Swabhiman - Laghukatha - 18 in Hindi Short Stories by Chitra Raghav books and stories PDF | स्वाभिमान - लघुकथा - 18

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स्वाभिमान - लघुकथा - 18

1 - सफ़ेद

विश्वास करो जब मैं घर से निकला था न.. मेरा पोशाक सफेद थी। ये धब्बे मेरे नहीं हैं। घर से मंज़िल तक जो मिला अपना रंग छोड़ गया।

किसका कसूर कहिए, अब का मौसम ही ऐसा है रास्तों पर कीचड़ पहले से है, फिर किसी की रफ्तार से, कभी किसी और की गलती से, कभी किसी के आहत अहम से जो उछला कि… बदरंग हम हो गए।

ऐसा नही है लोगों को हमसे सहानुभूति नही है, पर लोगों की क्या है, उनका काम है कहना तो… कुछ कह गए की दुनिया की तरह रंग बदल लो, कुछ ने कहा इतने बड़े धब्बे दिखो की तुम पर धब्बा दिखे ही नही। कुछ ने तो यहाँ तक कह डाला कि आजकल के ज़माने में सफेद पोशाक कौन पहनता है, कुछ होगा नही तो बदरंग क्या होगा।

सच कहें तो हम उनकी तरफ नज़र उठा के भी न देख सके, इस डर से के उनके पास तो खोने को भी कुछ नही है, अपनी कुछ मैली ही सही उतर न जाए।

मैं यह नही कहता कि दुनिया मे कोई और सफेद पोशाक वाला बचा ही नही, बस वो मुझे ही रास्ते मे कहीं नही मिले।

शायद घरों में कैद होंगे, ऐसे घरों में जहाँ हवा बाहर न आ सके, अंदर न जा सके।

उनमें से कई को तो साफ होने का दम्भ भी बहुत होगा, मुझे वापस आने भी देंगे न साहब।

आप मुझे पहचान ही नही रहे, विश्वास करो, मैं जब घर से निकला था ना, मेरा पोशाक।

***

2 - लिपस्टिक और सिगरेट

मोनिका एक आम लड़की है। इतनी आम के उसके साथ कभी कुछ खास हुआ ही नहीं।

एक उम्र आने तक चुप रह जाना, बहस न करना, हर काम के लिए सबसे पहले खुद उठना सीख गई है। हर लड़की की तरह पहला स्पर्श उसके लिए भी गंदा और डरावना था। जब उसकी नजरें झुकने के लिए हल्का उठना सीखी थी, तभी गंदी डरावनी नजरों से मिलते ही हट गई। कुछ की झुक जाती हैं कभी ना उठने के लिए। नज़रों के न मिलने के दोनों ही तरीके आम हैं और समय-समय पर अपना रोल बदलती रहती हैं। ‘पवित्र’ थी शायद रखी गई थी! बिल्कुल आम लड़कियों की तरह, वैसे ही बहुत सारी गंदगी के बीच।

वह साफ है पर उसने ऐसे हाथ भी देखे हैं जिनके पीछे कोई जिस्म ही नहीं था। एक बड़ी सी भीड़ से निकल अचानक उसे यहां वहां छू जाते थे। वह छुअन शरीर पर मुश्किल से दो सेकेण्ड की होती थी और मन पर अगले हाथ के आने तक की।

मोनिका थक गई। अब एक आम लड़की की तरह उसे मैला होने के लिए किसी एक को चुनना चाहिए, जो उसे इन हाथों से, नजरों से बचा कर रख लेगा।

क्या यही मोनिका का ख्वाब है? नहीं, बिल्कुल भी नहीं, कोई ढाल चलाने के सपने देखता है क्या भला? वह डाल बदल भी सकती है, बड़ी डाल मिले तो और जिंदगी भर की मील तो और भी अच्छा। अरे, पर ये ढाल मोनिका को कहीं कैद ना कर दे या शायद कर ही देती।

नहीं, नहीं चाहिए उसे। उसने तलवार उठा ली है, छोटी, सफेद जिसे देख अधिकतर लोगों उसे पहले से मैला समझ लेते है। कभी शरीर को छू भी लें तो मन को तो बिल्कुल नहीं छु पाते।

