सूरज से छनती किरण
“ऑन्टी हम कल से सिर्फ बर्तन धोएंगे। रसोई का बाकी काम न करेंगे ।”
“ क्यों ,क्या दिक्कत है? तुम्हें बर्तनों के लिए 600 देते हैं। रसोई साफ करने ,सब्जी काटने के अलग से 200 देते हैं न !”
“ऑन्टी ,6 नम्बर वाली गली में एक नयी संस्था खुली है। वो हमें पढ़ाएंगे ।बहुत सी लड़कियां -जो स्कूल छोड़ चुकी हैं ,वो सब वहाँ पढ़ने जा रही है। कल से हम भी जाएंगे ।”
“क्या करेगी पढ़ कर । आठवीं के बाद तो तूने स्कूल छोड़ दिया था । तीन साल हो गए ।अब क्या शौक चढ़ा है दुबारा पढ़ने का!”
मिसेज सिन्हा ने कुछ व्यंग्य मिश्रित स्वर में कहा। अम्मू के आधा काम छोड़ने से उन्हें कुछ घबराहट हो रही थी ।
अम्मू ने खूब अच्छी तरह रसोई सम्भाल रखी थी। 17 साल की थी पर रसोई के हर काम में पारंगत थी।
अम्मू ने जल्दी से बर्तन धोये। सब काम निबटाये।
मिसेज सिन्हा को देखकर बोलीं : ” ऑन्टी, हम वहाँ आठवीं से आगे की पढ़ाई करेंगें। अगले साल प्राइवेट दसवीं का इम्तिहान देंगें ।”
मिसेज सिन्हा अम्मू को घूरते हुए बोलीं:
“तो फिर 600 ही मिलेंगे । नुकसान तो तेरा ही होगा।"
“बापू तो तेरा शराबी है। तेरी अम्मा के बहुत कहने पर ही तुझे काम दिया था ।”
अम्मू ने चप्पल पहनी।दर्द को समेटते हुए बोली:
”ऑन्टी ,मुझे अम्मा जैसी जिंदगी न चाहिए इसीलिए पढ़ना है ।”
कुछ रुक कर बड़ी गहन दृष्टि डालते हुए उसने ऑन्टी को देखा-
“ फिर हमें घर घर बर्तन मांजने की भी जरूरत
न पड़ेगी ।”
इतना कह वो घर से बाहर निकल गयी।
जाते जाते उसकी आँखों में जो स्वाभिमान की चमक झलकी वो किरण नए उदित सूरज से छन कर आती हुई लग रही थी ।
***
एक स्त्री
“ माँ, आप कोर्ट में वही कहेंगी, जो वकील ने आपको समझाया है ।”
“ बेटा ,मैं बहुत टूट चुकी हूँ ।” विवाह के बाद झेले सारे मानसिक, शारीरिक दुखों की वेदना सावित्री के स्वर में फूट पड़ी ।
“ माँ ,अभी आपकी टूटन के हिसाब का समय नहीं है।”
“पिताजी को दुनिया भगवान मानती है उन पर इतना गन्दा इल्ज़ाम ! “
“ वो ऐसा कर ही नहीं सकते । आपने जो देखा वो आपका भ्रम है ।”
सावित्री व्यंग्य से: ” वो क्या कर सकते हैं और क्या नहीं ! एक पत्नी होने के नाते मुझसे बेहतर कौन जान सकता है !”
“ और हाँ बेटा! माँ की टूटन पिता की दौलत के आगे क्या मायने रखती है !”
सावित्री व्यंग्य ,निराशा को ओढे स्वार्थी बेटे को देख और सुन रही थी ।
“ माँ, बस ये याद रखना, हमारा सारा वैभव, ये दौलत,शान सब आपके बयान पर टिका है ।”
“ ठीक है बेटा ,आज तक जुबान बन्द रखी ।
आगे भी बन्द रखूंगी ।” सावित्री ने अपनी बाजुओं पर पड़े जख्मों के दागों को घूरते हुए कहा ।
“ हेलो ,आंटी जी ।”
“कौन ?” सावित्री ने अचानक फोन पर एक अपरिचित आवाज़ सुन कर कहा ।
“ आंटी, मैं वही लड़की हूँ, जिसके ब्लात्कार के केस में आपको अभी थोड़ी देर में गवाही देनी है।”
“ आंटी, आप ही एक चश्मदीद गवाह हैं, जिसने उस रात बाबा जी यानी आपके पति को मेरा बलात्कार करते देखा था ।”
“ मैं चुप रहूंगी। नही बोलूंगी अपने पति के खिलाफ, हमारी इज्जत, हमारी सारी शान क्यों मिट्टी में मिलाऊँ ?”
“ आंटी ! पत्नी, इज्जत, शान इन सबसे पहले बस एक बार सोचिएगा - आप सबसे पहले एक स्त्री हैं!'
लड़की की सिसकती आवाज़ सावित्री को चीर गयी।
“ सावित्री देवी, हाज़िर हों ।”
सावित्री जज के सामने थी ।
“ आपने उस रात क्या देखा ?”
सावित्री ने एक नज़र सामने अपराधी बन खड़े पति को देखा !
फिर नज़र घूमा वैभव व दौलत के लालची बेटे को देखा !
कोर्ट रूम में मौजूद पति के पक्ष में खड़ी वकीलों की फौज, सत्ता के नुमाइंदों ,खरीदी हुई मीडिया-सभी पर दृष्टि डाली !
कानों में उस रात की लड़की की चीखों को स्मरण किया! आंखों में पति की दरिन्दगी का दृश्य साकार किया!
हलक में जमे शब्दों को पिघलाते हुए कहा :
” जज साहब यही है वो इंसान ! जिसने उस रात लड़की का बलात्कार किया ।मैंने देखा ।”
धन, दौलत, इज्जत, शान, पति, बेटे, समाज के आगे एक स्त्री जीत गयी ।
***
सबक
छटाँक भर दाल थी । उसे धो कर सरसती ने पतीले में चढ़ा दिया ।
निर्माणाधीन इमारत का एक कोना ही उसकी गृहस्थी थी । दो ईंट रख बने चूल्हे से उसकी व चार बच्चों की भूख मिटती थी ।
दाल उबलने लगी थी । बड़ी मुश्किल से सरसती ने तीन दिन की हाड़ तोड़ मेहनत के बाद दाल खरीदी थी ।
तीन दिन से वो नमक, प्याज संग रोटी खा रहे थे।
आज बच्चों को दाल मिलेगी। ये सोच कर सरसती की ममता छलक उठी।
दाल उबल कर बाहर निकलने लगी। सरसती ने ढक्कन हटा दिया ।
" ए, तू यहां बैठी है । तसलों में मसाला भरा रखा है। उन्हें क्या तेरा बाप उठा के ऊपर पहुंचाएगा ।"
ठेकेदार ने आकर सरसती को भद्दी गाली देकर ये शब्द कहे ।
"अभी जाती हूँ। बस दाल पकने वाली है ।"
"तेरी दाल तो मैं पकाता हूँ ।"
ठेकेदार ने ज़ोर से ईंटों को लात मारी । पतीला उलट गया। सारी दाल बह गई ।
सरसती पथराई आंखों से अपने बच्चों की भूख का स्वाद मिट्टी में मिलता देख रही थी ।
अचानक उबलती दाल की मानिंद सरसती उठी और भरा हुआ तसला ठेकेदार पर पलट दिया ।
***