खेलना ज़रूरी है....
याद हैं वो दिन जब शाम होते ही घर से बाहर निकल जाते थे दोस्तों के संग खेलने के लिए। कभी बाज़ी जीत लेने की खुशी तो कभी हार जाने का दुख। कभी देर तक बाज़ी का इंतज़ार करने के बाद भी अपना नंबर ना आने से मन में उठी खीझ जिसका प्रदर्शन दोस्तों को यह धमकी देकर करते थे कि तुम सब बेईमानी करते हो। अब कभी तुम्हारे साथ नहीं खेलूँगा। किंतु अगली शाम फिर पहुँच जाते थे गली में उन्हीं बेईमान दोस्तों के पास। खेल बचपन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं।
खेल बच्चों को ना सिर्फ शारीरिक रूप से सक्षम बनाते हैं बल्कि उनमें अनुशासन, एकजुटता एवं निर्णय लेने की क्षमता का विकास करते हैं। अधिकांश खेल जो बाहर खेले जाते हैं में दौड़ना भागना कूदना या एक दूसरे को पकड़ना जैसी गतिविधियां होती हैं। इनसे शरीर का व्यायाम होता है। इससे शरीर सुदृढ़ होता है। खेल के अपने नियम व सिद्धांत होते हैं। खिलाड़ियों को उनका पालन करना पड़ता है। ऐसा ना करने वाला खेल से बाहर हो जाता है। अतः खेल में बने रहने के लिए खिलाड़ी अनुशासित रहता है।
कुछ खेल दल बना कर खेले जाते हैं। खिलाड़ी अपने दल की जीत के लिए समर्पित होते हैं। एक दूसरे की कमियों और ताकत का ध्यान रख कर खेलते हैं। इससे उनमें एकता का भाव आता है।
खेलते समय खिलाड़ी के लिए सही समय पर सही प्रकार से सोंचना आवश्यक होता है। खासकर दल के रूप में खेले जाने वाले खेलों में दल के मुखिया को कई निर्णय लेने पड़ते हैं। इससे निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।
खेलों से प्राप्त यह गुण जीवन के हर क्षेत्र में हमारे काम आते हैं।
हमारे देश में कई ऐसे खेल खेले जाते रहे हैं जो ग्रामीण जीवन में उपजे हैं। इन खेलों का जुड़ाव हमारे देश की मिट्टी से रहा है। इन खेलों में नियम तो हैं किंतु इतने सरल जिनका पालन करना हर खिलाड़ी के लिए आसान हो। अधिकांश खेल घर के आंगन या थोड़े से खुले स्थान पर खेले जा सकते हैं। इनमें या तो किसी उपकरण की आवश्यक्ता नहीं होती है या फिर उन्हें आसानी से आसपास के वातावरण से जुटाया जा सकता है। इन्हें खेलने के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं लेना पड़ता है।
आइए नज़र डालें ऐसे ही कुछ खेलों पर जिन्हें आप ने भी बचपन में खेला होगा।
कबड्डी
कबड्डी एक सामूहिक खेल है। यह प्रमुख रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में खेला जाता है। कबड्डी के खेल को दक्षिण में चेडुगुडु और पूरब में हु तू तू के नाम से भी जानते हैं। यह खेल भारत के पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में भी बहुत ही लोकप्रिय खेल है। बांग्लादेश का यह राष्ट्रीय खेल है।
कबड्डी शारीरिक बल व स्फूर्ति के आधार पर खेला जाने वाला खेल है। भारत में इस खेल का उद्भव प्रागैतिहासिक काल से माना जाता है। प्राचीन काल में यह खेल लोगों में आत्मरक्षा या शिकार के गुणों को सिखाए जाने के लिए खेला जाता था।
