Swabhiman - Laghukatha - 41 in Hindi Short Stories by सीमा जैन 'भारत' books and stories PDF | स्वाभिमान - लघुकथा - 41

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स्वाभिमान - लघुकथा - 41

1 - रिस्क

-“शादी का लहंगा लेने के लिए ताई-ताऊ जी को साथ लेने की

क्या ज़रूरत है बेटा?”

-“माँ, हमारा बजट तो तुम जानती हो ना!”

- “सपना, तुमनें हमेशा मेरी बात को समझा है फ़िर आज किसी से उम्मीद क्यों?”

-“माँ कभी तो बजट के बाहर जी लेने दो ना!”

-“पर यदि उन्होंने उस महँगे लहँगे के पैसे नहीं दिए तो?”

-“ इतनी रिस्क तो लेनी ही पड़ेगी माँ! नहीं तो फ़िर मैं अपना कार्ड इस्तेमाल करूँगी!”

-“तेरी और मेरी तनख़्वाह मिलाकर हम किसी तरह शादी कर रहे हैं। अपने बजट को ऐसे ख़तरे में नहीं डाल सकते हैं!”

हम माँ-बेटी बात कर ही रहे थे कि जेठानी जी आ गईं। बोली- “चल सपना तेरे ताऊजी गाड़ी में हमारा इंतज़ार कर रहें हैं!”

रास्ते भर हम सब इधर-उधर की बातें करते रहे। जैसे ही दुकान पर पहुँचे दुकानदार ने वही सस्ता वाला लहँगा निकाल कर दिया जो हम पक्का करके गये थे।

उस लहंगे को देखते ही सपना के ताऊजी तो बोले: “अच्छा है!” पर उसकी ताई बोली- “अरे नहीं, ये बहुत भारी है और मशीन की कढ़ाई अच्छी भी नहीं लग रही है। सपना कोई और पसन्द कर ले!”

जब हमनें कुछ और लहँगे दिखाने के लिए बोला तो उसमें वो लहँगा भी आ गया जो सपना को पसन्द था।

वही लहँगा दिखाकर सपना की ताई बोली –“ये कैसा है सपना? ये रंग तुझ पर फबेगा और कढ़ाई भी सुंदर लग रही है!”

सपना की आँखें उसे देखकर चमक उठी वो बोली-“ताई पर इसकी क़ीमत ज़्यादा है!”

-“तो क्या हुआ शादी के लिए इतना तो कर सकतें हैं!”

जब तक ये पक्का न हो कि इसके पैसे वो देंगें, ये लड़की क्या करेगी? इतने में सपना ने मुझें देखते हुए दृढ़विश्वास से जवाब दिया:-“नहीं ताई इससे माँ का बजट गड़बड़ा जाएगा! हम तो वही वाला ले लेते हैं।“

***

2 - गर्व

वक़्त की मार ऐसी पड़ी की बड़ा व्यापार मिल्क बूथ में सिमट कर रह गया। अमीर मायके वाली बीबी, एकलौते बेटे को; बीबी के ताने सहते हुए भी बहुत लगन से पाला।

-“ तुम्हारी तरह घर-घर जाकर ये दूध के पैकेट मेरा बेटा नहीं बांटेगा। ये एक रुपये का काम करने की उसको कभी जरूरत नहीं पड़ेंगी। उसकी पढ़ाई पूरी हो जाने दो तुम्हें पता चला जायेगा कि मैंने अपने बेटे को कैसा बनाया है!” मेरा काम छोटा है ये तो मैं भी समझता था। बस, एक ही अरमान था की बेटा कुछ बड़ा कर लेगा तो मेरी मेहनत सफल हो जायेगी।

बूथ पर चाय, पूरी सब बनाई। जितना ज़्यादा से ज़्यादा कमा सकता था कमा कर घर में दिया।

साहबज़ादे ने गिरते-पड़ते डिग्री पूरी की। उसकी कमज़ोर पढ़ाई का दोष उन माँ बेटे ने कभी अपने ऊपर नहीं लिया।

बड़े ख़्वाब ओंधे मुँह गिरने से पहले ही दम तोड़ चुके थे। उन माँ बेटे के लिए छोटी नौकरियों से बेहतर जगह घर का बूथ साबित हुई। रस्सी जल चुकी है पर बल, वो तो आज भी वही है- “बेटा कल से बूथ पर आ रहा है। ज़रा, ढंग की सफाई करवाकर कुर्सियां तो लगवा दो! तुम तो कैसे भी रह लोगे मेरा बेटा…”

-“चुप हो जा! अब एक भी शब्द नहीं ! कान खोलकर सुन लो तुम दोनों- ये एक रुपये का काम करना हो तो सुबह पांच बजे भेज देना साहबज़ादे को, घर-घर दूध के पैकेट बाँटना सीखा दूँगा। नहीं तो बड़ी पढ़ाई जैसी बड़ी नौकरी ढूंढ लेना!” अपने छोटे काम से जुड़ा स्वाभिमान पहली बार सूरजमुखी की तरह सर उठा चुका था।

***

3 - मूक विद्रोह

तेज़ बारिश हो रही है कोई बात नही पिंकी बेबी से वादा था आज उन्हें समोसे बना कर खिलाने थे। साल में एक बार ही तो आ पाती है बिटिया। जिसे बचपन से हाथों से खिलाया हो उसमें और अपने बच्चे में कैसा फर्क?

आज मेरी पोती को भी साथ ले जाना पड़ा। बहू अस्पताल गई है अपनी माँ के पास।

एक हाथ में तीन साल की पोती और दूसरे हाथ में छतरी लिए मैं जब वहाँ पहुंची मुझे देखते ही मेमसाहब बोली "अरे शीला थोड़ा बाहर खड़ी हो जा, चौका गीला हो जायेगा।"

कैसी सोच है? हम दोनों को भीगा देखकर तौलिया या एक कप चाय का कहने की जगह?

चलो छोड़ो इनका तो स्वभाव ही ...अम्मा बाबा और बच्चों से लगाव के कारण ...नही तो छुट्टी और बारिश में कौन आता?

"अरे! शीला अपनी पोती को बोलो यहाँ बैठे, वो बाहर उस फूलदान को छु रही थी। पिंकी उसे लाई है। बहुत कीमती है।" मैडम ने चिढ़ते हुए कहा

मन तो खट्टा हो गया पर ...हम मालिक के बच्चे के लिए जो करे वो प्यार के और मालिक हमारे बच्चे के साथ ऐसा व्यहवार? इतने फालतू भी नही हमारे बच्चे।

इतने में बहुत ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ आई।

"कर दिया न नुकसान तोड़ दिया!"

बाहर गई तो देखा पिंकी बेबी की बिल्ली ने वो फूलदान तोड़ दिया। मैं अपनी पोती का हाथ थामे चौके के दरवाज़े से ही सब देख रही थी।

मेमसाहब अब पिंकी बेबी पर नाराज़ हो रही थी।

"मैं कल समोसे बना दूँगी मेम साहब कहीं इस बच्ची से कोई नुकसान न हो जाये।"

उनके जवाब की अब ज़रूरत नही थी। पोती को उठाया और एक बार फिर बारिश में मैं बाहर निकल पड़ी।

***

सीमा जैन ‘भारत’