Ek yogi ki mout in Hindi Moral Stories by Ajay Amitabh Suman books and stories PDF | एक योगी की मौत

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एक योगी की मौत

मैं अपने गाँव गर्मी की छुट्टियों में गया हुआ था. अपने बड़े बाबूजी से उनके बारे में पूछा तो ज्ञात हुआ उनकी मोटर बाईक के दुर्घटना में मौत हो गई है. एक एक करके मेरे मानस पटल पे पुरानी सारी स्मृतियाँ चिन्हित होने लगी.


मेरे पिताजी श्रीनाथ सिंह आशावादी घनघोर नास्तिकता वादी विचारधारा से प्रभावित व्यक्ति रहे हैं. उनके अनुसार समाज और व्यक्ति की सेवा हीं सर्वोपरि है. भगत सिंह से काफी प्रभावित रहें हैं. बिहार के छपरा जिले में दाउदपुर रेलवे स्टेशन से लगभग चार किलोमीटर दूर मेरा गाँव कोहड़ा बाज़ार है जहाँ पे उन्होंने अपने शिक्षक के पद से सेवानिवृति के बाद मिले पैसे से सरदार भगत सिंह का स्तम्भ बनवाया था. मेरे पिताजी जयप्रकाश नारायण से भी काफी प्रभावित थे. उनके दिशा दर्शन में उन्होंने छपरा जिले में समजोद्धार संघ कि स्थापना की और बिना दहेज़ के 1973 में उन्होंने अपनी शादी की. तबसे लेकर आज तक लगभग 1000 से ज्यादा शादियाँ करवा चुके हैं.


मेरे पिताजी के संघ में उन्हीं के तरह के विचार धारा के अनगिनत मित्र आ जुड़े. उनकी मित्र मण्डली अनीश्वर वादी थी और समाज सेवा और मानव सेवा में लगी रहती थी. मेरे पिताजी और उनके मित्रों के मन में ईश्वर के प्रति काफी गुस्सा था. समाज में इतनी ह्त्या, लूटमार आदि होती रहती है. ईश्वर इनको क्यों नहीं रोक देता. मेरे पिताजी के पास भगवान में श्रद्धा रखने वाले लोग यदा कदा हीं आते थे. यदि आते भी जो पिताजी के तर्कपूर्ण बातों के आगे निरुत्तर होकर चले जाते.


बात लगभग 1989 के आस पास की है. मैं अपनी साईकिल से उतर कर ज्यों हीं घर की तरफ प्रस्थान किया, मैंने देखा की मेरे पिताजी के मित्रमंडली के बीच लगभग 25 वर्ष का कोई युवक बैठा हुआ है जो बार बार अपमान जनक बातों को निस्पृह भाव से सुन रहा था. मैं उनके पास गया और फिर उनलोगों की बातों को सुनने लगा. मालूम चला वो युवक बार बार ईश्वर के लिए अपनी प्रेम और श्रद्धा को उजागर कर रहा था तो मेरे पिताजी और उनकी मित्र मण्डली के लोग बार बार अपनी वैज्ञानिक तर्कपूर्ण बातों से उसको निरुत्तर कर हस्याद्प्द रूप से उसका उपहास कर रहे थे. वो युवक बार बार बोल रहा था कि मुझे ईश्वर के दर्शन रोज रोज होते है और आप लोगो को यहीं बताने आया हूँ. पर ना तो मेरे पिताजी पर इसका कोई असर हुआ और ना हीं उसके हास्यास्पद तिरस्कार में. वो युवक लौट गया. मैंने पिताजी से पूछने पर ज्ञात हुआ कि वो युवक उनका शिष्य था और बार बार बोल रहा था अपने ईश्वर अनुभूति के बारे में.


खैर उस युवक के बारे में मैंने कुछ तहकीकात की तो मालूम चला उसका नाम प्रमोद तिवारी है और पास के हीं पडोसी गाँव गम्हरिया का रहने वाला है. वो मेरे पिताजी से बार बार मिलने आने लगा. धीरे धीरे पिताजी और प्रमोद जी के मन में एक दुसरे के प्रति सम्मान का भाव बढ़ने लगा. वो भी मेरे पिताजी के समाज सुधार के कार्यकर्मों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने लगे तो पिताजी भी उनके शांत स्वभाव के मुरीद हो गया. हालांकि ईश्वर के बारे में उनके मतभेद उनके बने हीं रहे. फिर भी उनके बहस के दौरान मैं प्रमोद जी को कभी भी उद्विग्न होते नहीं देखा.


मुझे उनके बारे में ज्ञात हुआ कि लोग मृत योगी के नाम से पुकारते है. पूछने पे ज्ञात हुआ कि एक बार छोटी उम्र में वो तीन दिन के लिए मृतप्राय हो गये थे. उनका शरीर ठंडा पड़ गया था. जब लोग उन्हें मृत जानकर शमशान ले जाने को तैयार हुए तो वो उठ खड़े हुए. इसीलिए लोग उनके मृत योगी के नाम से पुकारने लगे.


