My self shubham in Hindi Children Stories by Jahnavi Suman books and stories PDF | माइ सेल्फ शुभम , नाम तो सुना होगा?

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माइ सेल्फ शुभम , नाम तो सुना होगा?

माइ सेल्फ शुभम ,नाम तो सुना होगा?


'ओम गं गं गणपते नमो नमः' का जाप करते हुए जैसे ही अवन्ति ने पूजा घर से बाहर पाँव रखा उसकी पोती खनक दौड़ती हुई आई और अवन्ति से लिपटते हुए बोली, 'दादी माँ मुझे बचा लो' 'अरे क्या हो गया । कौन आ गया खनक?' चश्मे को साड़ी के पल्ले से मलकर अवन्ति ने आँखों पर चश्मा चढ़ाया ओर इधर उधर देखने लगी।
खनक ने मेज़ के नीचे घुसते हुए दादी अवन्ति को चुप रहने का इशारा किया।
तभी खनक की माँ 'सुजाता' चिल्लाती हुई उधर पहुँच गईं।
'खनक बाहर निकल आज मैं तुझे नहीं छोडूँगी।' वह गुस्से से चिल्ला रही थी।
'पर मुझे तो छोड़ दे बहु मुझे क्यों पकड़ रखा है?' अवन्ति के यह कहने पर सुजाता ने देखा कि वह सासू माँ को पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से हिला रही थी। उसने झेंपते हुए सासू माँ का हाथ छोड़ दिया और फिर खनक को ढूंढने लगी।
इधर उधर देखने के बाद उसे खनक की गुलाबी फ्रॉक दिखाई दे ही गई, उसने खनक को खींच कर बाहर निकाला।
खनक बाहर निकलते ही ज़ोर ज़ोर से रोने लगी, ;नहीं मैं स्कूल नहीं जाऊँगी, मेरे पाँव में बहुत दर्द हो रहा है'
'खनक ! रोज़ रोज़ स्कूल से छुट्टी करना अच्छा नही, जाओ जल्दी जे तैयार हो जाओ।' सुजाता ने डपटते हुए कहा।
'मम्मी प्लीज् मुझे आज छुट्टी करने दो।' खनक गिड़गिड़ाने लगी।
'ये क्या सुबह सुबह शोर मचा रखा है,' खनक के पिता कर्ण अपने गीले बालों को तोलिये से पोंछते हुए वहाँ आये।
'देखिए न कर्ण ! खनक आज फिर से स्कूल नहीं जा रही है।' सुजाता ने शिकायत भरे स्वर में कहा।
'नहीं खनक ये बहुत ग़लत बात है।' कर्ण ने डांटते हुए कहा ।
'कक्षा में बहुत पीछे छूट जाओगी , सब तुम्हारे साथी तुम से आगे निकल जाएंगे।'
वह गुस्से में झल्लाकर बोलते ही जा रहे थे।
खनक अब दादी से लिपट गई और बोली, दादी प्लीज़ पापा को आप कह दो आज मुझे स्कूल नहीं जाना।
'आज रहने दो बेटा,' अवन्ति ने अपने बेटे कर्ण की ओर देखकर कहा।
सुजाता ने अवन्ति की ओर देखा और कहा, 'आप ही के लाड प्यार ने इसे बिगाड़ रखा है।'
कर्ण ने अवन्ति से कहा , 'माँ आप इसको समझाने की बजाय इसकी तरफदारी दारी कर रही है। मैथ्स में कितनी कमज़ोर है पिछले साल फ़ेल होते होते बच गई थी।'
'अगर इस बार फेल हो गई तो सोसाइटी मे हम क्या मुँह बिखाएँगे।'
खनक अब फूट फूट कर रोने लगी। उसने रट लगा रखी थी। 'मुझे आज स्कूल नहीं जाना।'
अवन्ति दादी ने उसे समझाया, 'बेटा जा जैसा मम्मी पापा कहते है वैसा कर ले।'