भाईसाहब, ये तलवार शर्म, छुअन, गंदगी सब को धुएं में उड़ा देती है और अब उसके मुंह से एक गंदी बास हमेशा आती रहती है। मनचाहे शेड की लिपस्टिक लगा, आजाद महसूस करती है।

अब आप हँस रहे हो और कह रहे हो वह आम नहीं रही और यह तलवार भी आम नहीं है

दरअसल यह सब आम है अब। कुछ कम ही सही बाजार से सिगरेट लाती हैं जो तुम्हें दिखती है। कुछ अदृश्य बना लेती हैं बिना बदबू की उसका धुआँ कब तुम्हारे मुहँ पर उड़ा रही होती है, कई बार तुम्हें पता भी नहीं चलता। उस धुएँ में पूरा नक्शा रख छोड़ा है। अब हर आम लड़की के पर्स में है एक लिपस्टिक और एक सिगरेट होती ही है।

***

3 - परिधि

स्कूल के बाथरूम में शर्ट उतारने का वीडियो चंद मिनटों में वायरल हो गया। पूरे स्कूल में बवाल मचा। बात की जाँच हुई तो लगभग पूरी क्लास दोषी पाई गई, क्योंकि शर्त सबके सामने लगी थी। एक साल का पूरा बैच स्कूल से निकाल नहीं सकते थे।

उसको ही निकालने के निर्णय के क्रियान्वयन से पहले उसे बेइज़्ज़त करने और निर्णय को उत्तम ठहराने की युद्ध स्तर पर कार्यवाही चल रही थी।(चित्रा)

मैं स्तब्ध थी और जो घट रहा था उसे सोखने के प्रयास में थी। न चाहते हुए भी मुझे भी वह वीडियो भेजा गया और अपना मत रखने के लिए दबाव बनाया गया। वीडियो खोला तो दंग रह गयी। कुछ सेकंड के वीडियो में मजबूरी, दुख, गुस्सा, शर्म सब भाव लड़की के चेहरे पर आते रहे थे। पर क्या किसी और ने देखा ही नहीं? किसी की नजरें चेहरे पर पहुँची ही नहीं?

हिटलर नाम से प्रसिद्ध सीनियर मैम ने चार कदम आगे बढ़ चपत के साथ गालियाँ तक दे डाली।

मेरी बारी आई तो सिर्फ एक प्रश्न किया, “ठीक है सब हो गया स्कूल से निकाल दिया गया। अब आगे क्या.. आगे क्या करना है, दिमाग मे क्या चल रहा है?”

उसने ज़मीन में गड़ी नज़रों से उत्तर दिया,“नहीं, अंधेरा है बस। आगे जीने की भी इच्छा नही है मैम।

उसके बात खत्म होते ही कई आवाज़ें मर जाने को बेहतर बताती सुनाई दीं।

मैंने उसे नज़रे उठाने के लिए कहा और बोला,” वो एक चीज़ क्या है, जो खो दी है और वापस मिल जाये तो जी सकोगी?”

हॉल में सन्नाटा छा गया। उसने भी अचंभित नज़रों से मुझे देखा।

“बोलो? क्या खोया है, हमारी नज़रों में इज़्ज़त, स्नेह, तो इस क्लास के सब बच्चों ने भी खोया है, तो क्या सबको मर जाना चाहिए?”

“नहीं, मुझे तो सबने ऐसे देख.. मेरी देह .. खुद से घृणा..” रोते रोते उसकी उखड़ती सांस उसका साथ नहीं दे रही थी।

बहुत देर से चुप खड़ी गीता मैम पास आ कर बोलीं,” बस देह का उघड़ना! (ऐसे तो यहाँ उपस्थित हर शादीशुदा महिला को मर जाना चाहिए।)

तुमने जो किया खुद किया। देह तुम्हारी परिधि नहीं है।

इतिहास से अब तक इसी कारण महिलाओं ने बहुत कुछ सहा है।

ज़िन्दगी इससे अधिक भी है। यह एक सीख है, तुम्हारे संघर्ष की कहानी बनेगी। इसे आगे बढ़ सकी तो जीवन सफल हो सकेगा। तुम्हें तय करना है लड़ना या हार जाना।”

चित्रा राणा राघव