Bharat ka Kohinoor - Rakesh Sharma in Hindi Short Stories by Jahnavi Suman books and stories PDF | भारत का कोहिनूर (राकेश शर्मा )

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भारत का कोहिनूर (राकेश शर्मा )

भारत का कोहनूर (राकेश शर्मा )


१३ जनवरी १९४९ पंजाब के पटियाला शहर में एक नन्हें बालक की किलकारी से देवेन्द्रनाथ शर्मा और तृप्ता शर्मा का आँगन गूँज उठा था ,वे बस इन किलकारियों पर ही मुग्ध हुए जा हे थे। वे इस बात से अनजान थे, कि बड़े होने पर एक दिन इसी बालक के मुख से निकले शब्द धरती पर ही नहीं धरती से करोड़ों मील दूर अंतरिक्ष में भी गूँज उठेंगे। वह भारत से अंतरिक्ष में जाने वाला प्रथम अंतरिक्ष यात्री होगा। जी हाँ हम भारत के इतिहास को स्वर्णिम अक्षरों में लिखने वाले प्रथम अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा की ही बात कर रहे हैं.


उनके जन्म के कुछ वर्षों पश्चात उनका परिवार अपने मूल निवास स्थान आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद लौट गया।
राकेश शर्मा को बचपन से ही अंतरिक्ष से सबंधित वस्तुओं में रूचि थी। खिलौनों की दुकान पर अक्सर उनकी निगाह जेट वायुयान पर टिक जाती थी। अभियांत्रिक खिलौनों को तोड़ कर वह अक्सर दुबारा जोड़ा करते थे।
उनके रिश्ते के भाई एयर फाॅर्स से सम्बंधित एक स्थान पर कार्यरत थे ,बचपन में राकेश उनके साथ अक्सर उस स्थान पर आया जाया करते थे ,तब उन्हें केवल विमान चालक बनने का शौक था। वह उसी से सम्बंधित किताबें पढ़ते थे और विमान की चित्रयुत कॉमिक पर आकर्षित रहते थे।


६ वर्ष की उम्र में पहली बार उन्हें एयर फोर्स के विमान में बैठने का मौका मिला जो कि एक लड़ाकू विमान था (वैम्पायर फ़ाइटर ) और उनके रिश्ते के भाई ने उन्हें अपने साथ कॉकपिट (चालक कक्ष ) में बैठाया। चालक कक्ष के यंत्रों ने उन्हें इतना प्रभावित किया की वह विमान उड़ाने के लिए बढ़े होने की प्रतीक्षा भी नहीं करना चाहते थे।


एक वर्ष पश्चात विमान दुर्घटना में उनके भाई का निधन हो गया। राकेश अपने एक साक्षत्कार में में बताते है कि ,इस दुःख को महसूस करने के लिए उनकी उम्र बहुत छोटी थी। वह बस इतना समझ पाए कि विमान चलाना बहुत ख़तरे भरा कार्य है। इस दुर्घटना का इतना असर उन पर ज़रूर पड़ा कि उन्हें लगने लगा ,विमान उड़ाने के लिए बहुत सावधानी की आवश्यकता है।


शायद उनके द्वारा पढ़ी गई पुस्तकों से उन्हें मिली प्रेरणा ही थी, जिसके चलते उन्होंने यह निर्णय लिया कि,वो खतरों से डरेंगे नहीं बल्कि ख़तरों के सामने खड़े होकर ख़तरों से लड़ेंगे। वह वायुयान उड़ाना ज़रूर सीखेगे। एक दिन पायलेट ज़रूर बनेंगे।


प्रारंभिक शिक्षा तथा कॅरिअर


राकेश शर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा हैदराबाद के सेंट जॉर्ज ग्रामर स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री हासिल की।
१९६६ में वे ' राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी (एन डी ए ) में चयनित हुए।
एन डी ए पास करने के बाद १९७० में बतौर 'प्रशिक्षण पायलट' भारतीय वायु सेना में शामिल हो गए। राकेश शर्मा को तब ऐसा लग रहा था ,बस उनका सपना पूरा हो गया।
१९७१ में भारत -पाकिस्तान युद्ध में उनकी अहम भूमिका रही। उन्होंने मिग एयर क्राफ़्ट से एक के बाद एक २१ मिशन पूरे किये।
युद्ध क्षेत्र के समय को याद करते हुए वह बताते हैं,उन्होंने अपनी आँखों के सामने अपने साथियों को वीरता पूर्वक लड़ते हुए तथा युद्ध क्षेत्र में शहीद होते हुए भी देखा है।
भारत के घायल सैनिकों की तड़प देख कर उनकी बाहें फड़ा फड़ा जाती थीं और फिर से वह भारत माता को नत मस्तक कर आगे अपने मिशन की ओर बढ़ जाते थे , या यूं कहें अगले मिशन की ओर।