सुजाता ने खनक से कहा, 'जल्दी से जाओ बाथरूम में यूनिफार्म रखी है नहा कर पहन लो।'
खनक और ज़ोर से रोने लगी।
कर्ण ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, 'अच्छा पापा से प्रॉमिस करो आज अगर स्कूल से छुट्टी करवादे तो कल स्कूल की छुट्टी नहीं करोगी।'
खनक ने अपनी आँखों को पोंछते हुए कहा, 'हाँ पापा प्रॉमिस। कल मैं ज़रूर स्कूल जाऊँगी।'


सुजाता और कर्ण तैयार होकर अपने अपने ऑफिस चले गए।
खनक खुशी से घर में यहाँ वहाँ दौड़ लगाने लगी।
थोड़ी देर बाद अपने खिलौने लेकर दादी के पास आ गई औऱ बोली, 'दादी मेरे साथ खेलो ना।'
अवन्ति ने आश्चर्य से खनक की ओर देखा और बोली, 'अरे तुम्हारे पाँव का दर्द, इतनी जल्दी कैसे ठीक हो गया, क्या मम्मी कोई दवाई देकर गई थीं?'
'नहीं, दादी घर में रहती हूँ, तो मेरे पाँव में दर्द नहीं होता। स्कूल जाती हूँ तो कभी हाथ में कभी पाँव में ओर कभी आँखों में दर्द होने लगता है औऱ कभी तो कान में ज़ोर से दर्द होने लगता है।' खनक ने उदास स्वर में कहा।
'फिर तो यह बस तुम्हारे को वहम भर है।' अवन्ति ने खनक को समझाते हुए कहा
'नहीं दादी मुझे वहम नहीं है। मुझे सचमुच दर्द होता है।' खनक ने कहा।
दिन बीत गया शाम ढले सुजाता ऑफिस से आते हुए खनक की सहपाठी से उस दिन का गृह कार्य व कक्षा में कार्य का ब्यौरा भी लेती आई।
एक प्याला गर्म चाय पीकर उसने खनक को पढ़ाना शुरू कर दिया और जल्दी सोने भेज दिया, ताकि अगले दिन समय पर खनक स्कूल के लिये तैयार हो जाए।
अगली सुबह फिर वही नज़ारा था।
अवन्ति रोज़ की तरह पूजा कर रही थी. खनक बिस्तर छोड़ सीधा दादी के पासपहुँच गई, रोते हुए कहने लगी, दादी मुझे स्कूल नहीं जाना।
सुजाता औऱ कर्ण उनके पीछे पीछे दौड़ते हुए आए।
कर्ण ने खनक की ओर नाराज़ होते हुए देखा बोला, 'आपने कल पाप से प्रॉमिस किया था ना , कि कल स्कूल ज़रूर जाओगी।'
'सॉरी पापा , खनक ने कान पकड़ते हुए कहा, पापा दाँत में बहुत दर्द हो रहा है देखो मेरा दाँत हिल रहा है।'
सुजाता ने कर्ण की ओर गंभीर होते हुए कहा, 'आप खनक को होस्टल भेजने की बात क्यों नहीं मानते हो? रोज़ रोज़ मुझे ऑफिस जाने में देर हो जाती है औऱ शाम को थक हार के आती हूँ , तो पहले इसके क्लास मेट्स से होम वर्क , क्लास वर्क पूछती फिरती हूँ।'
'हाँ अब कुछ तो करना ही पड़ेगा,' कर्ण ने कहा
'खनक बेटा आप ही बताओ क्या करना है स्कूल जाना है या हॉस्टल।' कर्ण ने सवाल किया।
'मुझे कहीं नही जाना' कह कर खनक रोने लगी।
ये ऐसे नहीं मानेगी सुजाता ने उसे अपनी तरफ खिंचा ओर दो थप्पड़ जड़ दिए खनक के गाल पर ।
अवन्ति चाह कर भी कुछ कर न सकी।
