Panchva Cup in Hindi Short Stories by Neetu Singh Renuka books and stories PDF | पाँचवाँ कप

Featured Books
Categories
Share

पाँचवाँ कप



गुलाबी फूल और हरी पत्तियों वाले इस बोन चाइना के कप को ख़रीदते वक़्त कभी नहीं सोचा था कि यह टूट भी सकता है। कोई नहीं सोचता। कौन सोचेगा भला कि खरीदा जा रहा नाज़ुक सा कप टूट सकता है और लो टूट गया। अभिनव धड़कते दिल से एक हाथ में कप का टूटा हैंडल और दूसरे हाथ में कप लिए किचन में देर तक खड़ा रहा।
वो याद कर रहा था कि कितने मन से मेघा ने ये कप खरीदे थे। मॉल के कई चक्कर लगाए थे और सेल का इंतज़ार किया था और साथ में प्रार्थना भी करती रही कि भगवान यह कप सेट सेल आने तक बिके नहीं और जब उसे यह कप सेट मिला तो उसे लगा जैसे भगवान या कुम्हार ने या कंपनी या जिसने भी इस कप सेट को बनाया है, बस उसी के लिए बनाया है। उस दिन तो मेघा की मुस्कान इस कप पर बने फूलों से भी कहीं ज़्यादा खूबसूरत थी।
मगर आज! जब वह यह कप देखेगी तो उसका दिल बोन चाइना की तरह टूटेगा नहीं, शीशे की तरह चकनाचूर हो जाएगा। फिर, उसके बाद? उसके बाद जो उसका पारा चढ़ेगा तो फिर तो अभिनव की खैर नहीं। भला अपनी गलतियाँ कब देखती है वो, मगर अभिनव के तो सर पर चढ़ जाती है और बात-बात पर घर सर पर उठा लेती है। 
उसे समझाना भी तो मुश्किल है कि नाज़ुक सा कप था, उसके हाथों भी तो टूट सकता था, मगर नहीं उसका नाम भी लिया तो कच्चा चबा जाएगी कि एक तो अपनी लापरवाही से कप तोड़ा उस पर तुर्रा यह कि खुद की बजाय उस को ही लापरवाह घोषित कर दिया। इसके लिए तो वो अभिनव को पहले अच्छे से भूनेगी और फिर चबा जाएगी।
अभिनव को अब अफसोस हो रहा था कि उसने चाय बनाई ही क्यों? मेघा को आ जाने देता, फिर साथ में बैठकर चाय पीते, हो सकता है, वही बना देती चाय। कम से कम यह कप तो नहीं टूटता। चाय की ऐसी भी क्या तलब लगी थी। उफ्।
पर अब तो मेघा की शिफ्ट खतम हो गई होगी और वो घर आती होगी। उसके आने से पहले अभिनव ने उस टूटे कप को छिपाने के लिए बहुत सी जगहें सोचीं। मगर फिर अंत में सोचा कि इसे घर से बाहर निकाल देना ही सही होगा नहीं तो कप घर में मिला तो उसे घर से बाहर निकाल दिया जाएगा। 
*****

