मेरा दोस्त गणेश
एक लड़की थी । नाम था अमुकु । सात साल की छोटी सी, भोली भाली लड़की ।
वह अपने माता पिता और दादी के साथ गॉंव में रहती थी । अमुकु के पिताजी खेती करते
थे। माँ घर में खाना बनाती और गाय का सब काम करती। अमुकु को धार से निकलता
धारोष्ण दूध पीने में में बहुत मज़ा आता। माँ अक्सर अमुकु को गाये चराने और कभी बावड़ी
से पानी लाने भेज देती । अमुकु का कोई भाई बहिन नहीं था और जब भी उसको कहीं जाना
होता वो अकेला महसूस करती । सब बच्चे जब अपने भाई-बहिन के साथ स्कूल जाते और
जब कोई लड़ाई होती तो कोई भी अमुकु को बचाने नहीं आता। एक दिन स्कूल से
लौटते समय अमुकु की लड़ाई एक लड़की से हो गयी। दोनों ने एक दुसरे को
धक्का दिया, दोनों को चोट लगी। उस लड़की को उसके बड़े-भाई ने झट से
उठाया, सहलाया और उसके स्कूल का बैग खुद उठाया और उसे भी हाथ पकड़ कर
प्यार से लेकर गया। अमुकु को किसी ने नहीं पूछा और वो रोते-रोते घर आयी।
;अमुकु क्यों रो-रही है? क्या हुआ मेरी मुनमुनिया को; माँ ने प्यार से
सहलाते हुए पूछा। ;माँ मुझे अनोखी ने रास्ते में गिराया, मुझे चोट भी लगी और
किसी ने मुझे नहीं उठाया। मेरा कोई दोस्त नहीं है स्कूल में और घर में भी कोई
भाई बहिन नहीं है;ऐसे नहीं रोते मेरी मुनमुनिया , माँ को जब भी अपनी
लाड़ली को मनाना होता वो उसे मुनमुनिया ही कहती । चल जल्दी से कपडे बदल
ले, देख पिताजी तेरे लिए नए कपडे लाये हैं। माँ मुझे कब मिलेगा एक अच्छा
दोस्त, जो मुझे हर मुसीबत से बचाएगा, मेरे साथ स्कूल जाएगा और मेरे साथ
बावड़ी से पानी लेने भी जाएगा माँ मुझे कपडे और खिलोने नहीं चाहिए, मेरे
लिए एक अच्छा दोस्त ला दो अमुकु ने कुछ मचलते हुए ज़िद की। माँ जानती थी
कि अब अमुकु का कोई भाई-बहिन नहीं आसकता, सात साल पहले बहुत मन्नतों
के बाद ईश्वर ने उनकी झोली में अमुकु को डाला था।
माँ ने अमुकु को समझाने के लिए बस इतना ही कहा कि वो चिंता न
करे, जल्दी ही उसे भगवानजी एक बहुत प्यारा दोस्त मिलवायेंगे। रात को अमुकु
रोज़ अपनी दादी से कहानी सुनती थी और आज उसने दादी से एक दोस्त की
कहानी सुनाने की ज़िद की। दादी ने उसे एक बहुत प्यारे छोटे से बालक की
कहानी सुनाई जो माटी से अपने पसंद की मूरत बनाता था और फिर उसको अपना
दोस्त बनाकर सब जगह लेजाता था। हर साल एक मूरत बनाने से अब तक उसके
पास दस मूरत इकट्ठी हो गयी थीं।
एक रात जिस कमरे में सब मूर्तियां रखी थी, वहां से कुछ आवाज़ें आयीं।
जब लड़के ने खिड़की से झांका तो वहां सब मूर्तियां आपस में खेल रही थी और
बातें कर रही थीं। लड़का खुशी से झूम गया और फिर धीरे से दरवाजा खोलकर
उनके बीच जाकर बैठ गया। अभी दादी ने इतनी ही कहानी सुनाई थी कि अमुकु
चहक उठी। उसे लगा जैसे उसको अपने दोस्त तक पहुँचने का रास्ता मिलगया।
अमुकु को उस रात बड़ी मीठी नींद आयी। अगले दिन उसने अपनी माँ से कहा कि
