Swabhiman - Laghukatha - 42 in Hindi Short Stories by Seema Shivhare suman books and stories PDF | स्वाभिमान - लघुकथा - 42

Featured Books
Categories
Share

स्वाभिमान - लघुकथा - 42

1 ) लघुकथा:- स्वभिमानी

"आप यहां! अब यहां क्या लेने आए हो? पूरे दो साल हो गए अपनी जिंदगी और दिल से निकाले हुए, क्या देखने आए हो? जिंदा हूं ! या मर गई हूं! या अपनी रखेल के लिए कुछ मांगने आए हो। दो साल से मयके में रह रही पत्नि ने अचानक आए पति को देखकर बड़-बडाते हुए कहा

दो वर्ष पहले अपने पति रतन के सामने बहुत गिड़गिड़ाने पर भी उसने अपनी प्रेमिका से मिलना नहीं छोड़ा और आए दिन किसी किसी बहाने से रजनी पर हांथ भी उठाया करता था और एक दिन तो हद ही कर दी, उसे घर में ही हमेशा के लिए ले आया और कहा "जा कहदे अपने मायके वालों से, देखूं क्या बिगाड़ लेंगे मेरा "

उसी पल वह अपने नन्हे से बेटे को लेकर अपनी गरीब -विधवा मां के साथ मयके में कर रहने लगी और मां को भी रिपोर्ट या कोई और कार्यवाही करने से मना कर दिया।

"मुझे माफ़ कर दो रजनी मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है, घर वापस चलो मैं तुम्हें लेने आया हूं अब कभी तुम पर हांथ नहीं उठाऊंगा " पति ने माफ़ी मांगते हुए कहा।

"तुम्हारी रंगरलियां देखने वापस चलूं। अपनी सौतन के साथ।"

पत्नि ने गुस्से से कहा।

नहीं अब वो मेरे साथ नहीं रहती, कुछ दिन पहले अपने दूसरे आशिक के साथ भाग गई।

सुनते ही रजनी घर के अंदर से अपना सूटकेस लेकर बाहर जाती है उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थी रतन तपाक से सूटकेस लेकर आगे -आगे चलने लगा पलटकर देखा तो रजनी अभी भी वहीं खड़ी थी, बोली -"ले जाओ इसे,इसमें शादी का जोड़ा और मंगल सूत्र है मैं कोई भी ऐसी निशानी अपने पास नहीं रखना चाहती जो मेरे स्वभिमान को ठेस पहुंचाए। और मांग से सिंदूर पोंछ कर घर के अंदर चली गई।

***

  • लघुकथा:- स्वभिमान के अंतर्गत 'मेरा हक '
  • "आईये दीदी! पूरे एक साल बाद आई हो

    क्या मयके की याद नहीं आई? " भाभी ने बेमन से औपचारिकता वश पूँछा।

    "ऐसी कोई बात नहीं है, भाभी ! बस जबसे पापा छोड़ कर गए, वापस यहाँ आने की हिम्मत नहीं जुटा पाई ।माँ का सूना माथा उनकी उदास आँखें बार बार पापा की याद दिलाती है।"कोमल ने झलकती आँखें पोंछते हुए कहा।

    "भाभी! माँ बहुत कमजोर लग रही हैं,ठीक से खाती भी हैं या नहीं?"

    "अब ये मत कहने लगना कि मैं तुम्हारी माँ का ख्याल नहीं रखती।"भाभी ने ताने मारते हुए कहा।

    "अरे! भाभी, आप गलत समझ रही हैं! मेरा ऐसा मतलब बिल्कुल नहीं था।"अपनी सफाई देते हुए कोमल, भाभी के पीछे-पीछे किचन में चली आई

    "भाभी रात बहुत हो गई है मैं खाना नहीं खाऊँगी! एक गिलास दूध ही पी लेती हूँ।" कहते हुए झट से दूध का गिलास भर लिया ।बचपन से ही दूध पिये बिना नींद जो नहीं आती थी उसे।अभी गिलास होंठों तक ही ला पाई थी कि ..

    "अरे! अरे! ये क्या कर रही हो कोमल ; मुन्ना रात में क्या पिएगा ? और 2 ही लीटर तो दूध आता है, 50रू. लीटर हो गया है दूध मैं आपको खाना लगा देती हूँ।" अगले ही पल दूध का गिलास भाभी के हाँथ में था और फिर तपेली में।

    कोमल की आँखों से आँसू बह निकले, वह सन्न सी माँ की ओर देखने लगी और माँ मजबूरी भरी निगाहों से कोमल को।

    कोमल खो सी गई ।उसे सासू माँ के शब्द सुनाई देने लगे;

    " अरी बिल्ली है का वा जनम की! या मयके में दूध ना मिलो कभऊँ ! तब देखो दूधई पे नियत धरी रेत ससुरी की। " बस उस दिन का दिन था कि कोमल ने दूध को हाँथ तक नहीं लगाया ससुराल में।

    ***

  • लघु कथा:- 'दस का नोट '
  • बस स्टोप पर इंतज़ार कर रही महिला का तीन साल का बच्चा जो कि गोद में था ; और दूसरा माँ की उँगली पकड़े हुए था दोनो ही माँ को कुल्फी के ठेले की ओर खींच- खींच कर रो रहे थे। माँ कभी कुल्फी वाले को देखती तो कभी अपनी मुट्ठी में से झाँकते हुए दस के नोट को।

    बस आते ही जल्दी से उसमें चढ़ गई,और पीछे से मैं भी।

    " भैया ये लो मेरा और इनका किराया " मैंने बीस का नोट, बस कनडेक्टर को देते हुए उस महिला की ओर इशारा करते हुए कहा।

    "मैं अपना किराया खुद दे सकती हूँ।" वो मैं गलत बस में चढ़ गई!" कहते हुए वो महिला तुरंत ही रोश में बस से नीचे उतर गई

    मैंने खिड़की से नीचे झाँक कर देखा ! महिला पैदल- पैदल ही बस के पीछे चली रही थी। और दोनो बच्चे कुल्फी खाते हुए खिलखिला रहे थे।

    लेखिका

    सीमा शिवहरे 'सुमन'