मेरा दोस्त गणेश
प्रतियोगिता के लिए #MDG
अपना घर बचाना है.....
हमेशा की तरह आगरकर परिवार में गणपति को लाने की तैयारी चल रही थी। घर के आंगन में गणपति जी की स्थापना के लिए सुंदर सा मंडप बनाया गया था। इसकी सजावट पर खास ध्यान दिया गया था। गणपति के मनपसंद मोदक बनाए गए थे। आगरकर परिवार में गणपति का स्वागत बहुत धूमधाम से होता था।
संदीप, अनय, मुकेश, नीरज और वेदिका आगरकर परिवार के बच्चे थे। सब आपस में एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे। हर साल घर के बच्चे सबसे अधिक उत्साह के साथ गणेश उत्सव की तैयारी में भाग लेते थे। लेकिन इस बार उनमें वह उत्साह नहीं था। पाँचों बच्चे घर की छत पर इकठ्ठे थे। उनके बीच गंभीर बातचीत हो रही थी। उम्र में सबसे बड़ा संदीप दुखी मन से कह रहा था।
"हमारे घर के आंगन में आखिरी बार गणपति आएंगे। इसके बाद तो हमारा घर बिल्डर केदारनाथ मेहता खरीद लेंगे। फिर हम सब भी अलग अलग हो जाएंगे।"
सबसे छोटी और उन सबकी इकलौती लाडली बहन वेदिका यह सुन कर रोने लगी। सब उसे चुप कराने लगे। सभी को अपने घर से बहुत प्यार था। इस घर के आंगन में सब एक साथ खेलते थे। लड़ते झगड़ते थे। फिर एक हो जाते थे।
उनके इस प्यारे घर का नाम वैदेही निवास था। वैदेही उनकी परदादी का नाम था। उनके परदादा मनोहर आगरकर अपने समय के माने हुए वकील थे। उन्होंने यह घर बहुत प्यार से बनवाया था। घर के गेट पर लगे पत्थर पर 'वैदेही निवास' के नीचे इसके निर्माण का वर्ष '1965' लिखा हुआ था। मनोहर आगरकर की मृत्यु के बाद यह घर उनके दो बेटों सुरेंद्र और महेंद्र के पास आ गया। सुरेंद्र जानवरों के डॉक्टर थे। महेंद्र अपने पिता की तरह वकालत करते थे। बड़े भाई सुरेंद्र का एक बेटा था नरेंद्र। महेंद्र के दो बेटे आकाश और विकास थे। एक बेटी जानकी भी थी।
संदीप और नीरज नरेंद्र के बेटे थे। मुकेश के पापा का नाम आकाश था। विकास अनय और वेदिका के पापा थे। तीनों भाई अपने परिवार के साथ वैदेही निवास में रहते थे। बड़ों के बीच इधर कई दिनों से मनमुटाव था। लेकिन गणपति जी के आगमन की तैयारी सब मिल कर ही करते थे।
करीब तीन महीने पहले एक संडे को केदारनाथ मेहता की गाड़ी उनके घर पर आकर रुकी। बच्चे अपने खेल में मस्त थे। बड़े छुट्टी के मूड में। केदारनाथ एक ऑफर ले कर तीनों भाइयों से मिलने आए थे। करीब एक घंटे तक वह तीनों से बातें करते रहे। केदारनाथ के जाने के बाद भी तीनों भाई आपस में बातें करते रहे। केदारनाथ के ऑफर पर सभी एकमत थे। वह वैदेही निवास को खरीद कर वहाँ एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनाना चाहते थे।
केदारनाथ ने वैदेही निवास के लिए अच्छी रकम देने का वादा किया था। बड़ों को यह एक फायदेमंद सौदा लग रहा था। इससे वह अपनी और बच्चों की ज़िंदगी सुधार सकते थे। नरेंद्र और विकास ने पहले से ही एक एक फ्लैट खरीद रखा था। वैदेही निवास बिकने के बाद वह वहीं जाने वाले थे। आकाश ने तय किया था कि वह अपनी ससुराल में जा कर रहेंगे।
वैदेही निवास में होने वाले इस आखिरी गणपति को तीनों भाई यादगार बनाना चाहते थे। इसलिए खूब मन लगा कर तैयारी कर रहे थे।
दिन भर की तैयारी के बाद बड़े थक कर सो गए थे। लेकिन सभी बच्चे उस मंडप में जमा थे जहाँ अगले दिन गणपति विराजने वाले थे। सभी बहुत दुखी थे। ना सिर्फ उनका घर छूटने वाला था बल्कि वह भी अलग होने वाले थे। सभी की आँखें नम थीं। अनय ने संदीप से कहा।
"भइया क्या सचमुच हमारा घर बिक जाएगा। हम सब अलग हो जाएंगे।"
मुकेश बोला।
"भइया क्या हम कुछ नहीं कर सकते हैं ?"
