छल ============================
महाभारत के बारे में सुनकर और रश्मिरथी पढकर मन बहुत खिन्न था | आखिर जब छल से भीष्म, द्रोण, कर्ण, दुर्योधन आदि का वध छल से हुआ तो फिर धर्म कहाँ से पांडव के पक्ष में ? अब इसके इलाज के लिए एक ही आसरा था शिव के पास जाऊं | पंहुचा शिव के पास; देखा शिव गणों को कुछ आदेश दे रहे थे, मैं थोड़ी देर खड़ा रहा फिर जब शिव मुक्त हुए तो उनका अभिवादन किया | शिव का आशीर्वाद मिला देख शिव बोले क्या बात है आज कुछ खिन्न सा दिख रहा बालक | अभी भी डांट की बात मन में बसाया हुआ है ? मैंने कहा महादेव आपसे खिन्न होकर कोई कहां जायेगा | आप मेरे कल्याण का ही साधन करते हो | बस एक पीड़ा है हृदय में वही कहनी थी आपसे |
महादेव के आदेश पर उन्हें पूरी बात बताई | महादेव जोर से हंसे और बस इतनी सी बात ? अभी तुम्हें वास्तव में छल और युक्ति का अंतर नहीं पता है इसलिए तुन्हें छल लगा | मैंने कहा महादेव तो आप ही बताइए न | शिव बोले – सुन हिमांशु ! ये अंतर समझने के लिए तुम्हें पहले धर्म को समझना होगा | धर्म का अर्थ होता है प्राणियों के कल्याण के लिए धारण किये जाने वाले कर्तव्य | धर्म तीन प्रकार के होते हैं |
प्रथम है सामान्य धर्म यह प्रत्येक सामान्य व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले कर्तव्यों का समुच्चय है | जैसे धैर्य, क्षमा, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य, सत्य आदि इसके १० से लेकर 40 लक्षण तक बताये गये हैं | इसके अंतर्गत किसी भी प्राणी को तनिक भी पीड़ा न इस बात का ख्याल रखा जाना आवश्यक है |
द्वितीय है विशेष धर्म | इसके अंतर्गत पद विशेष के साथ आने वाले कर्तव्य होते हैं | जैसे सामान्य धर्म के अंतर्गत किसी को पीड़ा न पहुचे किन्तु जब वह व्यक्ति राजा होता है तो शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए अपराधियों को दंडित किया जाना आवश्यक है | वैसे सामान्य व्यक्ति के लिए अपरिग्रह आवश्यक है किन्तु राजा यदि कर का उद्ग्रहण न करे तो शासन नहीं कर सकता है | इसलिए विशेष धर्म कुछ विचलन की आज्ञा देता है किन्तु जनकल्याण हेतु | उपनिषद उद्घोष करते हैं “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” यही विशेष धर्म का उद्देश्य है |
तृतीय है आपद्धर्म | इसके अंतर्गत वे कार्य तथा उन्मुक्तियां आती हैं जो आपातकाल में व्यक्ति को प्राप्त होती हैं | जैसे सामान्य परिस्थिति में व्यक्ति का किसी को क्षति पहुचाना निषिद्ध है | किन्तु व्यक्ति को अपने शरीर और सम्पत्ति के सुरक्षा का अधिकार मिला हुआ है जिन परिस्थितियों में राज्य से सहायता नहीं मिल सकती है | यह अनुमति कभी कभी सामने वाले की मृत्यु कारित करने तक विस्तृत हो जाती है किन्तु यह भी ध्यातव्य है कि आवश्यकता से अधिक बल प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए |
मैंने कहा हे महादेव ये तो रही धर्म की बात पर यह महाभारत में कहां पर लागू होती है ? शिव बोले अब वही आ रहा हूँ बालक | तू अधीर न हो | महाभारत में अर्जुन ऐसा योद्धा है, कि यदि वह चाहे तो दिव्य अस्त्रों से सम्पूर्ण पृथ्वी का नाश कर सकता है; लेकिन वह लड़ रहा है इसी पृथ्वी पर मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए और यदि मानव न होंगे तो फिर किसके लिए मानव मूल्य होंगें ? भीष्म और द्रोण ऐसे योद्धा हैं जिन्हें सामान्य अस्त्रों से हराया नहीं जा सकता अब यदि दिव्य अस्त्र संधान किये जाते हैं तो आवश्यकता से अधिक जन हानि का भय है | तुम दिव्यास्त्रों की हानि इस बात से समझ सकते हो कि आज से लगभग ५२०० वर्ष पूर्व “ब्रह्मसर” नामक अस्त्र का संधान अर्जुन और अश्वत्थामा द्वारा किया गया था जिसके कारण लाखों वर्गमील भूमि मरुस्थल हो गयी जिसे थार कहा जाता है वहा पर पाए गये कंकालों में आज भी किसी रेडिओ सक्रिय तत्व के प्रमाण मिलते हैं | इस विभीषिका से बचने के लिए ही युक्ति का प्रयोग किया गया | छल का मूल तत्व होता है दुराशय जबकि युक्ति का मूल तत्व है जन का कल्याण | दोनों में यही मूल अंतर है | यहाँ पर भीष्म या द्रोण का वध इनकी रणनीतिक गलतियों का भी परिणाम थी क्योकि सेनापति युद्ध समाप्ति की घोषणा से पूर्व शस्त्र नहीं रख सकता है यदि वह समर्पण भी करता है तो शंखनाद के उपरांत ये काम दोनों ने नहीं किया और परिणाम हुआ कि दोनों का वध हुआ | कर्ण का वध उसकी निराशा ने किया कर्ण अंतिम समय में निराश होकर प्राणोत्सर्ग के लिए युद्ध में आया था और कोई सेनापति अपने व्यूह से बाहर आकर लड़ता है क्या ? यह गलती कर्ण ने की और मारा गया युद्ध मर्मज्ञ कृष्ण और अर्जुन की जोड़ी द्वारा | दुर्योधन के वध में भी आपद्धर्म का प्रयोग किया गया जैसे बालि वध में किया गया था | मानव मूल्यों की स्थापना के लिए उसका वध आवश्यक था और उसने अपने शरीर को ऐसा बना लिया था कपट द्वारा कि उसे किसी तरीके से मारा ही नहीं जा सकता था इसलिए जांघ से नीचे प्रहार किया गया |
हे महादेव पर क्या लोग इस कथा पर अपनी बात को सिद्ध करने के लिए तर्क देने का आरोप नहीं लगायेंगे ? अवश्य लगा सकते हैं जानते हो हिमांशु हर चीज को चारो तरफ से ३६० डिग्री से देखा जा सकता है पर मनुष्य का नेत्र एक बार में अधिकतम १५० डिग्री कोण ही देख सकता है इसलिए सम्वाद का सहारा लेकर उसे अच्छी जो जन कल्याण योग्य बातें हैं उन्हें देखना चाहिए |