जब वो एक बार मेरे पिताजी से मिलने आये तो मैं भी उनके साथ बैठ गया. मैंने चर्चा के दौरान ये महसूस किया कि उनके मन में मेरे पिताजी के प्रति अपार श्रद्धा थी. मेरे पिताजी द्वारा किये जा रहे अनगिनत सामाजिक सुधारों के कार्य कर्मों , जैसे कि बिना दहेज़ के आदर्श विहार, विधवा विवाह , छुआ छूत विरोधी , जाति प्रथा विरोधी कार्य कर्मों इत्यादि , से अति प्रभावित थे तो बाकि सारे लोग भी प्रमोद जी के शांत और अचल सवभाव के प्रसंशक बन गए थे.


एक दिन मुझे उनके साथ जाने का मौका मिला. उन्होंने मुझे बताया कि बचपन से हीं उन्हें शरीर के बाहर आने की अनुभूति होने लगी थी . प्रमोद जी आगे अपने जीवन के बारे में बताने लगे. लगभग 8 वर्ष की उम्र में रात को सोते वक्त छपरा में अदभुत अनुभूति हुई. रात को सोने के समय ऐसा लगा पुरे कमरे में दुधिया प्रकाश फ़ैल गया है. वो उस समय घबरा कर उठ गये. धीरे धीरे वो अनुभूति बार बार होने लगी. अलबत्ता सोने के समय उन्हें ऐसा लगने लगा कि कमरे के आस पास जो लोग आ जा रहें हैं , वो देख पा रहे हैं. फिर उन्होंने वो 3 दिन वाली मृत होने वाली घटना के बारे में भी बताया. उन्होंने कहा कि उस दिन भी उनको पुरे कमरे में दुधिया प्रकाश फैलता दिखाई पड़ा. फिर वो प्रकाश फैलता गया और वो उसकी तरफ खीचे चले गए. शुरू शुरू में उन्हें घर के आस पास के लोग , फिर आस पास के गाँव के लोग नजर आने लगे. फिर दुधिया प्रकाश काफी तेज हो गया और वो बाहर की दुनिया के प्रति अचेतन हो गये. फिर थोड़ी देर के बाद उनको होश आया तो उन्हें ज्ञात हुआ कि ३ दिन बीत चुके है. उन्होंने बताया कि तबसे वो घटना बार बार घटने लगी. पर उस तरह की घटनाओं पर उनका नियंत्रण बढ़ने लगा. प्रमोद जी ने बताया अब वो अपनी ईक्छा से उस दुधिया प्रकाश में प्रवेश करते हैं और अपनी ईक्छा से वापस आते हैं. मैंने महसूस किया वो अच्छे वक्ता नहीं थे. शांत और धीरे धीरे अपने अनुभव को बता रहे थे. प्रमोद जी ने कहा कि ज्यादातर लोग उनको मानसिक बीमारी का शिकार समझते है इसलिए पूरी बात वो खुलकर बता नहीं पाते थे. उन्होंने आगे कहा कि मेरे मन में उन्हें कोई उपहास का भाव नहीं दिखा इसीलिए वो पूरी बात बता पाएं है.


मैंने उनसे पूछा क्या आपको ईश्वर के दर्शन हुए हैं. उन्होंने कहा पता नहीं. ऐसा नही लगता कि ईश्वर के दर्शन हुए है पर ईश्वर पे आविश्वास नहीं है जैसा कि मेरे पिताजी को है. मेरे उनसे मिलने का सिलसिला बढ़ता गया. समय बीतने पर मुझे ज्ञात हुआ कि वो गोरखपुर के शिव मुनि समाज का सदस्य बन गये है और हमारे ईलाके में शिव मुनि समाज के योगाभ्यास को बढ़ाने का काम कर रहें है. मैं 10 वीं की परीक्षा पास करने के बाद पटना आ गया आगे की पढाई करने के लिए. मेरे उनसे मिलना जुलना कम हो गया. वैसे मेरे माताजी और पिताजी भी नहीं चाहते थे कि मैं उनसे मिलूँ. मेरे माता और पिताजी की रूचि मेरे आर्थिक प्रगति में थी न कि अध्यात्मिक प्रगति मे. वो नहीं चाहते थे कि प्रमोद जी के साथ मेरा ज्यादा उठाना बैठना हो. उनको डर था कहीं पढाई के रास्ते से भटक न जाऊं. फिर भी जब जब गाँव जाता था मेरी उनसे मिलने की ईक्छा होती थी.