संदीप गंभीर हो कर बोला।
"हम तो बच्चे हैं। हमारे बड़े हमारी बात कभी नहीं सुनेंगे। उन्हें जो सही लगेगा वही करेंगे। अगर कोई कुछ कर सकता है तो वह हैं गणपति बप्पा।"
"तो हम सब मिल कर उनसे प्रार्थना करते हैं।"
वेदिका ने आगे बढ़ कर सलाह दी। पाँचों लोग घेरा बना कर खड़े हो गए। सच्चे दिल से सब गणपति बप्पा से प्रार्थना करने लगे। उनकी सच्ची प्रार्थना ने असर दिखाया। मंडप में सब तरफ रौशनी फैल गई। उस रौशनी से आवाज़ आई।
"तुम लोगों की प्रार्थना मैंने सुन ली। मैं तुम लोगों की सहायता करूँगा।"
सब आश्चर्य से आवाज़ की दिशा में देख रहे थे।
"कल जब घर के बड़े मेरी मूर्ती स्थापित करेंगे तब मैं तुम लोगों के पास आऊँगा। तुम लोग बड़ों से कह देना कि तुम सबका दोस्त विनायक गणपति उत्सव पर तुम लोगों के पास रहने आने वाला है।"
धीरे धीरे रौशनी गायब हो गई। सब बच्चे खुशी खुशी सोने चले गए।
बच्चों ने घरवालों को इस बात के लिए मना लिया कि विनायक गणेश उत्सव में उनके साथ रह सके। जिस समय बाजे गाजे के साथ गणपति ने घर में प्रवेश किया उसी समय एक गोल मटोल लड़का हाथ में छोटा सा बैग ले कर दरवाज़े पर आया। बच्चे समझ गए कि यही विनायक है। उन्होंने दौड़ कर उसका स्वागत किया।
गणपति जी की स्थापना के बाद उनकी आरती की गई। उन्हें मोदकों का भोग लगाया गया। मोदक देखते ही विनायक के मुंह में पानी आ गया। वह मोदकों की तरफ लपका। संदीप ने हाथ पकड़ कर रोक लिया।
"बप्पा सबके सामने नहीं। हमारी पोल खुल जाएगी। आप ऊपर कमरे में चलिए। नीरज मोदक ले कर आता है।"
बच्चे विनायक को अपने स्टडी रूम में ले गए। नीरज एक प्लेट में मोदक ले कर आ गया। विनायक मज़े से मोदक खाने लगा। मुकेश ने कहा।
"बप्पा अब बताइए आप हमारी मदद कैसे करेंगे ?"
"पहली बात यह कि मैं तुम लोगों का दोस्त बन कर आया हूँ। तुम सब मुझे विनायक कहोगे।"
देविका ने चहक कर कहा।
"पर मैं आपको विनायक भइया कहूँगी।"
"ठीक है मेरी बहना तुम मुझे विनायक भइया ही कहना।"
यह सुन कर सब हंस दिए।
"दूसरी बात तुम सब वही करोगे जो मैं कहूँगा।"
सबने एक साथ मिल कर कहा।
"जैसा तुम कहोगे हमारे दोस्त।"
विनायक ने सबको पास बुला कर उन्हें अपना प्लान बता दिया।
दोपहर में नरेंद्र अपने कमरे में अपनी पत्नी लता से बात कर रहे थे।
"चलो बस अब यह घर बिक जाए। हम अपना हिस्सा ले कर अलग हो जाएंगे। बहुत दिनों से सोंच रहा था कि नौकरी छोड़ कर अपना बिजनेस शुरू करूँ। उन पैसों से वह सपना पूरा हो सकेगा।"
तभी संदीप और नीरज कमरे में आए साथ में विनायक था।
"ये हमारा दोस्त विनायक है।"
विनायक ने उनसे नमस्ते किया। उसे देख कर संदीप की माँ लता ने कहा।
"यह तो गणपति की तरह ही गोलमटोल है।"
"आंटी उनकी तरह मुझे मोदक भी बहुत पसंद हैं।"
विनायक ने हंस कर कहा। लता उसके लिए मोदक लाने चली गईं।
"अंकल आप कितने लकी हैं। इतने बड़े और सुंदर घर में रहते हैं।"
नरेंद्र ने कोई जवाब नहीं दिया। विनायक ने आगे कहा।