कर्ण ने सुजाता से कहा, 'ज़रा गुस्से पर काबू रखो ठंडे दिमाग से काम लो।'
सुजाता बोली,' बस अब बहुत हो गया. ये ऐसे नहीं मानेगी। आज इसे खाने के लिए कुछ नही मिलेगा।'
कुछ देर बाद दोनों ऑफिस के लिए तैयार हो गए।
सुजाता ने ऑफिस जाने से पहले अवन्ति से कहा , 'आप इसे कुछ खाने के लिए मत देना। शाम तक इसकी अक्ल ठिकाने आ जाएगी। '
अवन्ति ने जवाब में कहा ,'अभी छोटी है, कुछ बड़ी हो जाएगी तो सब समझ आ जायेगा।'
'हम क्या इसके दुश्मन है,? और बच्चे भी तो स्कूल जाते है।इससे छोटी उम्र के बच्चे भी रेगुलर स्कूल जाते हैं।' सुजाता का जवाब था।
दोनों के घर से चले जाने के बाद दादी ने खनक से प्यार से पूछा, 'बेटा खनक स्कूल जाने में तुम्हे क्या कठिनाई है।'
दादी के प्यार से पूछने पर तो खनक खूब ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। रोते रोते बोली,'दादी सब मुझे मोटी -मोटी कहकर चिढ़ाते है।'
अवन्ति दादी को उस पर बड़ी दया आई उन्होंने उसे प्यार करते हुए कहा ,'अरे फिर क्या हुआ खाते पीते घर के बच्चे
तो भारी भरकम होते ही हैं।'
'दादी कोई भी मेरा फ्रेंड नहीं बनता और क्लास में मैं अकेली रहती हूँ। डेस्क पर मेरे साथ कोई नहीं बैठता। मैं लंच टाइम में भी बाहर नहीं जाती सब बच्चे कहते हैं, 'देखो मोटी आ गई। '
एक दिन टीचर ने प्रिया को मेरे साथ बैठाया तो पार्थिव कहने लगा, 'प्रिया तू नीचे गिर जाएगी इस मोटी ने सारी सीट घेर रखी है।'
अवन्ति दादी ने कहा, 'अरे ये तो बहुत गंदी बात है तुमने टीचर को नहीं बताया ।'
'बताया था, लेकिन टीचर के सामने वो कुछ नहीं बोलते जब टीचर क्लास में नहीं होती तब छेड़ते हैं। 'खनक ने रोते हुए कहा।
अवन्ति दादी ने पूछा , 'तुमने मम्मी पापा को बताया?'
'हाँ बहुत बार बताया है लेकिन मम्मी ने कहा , तुम उनकी बात पर क्यों ध्यान देती हो । पापा से भी कहा था ,पापा बोले अपना वजन कम कर लो बेटा। आलू के चिप्स और चॉकलेट खाना बंद करो। '
खनक बोली,' दादी अब में चिप्स भी नहीं खाती और कभी चॉकलेट भी नहीं मँगवाती। '


अवन्ति दादी ने कहा ,कोई बात नहीं। बच्चे थोड़ी बहुत चीज़े तो खा ही लेते हैं।'
'चल मेरे साथ मेरे पूजा के कमरे में मैं तुझे अपने गणपति बप्पा से मिलवाती हूँ।
खनक दादी के साथ उनके पूजा घर मे गई।
अवन्ति दादी ने गणेश की प्रतिमा के सामने खनक को खड़ा करके कहा, 'मेरे गणपति बप्पा की मूर्ति को ध्यान से देखो तुम्हें शायद कुछ समझ आएगा। '
खनक ने गणपति जी की मूर्ति को बड़े ध्यान से देखा, फिर बोली, 'मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। '
अवन्ति दादी ने कहा, 'गणपति जी की सूंड के दाएँ और बाएँ दोनों तरफ देखा।'
खनक ने कहा, 'दाएँ बाएँ क्या होता है?'