एक साक्षत्कार में उन्होंने बताया कि जब पाकिस्तान का कोई सैनिक ज़ख़्मी हो जाता था तो उसे अस्पताल ले जाने के लिए वहाँ की फौज सफ़ेद झंडे दिखाती थी ,. तब हम तुरंत गोलाबारी रोक देते थे। ऐसा मानना ग़लत है कि प्यार और जंग में सब जायज़ है। जंग में सब कुछ जायज़ नहीं होता है। लड़ाई भी अनुशासन और नियमों के अनुसार की जाती है। मानवता को सर्वोपरि माना जाता है।


२१ सफ़ल मिशन एयर फ़ोर्स के लिए पूरे करने के बाद उन्हें "स्क्वॉड्रन लीडर ' बना दिया गया।


अंतरिक्ष यात्रा


१९८४ के अंतरिक्ष मिशन की सोवियत संघ ने पेशकश की थी ,एक भारतीय को भी इस मिशन में शामिल होना था।


भारत ने १५० उम्मीदवारों की अल्पसूची ज़ारी करी , जिनमें एक उम्मीदवार राकेश शर्मा भी थे।
सभी उम्मीदवारों को अलग अलग स्थानों पर बन्द कमरों में रखा गया, जिससे उनकी मानसिक स्थिति को समझने में मदद मिले और अन्तरिक्ष में भेजने के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार का चुनाव हो सके।
राकेश शर्मा को ७२ घंटे बैंगलूर के कमरे में बंद करके रखा गया ,जहाँ कोई खिड़की नहीं थी। बात करने वाला कोई व्यक्ति मौज़ूद नहीं था। ना घड़ी थी ना ही कैलेंडर ना फ़ोन ना टेलीविज़न ना समाचार पत्र ना रेडिओ। बीच बीच में अलार्म बजाया जाता था ।उस समय उनको अपना रक्तचाप जाँचना होता था।
72 घंटे बाद जब वह बाहर आये ,तो मनोचिकित्सक ने उनसे बहुत से सवाल पूछे। मनोचिकि'त्स्क उनके जवाबों से संतुष्ट दिखे। ज़ाहिर है ,राकेश इस प्रशिक्षण में सफल रहे।
150 उम्मीदवारों में से दो उम्मीदवार एक 'राकेश शर्मा' स्वयं व दूसरे उम्मीदवार 'रवीश मल्होत्रा इस परीक्षा में खरे उतरे।


२० सितम्बर १९८२ को राकेश शर्मा और रवीश मल्होत्रा दोनों ही भारत सोवियत संघ के संयुक्त अंतरिक्ष अभियान के लिए चुन लिए गए।
दरअसल भारत के अंतरिक्ष विज्ञान संगठन 'इसरो 'और सोवियत संघ के इंटरकॉसमॉस के संयुक्त अभियान के तहत अंतरिक्ष का अध्ययन करने के लिए दोनों देशों के तीन अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष यान द्वारा अंतरिक्ष में जाना था। तीन अंतरिक्ष यात्रियों में से दो सोवियत संघ से और एक भारत से चुना जाना था।
राकेश शर्मा और रवीश मल्होत्रा को यात्रा पूर्व प्रशिक्षण के लिए सोवियत संघ के कज़ाकिस्तान स्थित अंतरिक्ष स्टेशन(स्टार सिटी ) बैंकानूर भेजा गया। १८ महीने कार्यशाला चली। इस दौरान राकेश शर्मा ने रुसी भी सीख ली ,क्यूंकि ज़्यादातर निर्देश रुसी भाषा में होते थे। राकेश दिन में छह से सात घंटे रुसी भाषा सीखते थे। लगभग तीन महीनों में वह रुसी भाषा समझने व बोलने लगे।


