विचारता रहा।
स्मित !
एक ताजा स्मित जीत के अधरों पर आ गया। छाती के अंदर उसने कुछ अनुभव किया। कुछ उग रहा था उसके ह्रदय के अंदर। एक शीतल लहर कक्ष में प्रवेश कर गई, दूसरी जीत के ह्रदय में।
जीत ने आँखें बंध कर ली। उसे अपने सामने एक लड़की दिखाई दी जो उसे आमंत्रित कर रही थी, ह्रदय के द्वार खटखटा रही थी।
जीत ने अनायास स्मित किया। एक लड़की वफ़ाई नाम की कारण था उसके स्मित का।
जीत की आँखों के सामने पूरा घटनाक्रम आ गया जो आज संध्या को हुआ था। वह उसमें धूमिल हो गया। वह आनंदित हो उठा।
वफ़ाई के शब्द उसे मधुर संगीत जैसे लगने लगे।
जीत, वफ़ाई के स्वप्न को साथ लिए सो गया।
प्रभात में जब जीत अपने कार्य में व्यस्त था तब कोई भिन्न ध्वनि उसके कान पर पडी। वह मोबाइल की ध्वनि थी। जीत ने उसे देखा, विस्मय से।
“यह यदा-कदा ही बजता है। आज कौन याद कर रहा है मुझे?” जीत ने उसे उठाया और बात करने लगा।