अवन्ति दादी बोलीं, 'दाएँ यानी राइट और बाएँ यानी लैफ्ट।'
'अच्छा अब समझ आया' खनक ने कहा ।
खनक ने सूंड के दाएँ औऱ बाएँ देखा फिर बोली, 'दादी गणपति बप्पा का लैफ्ट साइड का दाँत नही है।'
'हाँ सही पहचाना । अब सब भक्त उन्हें एकदन्त यानी एक दाँत वाला कह कर बुलाते हैं ,क्या गणपति बुरा मानते हैं?
नहीं ना।' दादी अवन्ति ने समझाते हुए कहा।
'लेकिन वो तो भगवान हैं' खनक ने कहा।
'भगवान है तो क्या हुआ।किसी को भी उसकी कमी से पुकारना बुरा तो लगता है उन्हें लंबकर्ण यानी लम्बे कान वाला कहते है ,लम्बोदर लम्बे पेट वाला कहते हैं। लेकिन गणपति ने इसे अपनी पहचान स्वीकार कर ली है । बस उन्हें कोई किसी भी नाम से पुकारे वह तो भक्त का दुख दूर करने चले आते हैं।'
खनक ने उस दिन अपना स्कूल का सारा काम निपटा लिया।


रात को सबके सोने के बाद खनक अपने बिस्तर से उठी और बैठक में आ गई उसने अपने हिलते हुए दाँत को ज़ोर से हिलाना शुरू किया वे उसे तब तक हिलाती रही जब तक कि वो टूट कर हाथ में न आ गया. उसने दाँत को धोया। अपने मुँह से बहते लहू से वह थोड़ी घबरा गई लेकिन उसने ख़ुद को हौंसला देते हुए पानी से कुल्ले कर लिए।
दाँत हाथ में लेकर उसने धीरे से पूजा घर का दरवाज़ा खोला और ट्युब लाईट का स्विच चालु किया। वह गणपति की प्रतिमा के सामने खड़ी हो गई उसने अपने दाँत को सीधे हाथ की हथेली पर रखा और अपना हाथ आगे करती हुई बोली , 'लो गणपति बप्पा आप ये दाँत अपने लेफ़्ट साइड पर लगा लो। आपके फ्रैंड्स भी आपको छेड़ते होगें तो आपको बुरा लगता होगा। अरे ले लो ना। वह गणपति से बार बार आग्रह करने लगी। '
लगभग एक घंटा बीत गया अब वह थक चुकी थी ,उसने दाँत वहाँ रखी पूजा की थाली में रखा और बाहर आकर रोने लगी ,मैं बहुत मोटी हूँ इसलिए गणपति बप्पा मेरा दाँत नहीं ले रहे। उसने पीछे मुड़के गणपति को देखा और अपने दाँत के नीचे अँगूठा रखकर बोली ,'मेरी कुट्टी है आपसे। '
तभी गणपति की मूर्ति से आवाज़ आई ,'अरे नहीं खनक ,कुट्टी मत करो. मैं तो अपने ड्राइवर मूषक का इंतज़ार कर रहा हूँ अभी पहुँचता हूँ थोड़ी' देर मैं। '
खनक ने कहा, जल्दी आना मुझे सुबह स्कूल भी जाना है। '
गणपति की मूर्ति से आवाज़ आई ,'कल भी छुट्टी कर लो पिछले १५ दिन से भी तो नहीं जा रहीं। '
'अरे आप को कैसे पता ?' खनक ने पूछा।