यह कठिन प्रशिक्षण था. यहाँ सारा वातावरण अंतरिक्ष जैसा था अर्थात शून्य गुरुत्वाकर्षण और शून्य आक्सीजन। जब गुरुत्वाकर्षण शून्य हो जाता है तो हमारा रक्त हमारे निचले हिस्से की बजाय हमारे शरीर के ऊपरी हिस्सों में बहने लगता है और हम हवा में तैरने लगते हैं जो सुनने में शायद दिलचस्प लगता है, लेकिन महसूस करने पर कठिन अनुभव होता है। इस से हम्मरे शरीर में अनेक परिवर्तन होने लगते है शरीर के तरल पदार्थ सूखने लगते हैं । पाचन क्रिया में भी बदलाव आता है। रक्तचाप भी प्रभावित होता है। अंतरिक्ष में ऑक्सीजन भी कम हो जाती है। पर्याप्त ऑक्सीजन पाने केलिए ऑक्सीजन मास्क लगाना पड़ता है।
हाथों और शरीर को साफ़ करने के लिए ऐसे साबून व शैम्पू का प्रयोग किया जाता है जिसके लिए पानी की ज़रूरत न पड़े। आज के समय में तो हैंड सैनीटाईज़र व टॉयलेट सैनीटाईज़रआम हो गए हैं ,लेकिन उस समय में केवल विशेष कार्य के लिए ही ऐसे सैनीटाईज़र उपलब्ध होते थे।
अंतरिक्ष में बाल भी हवा में लहलहाते रहते हैं। बालों को नियंत्रण में रखना भी एक अन्य समस्या है।
राकेश शर्मा बताते है कि उन्हें कड़कती ठण्ड में बर्फ़ के बीच एक इमारत से दूसरी इमारत तक जाना होता था।
कठिन प्रशिक्षण में राकेश शर्मा पूर्ण रूप से कामयाब रहे। अंतरिक्ष में जाने के लिए उन्हें चयनित किया गया। रवीश मल्होत्रा बैक अप (अतिरिक्त खिलाड़ी ) के तौर पर चयनित किए गए.

भारत के लिए ऐतिहासिक दिन


२ अप्रैल १९८४ का वह ऐतिहासिक दिन था। राकेश शर्मा और रूस के दो अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर जब अंतरिक्ष यान सोयुज टी ११ आसमान की ओर धुआँ छोड़ता हुआ निकला, तब सबकी साँसे कुछ पल के लिए थम सी गई थी।
उड़ान भरने के कुछ घण्टों बाद तीनों अंतरिक्ष यात्री सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में सोवियत संघ द्वारा स्थापित 'अंतरिक्ष ऑर्बिटल स्टेशन सॉल्युज 7' में पहुँच गए।
राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष में 7 दिन 21 घंटे और 40 मिनिट बिताये उनका अंतरिक्ष में जाने का उद्देश्य ४३ तरह के अध्धयन करना था ,जिसमें जैव चिकत्सा और सुदूर संवेदनाओं जैसे विषय शामिल थे।
एक विकासशील देश के लिए ये बड़े गौरव की बात थी. राकेश शर्मा के अंतरिक्ष में जाते ही भारत का नाम विश्व में चौदवें स्थान पर दर्ज़ हो गया। भारत अंतरिक्ष में यात्री भेजने वाला चौदवां देश बन गया था।


तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी के साथ वार्तालाप


तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी के साथ उनकी बातचीत जो कि, सीधे अंतरिक्ष से हुई थी बहुत दिल चस्प थी।
श्रीमती गाँधी ने कहा ," स्काड्रन लीडर राकेश शर्म्म ,सबसे पहले मैं आप को औऱ आपकी टीम के सदस्यों को इस साहसिक कार्य के लिए बधाई देती हूँ।
आपके इस कार्य से अंतरिक्ष के रहस्य खुलेंगे।आप के इस कार्य से युवाओं को अवश्य प्रेरणा मिलेगी।
आप का यह कार्य विश्व शांति और मानव कल्याण के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। इस कार्य से अंतरिक्ष के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ेगी। पर्यावरण सुधारने में मदद मिलेगी सोवियत संघ के साथ हमारे सम्बन्ध और मज़बूत होगें।
राकेश शर्मा ने अपनी टीम की ओर से औऱ अपनी ओर से श्रीमती गाँधी को धन्यवाद दिया।
श्रीमती गाँधी ने राकेश शर्मा से पूछा कि "आपकी जमीन पर तो ट्रेनिंग बहुत कठिन रही,अब अंतरिक्ष में आकर कैसा लग रहा है?"
इस पर राकेश शर्मा ने बड़ी सरलता से जवाब दिया कि , उन्हें यहां आकर महसूस हो रहा है कि धरती पर उनकी ट्रेनिंग कितनी ज़रूरी थी। उस कठिन ट्रेनिंग का ही परिणाम रहा कि, उन्हें अंतरिक्ष में आने के बाद किसी तरह की कठिनाई नहीं हो रही है।
श्रीमती गाँधी ने पूछा कि,"आपकी तबियत कैसी है और कैसा महसूस कर रहे हैं ?
इस पर राकेश शर्मा ने बताया कि वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं और\उन्होंने यहां आकर गर्म खाना खाया है। उनके यहाँ पहुँचने पर पहले से मौज़ूद टीम के सदस्यों ने मेज़ पर खाना सजा कर रखा था और कृत्रिम फूल भी सजाये हुए थे क्यूँकि यहां असली फ़ूल नहीं मिल सकते।


