विश्व बंधुत्व आज की आवश्यक्ता
आज दुनिया भर में चारों तरफ अशांति का माहौल है। कहीं युद्ध तो कहीं आतंकी हमला, हत्या, बलात्कार, एक दूसरे के अधिकारों का हनन। इन सब के कारण वातावरण दूषित होता जा रहा है।
इस वातावरण का हमारी सोंच व व्यवहार पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इधर कुछ सालों से देखने में आ रहा है कि लोगों में अधीरता तथा गुस्से की भावना बढ़ती जा रही है। ज़रा ज़रा सी बात पर लोग एक दूसरे से झगड़ने लगते हैं। मरने मारने पर उतर आते हैं।
आसपास का वातावरण प्रकृति की हर वस्तु पर प्रभाव पड़ता है। बच्चों पर इस बिगड़ते माहौल का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। बच्चों के मन गीली मिट्टी की तरह होते हैं। गीली मिट्टी पर कोई भी निशान गहराई से अंकित हो जाता है। जैसे मिट्टी के सूखने पर उस पर बना निशान स्थाई हो जाता है। वैसे ही बचपन में पड़ा प्रभाव उनके वयस्क होने पर मन में सदा के लिए अकित हो जाता है। बच्चों पर आसपास होने वाले लड़ाई झगड़े का बहुत प्रभाव पड़ता है। उनके स्वभाव में भी एक आक्रमकता आ जाती है। बच्चे आने वाले कल का भविष्य होते हैं। उनकी मानसिकता में आने वाले विकार समाज के भविष्य को खराब कर देते हैं।
आने वाला भविष्य सुखद हो इसके लिए आवश्यक्ता है कि हम अपने बच्चों के लिए हम ऐसा वातावरण तैयार करें जहाँ लोगों में परस्पर भाईचारे और सौहार्द की भावना हो। लोग एक दूसरे के साथ प्रेम से रहें।
इस संबंध में ऋगवेद की यह ऋचा हमारा मार्गदर्शन करेगी।
संगच्छध्वं संवदध्वं
सं वो मनांसि जानताम्
देवा भागं यथा पूर्वे
सञ्जानाना उपासते ||
हम सब एक साथ चलें, एक साथ बोलें, हमारे मन एक हों।
प्राचीन समय में देवताओं का ऐसा आचरण रहा इसी कारण वे वंदनीय है |
हम सबको इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम इस विशाल ब्रह्मांड का एक छोटा सा हिस्सा हैं। प्रकृति ने हमें जो कुछ भी दिया है उस पर सबका समान रूप से अधिकार है। ना सिर्फ मनुष्यों का बल्कि समस्त प्राणियों का। जब हम इस तरह की विचारधारा को अपनाएंगे तो संसाधनों पर अधिकार की जो लड़ाई चल रही है उसका अंत हो सकेगा।
विश्व में कई तरह के धर्म हैं। कई तरह के दर्शन हैं। यह सभी ईश्वर तक पहुँचने के विभिन्न मार्ग बताते हैं। किंतु इस विविधता की मंज़िल एक ही है। परम सत्य से साक्षात्कार। किंतु यह सोंच कि मेरा मार्ग ही एकमात्र मार्ग है आपसी मतभेद का कारण होता है।
इस कठिन समय में यह आवश्यक है कि हम आपसी मतभेद भुला कर अनेकता के पीछे एकता को पहचानने का प्रयास करें। विश्व शांति के लक्ष्य की तरफ मिल कर कदम बढ़ाएं।
यदि हम ऐसा करने में सफल हो सके तो ना केवल हम अपना आज संवार सकेंगे बल्कि अपने बच्चों को वह दुनिया सौंप सकेंगे जहाँ सुख से रहा जा सकेगा।
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
"सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।"
उपरोक्त श्लोक हमें विश्व बंधुत्व के हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने की सही राह दिखाता है।
विश्व बंधुत्व एक सोंच है। यह सोंच हमें बताती है कि बाहरी तौर पर नज़र आने वाले फर्क के बावजूद हम सब एक हैं। एक ही विशाल व्यवस्था का अंग हैं। एक ही परमेश्वर की संतान हैं।
यह संपूर्ण विश्व एक कुटुंब है। जहाँ हम सभी प्राणी रहते हैं। जिस प्रकार एक परिवार के अंदर हम एक दूसरे की सुख सुविधा का ख्याल रखते हैं उसी तरह हमारा यह कर्तव्य है कि हम अपने आसपास की दुनिया में रहने वाले लोगों का खयाल रखें।
समाज में बहुत से लोग साधन संपन्न होते हैं। जबकी दूसरी तरफ बहुत से लोगों को आधारभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। अतः आवश्यक है कि साधन संपन्न लोग साधन विहीन लोगों का ध्यान रखें।
सुखी जीवन के लिए आवश्यक है कि सभी को आधारभूत सुविधाएं जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा समान रूप से मिलें। जब ऐसा नहीं होता है तब समाज के उस वर्ग में असंतोष व्याप्त हो जाता है जिसे इन सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है। यही असंतोष समाज में कई प्रकार के अपराधों को जन्म देता है। जिससे समाज की शांति खतरे में पड़ जाती है।
यह आवश्यक है कि समाज के संसाधनों पर कुछ ही लोगों का अधिकार ना हो बल्कि उनका फायदा समाज के सबसे नीचे के स्तर तक पहुँचे। सभी को शिक्षा स्वास्थ जैसी सुविधाएं मिल सकें। जिससे समाज के निचले स्तर पर रहने वाले लोगों का जीवन स्तर भी सुधर सके।
जब समाज के हर वर्ग के जीवन स्तर में सुधार आएगा तब सब तरफ सुख समृद्धि आएगी। सुखी समाज में ही शांति का वास होता है। ऐसे ही समाज में कल्याणकारी कार्य होते हैं। जहाँ कल्याणकारी कार्य होते हैं वहाँ दुख अपना स्थान नहीं बना सकते हैं।
अक्सर हम आत्मकेंद्रित होकर यह सोंचते हैं कि हमारा पहला दायित्व अपने लिए होता है। अतः पहले हमें स्वयं के सुखी भविष्य के बारे में सोंचना चाहिए। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि हम भी तब तक ही सुखी रह सकते हैं जब तक हमारे आसपास के वातावरण में शांति हो। उसके लिए यह आवश्यक है कि हम अपने साथ साथ अपने आसपास के लोगों के बारे में भी सोंचें।
अभी भी समय है जब हम अपनी सोंच को उदार बनाएं। अपने साथ साथ समाज के उत्थान के बारे में भी सोंचें। हमारा यह प्रयास हमारे आज और आने वाले कल दोनों को सुधार देगा। यदि हम ऐसी दुनिया का निर्माण करने में सफल हो सके जहाँ हर व्सक्ति अपनी सामर्थ्य के अनुसार इस बात का प्रयास करे कि वह अपने कार्यों से यमाज को लाभ पहुँचाने का प्रयास करेगा तो हम एक आदर्श दुनिया की रचना कर सकते हैं। यह तभी संभव है जब हम संपूर्ण विश्व को एक विशाल परिवार समझें। जब दुनिया में रहने वाले सभी लोगों के लिए हमारे ह्रदय में भ्रातत्व का भाव हो।
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः
पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