Charchit yatrakathae - 4 in Hindi Travel stories by MB (Official) books and stories PDF | चर्चित यात्राकथाएं - 4

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चर्चित यात्राकथाएं - 4

चर्चित यात्राकथाएं

(4)

सूरत का कहवाघर

लेव तोल्सतोय

सूरत नगर में एक कहवाघर था जहाँ अनेकानेक यात्री और विदेशी दुनिया भर से आते थे और विचारों का आदान-प्रदान करते थे। एक दिन वहाँ फारस का एक धार्मिक विद्वान आया। पूरी जिन्दगी ‘प्रथम कारण’ के बारे में चर्चा करते-करते उसका दिमाग ही चल गया था। उसने यह सोचना शुरू कर दिया था कि सृष्टि को नियन्त्रण में रखनेवाली कोई उच्च सत्ता ही नहीं है। इस व्यक्ति के साथ एक अफ्रीकी गुलाम भी था, जिससे उसने पूछा-बताओ, क्या तुम्हारे खयाल में भगवान है? गुलाम ने अपने कमरबन्द में से किसी देवता की लकड़ी की मूर्ति निकाली और बोला - यही है मेरा भगवान जिसने जिन्दगी भर मेरी रक्षा की है। गुलाम का जवाब सुनकर सभी चकरा गये। उनमें से एक ब्राह्मण था। वह गुलाम की ओर घूमा और बोला - ब्रह्म ही सच्चा भगवान है। एक यहूदी भी वहाँ बैठा था। उसका दावा था - इस्रायलवासियों का भगवान ही सच्चा भगवान है, वे ही उसकी चुनी हुई प्रजा हैं। एक कैथोलिक ने दावा किया - भगवान तक रोम के कैथोलिक चर्च द्वारा ही पहुँचा जा सकता है। लेकिन तभी एक प्रोटेस्टेण्ट पादरी जो वहाँ मौजूद था, बोल उठा - केवल गॉस्पेल के अनुसार प्रभु की सेवा करने वाले प्रोटेस्टेण्ट ही बचेंगे। कहवाघर में बैठे एक तुर्क ने कहा - सच्चा धर्म मोहम्मद और उमर के अनुयायियों का ही है, अली के अनुयायियों का नहीं, हर कोई दलीलें रख रहा था और चिल्ला रहा था, केवल एक चीनी ही, जोकि कॅन्फ्यूशियस का शिष्य था, कहवाघर के एक कोने में चुपचाप बैठा था और विवाद में हिस्सा नहीं ले रहा था। तब सभी लोग उस चीनी की ओर घूमे और उन्होंने उससे अपने विचार प्रकट करने को कहा।

कन्फ्यूशियस के शिष्य उस चीनी ने अपनी आँखें बन्द कर लीं और क्षण भर सोचता रहा। तब उसने आँखें खोलीं, अपने वस्त्र की चौड़ी आस्तीनों में से हाथ बाहर निकाले, हाथों को सीने पर बाँधा और बड़े शान्त स्वर में कहने लगा:

मित्रगण, मुझे लगता है लोगों का अहंकार ही उन्हें धर्म के मामले में एक-दूसरे से सहमत नहीं होने देता। अगर आप ध्यान से सुनें तो मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूँ, जिससे दृष्टान्त के रूप में यह बात साफ हो जाएगी।

मैं यहाँ चीन से एक अँग्रेजी स्टीमर से आया। यह स्टीमर दुनिया की सैर को निकला था। ताजा पानी लेने के लिए हम रुके और सुमात्रा द्वीप के पूरबी किनारे पर उतरे। दोपहर का वक्त था। हममें से कुछ लोग समन्दर के किनारे ही नारियल के कुंजों में जा बैठे। निकट ही एक गाँव था। हम सब लोगों की राष्ट्रीयता भिन्न-भिन्न थी।

जब हम बैठे हुए थे तो एक अन्धा आदमी हमारे पास आया। बाद में हमें मालूम हुआ कि सूर्य की ओर लगातार देखते रहने के कारण उसकी आँखें चली गयी थीं। वह यह जानना चाहता था कि सूर्य आखिर है क्या ताकि वह उसके प्रकाश को पकड़ सके।