'मुझे सब कुछ पता चल जाता है। तुम्हारी एक समस्या है सब बच्चे तुम्हें मोटी मोटी कह कर छेड़ते हैं, इसलिए स्कूल जाने की बात से ही तुम्हें बुरा- बुरा सा लगने लगता है ,तुम्हें लगता है कोई बहाना मिल जाए और फिर सचमुच तुम्हारे कभी हाथ में कभी पाँव में और कभी कान मैं दर्द होने लगता है
'हाँ गणपति बप्पा' , कहकर खनक रोने लगी। वह बोली,'और सबसे ज़्यादा तो मुझे पार्थिव छेड़ता है।'
गणपति बप्पा बोले, 'एक बार तो उसने सीढियाँ उतरते समय तुम्हें धक्का भी दिया था, लेकिन तभी गेम्स के टीचर ने तुम्हें पकड़ लिया था। '
'ओ माई गॉड आप तो सब जानते हो।' खनक ने कहा।
'हूँ इस पार्थिव ने और भी बच्चों को परेशान कर रखा है. कुछ करना पड़ेगा।' कुछ देर वहाँ सन्नाटा रहा फिर गणपति बोले, 'जाओ अब तीन घंटे सो जाओ फिर उठकर कल स्कूल जाना मैं तुम्हें रास्ते में दिखाई दूँगा स्कूल बस की खिड़की से देखना। '
खनक ने कहा 'ओके गणपति बप्पा। '
सुजाता और कर्ण सुबह उठकर जब अपने कमरे से बाहर आये तो दोनों के मुँह आश्चर्य से खुले रह गए । दादी अवन्ति तुलसा में चल चढ़ाने के लिए वहाँ से निकलीं तो उनकी आँखें भी फ़टी की 'फ़टी रह गईं।
खनक स्कूल यूनिफार्म पहनकर तैयार बैठी थी। सुजाता को देखकर वह बोली, 'मम्मा मेरा लंच बॉक्स और वाटर बॉटल देदो।'
'अरे वाह' कहकर सुजाता ने उसका गाल चुम लिया।
कर्ण ने कहा ,'हूँ....हॉस्टल का डर काम कर गया। '
दादी तो मन ही मन मुस्कुरा रहीं थीं और गणपति को धन्यवाद दे रहीं थीं।


स्कूल बस सबसे पहले खनक के घर के पास वाले स्टॉप पर आती थी ,उसने बस में चढ़ कर खिड़की के पास वाली अच्छी सी सीट चुन ली।
आज भादप्रद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी ,पूरे रास्ते लोग गणेश की मूर्ति धूमधाम से अपने घरों में स्थापित करने के लिए ले जाते हुए दिखाई दे रहे थे।
तभी खनक ने देखा बाल रूप में गणेश एक छोटे से रथ पर सवार हैं और उस रथ को मूषक खींच रहा है ।
खनक ने खुशी से खड़की से थोड़ा सा सट कर आवाज लगाई, 'गणपति बप्पा में खनक।'
तभी रेड लाइट पर बस रूक गई और खड़की के ठीक पास आकर रथ भी रुक गया। खनक ने गणपति बप्पा को हाथ हिलाया ।
गणपति बप्पा ने खनक से कहा. 'अभी मैं तुम्हारी बस में चढ़ रहा हूँ , सबको मैं स्कूल यूनिफार्म में आम छात्र जैसा दिखाई दूँगा। सिर्फ तुम ही मेरा गणपति वाला रूप देख सकती हो।'
खनक ने धीरे से पूछा, 'मैं सबके सामने गणपति बप्पा कह कर पुकारूँगी, तो सबको पता नहीं चल जाएगा।'
'मेरा एक नाम शुभम भी है अर्थात शुभ फल देने वाला । तुम मुझे शुभम कह कर बुला सकती हो।' गणपति बप्पा ने जवाब दिया।