कुछ दिनों तक तो अभिनव के दिमाग़ में यह शंका समाई रही कि मेघा जल्द ही उसकी चालाकी पकड़ लेगी। मगर ऐसा हुआ नहीं। किचेन की ऊँची शेल्फ पर कप, एक के पीछे एक ऐसे सजाए थे कि मालूम ही नहीं पड़ता था कि तीसरे कप के बाद कप हैं कि नहीं, और हैं भी तो कितने? 
इसके अलावा इस नई-नवेली जोड़ी के घर कोई आता भी नहीं था कि उनके आने से इनके रोमांस में खलल न पड़ जाए। एक शानू आता था कभी-कभी शनि की तरह तो ऐसे में ज़्यादा से ज़्यादा तीसरे कप की ही ज़रूरत पड़ती थी। 
तीसरे कप के बाद मेघा का ध्यान नहीं जाता था और अभिनव ने तो अकेले में कपों का इस्तेमाल ही बंद कर दिया। तो कुछ दिन महीनों में बदल गए और अभिनव उस कप के बारे में भूल गया।
पर कब तक? सच तो सामने आना ही था एक दिन। वो बड़े-बूढ़े शान से कहते हैं न कि ‘सत्य नहीं छिपता’। 
यहाँ भी यही हुआ। अभिनव का ब’डे था और घर पर दोस्त धमक गए। आख़िर कब तक नई-नवेली जोड़ी का लिहाज़ करते? और फिर घर नहीं आएँगे तो गिफ्ट कैसे दे पाएँगे? 
बेल बजी और अभिनव ने दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा खोलते ही बाढ़ से घिरे पेड़ की तरह तीनों दोस्तों ने अभिनव को घेर लिया और ज‌ड़ से उखाड़कर बहाते हुए अपने साथ ले गए, सोफे पर। सोफा क्या ज़मीन भी होता तो वहीं ढहा देते उसे, जैसे पहले चटाई पर लोट जाया करते थे। 
कोलाहल सुनकर मेघा ने भी प्रवेश किया तो सभी चेत गए और नई भाभी के आगे हुडदंग मचाने के लिए शर्मिंदा होते हुए सलीके से बैठ गए। 
फिर अभिनव ने परिचय कराया। जैसे-जैसे अभिनव परिचय कराता जाता, मेघा उनके बारे में सुनी बातों का उल्लेखकर हँस पड़ती। दोस्तों ने हँसमुख भाभी देखी तो वे भी खुल गए। अब तक तो वे दुबके हुए थे क्योंकि अभिनव ने भाभी की जो छवि बयाँ की थी वह किसी शेरनी से कम नहीं थी जो उसे बस फाड़कर खा जाने वाली थी मगर यह उसकी महानता थी कि वो उससे बच-बचाकर किसी तरह दफ़्तर आ जाया करता था। 
शानू से परिचय तो था ही, दीपक और नरेश से भी अभिनव ने जान-पहचान कराई। उनसे मिलते ही मेघा खिलखिलाकर हँस पड़ी और पूछ बैठी कि क्या दीपक को ही सबने इतना चढ़ाया था कि उसने पी-पीकर पब में ही उल्टी कर दी। और क्या नरेश वही है जिसका, गर्लफ्रेंड को मोटी कहने के बाद, ब्रेक-अप हो गया।
दोस्तों ने देखा कि अभिनव ने तो भाभी के सामने पहले ही उनका कच्चा-चिठ्ठा खोल रखा है। यह कैसे हो सकता था कि वे अकेले-अकेले सारी बेइज़्ज़ती सह जाते। उन्होंने मेघा से शादी के पहले की अभिनव की सच्ची-झूठी कहानियाँ सुनाना शुरू कर दिया।
अपनी छवि खराब होते देख अभिनव ने मेघा को उलझाने के लिए चाय की माँग की कि इसी बहाने वो किचन में चली जाएगी और उसका और रायता फैलने से बच जाएगा। मेघा को भी शर्मिंदगी हुई कि बातों-बातों में वह चाय-पानी भूल ही बैठी थी। 
जल्द ही किचन से पकौड़ों और अदरक वाली चाय की गंध उठने लगी। पकौड़ों तक तो ठीक था मगर चाय में डाली अदरक की गंध नाक में पड़ते ही अभिनव के दिमाग़ में कप का ख़्याल कौंधा। उसने मन ही मन लोगों की गिनती की। पाँच लोग हैं और सेट से एक कप टूटा तो पाँच कप होंगे ही। बच गए। 
मेहमाननवाज़ी के लिए तो बच गए, मगर मेघा के सामने सच्चाई अब आ ही जाएगी, उसका क्या? उसने सोचा क्यों न वो ही किचन में जाकर मेघा की मदद करने के बहाने कप निकालकर दे दे तो उसकी नज़र में छठे कप की गैर-मौजूदगी नहीं आएगी।
वह दोस्तों से बहाना बनाकर किचन की ओर लपका। मगर तब तक देर हो चुकी थी। उसके आते ही किचन में इधर-उधर उलट-पलट के ढूँढती मेघा ने पूछा ‘पाँचवाँ कप देखा क्या?’
अभिनव ने देखा कि चार खाली कप ट्रे में तैयार खड़े थे और शेल्फ पर नज़र घुमाई तो शेल्फ पर कोई कप नहीं था। वह भी इधर-उधर पाँचवाँ कप ढूँढने लगा कि उसके दिमाग़ की बत्ती जली। बत्ती ये जली कि मेघा केवल पाँचवाँ कप क्यों ढूँढ रही है? उसे तो दोनों कप ढूँढने चाहिए। 
“एक मिनट! पाँचवाँ कप मतलब? पाँचवें कप का क्या मतलब है? कहीं तुमने...” 
“एक मिनट! मुझे पाँचवाँ कप क्यों नहीं मिल रहा? कहीं तुमने भी तो....” 
*****