यह जानने के लिए ही वह सूर्य की ओर देखता रहता। परिणाम यही हुआ कि सूर्य की रोशनी से उसकी आँखें दुखने लगीं और वह अन्धा हो गया।

तब उसने अपने आपसे कहा - सूर्य का प्रकाश द्रव नहीं है। क्योंकि, यदि यह द्रव होता तो इसे एक पात्र से दूसरे पात्र में उँड़ेला जा सकता था; तब यह पानी और हवा की तरह चलता भी। यह आग भी नहीं है, क्योंकि अगर यह आग होता तो पानी से बुझ सकता था। यह कोई आत्मा भी नहीं है क्योंकि आँख इसे देख सकती है। यह कोई पदार्थ भी नहीं है क्योंकि इसे हिलाया नहीं जा सकता। अतः, क्योंकि सूर्य का प्रकाश न द्रव है, न अग्नि है, न आत्मा है और न ही कोई पदार्थ, यह कुछ भी नहीं है।

यही था उसका तर्क। और, हमेशा सूर्य की ओर ताकते रहने और उसके बारे में सोचते रहने के कारण वह अपनी दृष्टि और बुद्धि दोनों ही खो बैठा। और जब वह पूरी तरह अन्धा हो गया, तब तो उसे पूरी तरह विश्वास हो गया कि सूर्य का अस्तित्व ही नहीं है।

इस अन्धे आदमी के साथ एक गुलाम भी आया था। उसने अपने स्वामी को नारिकेल-कुंज में बैठाया और जमीन से एक नारियल उठाकर उसका दीया बनाने लगा। उसने नारियल के रेशों से एक बत्ती बनायी, गोले में से थोड़ा-सा तेल निचोड़ कर खोल में डाला और बत्ती को उसमें भिगो लिया।

जब गुलाम अपने काम में मस्त था, अन्धे आदमी ने आह-सी भरी और उससे बोला - तो दास भाई, क्या मेरी बात सही नहीं थी। जब मैंने तुम्हें बताया था कि सूर्य का अस्तित्व ही नहीं है। क्या तुम्हें दिखाई नहीं देता कि अँधेरा कितना गहरा है? और लोग फिर भी कहते हैं कि सूर्य है... अगर है तो फिर यह क्या है?

मुझे मालूम नहीं है कि सूर्य क्या है - गुलाम ने कहा - मेरा उससे क्या लेना-देना। पर मैं यह जानता हूँ कि प्रकाश क्या है। यह देखिए, मैंने रात्रि के लिए एक दीया बनाया है जिसकी मदद से मैं आपको देख सकता हूँ और झोंपड़ी में किसी भी चीज को तलाश सकता हूँ।

तब गुलाम ने नारियल का दीया उठाया और बोला - यह है मेरा सूर्य।

एक लँगड़ा आदमी, जो अपनी बैसाखियाँ लिये पास ही बैठा था, यह सुनकर हँस पड़ा - लगता है तुम सारी उम्र नेत्रहीन ही रहे - उसने अन्धे आदमी से कहा - और कभी नहीं जान पाये कि सूर्य क्या है, मैं तुम्हें बताता हूँ कि यह क्या है, सूर्य आग का गोला है, जो हर रोज समन्दर में से निकलता है और शाम के समय हर रोज हमारे ही द्वीप की पहाड़ियों के पीछे छुप जाता है, हम सबने इसे देखा है और अगर तुम्हारी नजर होती तो तुमने भी देख लिया होता।

एक मछुआरा जो यह बातचीत सुन रहा था, बोला - बड़ी साफ बात है कि तुम अपने द्वीप से आगे कहीं नहीं गये हो। अगर तुम लँगड़े न होते और अगर तुम भी मेरी तरह नौका में कहीं दूर गये होते तो तुम्हें पता चलता कि सूर्य हमारे द्वीप की पहाड़ियों के पीछे अस्त नहीं होता। वह जैसे हर रोज समन्दर में से उदय होता है, वैसे ही हर रात समन्दर में ही डूब जाता है। मैं तुम्हें सच बता रहा हूँ, मैं हर रोज अपनी आँखों से ही ऐसा होते हुए देखता हूँ।