'ठीक है' खनक ने कहा।
अगले बस स्टॉप पर बस रुकी छात्रों का एक समूह बस में चढ़ गया। उसी समूह में पार्थिव भी था। पार्थिव ने बस में चढ़ कर इधर उधर देखा सभी सीटें भरी हुईं थीं। तभी पार्थिव की दृष्टि खनक पर पड़ी वह सीधा उस सीट के पास पहुँचा जहाँ खनक बैठी थी।
वहाँ जाकर पहले उसने अपना बैग खनक को पकड़ाते हुए कहा ,'ऐ मोटी मेरा बैग पकड़।' खनक ने पार्थिव का बैग पकड़ लिया। थोड़ी देर बाद पार्थिव बोला ,'ऐ मोटी उठ अब मुझे बैठने दे।'
खनक ने कहा, 'मैं सीट नहीं छोडूँगी।'
इस पर पार्थिव बोला, 'सोच ले मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।'
तभी बस इन्चार्ज के पास एक छात्र गया और बोला, 'मिस पार्थिव, खनक को परेशान कर रहा है। बस इंचार्ज ने वहीं बैठे बैठे ज़ोर से आवाज़ लगाई 'पार्थिव इधर देखो ,अब अपने कान पकड़ कर खड़े हो जाओ'
पार्थिव चुपचाप कान पकड़ कर खड़ा हो गया। छात्रों से भरी बस में खिलखिलाहट दौड़ गई।
पार्थिव अपने को बहुत अपमानित महसूस कर रहा था। वह अपने दोस्त अमित के कान में बुदबुदाया ,'यार पता लगा बस इंचार्ज को मेरी शिकायत किसने लगाई आज उसकी शामत आ गई समझो। '
'मैंने शिकायत लगाई।' पीछे से शरारती स्वर में आवाज़ आई।
'कौन है बे तू' पार्थिव बोला
'माइ सेल्फ़ शुभम नाम तो सुना होगा ' शुभम के रूप में गणपति सामने आकर खड़े हो गए।
'तेरी तो' कहते हुए गुस्से से भनाते हुए पार्थिव ने शुभम को थप्पड़ जड़ने के लिए हाथ जैसे ही उठाया शुभम के रूप में गणपति ने उसका हाथ कस कर पकड़ लिया। पार्थिव अपना हाथ छुड़ा नहीं पाया।

खनक ये सब देख रही थी ,उसे गणपति अपने असली रूप में दिखाई दे रहे थे। वह ख़ुशी से ज़ोर ज़ोर से ताली बजाने लगी।

पार्थिव ने गुस्से से उसे आँखे तरेर के देखा। खनक थोड़ा सहम गई।


स्कूल आ गया था. बस रुकी सब छात्र अपनी कक्षाओं को चल दिए। प्रत्येक दिन की तरह स्कूल का कार्य कलाप शुरू हो गया। फिर भोजन अवकाश हुआ। खनक अकेली ही क्लास रूम में बैठ कर लंच कर रही थी तभी उसने देखा उसके लंच बॉक्स के आस पास एक चूहा घूम रहा था. वह अन्य चूहों से अलग था ,उसने चूहे से कहा, 'तुम गणपति बप्पा के मूषक हो ना।'
मूषक ने कहा, 'हाँ' फिर वह बोला, 'कुछ खाने को दो न बड़ी ज़ोरों की भूख लगी है।'
खनक ने कहा, 'हाँ ये मेरा लंच खा लो' और अपना लंच बॉक्स चूहे के पास रख दिया।
खनक ने पूछा, .