"वो आकाश अंकल बहुत दुखी थे। बता रहे थे कि यह घर बिकने वाला है। उन्होंने बताया कि बचपन में आपके साथ इस घर में खूब खेलते थे। बड़े होने पर भी तीनों यहाँ मिलजुल कर रहते थे। कितना मज़ा आता था। अब सब खत्म हो जाएगा।"
नरेंद्र विनायक की बात बहुत ध्यान से सुन रहे थे। वह कुछ बोले नहीं पर अपने बचपन की यादों में खो गए।
वहाँ से विनायक अनय और वेदिका के साथ विकास के पास गया। वहाँ वेदिका की मम्मी राशी ने भी उसे मोदक खिलाए। विनायक ने उन्हें बताया कि अभी नरेंद्र और आकाश अंकल अपने बचपन की बहुत मज़ेदार बातें बता रहे थे। उन्होंने बताया कि कबड्डी में आपको कोई हरा नहीं सकता था। अपनी तारीफ सुन कर विकास बोले।
"अरे आज भी अगर दोनों खेलें तो मैं हरा दूँ।"
"पर अंकल अब ऐसा कैसे होगा। वो लोग बता रहे थे कि यह घर बिकने वाला है। दोनों बहुत दुखी थे।"
यह सुन कर विकास भी भावुक हो गए। वह दोनों बड़े भाइयों के साथ बिताए सुंदर दिनों को याद करने लगे।
मुकेश और विनायक ने आकाश को भी इसी तरह भावुक कर दिया। तीनों भाई अब घर के साथ जुड़े अपने बीते समय को याद करने लगे। जितना वह अपने पुराने दिनों के बारे में सोंचते उतना ही उनका लगाव घर से बढ़ता जाता था।
शाम की आरती के बाद तीनों भाई अपनी पत्नियों के साथ गणपति जी के मंडप में बैठे थे। सभी बच्चे भी विनायक के साथ वहाँ आ गए। मुकेश की मम्मी वीणा ने विनायक से पूँछा।
"बेटा तुम्हारे मम्मी पापा क्या करते हैं।"
"आंटी मेरे मम्मी पापा दुनिया की भलाई करते हैं।"
"तुम्हारा मतलब सोशल वर्कर हैं।"
"जी आंटी...."
"तुम अकेले ही आ गए। वह तुम्हें छोड़ने नहीं आए।"
इस बार लता ने सवाल किया।
"वो मुझे दरवाज़े पर छोड़ कर चले गए। उन्हें जल्दी थी।"
संदीप ने प्लान के मुताबिक बात का रुख बदलते हुए कहा।
"क्यों ना हम सब एक गेम खेलें।"
नीरज ने पूँछा।
"कौन सा गेम ?"
"बहुत आसान सा गेम है। हमारे इस वैदेही निवास में हमारा यह आखिरी गणपति उत्सव है। हमको इस घर से जुड़ी अपनी कोई ऐसी बात या याद बतानी है जो हमें अच्छी लगती हो।"
सारे बच्चों ने ताली बजाई। बड़े एक दूसरे की तरफ देखने लगे। तय हुआ कि शुरुआत सबसे छोटे सदस्य वेदिका से की जाए। वेदिका ने बताया कि उसके लिए इस घर से जुड़ी सबसे अच्छी बात यह है कि वह यहाँ अपने पूरे परिवार के साथ रहती है। उसके बाद बारी बारी से संदीप, नीरज, मुकेश और अनय ने अपनी बात रखी। बच्चों की बारी खत्म होने के बाद विनायक बोला।
"अंकल आंटी मुझे तो आपका घर बहुत सुंदर लगा। इतनी ही देर में मैं यहाँ से लगाव महसूस करने लगा। आप लोग तो बहुत दिनों से यहाँ हैं। आपके पास तो बहुत सारी बातें होंगी कहने को। प्लीज़ हम बच्चों को भी इस घर से जुड़ी कुछ बातें बताइए।"
विनायक की बात सुन कर सभी बड़े अपने अपने विचारों में खो गए। उन्हें शांत देख कर विनायक ने कहा।
"आंटी शुरआत आप लोगों से करते हैं। राशी आंटी पहले आप बताइए।"
राशी ने सब घरवालों पर एक नज़र डालने के बाद कहा।
"मैं अपने मम्मी पापा की इकलौती बेटी हूँ। कोई भाई बहन नहीं था। मम्मी पापा अपने काम में व्यस्त रहते थे। मैं बहुत अकेलापन महसूस करती थी। पर वैदेही निवास में मुझे एक बड़ा परिवार मिला। मैं यहाँ कभी अकेलापन महसूस नहीं करती हूँ।"