तब एक भारतीय, जो हमारी ही पार्टी का था, यों बोल उठा-मुझे हैरानी हो रही है कि एक अकलमन्द आदमी ऐसी बेवकूफी की बातें कर रहा है। आग का कोई गोला पानी में डूबने पर बुझने से कैसे बच सकता है? सूर्य आग का गोला नहीं है, वह तो देव नाम की दैवी शक्ति है, और वह अपने रथ में बैठकर स्वर्ण-पर्वत मेरु के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है। कभी-कभी राहु और केतु नाम के राक्षसी नाग उस पर हमला कर देते हैं और उसे निगल जाते हैं, तब पृथ्वी पर अन्धकार छा जाता है।

तब हमारे पुजारी प्रार्थना करते हैं ताकि देव का छुटकारा हो सके - तब वह छोड़ दिया जाता है, केवल आप जैसे अज्ञानी ही, जो अपने द्वीप के बाहर कभी गये ही नहीं, ऐसा सोच सकते हैं कि सूर्य केवल उनके देश के लिए ही चमकता है।

तब वहाँ उपस्थित एक मिस्री जहाज़ का मालिक बोलने लगा - नहीं, तुम भी गलत कह रहे हो। सूर्य दैवी शक्ति नहीं है और भारत और स्वर्ण-पर्वत के चारों ओर ही नहीं घूमता। मैं कृष्ण सागर पर यात्राएँ कर चुका हूँ। अरब के तट के साथ-साथ भी गया हूँ, माडागास्कर और फिलिप्पिंस तक हो आया हूँ। सूर्य पूरी धरती को आलोकित करता है, केवल भारत को ही नहीं, यह केवल एक ही पर्वत के चक्कर नहीं काटता रहता, बल्कि दूर पूरब में उगता है - जापान के द्वीपों से भी परे-और दूर पच्छिम में डूब जाता है-इंग्लैण्ड के द्वीपों से भी आगे कहीं, इसीलिए जापानी लोग अपने देश को ‘निप्पन’ यानी ‘उगते सूरज का देश’ कहते हैं। मुझे अच्छी तरह मालूम है क्योंकि मैंने काफी दुनिया देखी है और अपने दादा से काफी कुछ सुना भी है, जो सभी समन्दरों की यात्रा कर चुका है।

वह बोलता चला गया होता अगर हमारे जहाज के अँग्रेज मल्लाह ने उसे रोक न दिया होता, वह कहने लगा-दुनिया में और कोई ऐसा देश नहीं है जहाँ के लोग सूर्य की गतिविधियों के बारे में उतना जानते हैं जितना इंग्लैण्ड के लोग, इंग्लैण्ड में हर कोई जानता है कि सूर्य न तो कहीं उदय होता है, न अस्त ही। वह हर समय पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है। यह सही बात है क्योंकि हम भी पूरी धरती का चक्कर लगा चुके हैं और कहीं भी सूर्य से टकराये नहीं। जहाँ कहीं भी हम गये सुबह सूर्य निकलता और रात को डूबता दिखाई दिया-यहाँ की ही तरह।

तब अँग्रेज ने एक छड़ी ली और रेत पर वृत्त खींचकर यह समझाने का प्रयत्न किया कि कैसे सूर्य आसमान में चलता रहता है और पृथ्वी का भी चक्कर लगाता रहता है, पर वह ठीक तरह समझा नहीं पाया और फिर जहाज के चालक की ओर इशारा करते हुए बोला - यह आदमी मुझसे ज्यादा जानता है। वह ठीक तरह समझा सकता है।