गणपति बप्पा दिखाई नहीं दे रहे।
मूषक बोला, 'हाँ वो प्ले ग्राउंड में कुछ शरारती बच्चों को सबक सीखा रहे हैं।
तुम्हें घर पर मिलेंगे लेकिन तुम्हारे घर में किसी और को दिखाई नहीं देगें। '
खनक ने कहा, 'अच्छा ये बात है। '
गणपति बप्पा ने वहाँ न केवल छात्रों को सुधारा बल्कि शिक्षकों की क्लास भी ले डाली।
कॉरिडोर में दो शिक्षिकाएँ बतिया रहीं थीं।
गणपति बप्पा ने एक ऑफिसर का रूप बनाया।
शिक्षिकाओं से कहा, 'आप दोनों की बातें खत्म हो गई हो तो अपनी कक्षा को भी संभाल लो वहाँ लड़ झगड़ कर छात्र एक दूसरे की जान लेने पर तुले हैं। '
शिक्षिकाएँ घबरा कर बोली ,'जी सर ! आप कौन।
गणपति बप्पा बोले , 'माइ सेल्फ़ शुभम नाम तो सुना होगा।'
दोनों शिक्षिकाओं ने आश्चार्य से उन की और देखा। मन ही मन सोचने लगीं ,कि प्रिंसिपल सर ने बताया नहीं , कोई स्कूल इंस्पेक्टर आएँगे जिनका नाम शुभम है ,कब आये ?


घर पहुँच कर खनक जब अपने रूम में पहुँची तो देखा गणपति बप्पा उसके खिलौनों के साथ खेल रहे हैं वो ख़ुशी से चीख पड़ी ,
दादी अवन्ति बोली, 'क्या हो गया। '
खनक बोली, 'कुछ नहीं इतने दिनों के बाद स्कूल गई थी इसलिए घर आकर बहुत ख़ुशी हो रही है.'
दादी के वहाँ से जाने के बाद गणपति वहाँ पुनः प्रकट हुए। वह खनक से बोले ,'कल सुबह स्कूल के टाइम से थोड़ा पहले उठ जाना मैं तुम्हें ऐसा नृत्य सिखाऊँगा कि तुम्हारा दस दिन में वज़न कम हो जायेगा। '
खनक के चेहरे पर इतनी ख़ुशी छा गई कि उसके मुँह से कोई शब्द ही नहीं निकला।
अगले दिन गणपति सुबह जल्दी खनक के कमरे मैं आ गए मूषक भी सितार लिए तैयार बैठा था।
खनक ने आँखे खोली और बोली, 'सॉरी गणपति में उठने में लेट हो गई।
गणपति ने कहा, 'अब जल्दी से ब्रश करके आ जाओ। '
खनक पाँच मिनिट में वहाँ पहुंच गई। मूषक ने क्या सितार बजाई और गणपति ने ऐसा नृत्य शुरू किया कि खनक खड़ी खड़ी देखती रह गई।


गणपति ने इशारा किया की वह भी साथ नाचे। खनक ने नृत्य करना शुरू किया तो उसमें ऐसी मुग्ध हो गई कि स्कूल जाने का समय हो गया।
गणपति बप्पा ने उसे बताया कि आज भी वह शुभम बन कर स्कूल बस में रहेगें।
रोज़ गणपति स्कूल बस में खनक के साथ स्कूल जाते। शरारती छात्र किसी छात्र को सताने से पहले इधर उधर देखते थे कि कहीं शुभम तो नहीं देख रहा।
उनके शरारत करते ही गणपति बप्पा वहाँ शुभम के रूप में प्रकट हो जाते थे।


नौ दिन में ही खनक का वज़न इतना कम हो गया कि उसकी नई स्कूल यूनिफार्म खरीदनी पड़ गई.