श्रीमती गाँधी ने मुस्कुराते हुए जब ,राकेश शर्मा से पूछा , "ऊपर से भारत कैसा दिखता है ?"
राकेश शर्मा का जवाब था ,"बिना झिझक के कह सकता हूँ ,"सारे जहाँ से अच्छा। "
राकेश शर्मा के इस जवाब को सुनने के बाद हर हिन्दुस्तानी का सीना गर्व से फूल गया था।
श्रीमती गाँधी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी ।
श्रीमती गाँधी ने पूरे देश की और से उनके सकुशल लौट आने की मंगलकामना भी की।


अपना मिशन पूरा कर जब वह धरती पर लौट केआ रहे थे तो शायद ही कोई ऐसा घर होगा जो दूरदर्शन पर यह प्रसारण न देख रहा हो। सारा भारत जैसे एक सूत्र में बंध गया हो।
राकेश शर्मा के धरती पर क़दम रखते ही प्रत्येक भारत वासी के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। प्रत्येक भारतवासी राकेश शर्मा में मानो स्वयं को देख रहा हो।
राकेश शर्मा के चेहरे से साफ़ बहुत ही साफ़ अंतरिक्ष का जादू झलक रहा था। उनका कहना था कि वह दुबारा अंतरिक्ष में अवश्य जाना चाहेंगे ,अगली बार वो अंतरिक्ष से पृथ्वी की खूबसूरती निहारने के लिए जाना चाहेंगे ,इस बार तो उनका कार्यक्रम बहुत व्यस्त था बहुत से अध्यन करने थे।


उन्होंने अपने एक साक्षत्कार के दौरान बताया कि भारत ऊपर से कितना खूबसूरत नजर आ रहा था । मैदान, खाड़ी, मरुस्थल और नदियाँ भिन्न भिन्न रंग की दिखाई पड़ रही थी। हिमालय पर्वत तो जामनी रंग का दिखाई पड़ रहा था , इसका कारण ये था ,कि हिमालय पर्वत के ऊपरी हिस्से पर सूरज की किरणें नहीं पड़ती हैं ।


राकेश शर्मा कहते हैं कि अंतरिक्ष में जाने के बाद हम यह भूल जाते हैं कि हम किस राज्य से आए हैं। किस देश से आए हैं। केवल एक ही विचार मन में आता है ,वो यह कि हम सब एक ही ग्रह के प्राणी हैं और वह है हमारी 'पृथ्वी।' उन्होंने कहा कि हमें रंग ,जाती ,प्रान्त व देश के नाम पर लड़ाई झगड़ा छोड़ कर साथ में मिल झूल कर रहना चाहिए तथा अंतरिक्ष के रहस्यों को सुलझाने के लिए अध्यन करना चाहिए।
उन्होंने युवाओँ को विशेष तौर कहा है, कि वह अंतरिक्ष विषय को अपने कैरियर के तौर पर चुने क्योंकि इसमें अध्यन करने की असीमित संभावनाएं हैं..


