बंटी और शेरू
बंटी चौदह साल का एक आम लड़का था। लेकिन उसकी खूबी यह थी कि वह कोई समस्या आने पर घबराता नहीं था। बल्कि चतुराई और धैर्य से काम लेकर उस समस्या को सुलझा लेता था। ऐसा करके ना सिर्फ वह अपनी बल्कि दूसरों की भी मदद करता था। अपने खाली समय में वह इंटरनेट पर छोटी छोटी समस्याओं से निपटने के बारे में पढ़ता या वीडियो देखता रहता था।
अभी परसों ही उसके पड़ोस में रहने वाली सिद्दिकी आंटी घबराई हुई उसके पास आईं। उनकी बड़ी बेटी सना अपने चार साल के बेटे अदनान के साथ उनके घर रहने आई थी। अदनान बहुत ही चंचल था। बंटी को उसके साथ खेलना पसंद था। आंटी ने बंटी से कहा।
"जल्दी चलो। अदनान ने खेलते खेलते कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया है। दरवाज़ा लॉक हो गया है। डर कर अदनान ज़ोर ज़ोर से रो रहा है।"
बंटी फौरन सिद्दिकी आंटी के साथ उनके घर पहुँचा। सना दीदी भी घबरा कर रो रही थीं। बंटी ने उन्हें संभालते हुए कहा।
"दीदी मैं अभी लॉक खोलने की कोशिश करता हूँ। आप कमरे में बाहर की तरफ जो खिड़की है वहाँ जाकर अदनान को बहलाने की कोशिश कीजिए।"
बंटी ने सिद्दिकी आंटी से एक पेंचकस लाने को कहा। उसने इंटरनेट पर यदि दरवाज़ा अचानक लॉक हो जाए तो पेंचकस से उस लॉक को खोलने का एक वीडियो देखा था। कुछ पल आँख बंद कर वह वीडियो में बताई विधि को याद करता रहा। उसके बाद बड़े ही धैर्य और शांति से उसने कुछ ही देर में लॉक खोल दिया। अदनान बाहर आकर अपनी अम्मी से लिपट गया। सना दीदी ने बंटी की पीठ थपथपा कर उसे शाबासी दी। सिद्दिकी आंटी ने उसे अपने हाथों से बना चॉकलेट केक खिलाया।
अब बात करते हैं बंटी के खास साथी उसके कुत्ते शेरू की। शेरू काले रंग का जर्मन शेफर्ड नस्ल का बहुत ही होशियार कुत्ता था। वह बंटी के हर इशारे को समझ जाता था। कई बार तो बंटी के बिना कुछ कहे केवल स्थिति को भांप कर ही काम कर लेता था।
बंटी के रिश्तेदार डॉग ट्रेनर थे। उनसे कुछ टिप्स लेकर बंटी ने बचपन से ही शेरू को ट्रेनिंग दी थी। यही कारण था कि शेरू बंटी का हर इशारा समझता था।
चार साल पहले बंटी के दसवें जन्मदिन पर उसके पापा ने शेरू उसे गिफ्ट में दिया था। दरअसल बंटी जब बहुत छोटा था तब उसके घर में लूसी नाम की एक पोमेरेनियन कुतिया थी। बंटी को उससे बहुत लगाव था। वह उसके साथ खेलता रहता था।
लूसी बूढ़ी हो चुकी थी। अक्सर बीमार रहती थी। बंटी मम्मी के साथ उसे डॉक्टर के पास ले जाता था। एक दिन जब वह स्कूल से लौटा तो पता चला कि लूसी मर गई। बंटी उसकी मौत से बहुत दुखी हुआ। उसने अपने पापा के साथ मिल कर बैकयार्ड में लगे हरसिंगार के पेड़ के नीचे उसे दफना दिया। अक्सर वह जाकर उस जगह पर बैठता और लूसी को याद करता था।
जैसे जैसे बंटी बड़ा हुआ वह समझदार हो गया। वह लूसी के लिए रोता नहीं था पर उसे मन ही मन याद करता था। उसके पापा यह बात जानते थे। अतः उसके जन्मदिन पर वह एक जर्मन शेफर्ड पपी ले आए।
बड़े प्यार से बंटी ने उसका नाम शेरू रखा। वह शेरू को ट्रेन करता था। उसके साथ खेलता था। उसे बाहर टहलाने ले जाता था। इस तरह दोनों के बीच में बहुत लगाव हो गया था। कई बार शेरू ने मुसीबत के समय बंटी की मदद भी की थी।
एक बार बंटी शेरू को लेकर पिकनिक मनाने गया था। वह शेरू के साथ खेल रहा था। बंटी एक रबर की बॉल उछालता था। शेरू भाग कर उसे उठा कर लाता था। एक बार बंटी ने बॉल उछाली। शेरू भाग कर उसे लेने गया। लेकिन बिना बॉल लिए वापस आ गया। बंटी ने उससे कहा कि वह बॉल क्यों नहीं लाया तो वह भौंकने लगा।