वर्तमान में यह खेल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेला जाता है। यह दो दलों के बीच में होने वाला खेल है। इसमें टॉस जीतने वाले पक्ष का खिलाड़ी जिसे 'रेडर' कहते हैं 'कबड्डी कबड्डी' बोलता हुआ दूसरे पक्ष के पाले में प्रवेश करता है। उसका उद्देश्य प्रतिपक्ष के किसी भी खिलाड़ी को छूकर वापस अपने पाले में आना होता है। इस दौरान उसके लिए लगातार 'कबड्डी कबड्डी' कहते रहना आवश्यक होता है। दूसरे पक्ष के खिलाड़ी जो सटॉपर कहलाते हैं उसे घेर कर अपने पाले में रोकने का प्रयास करते हैं।
रेडर यदि दूसरे दल के खिलाड़ी को छूकर वापस अपने पाले में आ जाता है तो उसकी टीम को एक अंक मिलता है। दूसरे दल के जिस खिलाड़ी को छूकर रेडर अंक अर्जित करता है उसे मैदान से बाहर जाना पड़ता है। किंतु यदि रेडर दूसरे दल के स्टॉपरों द्वारा रोक लिया जाता है तो रेडर मैदान के बाहर चला जाता है और प्रतिपक्ष को अंक मिलता है। यह प्रक्रिया बारी बारी से दोहराई जाती है। अंत में जिस दल के सबसे अधिक सदस्य मैदान में होते हैं वह विजेता घोषित की जाती है।
कबड्डी का खेल आमतौर पर 20-20 मिनट के दो हिस्सों में खेला जाता है। हर हिस्से में टीमें पाला बदलती हैं और इसके लिए उन्हें पांच मिनट का अंतराल मिलता है। हालांकि आयोजक इसके एक हिस्से की अवधि 10 या 15 मिनट की भी कर सकते हैं। हर टीम में 5-6 स्टॉपर होते हैं जो कि दूसरे दल के खिलाड़ी को पकड़ने में माहिर होते हैं। रेडर 4-5 होते हैं जो छूकर भागने में माहिर होते हैं। एक बार में सिर्फ चार स्टॉपरों को ही कोर्ट पर उतरने की इजाजत होती है।
सर्वप्रथम इस खेल कि स्पर्धा का आयोजन 1938 में कोलकाका में हुआ था| इसके पश्चात 1952 में भारतीय कबड्डी संघ कि स्थापना कि गई| इस संघ के माध्यम से देश के अंदर खेल का विकास किया गया| पुरुष व महिला दोनों वर्गो के लिए इसका आयोजन किया जाता है| वर्तमान समय में भारतीय ओलंपिक संघ ने इसे भारतीय ओलंपिक खेलो कि श्रेणी में स्थान प्रदान किया है| 1982 में सर्वप्रथम एशियाई खेलों में कबड्डी को शामिल किया गया था।
खो-खो
यह भी मैदान में खेला जाने वाला खेल है जो खिलाड़ी की शारीरिक क्षमता व स्फूर्ति की परख करता है।
बड़ौदा को खो-खो का जन्मस्थान कहा जाता है। यह गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि प्रदेशों में अधिक खेला जाता है किंतु भारत के अन्य प्रदेशों में भी अब इसका प्रचार बढ़ रहा है। यह खेल बहुत ही सरल है। इसमें कोई खतरा नहीं है। पुरुष और महिलाएँ दोनों समान रूप से इस खेल को खेल सकते हैं।
यह राष्ट्रीय स्तर पर खेला जाने वाला खेल है।
खो-खो के लिए 27 मी. लंबे और 16 मी. चौड़े मैदान की आवश्यकता होती है। दोनों और दस-दस फुट स्थान छोड़कर चार चार फुट ऊँचे लकड़ी के दो खंभे गाड़ दिए जाते हैं। इन खंभों के बीच की दूरी को आठ बराबर भागों में इस प्रकार विभाजित कर दिया जाता है कि दोनों दलों के खिलाड़ी एक दूसरे की विरुद्ध दिशाओं की ओर मुँह करके अपने अपने नियत स्थान पर बैठ जाते हैं।
खिलाड़ी दो बराबर के दल में बंट जाते हैं। प्रत्येक दल को अपनी पारी के लिए 7 मिनट दिए जाते हैं। नियत समय में उस दल को अपनी पारी समाप्त करनी पड़ती है। दोनों दलों में से एक-एक खिलाड़ी खड़ा होता है, पीछा करने वाले दल का खिलाड़ी विपक्षी दल के खिलाड़ी को पकड़ने के लिए सीटी बचाते ही दौड़ता है। विपक्षी दल का खिलाड़ी पंक्ति में बैठे हुए खिलाड़ियों का चक्कर लगाता है। जब पीछा करने वाला खिलाड़ी उस भागने वाले खिलाड़ी के निकट आ जाता है, तब वह अपने ही दल के खिलाड़ी के पीछे जाकर 'खो-खो' शब्द का उच्चारण करता है तो वह उठकर भागने लगता है और पीछा करने वाला खिलाड़ी पहले को छोड़कर दूसरे का पीछा करने लगता है। इस तरह जिस दल ने कम समय में विरोधी दल के खिलाड़ियों को पकड़ या छू लिया उस दल को विजेता मान लिया जाता है।