वो अपने लिए एक प्यारा दोस्त बनाना चाहती है और माँ ने उसको इतना ही कहा
कि जब भी जीवन में कोई नया काम करते हैं तो हम गणेश भगवानजी को याद
करके ही करते हैं इसलिए तुम भी पहले नहा कर, गणेशजी का ध्यान करके फिर
अपना दोस्त बनाना।
वो छुट्टी का दिन था और अमुकु सुबह से ही दादी के पीछे-पीछे घूम रही
थी। आज क्या चाहिए मेरी लाड़ली को ; दादी ने प्यार से अपने पीछे फुदकती
अमुकु को पूछा। दादी आज मुझे गणेशजी की पूजा करनी है आपके साथ और मैं
उनसे पूछ कर एक प्यारा दोस्त अपने लिए बनाना चाहती हूँ। अमुकु ने उसी तरह
फुदकते हुए दादी को बताया। दादी समझ गयीं कि अमुकु पर रात वाली लड़के की
कहानी का असर हो गया है। उन्होंने पूजा के कमरे में अमुकु को अपने साथ
बिठाया और अमुकु को गणेश जी के बारे में बताया। अमुकु ने अब तय कर लिया
था, उसके पहले दोस्त गणेशजी ही होंगे। दादी ने बताया कि आजकल गणेशोत्सव
की सब जगह तैयारी हो रही है और लोग माटी के प्यारे-प्यारे रंगीन सुन्दर गणेश
जी बनाकर अपने घर लाते हैं। ये सुनकर तो अमुकु और भी खुश हो गयी और
उसने माँ से कहकर अपने लिए माटी, रंग, ब्रश, सबकुछ बाजार से मंगवा लिए।
माँ भी अमुकु के इस काम में उसकी सहायक बनने को तैयार हो गयीं। अब तो
अमुकु की खुशी का ठिकाना न रहा, उसे लगा जैसे उसके दोस्त गणेश ने आने से
पहले ही उसके और माँ के बीच एक दोस्ती की डोर बाँध दी है।
माँ कैसा होगा मेरा दोस्त गणेश? वो स्कूल छोड़ने जाएगा मुझे, मेरे साथ
खेलेगा?; ऐसे कितने ही प्रश्नों की झड़ी सी लगा दी अमुकु ने और माँ उसकी
भोली मुस्कान और उत्सुकता को देख बहुत खुश हुई। बातों बातों में कब गणेश जी
की मूरत तैयार हो गयी, पता ही नहीं चला। ;अब रात भर इसे सूखने के लिए रख
दो और तुम सोजाओ। सुबह स्कूल भी जाना है;। माँ ने अमुकु से कहा। अब तो
अमुकु गणेश के बिना एक मिनट भी नहीं रहना चाहती थी, तो उसने माँ से
कहकर अपना बिस्तर वहीँ लगा लिया जहाँ माँ ने गणेशजी की मूरत को सूखने के
लिए रखा था। रात को अमुकु ने बहुत सी बातें गणेशजी से कही, अपने स्कूल की
बातें, अपना स्कूल का ग्रहकार्य और अपनी टीचर की बातें। बातों-बातों में कब
अमुकु को नींद आ गयी, उसे पता ही नहीं चला। सुबह उठकर अमुकु ने सबसे
पहले अपने दोस्त गणेश को प्यार किया। आज अमुकु बिना माँ की सहायता के ही
स्कूल के लिए तैयार हो गयी।t;माँ, मेरे स्कूल से वापस आने तक मेरे दोस्त का ख्याल रखना और आज
हम शाम को अपने दोस्त को सुन्दर-सुन्दर रंगों से सजायेंगे। माँ, पिताजी से
कहकर मेरे दोस्त के लिए अच्छे से कपडे मंगवा देना।; माँ देख रही थी आज
पहली बार अमुकु ने अपने लिए कुछ नहीं मंगवाया। माँ को कुछ आश्चर्य मिश्रित
खुशी हुई। माँ ने सोच लिया था कि आज वो अमुकु के स्कूल से आने से पहले ही