बंटी शेरू को लेकर उस जगह गया जहाँ बॉल होने की संभावना थी। वहाँ बहुत सी झाड़ियां थीं। बंटी ने सोंचा बॉल इन्हीं झाड़ियों के पीछे होगी। वह बॉल ढूंढ़ने लगा। शेरू ज़ोर ज़ोर से भौंक कर उसे रोकने का प्रयास करने लगा। लेकिन बंटी ने उस पर ध्यान नहीं दिया। झाड़ियों के पीछे एक गड्ढा था जो दिखाई नहीं पड़ रहा था। असावधानी में बंटी उसमें गिर गया। वहाँ आसपास कोई नहीं था। बंटी गड्ढे से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था। पर सफल नहीं हो पा रहा था।
शेरू बिना देरी किए मदद लाने के लिए भागा। कुछ ही दूर पर तीन लड़के भी पिकनिक मना रहे थे। शेरू उनके पास जाकर भौंकने लगा। उनमें से एक की पैंट मुंह में पकड़ कर खींचने लगा। पहले तो वह लड़के डरे लेकिन फिर वह समझ गए कि शेरू उन्हें कहीं ले जाना चाहता है। वह उसके पीछे पीछे चसने लगे। झाड़ियों के पास पहुँच कर शेरू भौंकने लगा। शेरू की आवाज़ सुन कर बंटी समझ गया कि वह मदद ले आया है। उसने मदद के लिए पुकारा। बंटी की पुकार सुन कर लड़कों ने झाड़ियों के पीछे झांक कर देखा कि कोई गड्ढे में गिरा है। तीनों ने मिल कर बंटी को गड्ढे से बाहर निकाल लिया।
उस घटना के बाद से बंटी और शेरू और भी गहरे दोस्त हो गए। बंटी ने तय कर लिया कि आगे से वह शेरू की किसी भी चेतावनी को नज़रअंदाज़ नहीं करेगा।
बंटी शेरू को टहलाने के लिए निकला था। टहलते हुए वह अपने एक दोस्त के घर चला गया। बीमारी के कारण वह कई दिनों से स्कूल नहीं आ रहा था। बंटी उसका हालचाल लेने गया था। बंटी ने दोस्त को तसल्ली दी कि वह परेशान ना हो। जब वह ठीक हो जाएगा तब बंटी जो पढ़ाई छूटी है उसे पूरा करने में उसकी सहायता करेगा।
दोस्त के घर बंटी को कुछ अधिक समय लग गया। शाम ढल रही थी। बाहर अंधेरा होने लगा था। जल्दी घर पहुँचने के लिए बंटी ने एक शार्टकट ले लिया। जिस गली में वह घुसा था वह सुनसान थी। बंटी और शेरू तेजी से आगे बढ़ रहे थे। गली में कुछ आगे जाने पर बंटी को लगा कुछ गड़बड़ है।
अंधेरे में कुछ साफ नज़र नहीं आ रहा था। पर एक आदमी दूसरे के हाथ से बैग छीनने की कोशिश कर रहा था। दूसरा आदमी गिड़गिड़ा रहा था।
"यह पैसे मत लो। मैंने अपने बेटे के इलाज के लिए उधार मांग कर इकठ्ठे किए हैं।"
लुटेरा पिस्तौल दिखा कर जान से मार देने की धमकी दे रहा था।
बंटी और शेरू सचेत हो गए। बंटी ने शेरू को धीरे से एक इशारा किया। लुटेरे की पीठ उनकी तरफ थी। वह कुछ देख नहीं पा रहा था। बंटी सधे कदमों से लुटेरे की ओर बढ़ा। शेरू भी दबे पांव चुपचाप उसकी तरफ गया। वहाँ पहुँचते ही शेरू ने लुटेरे के ऊपर छलांग लगाई।
अचानक लगे धक्के से लुटेरा संभल नहीं सका और गिर गया। पिस्तौल उसके हाथ से छिटक कर दूर जा गिरी। बंटी ने लपक कर उसे उठा लिया। शेरू ने लुटेरे के हाथ में अपने दांत गड़ा दिए। वह दर्द से बिलबिला उठा। जिस आदमी का बैग छीना जा रहा था उसने हिम्मत कर शोर मचा कर लोगों को इकठ्ठा कर लिया।
किसी ने पुलिस को बुला लिया। लुटेरा पकड़ा गया। सभी ने बंटी और शेरू के साहस की तारीफ की।
बैग वाले आदमी ने बंटी और शेरू का शुक्रिया अदा किया। उसने कहा कि यदि वह दोनो ना होते तो वह बेटे के ऑपरेशन के लिए पैसे जमा ना करा पाता।
बंटी और शेरू के इस साहसिक कारनामे को अखबार में भी जगह मिली।
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