1914 में पहली बार पूना के डकन जिमखाना ने अन्य मैदानी खेलों के साथ साथ खो-खो के नियम भी लिपिबद्ध किए। तब से उन्हीं नियमों में थोड़े स्थानीय हेर-फेर के साथ यह खेल खेला जाता है।
खो-खो की पहली प्रतियोगिता पूना के जिमखाने में 1918 में हुई। फिर 1919 में बड़ौदा के जिमखाने में भारतीय स्तर पर प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। तब से समय-समय पर इस खेल की अखिल भारतीय स्तर पर प्रतियोगिताएँ होती रहती हैं।
गिल्ली डंडा
गिल्ली डंडा भी बहुत ही प्राचीन भारतीय खेल है। लकड़ी की एक 5 से 7 इंच की एक गिल्ली बनाई जाती है जो दोनों सिरों पर नुकीली होती है। दूसरी लकड़ी जो एक हाथ लंबी होती है को डंडा कहा जाता है।
गिल्ली को जमीन पर रखकर डंडे से किनारों पर मारते हैं जिससे गिल्ली हवा में उछलती है। गिल्ली को हवा में ही जमीन पर गिरने से पहले फिर डंडे से मारते हैं। जो खिलाड़ी सबसे ज्यादा दूर तक गिल्ली को पहुँचाता है वह विजयी होता है।
इस खेल को खेलने के लिये कम से कम दो खिलाड़ियो की आवश्यकता होती है। खेल प्रारम्भ करने से पहले जमीन पर एक छोटा सा गड्ढा बनाते हैं। फिर उस पर गिल्ली रख कर एक खिलाड़ी द्वारा डंडे से उछाला जाता है। यदि सामने खड़ा खिलाड़ी गिल्ली को हवा मे ही पकड़ लेता है तो मारने वाला खिलाड़ी हार जाता है। लेकिन यदि ऐसा नही होता तो मारने वाला खिलाड़ी अपना डंडा उसी गड्ढे में रख देता है। सामने खड़ा खिलाड़ी जहाँ गिल्ली गिरती है वहाँ से उसे डंडे पर मारता है जो कि जमीन के गड्ढे पर रखा होता है। यदि गिल्ली डंडे पर लग जाती है तो पहले मारने वाला खिलाड़ी हार जाता है। इस स्थिति में दूसरा खिलाड़ी गिल्ली उछालता है और पहल उसे लपकने का प्रयास करता है। गिल्ली को अधिक से अधिक दूरी पर पहुँचाने का प्रयास किया जाता है।
यदि गिल्ली को मारते समय डंडा जमीन से छू जाता है तो खिलाड़ी को गिल्ली को इस प्रकार मारना होता है कि उसका डंडे वाला हाथ उसके एक पैर के नीचे रहे। इसे हुच्चको कहते है। गिल्ली को किनारे से मारने का प्रत्येक खिलाड़ी को तीन बार मौका मिलता है। इस खेल मे अधिकतम खिलाड़ियो कि कोई संख्या निर्धारित नही होती है।
गिल्ली डंडा ग्रामीण क्षेत्रों का सबसे प्रिय खेल रहा है। लेकिन क्रिकेट के खेल की बढ़ती लोकप्रियता के कारण अब धीरे धीरे यह कम होता जा रहा है।
गेंद ताड़ी (पिट्ठू गरम)
इस खेल को खेलने के लिए सात चपटे पत्थर और एक गेंद की जरुरत होती है। सातों पत्थरों को एक के ऊपर एक जमा कर मीनार जैसा बनाया जाता है। इस खेल में दो दल भाग लेते हैं। पहले एक दल का खिलाड़ी गेंद से पत्थरों की मीनार को गिराता है। फिर उसके दल के बाकी सदस्यों को पिट्ठू गरम बोलते हुए उन बिखरें पत्थरों को फिर से जमाना पड़ता है। इस बीच दूसरे दल के ख़िलाड़ी गेंद से उनकी पीठ पर मारते हैं। यदि वह गेंद पिट्ठू गरम बोलने से पहले लग गयी तो पत्थरों को जमाने वाला दल हार जाता है। इसके लिए टेनिस या रबर की मुलायम गेंद सही रहती है ताकि मारते समय चोट ना लगे।
