Niyat in Hindi Short Stories by Sonu Kasana books and stories PDF | नियत

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नियत

नियत

रामेश कुमार बहुत ही भला और नेक इंसान था । उसकी छोटी सी खेती बाड़ी थी । लेकिन वो नेक नियत वाला इंसान था। चार जनो ( लोगों ) का खुशहाल परिवार था। उसकी पत्नी और दो बच्चे । रामेश गाँव के लोगों से सीमित संबंध रखता था। वह ज्यादातर समय अपने परिवार तथा खेतों पर ही बिताता था।

***

एक दिन वह अपने खेतों को नलकूप से पानी दे रहा था कि एक अजनबी जो बाईक लिए हुए था उसके नलकूप पर पानी पीने के लिए रुका उसने अपना बैग वंहा पड़ी चारपाई पर रख दिया और पानी पीने लगा। किसी कारण से वह अजनबी अपना बैग वहीं छोड़ गया।

उस समय रामेश खेत में पानी देखने गया था जब वह वापस आया तो उसे वंहा रखा बैग मिला। उसने वह बैग उठाया और देखा कि इसमे क्या है ?

उस बैग के अंदर बहुत से पैसे थे । रामेश ने बैग वैसा का वैसा नलकूप पर बने कमरे के अंदर रख दिया। और वहीं चारपाई पर लेट गया । कुछ ही समय बाद वह अजनबी हड़बड़ाहट में वंहा आया और लगभग गिड़ गिड़ाते हुए रामेश से बोला – भाई साहब यंहा मेरा एक थैला रह गया था । उसमे मेरा बहुत जरुरी सामान था। अगर आपको मिला हो तो कृपा करके दे दो – आपकी अति महरबानी होगी ।

रामेश ने कहा – आप इतने परेशान मत होओ । मुझे आपका थैला मिला है । मैं अभी लाकर देता हूँ।

और उसने बैग लाकर दे दिया।

अजनबी ने जल्दी से बैग लिया और खोल कर देखा । पैसों को देखकर अजनबी को तसल्ली हुई।

एक लम्बी सांस लेते हुए अजनबी बोला – शायद आपको पता नही के इस थैले में क्या है ?

अजनबी के इस सवाल को सुन कर पहले रामेस हंसा फिर बोला – नही साहब मुझे पता है इसमे रुपये भरे हैं।

अजनबी हक्का बक्का रह गया ।

आपने ये जानते हुए कि इस थैले में रुपये हैं रुपयों सहित थैला वापस कर दिया। आप जैसा नेक नियत इंसान मैंने पहली बार देखा है। मैं आपका तहे दिल से धन्यवाद करता हूँ।

रामेश ने कहा – जी ये तो आप ही के पैसे थे तो आपको लोटाना मेरा फर्ज था।

अजनबी ने जेब से कुछ रुपये निकाले और रामेश की तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोला – ये मेरी तरफ से भेट समझ कर रख लिजिए ।

रामेश ने कहा मेरे पास तो पूरा बैग ही था । मुझे रखना होता तो मैं उस में से रख लेता ।

अजनबी के बहुत कहने पर भी रामेश नही माना ।

अजनबी ने आखिर भविष्य में कभी फिर उस अहसान को चुकाने के लिए कहकर विदा ली।

समय गुजरा और दोनो इस बात को भूल गये । कुछ समय बाद रामेश को किसी काम से शहर जाना पड़ा ।

शहर में रामेश कोई परिचित भी नही रहता था । अतः वह शुबह जल्दी रवाना हुआ ताकि काम निपटा कर रात से पहले वापस घर आ सके ।

वंहा पहुंच कर वह अपने काम में लग गया। दोपहर होते – होते उसे भूख भी लगने लगी।

दफ्तरों में भी लंच टाईम हो गया तो रामेश ने सोचा की वह भी कुछ खा ले ।

बाहर जाकर देखा तो आस पास मात्र एक सस्ता सा होटल दिखाई दिया वो भी उसके बजट से थोड़ा बाहर ही था पर उसने सोचा खाना तो खाना ही है फिर अब कहां ढुंढता फिरेगा। बाकी तो उसके सपनो से भी दूर थे।

वह हिम्मत करके उस होटल में चला गया । उसने सब चीजों के दाम पता करके अपने बजट के हिसाब से खाना मंगा लिया।

आराम से बैठ कर खाना खाया । खाना खाने के बाद वह अपनी कुर्शी से उठ कर पैसे देने लगा कि पीछे से आकर एक बैरे ने आकर उसका हाथ पकड़ लिया । रामेश ने चौंक कर कहा – क्या है ? तुम ने मेरा हाथ क्यों पकड़ा ?

बैरे ने कहा – जल्दी से चम्मच निकालो ।

कौन सी चम्मच ? – रामेश ने कड़कर पुछा ।

वही चम्मच जो तुम्हारी जेब मे है।

मेरी जेब में कोई चम्मच नही है । रामेश ने पुरे गुस्से में जवाब दिया।

झगड़ा पुरा बढ़ गया।

शौर शराबा सुन कर होटल का मैनेजर वंहा आ गया और पूछने लगा – ये सब क्या हो रहा है ? कैसा शौर है?

जैसे ही उसने रामेश को देखा देखते ही पहचान लिया – अरे आप ? कैसे आना हुआ ?

रामेश चुप रहा ।

मैनेजर ने बैरे से पुछा – क्या बात है ?

बैरे ने सब बात बता दी।

मैनेजर ने कहा – तुम्हारा दिमाग तो ठीक है । तुम्हें कोई गलत फहमी हुई होगी । जो आदमी रुपयों से भरा बैग लोटा सकता है । वह एक चम्मच के लिए नियत खराब कैसे कर सकता है ? मैं मानने को तैयार नही।

बैरे ने कहा – सर मुझे पक्का यकीन है कि चम्मच इन के ही पास है।

मैनेजर ने कहा – मैं अगर अपनी आँखों से देखता तो भी य़कीन न करता । देख लो तुम्हारी नौकरी दांव पर है ।

बैरे ने कहा – जी ठीक है ।

अब मैनेजर दुविधा में फंस गया क्योंकि उसे रामेश पर भी पूरा भरोसा था तो बैरा भी अपनी बात पर अटल था ।

उसने हिम्मत करके रामेश से कहा – आप इसे तलासी ले लेने दिजिए। इसका भी वह्म निकल जाएगा।

रामेश अनमने ढ़ग से तैयार हो गया ।

बैरे ने तलासी ली तो रामेश की जेब से चम्मच निकल आई ।

रामेश का सर शर्म से झुक गया ।

मैनेजर को भी अचम्भा हुआ कि जो इंसान इतने रुपयों से विचलित नही हुआ वो एक चम्मच के लिए ऐसो कर सकता है ?

मैनेजर के मुह से बस इतना निकला – आप… क्यूं... ?

रामेश के मुह से कोई शब्द न निकला ।

( हालाकि वह उस चम्मच के ड़िजाईन पर फिदा था )