उसके दोस्त के लिए कपडे खुद ही सिल देगी । शाम को स्कूल से लौटकर अमुकु
सीधे अपने दोस्त के पास गयी और झट से रंग निकाल कर उसे रंगने लगी ।
;अमुकु चल खाना खा ले, माँ ने रसोई से आवाज़ दी।;नहीं माँ आज मैं
अपने दोस्त के साथ ही खाना खाउंगी, ;मा तुम भी आओ, मेरी मदद करो;। थोड़ी
देर में ही अमुकु ने रंगकर बहुत ही सुन्दर दोस्त बना लिया।;माँ अब जब ये सूख
जाएगा, तब मैं इसके साथ खेलूँगी। अमुकु की आँखों में अपने दोस्त के लिए
इतना निश्छल प्यार देखकर माँ भी बहुत खुश थीं।
शाम को अमुकु ने सारा स्कूल का काम अपने दोस्त के साथ बैठकर
किया। आज तो अमुकु ने कोई ज़िद नहीं की। माँ अमुकु में ये बदलाव देखकर
बहुत खुश थीं। रात को अमुकु ने कहानी सुनाने की ज़िद भी नहीं की। वो झटपट
अपने बिस्तर के साथ एक छोटे बिस्तर को लगाने की तैयारी कर रही थी। माँ देख
रही थी कैसे एक ही दिन में अमुकु के दोस्त गणेश ने उसको समझदार बना दिया
था।
मेरा दोस्त गणेश, मुझसे कब बातें करने लगेगा माँ अमुकु ने बड़े
उत्साह से माँ से पूछा।;जल्दी ही ये तेरे जैसा बातूनी हो जायगा मेरी मुनमुनिया
माँ ने प्यार से उसको समझाया। पर इसके लिए तुझे भी इससे खूब बातें करनी
होंगी" अब तो जहाँ अमुकु जाती, उसके साथ-साथ गणेश भी जाता। बावड़ी से पानी
भरने, गाये के साथ जंगल जाते समय और स्कूल भी।
एक दिन रात को अमुकु ने देखा उसका गणेश कहीं जा रहा है अकेला।
अमुकु उठी और चुपचाप उसके पीछे चल पड़ी । गणेश धीरे-धीरे मंदिर की तरफ जा रहा था
। अमुकु ने देखा वो वहां बैठकर चुपचाप माँ के बनाये मोदक खा रहा है । अमुकु ने कुछ नहीं
कहा और चुपचाप अपने बिस्तर पर आकर सो गयी। सुबह माँ मंदिर में गयी तो वहां मोदक
न पाकर , तुरंत अमुकु को पूछा । अमुकु ने अपने दोस्त गणेश की शिकायत करना उचित
नहीं समझा और गणेश के हिस्से की डांट खुद खा ली। शाम को स्कूल से लौटकर अमुकु ने
गणेश को समझाया कि वो सारे मोदक आज रात न खाये। अब गणेश बोलता नहीं था, पर
अमुकु को विश्वास था कि उसका दोस्त ऐसा नहीं करेगा। अगली सुबह माँ के उठने से पहले
ही अमुकु मंदिर में गयी । उसने देखा गणेश ने फिर से सारे मोदक खा लिए थे। आज तो वो
माँ को सबकुछ सच बता देगी और गणेश की तरफ से खुद माफी मांग लेगी। वो नहीं चाहती
थी किसी भी वजह से माँ नाराज़ होकर उसके गणेश को उससे दूर करदें।
माँ ने जब अमुकु के मुख से ये सच सूना तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ।
उन्होंने सारी बात दादी को बतायी क्यूंकि दादी ही उनसे प्रसाद के मोदक बनवाती
थीं। दादी मुस्करायीं और समझ गयीं कि ये बाल गणेश की ही शरारत है। उन्होंने
अमुकु को अपने पास बुलाया और कहा कि वो बाल गणेश को आज रात से मंदिर
में ही सोने दे, ताकी उनको मोदक खाने के लिए रात में चलकर इतनी दूर न
जाना पड़े। अमुकु ने प्यार से दादी को गले लगाया और अपने दोस्त गणेश के