चालक, जो काफी समझदार था, चुपचाप सुनता रहा था, अब सब लोग उसकी ओर मुड़ गये और वह बोला - आप सब लोग एक-दूसरे को बहका रहे हैं। आप सब धोखे में हैं। सूर्य पृथ्वी के चारों ओर नहीं, पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है और चलते-चलते अपने चारों ओर भी घूमती है और चौबीस घण्टों में सूर्य के आगे से पूरी घूम जाती है - केवल जापान, फिलिप्पिंस, सुमात्रा ही नहीं, अफ्रीका, यूरोप और अमरीका तथा कई अन्य प्रदेश भी साथ घूमते हैं। सूर्य किसी एक पर्वत के लिए नहीं चमकता, न किसी एक द्वीप या सागर या केवल हमारी पृथ्वी के लिए ही, यह अन्य ग्रहों के लिए भी चमकता है। अगर आप अपने नीचे की जमीन से नजरें उठाकर जरा आसमान की तरफ देखें तो आपको सब समझ में आ जाएगा। तभी आप समझ पाएँगे कि सूर्य सिर्फ आपके लिए ही नहीं चमकता।

आस्था के मामलों में भी - कनफ्यूशियस के शिष्य चीनी ने कहा - अहंकार ही है जो लोगों के मन में दुराव पैदा करता है। जो बात सूर्य के सम्बन्ध में निकलती है, वही भगवान के मामले में सही है। हर आदमी अपना खुद का एक विशिष्ट भगवान बनाये रखना चाहता है - या ज्यादा से ज्यादा अपने देश के लिए हर राष्ट्र उस शक्ति को अपने मन्दिर में बन्द कर लेना चाहता है जिसे विश्व भी बन्द नहीं कर सकता।

क्या उस मन्दिर से किसी भी अन्य मन्दिर की तुलना की जा सकती है जिसकी रचना भगवान ने खुद सभी धर्मों और आस्थाओं के मानने वालों को एकसूत्र में बाँधने के लिए की है?

सभी मानवीय मन्दिरों का निर्माण इसी मन्दिर के अनुरूप हुआ है, जोकि भगवान की अपनी दुनिया है। हर मन्दिर के सिंहद्वार होते हैं, गुम्बज होते हैं, दीप होते हैं, मूर्तियाँ और चित्र होते हैं, भित्ति-लिपियाँ होती हैं, विधि-विधान-ग्रन्थ होते हैं, प्रार्थनाएँ होती हैं, वेदियाँ होती हैं और पुजारी होते हैं : पर कौन-सा ऐसा मन्दिर है जिसमें समन्दर जैसा फव्वारा है; आकाश जैसा गुम्बज है, सूर्य, चन्द्र और तारों जैसे द्वीप हैं और जीते-जागते प्रेम करते मनुष्यों जैसी मूर्तियाँ हैं? भगवान द्वारा प्रदत्त खुशियों से बढ़कर उसकी अच्छाइयों के ग्रन्थ और कहाँ हैं, जिन्हें आसानी से पढ़ा और समझा जा सके? मनुष्य के हृदय से बड़ी कौन-सी विधान-पुस्तक है? आत्म-बलिदान से बड़ी बलि क्या है? और अच्छे आदमी के हृदय से बड़ी कौन-सी वेदी है जिसपर स्वयं भगवान भेंट स्वीकार करते हैं?

जितना ऊँचा आदमी का विचार भगवान के बारे में होगा, उतना ही बेहतर वह उसे समझ सकेगा। और जितनी अच्छी तरह वह उसे समझेगा, उतना ही उसके निकट वह होता जाएगा - उसकी अच्छाई, करुणा, मानव के प्रति प्रेम की नकल करता हुआ।

इसीलिए जो आदमी सूर्य की रोशनी को पूरे विश्व में फैला देखता है, उसे अन्धविश्वासी को दोष नहीं देना चाहिए, न ही उससे घृणा करनी चाहिए कि वह अपनी मूर्ति में उस रोशनी की एक किरण देखता है, उसे नास्तिक से भी नफरत नहीं करनी चाहिए कि वह अन्धा है और सूर्य को देख ही नहीं सकता।

ये थे कनफ्यूशियस के शिष्य चीनी विद्वान के शब्द। कहवाघर में बैठे सभी लोग शान्त और खामोश थे। फिर वे धर्म को लेकर नहीं झगड़े, न ही उन्होंने विवाद ही किया।

***