Swabhiman - Laghukatha - 1 in Hindi Short Stories by Chhavi Nigam books and stories PDF | स्वाभिमान - लघुकथा - 1

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स्वाभिमान - लघुकथा - 1

1 - सबक

ऋचा के कमरे से बाहर आते ही नीरव दाँत पीसते हुए बुदबुदाया " ये अंदर मैथ्स की ट्यूशन ले रही थीं, या इन हाईस्कूल के स्टूडेंट्स का दिमाग खराब कर रही थीं, हैं ?"

ऋचा की आवाज़ शांत थी " क्लास खत्म करके 5 मिनट तो मैं बच्चों से रोज बात करती ही हूँ। लेकिन आज अचानक आके , आपने ऐसा क्या सुन लिया ?"

नीरव और झल्ला गया " अरे उनको ये सब खबरें-वबरें बांचना… और क्या। और ये सब वाहियात उलटी-सीधी सुर्खियां...ये सब डिटेल उन्हें बताने की जरूरत ही क्या है? ज़रा ये तो सोचो तुम हमारे राहुल और पीयूष को भी तो साथ पढ़ाती हो। क्या असर पड़ेगा उनपर ?"

ऋचा ने उसकी आँखों में आँखें डालते हुये कहा, " असर ये पड़ेगा, कि मेरे सारे विद्यार्थियोँ की तरह वो भी संवेदनशील बनेंगे। कल ये सब खौफ़नाक सुर्खियां ही गायब हो जायें, इसके लिए मैं आज को सुधार रही हूँ । मैं उन्हें लड़कियों की इज्जत करना, उनकी तकलीफ़ महसूस करना सिखा रही हूँ, बस "

नीरव के पंजे का दबाव उसकी बाँहों पर बढ़ता चला जा रहा था।" बन्द करो ये सब बक़वास..." आगे कुछ कहते हुए अचानक वो खड़ा का खड़ा रहा गया। उसका हाथ नीचे गिर गया। सामने बैग टाँगे हुये उसका बेटा राहुल खड़ा उसे एकटक देख रहा था। और नीरव पहली बार उससे नज़रें नहीं मिला पा रहा था।

***

2 - रँगा सियार

मम्मा, बताओ ना। फिर क्या हुआ जब वो नील में रंगा सियार...सब भूलभाल के हुआं हुआं करने लगा ? बोलो..ना.."

कहानी आगे सुनने की जल्दी में नन्हें आशू ने मानसी को झिंझोड़ दिया। तो खुद को रोकते-रोकते भी मानसी कराह उठी। आज फिर पूरी दोपहर आसुतोष ने उसकी देह का इस्तेमाल मानो अपने राजनैतिक विरोधियों पर खुन्नस निकालने, और कुर्सी के लिए अपनी हवस को और भड़काने के जरिये की तरह किया था। और अब जैसे तनावमुक्त होकर वो अपनी किसी राजनैतिक रैली में जाने के लिए तैयार हो रहा था। और इधर, स्कूल से लौटकर नाश्ता करते हुए आशू उससे जल्दी से कहानी पूरी करने की ज़िद किये जा रहा था। एक बार फिर आशू ने उसका हाथ खींचा, तो अपनी टीस दबाते हुए मानसी ने उसके मुहं में कौर डालते हुए कहानी जारी रखी

" फिर सब लोग जान गए, कि अरे, जिसे वो अब तक कोई विलक्षण जीव समझ सर आँखों पर बिठाये हुये थे...वो तो धोखेबाज़ सियार निकला..."

पीछे से सीटी बजने की आवाज़ लगातार सुनायी पड़ने लगी थी। इसका मतलब ...अंदर आसुतोष अपना झक्क सफेद कुर्ता पजामा पहन तैयार हो चुका था, और अब बरामदे से होता हुआ, पार्टी का झंडा लगी गाड़ी में बैठने बाहर जाने ही वाला था।

तभी आशू ने आँखें गोल-गोल करके पूछा " लोगों ने क्या किया फिर मम्मा?"

मानसी की मुट्ठियाँ अनायास भिंच गयीं। पहली बार उसकी आँखों में गुस्सा उबल आया, और आवाज़ तेज होती चली गयी

" फिर वही हुआ बेटा, जो होना चाहिए था । आखिरकार लोग रँगे सियार को पहचान कर...उसके अंजाम तक पहुँचा ही देते हैं "

बाहर खड़ा आसुतोष लड़खड़ा गया। काँपती उँगलियों से छूटके उसकी टोपी कब लहराते हुये पैरों में आ गिरी...उसे पता ही नहीं चला।

- डॉ छवि निगम