लिए मंदिर में सोने के लिए एक प्यारा सा बिस्तर लगा दिया। उस दिन के बाद से
अमुकु का दोस्त गणेश मंदिर में रहने लगा और अमुकु से उसकी दोस्ती और भी
पक्की हो गयी।
अब गणेश और अमुकु की दोस्ती को लगभग एक साल होने वाला था।
अमुकु के इम्तिहान नज़दीक थे । माँ उसको पढ़ने के लिए कहती और अमुकु
गणेश के संग खेलती रहती, बातें करती रहती। माँ ने कहा अगर तुम नहीं पढ़ोगी
तो मैं तुम्हारे गणेश को मारूँगी। अमुकु गणेश को बहुत प्यार करती थी और
गणेश भी। उसी शाम अमुकु ने देखा गणेश उसके स्कूल के बैग में से किताब
निकाल रहा है। उसे याद आया अरे कल तो स्कूल में उसी किताब से टीचर ने
प्रश्न पूछने हैं। अमुकु ने झट से किताब उससे ली और पढ़ने बैठ गयी। अगले
दिन इम्तिहान में अमुकु के सबसे अच्छे नंबर आये। टीचर ने उसे खूब शाबाशी दी
और पूछा कि आजकल उसे कौन पढ़ाता है। टीचर जानती थी कि अमुकु के घर में
पढ़ाने वाला कोई नहीं है ।अमुकु ने झट से कहा "मेरा दोस्त गणेश मुझे पढ़ने के
लिए कहता है और उसके साथ खेलने के बाद मैं उसकी कोई बात नहीं टालती।
अब टीचर ने सोचा की गणेश से वो भी मिलेगी, जिसने अमुकु को भी पढ़ने की
आदत डाल दी।
;अच्छा अमुकु कल अपने साथ गणेश को भी स्कूल लाना । मैं उससे
मिलना चाहती हूँ और उसको भी शाबाशी देना चाहती हूँ। ;टीचर ने अमुकु से कहा
। घर पहुँच कर आज अमुकु ने एक ही बात कही कि वो कल गणेश को स्कूल
लेकर जाएगी । जब माँ नहीं मानी तो अमुकु ने दादी से कहा और थोड़ी ही देर में
दादी मान गयी पर उन्होंने कहा कि वो अपने पिताजी को भी साथ लेकर जाएगी,
ताकी वो गणेश को टीचर से मिलाकर जल्दी घर लाएं । अमुकु मान गयी और
अगले दिन अपने दोस्त गणेश को स्कूल लगायी। उस दिन पहली बार पिताजी
उसके स्कूल गए । वो बहुत खुश थी और गणेश भी उसके स्कूल बैग में खूब
उछाल मार रहा था। अमुकु को सुनरहा था, वो गए रहा था “अमुकु जाती हंसकर
स्कूल, अमुकु न करे कोई भी भूल, अमुकु है टीचर की प्यारी, अमुकु पिता की
राजदुलारी।“ इसको सुनकर अमुकु और भी खुश हुई और दिनभर इसे गुनगुनाती
रही।
एक साल कब बीत गया, अमुकु को पता ही नहीं चला। अगले साल
गणेशोत्सव पर, अपने दोस्त गणेश के लिए जब अमुकु नए कपडे बनवाने के लिए
माँ से कहने गयी तो उसने देखा, माँ ने पहले से ही बहुत सारे सुन्दर-सुन्दर कपडे
सिल रखें है। माँ इतने सारे कपडे क्यों? अमुकु ने जिज्ञासा वश पूछा| तब दादी ने
बताया कि उसके दोस्त गणेश की शुभकामनाओं से अब अमुकु के लिए एक और
प्यारा सा दोस्त आ गया है, जो उसके साथ खेलेगा, बातें करेगा और बड़ा होकर
उसके साथ स्कूल भी जाएगा ।
;अच्छा मेरा छोटा भाई आया है अमुकु ने उछलते हुए कहा। ;मेरा दोस्त
गणेश आज से उसका भी दोस्त होगा ;हमदोनो गणेश के साथ खेलेंगे; ये कहकर
अमुकु भाग कर मंदिर में अपने गणेश दोस्त को नए भाई के बारे में बताने चली