लता और वीणा ने भी बताया कि इस घर में साथ रहते हुए सुख दुख बांटना उन्हें अच्छा लगता है। अब बारी तीनों भाइयों की थी। उनके पास तो बचपन से ले कर अब तक बताने के लिए बहुत कुछ था। शुरुआत नरेंद्र ने की पर बाकी दोनों भाई बारी की प्रतीक्षा किए बिना बीच में ही अपने अनुभव बताने लगे। उसके बाद तो जैसे किस्सों का खजाना खुल गया। एक अपनी बात कहता तो दूसरा उससे जुड़ा अपना किस्सा बताने लगता। वह लोग इस तरह आपस में बात कर रहे थे कि देख कर लगता ही नहीं था कि उनमें कोई मनमुटाव हो। बाकी सब भी खूब मज़े से उन किस्सों को सुन रहे थे। इस सब में वक्त ना जाने कैसे बीत गया।
रात में जब सब सोने गए तो सभी बड़ों के मन में वैदेही निवास और उससे जुड़ी बातें ही चल रही थीं। उधर बच्चे स्टडी रूम में विनायक के साथ सीक्रेट मीटिंग कर रहे थे। संदीप ने कहा।
"विनायक लगता तो है कि हमारा तीर निशाने पर लगा। पर क्या भरोसा कि बड़े फिर वैसे ही ना हो जाएं। पैसों के लिए हमारे घर को बेंच दें।"
प्लेट का आखिरी मोदक खाते हुए विनायक ने कहा।
"ये तीर निशाने पर लगा है। अब हम दूसरा तीर चलाएंगे।"
"मतलब ??"
सभी बच्चे एक साथ बोले।
"मेरी बात ध्यान से सुनो...."
विनायक के उनके कानों में नया मंत्र फूंक दिया।
बच्चे ही विनायक के फैन नहीं थे बल्कि इतने कम समय में उसने बड़ों पर भी अपना जादू चला दिया था। कभी वह तीनों आंटी के पास किचन में चला जाता। वहाँ अपनी मीठी मीठी बातों से उनका मन मोह लेता। वहाँ उसे भर पेट मोदक और लड्डू खाने को मिलते थे। कभी तीनों भाइयों के पास जा कर बैठ जाता। वहाँ अपनी होशियारी से उन्हें चेस में हरा देता था। अब पूरा परिवार विनायक का दीवाना हो गया था।
चौथे दिन का लंच स्पेशल था। आज पूरन पोली, केसरिया श्रीखंड और साबूदाना वड़े बने थे। सबने एक साथ बैठ कर लंच का मज़ा लिया। लंच के बाद विनायक ने अंताक्षिरी खेलने का सुझाव दिया। सभी ने एक से बढ़ कर एक गाने गाए। पर बाज़ी वीणा आंटी ने मार ली। उन्होंने संगीत की शिक्षा ली थी।
सबके मन में यह बात आ रही थी कि इस बार का गणपति उत्सव बहुत खास है। इस बार उन सबने एक साथ मिल कर खूब मज़ा किया है। पर यह बात याद आते ही कि वैदेही निवास में एक साथ उनका यह आखिरी गणपति उत्सव है सबके मन में हूक सी उठती थी।
कल पाँच दिन के गणपति का विसर्जन होना था। अतः आज शाम की आरती के लिए केदारनाथ मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाए गए थे। यही समय था प्लान के दूसरे हिस्से का।
प्लान के मुताबिक बच्चे केदारनाथ की खूब खातिर कर रहे थे। उनकी हर बात का खयाल रख रहे थे। केदारनाथ भी बहुत खुश लग रहे थे। अपने प्लान को आगे बढ़ाने के लिए मुकेश ने उन्हें पीने के लिए शरबत दिया। ठीक उसी समय वेदिका ने जानबूझ कर धक्का दे दिया। शरबत केदारनाथ के कपड़ों पर गिर गया।
"सॉरी अंकल गलती से धक्का लग गया।"