पत्थरों की मीनार को तोड़ने के लिए अधिकतम तीन बारियां मिलती हैं। ऐसा ना होने पर मौका दूसरे दल के पास चला जाता है। पत्थर जमाने वालों की कोशिश यह रहती है कि गेंद लगने से पहले इस काम को पूरा कर लें। जो खिलाड़ी मैदान के चारों ओर खींची लकीर से बाहर हो जाता है उसे खेल से बाहर रहना होता है।
लंगड़ी टांग (सिकड़ी)
यह खेल मुख्यत: लड़कियां खेलती हैं। यह खेल घर के आंगन, दालान या छत कहीं भी खेला जा सकता है। इसको खेलने के लिए चॉक, कोयले या फिर ईंट के टुकड़े से खाने बनाये जाते हैं। फिर पत्थर को एक टांग पर खड़े रहकर सरकाना पड़ता है वह भी बिना लकीर को छुए हुए। अंत में एक टांग पर खड़े रहकर इसे एक हाथ से बिना लकीर को छुए उठाना पड़ता है।
इस खेल को खेलने के लिए कम से कम दो खिलाड़ियों की जरुरत होती है। इस खेल को खेलने के कई अन्य तरीके भी हैं जो स्थान के अनुसार बदलते रहते हैं।
रस्सी कूदना
रस्सी कूदना वजन घटाने के लिए एक अच्छा व्यायाम है। मर्द और औरत सभी व्यायाम की तरह रस्सी कूदते हैं। लेकिन गांव में इसे खेल की तरह खेला जाता है। खासकर लड़कियां इस् मज़े लेकर खेलती हैं। दो लड़कियां एक रस्सी को दोनों सिरों से पकड़ कर घुमाना शुरू करती हैं। तीसरी लड़की बीच में कूदती है। सबकी बारी आती है। जो सबसे ज्यादा बिना रुके कूदती है, वह जीतती है।
गुट्टे
इसमें गोल-गोल छोटे-छोटे पत्थरों का प्रयोग होता है। इन्हें गुट्टे या गुटके कहते हैं। यह भी लड़कियों द्वारा खेला जाता है। इसमें दायें हाथ से गुट्टा उछाला जाता है और बायें हाथ को घर या कुत्ते के आकार में रखकर उनके नीचे से गुट्टे निकाले जाते हैं। फिर सबको एक साथ एक हाथ से एक गुट्टा ऊपर उछालते हुए उठाना होता है। देखने में यह खेल जितना आसान मालूम पड़ता है असल में यह उतना आसान होता नहीं है। इसको खेलने में हाथों की अच्छी खासी कसरत हो जाती है।
कंचा
कंचा एक परंपरागत खेल है। गांव की गलियों में आज भी बच्चे आसानी से कंचे खेलते हुए मिल जाते हैं। इस खेल में काँच की गोलियां जिन्हें कंचे कहते हैं बच्चों के पास होती हैं। इसमें एक गोली से दूसरी गोली को निशाना लगाना होता है। यदि निशाना लग गया तो वह गोली आपकी हो जाती है। इसके अलावा एक गड्ढा बनाकर उसमें कुछ दूरी से कंचे फेंके जाते हैं। जिसके कंचे सबसे ज्यादा गिनती में गड्ढे में जाते हैं वह जीतता है।
छुपन-छुपाई
छुपन-छुपाई बच्चों का एक लोकप्रिय खेल है। इसे हाइड एंड सीक भी कहा जाता है। इस खेल में एक खिलाड़ी को अन्य को ढूंढ़ना होता है। वह कुछ दूरी पर जाकर 100 तक गिनती गिननी गिनता है। इस बीच अन्य लोग सही जगह पर छिप जाते हैं। गिनती पूरी करने के बाद वह खिलाड़ी अन्य खिलाड़ियों को एक-एक करके ढूंढ़ता है। जो सबसे पहले पकड़ा जाता है उस पर 100 तक गिनती करने के बाद खिलाड़ियों को ढूंढ़ना होता है।
यह कुछ खेल थे जो हम बचपन में खेला करते थे। लेकिन अब इनमें से अधिकांश खेल गायब हो गए हैं। बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए उनमें इन खेलों को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है।