इन सब घटनाओं के बाद भी मेरा शंकालु मन उनकी हर बात पर विश्वास करने को राजी न था। उनकी ईश्वर से लाक्षणिक परिचय की बात हमेशा अतिशयोक्ति लगती। मेरे मन मे ये भी संशय उठता हो सकता है वो सच बोल रहे हो, हो सकता है उनकी ये अनुभूति हो पर ये उनके मन का काल्पनिक प्रक्षेपण हो सकता हो। पर एक घटना ने मेरे तमाम शंकाओं को निर्मूल कर दिया। हुआ ये कि एक बार वो अपने घर के बरामदे की सफाई कर रहे थे । पुराने ईंट के टुकड़ों को हटाने के दौरान उनको और उनके सहयोगी को बिच्छुओं ने डंस लिया। उनके सहयोगी चीख पुकार मचा दिया। डॉक्टर आकर दर्द विनाशक दवाई देने लगा। पर उन्होंने मना कर दिया। वो शांत भाव से योग मुद्रा में बैठकर अविचल बैठे रहे।इस घटना का ये परिणाम हुआ कि मेरे पिताजी और मूझको, दोनों को योग की शक्ति में अदृढ़ आस्था हो गई जो आज तक अविचलित है।


बीच में एक दिन मुलाकात हुई. गेड़ुआ वस्त्र और पगड़ी बाँधकर स्वामी विवेकानंद जी की तरह दृष्टि गोचित हो रहे थे. बड़े साधारण शब्दों में कहा भगवान से तो रोज मुलाकात हो जाती है , थोड़ा आर्थिक रूप से पिछड़ गया हूँ. कोई जुगाड़ करना पड़ेगा ताकि बीबी बच्चों का लालन पालन कर सकूं. मुझे उनकी सादगी पर आश्चर्य हुआ. फिर थोड़े दिनों के बाद ज्ञात हुआ कि वो शिव मुनि समाज के जिम्मेदारी को निभाने के आलावा एल.आई.सी. के एजेंट भी बन गए हैं. बाद में वो गौतम बुद्ध की पुण्य भूमि राजगीर में जाकर एक स्कूल में शिक्षक का कार्य कर जीवन यापन करने लगे।


लगभग 6 महीनों के बाद होली के मौके पर गाँव गया था. ज्ञात हुआ अब आर्थिक रूप से सामान्य जीवन व्यतित कर रहे हैं. अमीरी भरा जीवन नहीं , तो गरीबी भरी दयनीयता भी नहीं थी. होली के समय मेरी उनसे आखिरी सार्थक मुलाकात हुई. हालाँकि मेरी शादी में भी वो पटना आये थे , पर समयाभाव के कारण उनसे बातचीत नहीं हो पाई थी. होली के समय उनसे हुई मुलाकात में उन्होंने मूझको और मेरे पिताजी को सर्वांग चक्रासन सिखाया. सर्वांग चक्रासन योगासन की एक गुढ़ प्रक्रिया है जिसमे शारीर के एक एक नसों को खोला जाता है ताकि शरीर में प्राण का प्रवाह में कोई अवरोध पैदा न हो सके और सारे चक्र खुल सके. सर्वांग चक्रासन के प्रक्रिया की परिणिति प्राणायाम , शवासन और पुरे शारीर में साक्षी भाव से दर्शन के पश्चात् आज्ञा चक्र पर ध्यान ऊं के उच्चारण के साथ होती है. योगासन की इस प्रक्रिया में लगभग डेढ़ घंटे लगते थे. प्रमोद जी ने बताया कि अब वो कह सकते है ईश्वर की झलक मिलती है. पूछने पर बताया की अब दुधिया प्रकाश में अति आनंद की प्राप्ति होती है. लौटने का मन नहीं करता. वहाँ जाने पर लगता है मै फ़ैल गया हूँ. लौटने पर लगता है इस शरीर रूपी पिंजड़े में बंध गया हूँ. इस योग का अभ्यास का ज्यादा फायदा मेरे पिताजी को हुआ जो लकवा ग्रस्त होने के बाद योग शक्ति से इस बीमारी पर विजय प्राप्त करने में सक्षम हो पाए।


मेरी शादी के बाद छपरा में उनसे 5 मिनट की मुलाकात हुई थी. उन्होंने पूछा सर्वांग चक्रासन कर रहा हूँ कि नही ? मैंने कहा अभी वकालत कर रहा हूँ दिल्ली में. समय नही मिलता. थोड़ा भूल भी गया हूँ. गाँव आऊंगा फिर कभी तो सीखने आऊंगा. उन्होंने कहा कि अब मुलाकात नहीं हो पायेगी.


आज मुझे आश्चर्य हो रहा था. उनकी भविष्य वाणी सही हो चुकी थी. उस योगी की मौत हो चुकी थी.


अजय अमिताभ सुमन
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