वेदिका ने बड़ी मासूमियत से रोनी सूरत बना कर कहा। बाकी सब भी उनसे माफी मांगने लगे। बच्चे केदारनाथ को वॉशरूम में ले गए। जब केदारनाथ वाशरूम से निकल रहे थे तब उन्हें आवाज़ सुनाई पड़ी।
"अब जल्दी से केदारनाथ के साथ घर का सौदा हो जाए तो जान छूटे। पर ध्यान रखना कि उन्हें किसी भी तरह से यह ना पता चल जाए कि इस घर को सरकार ने गैर कानूनी घोषित कर कब्ज़े में लेने का नोटिस भेजा है। बस वह यह घर खरीद लें फिर वह जानें और उनका काम।"
"नहीं भइया हम पूरा ध्यान रखेंगे कि उन्हें कुछ पता ना चले।"
केदारनाथ पहचान गए। यह आवाज़ें तीनों भाइयों की थीं। केदारनाथ उनकी बात सुन कर परेशान हो गए। वह अपनी डील तोड़ने के इरादे से उस कमरे में घुसने लगे जहाँ से आवाज़ें आ रही थीं। तभी अनय ने टोंक दिया।
"अंकल आप वहाँ कहाँ जा रहे हैं। वह तो स्टोर रूम है। उसमें पूजा का सामान रखा है। आपको कुछ चाहिए।"
टोंके जाने से केदारनाथ कुछ सकपका गए। सफाई देते हुए बोले।
"नहीं मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं तो घर देख रहा था। पर मुझे अभी तुम्हारे पापा और उनके भाइयों से मिलना है।"
"ठीक है अंकल आप बाहर जा कर बैठें। मैं उन्हें भेजता हूँ।"
केदारनाथ बाहर चले गए। स्टोर रूम का दरवाज़ा खुला। संदीप, मुकेश और नीरज विनायक के साथ बाहर निकले। नीरज ने हाई फाइव देते हुए विनायक से कहा।
"तुम तो कमाल की मिमिक्री कर लेते हो।"
विनायक ने भी स्टाइल में जवाब दिया।
"तो मुझे ऐसे ही सबसे आगे नहीं मानते हैं।"
बाहर केदारनाथ बेसब्री से तीनों भाइयों का इंतज़ार कर रहे थे। उनके आते ही गुस्से से बोले।
"आप लोग धोखे से मुझे यह मकान बेंचना चाहते हैं। पर मैं धोखा नहीं खाऊँगा।"
उनकी बात सुन कर नरेंद्र गुस्से में बोले।
"ये क्या बकवास कर रहे हैं आप। हमने क्या धोखा दिया।"
"अपने गैरकानूनी मकान को चुपचाप मुझे बेंचना चाहते थे। पर मैं अब यह मकान नहीं खरीदूँगा।"
उनका यह आरोप सुन कर विकास ने गुस्से से कहा।
"खबरदार हमारे वैदेही निवास के बारे में उल्टा सीधा कहा। यह घर हमारी पहचान है। हमारा अभिमान है।"
आकाश भी पीछे नहीं रहे।
"यह हमारे बच्चों की धरोहर है। यहाँ हमारा बचपन बीता अब उनका बीतेगा। इस घर के आंगन में हर साल गणपति बप्पा विराजेंगे। आप नाक भी रगड़ें तो हम इसे नहीं बेचेंगे।"
नरेंद्र ने आगे बढ़ कर कहा।
"मेरे भाइयों ने जो कहा अच्छी तरह से सुन लिया ना। अब आप शराफत से चले जाइए।"
बच्चे छिप कर सब कुछ देख रहे थे। वह खुशी से उछल पड़े। सबने मिल कर विनायक को उठा लिया।
सबने मिल कर श्रद्धा और भक्ति के साथ गणपति जी की आरती की। आज सबके मन में खुशी थी। अब अगले साल फिर एक साथ मिल कर गणपति बप्पा का स्वागत करेंगे।
अगले दिन बप्पा को धूमधाम के साथ विदाई दी गई। विसर्जन से लौटने पर सभी बड़े विनायक को खोजने लगे। पर वह नहीं था। बच्चों ने बताया कि वह अपने मम्मी पापा के पास वापस चला गया।
बड़ों को लग रहा था कि बच्चों का दोस्त विनायक गणपति का कोई दूत था जो उन्हें एक करने आया था।
लेकिन बच्चे तो जानते थे कि खुद बप्पा उनके दोस्त बन कर आए थे।
गणपति बप्पा मारिया....
अगले बरस तू जल्दी आ....