अवार्ड व व सम्मान
१)
अंतरिक्ष से लौटने के बाद उन्हें सोवियत संघ द्वारा "हीरो ऑफ़ सोवियत संघ" से सम्मानित किया गया।


२) ३० अगस्त १९८४ को भारत सरकार ने अपने सर्वोच्च अवार्ड 'अशोक चक्र' पदक से उन्हें सम्मानित किया, चूँकि उनका उद्देश्य शान्तिपूर्ण ढंग से जनकल्याण हेतु कुछ अध्धयन करना था जिसे उन्होंने बहुत साहस के साथ पूरा किया। २८ जनवरी १९८५ को आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा की गई। ये सम्म्मान भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया जाता है।
(अशोक चक्र सेना के जवान , आम नागरिक को जीवित या मरणोपरांत दिया जाता है। ये शान्ति के समय का सबसे ऊँचा वीरता का चक्र है ये पदक असमान्य वीरता ,शूरता व बलिदान के लिए दिया जाता है। पुरुस्कार राशि में १४०० रुपए का मासिक भत्ता भी शामिल है। )
राकेश शर्मा के साथ साथ रूस के दोनों अंतरिक्ष यात्रियों को भी ये सम्मान दिया गया।


अंतरिक्ष से सबंधित कुछ रोचक बातें


१} राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष में सोवियत संघ के सह यात्रियों को सूजी का हलवा , आलू की सब्ज़ी पूरी ,छोले व पुलाव खिलाया। यह खाना उन्हें 'डिफेंस रिसर्च फ़ूड लेबोटरी ने मोहिया करवाया गया था।
२} अंतरिक्ष में होने वाली बिमारियों से बचने के लिए राकेश शर्मा योग किया करते थे।
राकेश शर्मा ने 'शून्य गुरुत्वाकर्षण योगा 'का अभ्यास किया था उनके इस प्रयास की रोकॉस्मोस ने काफी प्रशंसा की थी।
३। अंतरिक्ष में उन्होंने धुआँ की एक लकीर देखी जो की भारत के काफ़ी नज़दीक से आ रही यही उन्होंने अंदाजा लगाया की 'बर्मा' के जँगलों में आग लगी है ,उन्होंने अंतरिक्ष से यह सूचना बर्मा तक पहुँचाई। उनकी सूचना पर बर्मा के जँगलों में लगी आग पर तुरंत क़ाबू पा लिया गया।

४ ) नई दिल्ली के 'नहरू तारामंडल' में इस अंतरिक्ष यान का मॉडल पर्यटकों के देखने हेतु रखा गया है

राकेश शर्मा का बॉलीवुड पर जादू


राकेश शर्मा के इस; साहसिक कार्य से प्रेरित होकर बॉलीवुड ने इन पर फीचर फिल्म बनाना भी प्रारम्भ कर दिया है। २०१९ तक ये फ़ीचर फिल्म दर्शकों के सामने होगी। सूत्रों की माने तो ,नायक 'आमिर खान' इस फिल्म में राकेश शर्मा की भूमिका में नज़र आएंगे। यू ट्युब पर इसका ऑफिशल ट्रैलर देखा जा सकता है। फिल्म को शीर्षक दिया गया है "सलूट "


इस फिल्म के रिलीज़ होने पर आज की पीढ़ी को राकेश शर्मा के ऐतिहासिक कार्य को देखने का अवश्य अवसर प्राप्त होगा।


आज की पीढ़ी को अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा से प्रेरणा लेनी चाहिए। राकेश शर्मा ने यह साहसिक कार्य उस समय किया था, जब भारत में केवल दूरदर्शन का एक चैनल प्रसारित होता था और वो भी श्वेत व श्याम। केवल लैंडलाइन फ़ोन था। भारत में कंप्यूटर नहीं थे, इंटरनेट नहीं था। टेलीविज़न में रिमोट सिस्टम भी नहीं था। आज के समय में भारत ने बहुत उन्नति की है आज सुख सुविधाओं की कमी नहीं। आज फिर माँग है ,ऐसे साहसिक युवकों की जो देश के इतिहास में ऐसे पन्ने जोड़ दें ,जिन्हें पढ़कर आने वाली पीढ़ी का भी गर्व से मस्तक उठ जाए।
आओ हम सब मिलकर अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा के इस ऐतिहासिक कार्य के लिए उनका ह्रदय से आभार प्रकट करें और ईश्वर से ये कामना करें कि वह स्वस्थ और दीर्घ आयु प्राप्त करें तथा आज के युवाओं को अपने अनुभवों से ज्ञान वृद्धि कर उन का मार्गदर्शन करें।
------------------ जाह्नवी सुमन