उधर पार्थिव का वज़न बढ़ने लगा। आज जब उसने स्कूल यूनिफार्म पहनने की कोशिश की तो वह फट गई। वह अपनी माँ को आवाज़ देने लगा, 'मम्मी मेरी स्कूल यूनिफार्म छोटी कैसे हो गई। '
उसकी मम्मी ने डांटते हुए कहा,'स्कूल यूनिफार्म छोटी नहीं हुई तू मोटा हो गया। बैठा बैठा मोबाइल पर गेम्स खेलता रहता है।
कितनी बार समझाया है ,बर्गर पिज़्ज़ा खाना छोड़ दो पर मेरी कौन सुनता है। '
'लेकिन अब मैं स्कूल कैसे जाऊँ ?' पार्थिव ने कहा।
'आज यूनिफार्म लेकर आती हूँ अब स्कूल कल जाना। ' मम्मी का जवाब था।
पार्थिव बालकनी में जाकर खड़ा हो गया।
तभी उसे नीचे शुभम दिखाई दिया जो उसे कह रहा था, 'ओ मोटे स्कूल नहीं आ रहा आज। '
पार्थिव बालकनी से चिल्लाया, 'तेरी ऐसी की तैसी।'
शुभम ने हँसते हुए कहा, 'बॉय मोटे। '
अगले दिन सुबह खनक सही समय पर उठ गई लेकिन आज न गणपति आये न उनका मूषक तभी उसे खिड़की में से एक ट्रक जाता दिखाई दिया जिस पर गणपति की मूर्ति सवार थी. ढोल नगाड़े बज रहे थे, लोग ज़ोर से कह रहे थे गणपति बप्पा मोरिया , अगले बरस तू जल्दी आ।
खनक ने अवन्ति दादी से पूछा, 'दादी दादी गणपति कहाँ जा रहे हैं ?'
दादी ने कहा, 'आज अनंत चौदस है ,गणपति बप्पा वापिस अपने घर जा रहे हैं।'
खनक तेजी से अपने कमरे में भागी और चिल्लाई, 'गणपति बप्पा ,शुभम कहाँ हो। '
आवाज़ लगाते हुए उसने इधर उधर देखा। मूषक को ढूंढने के लिए उसने पलंग और मेज़ के नीचे देखा।
तभी उसे अपनी मेज़ पर एक पत्र रख हुआ दिखाई दिया। उसने झटपट पत्र पढ़ना आरंम्भ किया।
पत्र में लिखा था,
दोस्त खनक,
आज मुझे अपने घर वापिस जाना है।
जैसे तुम्हारे स्कूल के कुछ नियम होते है जिनका पालन प्रत्येक छात्र को करना होता है वैसे ही हमारे लोक के भी नियम होते है, जिन्हें हमें मानना ही पड़ता है।
वैसे तो मैं नेक ओर दयालु जीवों की सहायता के लिए हमेशा उपस्थित रहता हूँ, फिर भी तुम जब किसी संकट में पड़ जाओ तो मुझे ह्रदय से पुकारना । मैं हमेशा तुम्हारी मदद करूँगा।
तुम्हारा दाँत मैं अपने साथ ले जा रहा हूँ।अपने माता पिता को दिखाऊँगा, वह भी तुम्हारी सच्ची भक्ति देखकर प्रसन्न हो जाएँगे। मेरा एक दाँत कैसे टूटा औऱ मैं उसके स्थान पर दूसरा दाँत क्यों नहीं लगाता इसकी कथा तुम्हारी दादी जानती हैं।
अरे एक बात तो तुम्हे बताना भूल ही गया , तुम्हारी कक्षा में कल एक नई छात्रा का दाखिला होगा, उसका नाम है पायल,वह तुम्हारी बहुत अच्छी मित्र बनेगी।
अच्छा चलता हूँ ।
तुम जिस नाम से चाहो मुझे पुकार सकती हो। मेरे सहस्त्रो नाम हैं।
तुम्हारे पत्र पढ़ने के बाद ये पत्र पानी बन जायेगा।
तुम्हारा दोस्त शुभम। नाम तो सुना होगा।
खनक ने जैसे ही पत्र समाप्त किया उसके हाथों में पत्र के स्थान पर पानी की चन्द बूंदे रह गईं।
वह दौड़ कर बालकनी में गई, गणपति की मूर्ति ले जा रहा ट्रक काफी दूर जा चुका था।
उसने वहीँ से हाथ हिलाते हुए कहा, 'गणपति बप्पा मोरिया अगले बरस तुम जल्दी आना।'
वह भीगी पलकों से गणपति बप्पा की मूर्ति को आँखों से ओझल होने तक देखती रही।