Aaina tumhara hai in Hindi Poems by Anand Gurjar books and stories PDF | आईना तुम्हारा है

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आईना तुम्हारा है

आईना तुम्हारा है

आनन्द सहोदर

1

सूरतेहाल इश्के वतन कुछ चाहता हूं ।

इस मिट्टी पे जन्नत को लुटाना चाहता हूं ।।

तिरंगा में लिपटके रुखसते हरहाल कर जाऊं ।

शहीदाने वतन पे जिन्दगी लुटाना चाहता हूं ।।

दहशतों में करकरे मुझे जब याद आते हैं।

दुश्मन की हस्ती को मिटाना चाहता हूं ।।

गरीबों की गरेवां से रोटी दूर जाती है ।

धरती से मंहगाई मिटाना चाहता हूं ।।

इवादत तुम करो चाहे प्रार्थना हम करें लेकिन ।

वतन पे मजहवों को मैं लूटाना चाहता हूँ।।

पुराणों और कुरान में कहीं नफरत नहीं लिख्खी ।

मैं नफरत को जमीं से ही मिटाना चाहता हूं।।

***

2

यू तो कितने बेबस और बेचारे हैं।

लगता है जैसे किस्मत के मारे हैं।।

जब चुनाव आस-पास में होता है।

कितने झूठे वादे झूठे नारे हैं।।

जिसके भी सत्ता आती है हाथों में।

वे दिन में ही दिखला देते तारे हैं।।

दिन कितने भी अच्छे आ जाएं।

भ्रष्ट और बेईमानों से हारे हैं।।

महलों में आग कहीं न लग जाए।

फूलों जैसी आँखों में अंगारे हैं।।

***

3

नीली झीलों में न डूब जाऊं डर लगता है।

घुप अंधेरों में न खो जाऊं डर लगता है।।

उसकी नीयत में कहीं खोट नजर आती है।

मैं खूबसूरत न बन जाऊं डर लगता है।।

मेरे लब्जों में बगावत की बू नजर आती है।

मैं सियासत को न खटक जाऊं डर लगता है।।

मेरे दिल में अभी विस्मिल की कसक बांकी है।

शायर से सरफरोश न बन जाऊं डर लगता है।।

उसकी मुट्ठी में हिन्दोस्तान है सारा ।

मैं चश्मदीद न बन जाऊं डर लगता है।।

ये धमाके मुझे बैचेन बहुत करते हैं।

मैं सूनामी बबण्डर न बन जाऊं डर लगता है।।

***

4

उसने तेरे इश्क की कुछ तो कद्र की होती ।

कुछ नहीं तो कम से कम एक ग़ज़ल लिखी होती ।।

यूं तो शेर शायर का दर्द बयां करते हैं ।

एक ग़ज़ल को कहने में कुछ तो मैंने पी होती ।।

लो शहादत हो गई एक सिरफिरे की फिर ।

काश मैंने जिंदगी में राजनीति की होती ।।

वेजुवान हो गए आजकल के लोग सब ।

सत्य को कहने की हिम्मत कुछ तो मैंने की होती ।।

हो गई तुमसे मोहब्बत क्या मेरा कसूर है ।

शूल सी यह जिंदगानी कुछ तो मैंने जी होती ।।

***

5

तेरे हाथों में है चूड़ी की खनक ।

और पावों में है पायल की झनक ।।

प्यार से पलकों को उठाले तू ।

और फिर प्यार से पलकों को पटक ।।

मुस्कुराके वो तेरा बतियाना ।

याद आती तेरे ओंठो की लपक ।।

आए न आए चांद सूरज तो ।

तेरे माथे पे है विंदिया की चमक ।।

रात तारों भरी सुहानी है ।

झिलमिलाते तेरे बालों की लटक ।।

***

6

जिगर में रूह में इस कदर उतर गए हो तुम ।

एक जिंदा गजल बन गए हो तुम ।।

मुझे पत्थर से कोई प्यार नहीं है फिर भी ।

बुत बनकर जिगर में उतर गए तुम ।।

मैं कब तन्हा रहा तन्हाई मेरे साथ रही ।

इन आंखों में शबनम से बरस गए हो तुम ।।

मुझे ग़म है कि मैंने तुमसे मोहब्बत नहीं की है ।

मुझसे मिलने को फिर भी तरस गए हो तुम ।।

मुझे पता है कि तुमने नहीं पी है लेकिन ।

बिना शराब के फिर भी बहक गए हो तुम ।।

गमों के जाम हैं दिल में नशा मोहब्बत का ।

जवां पे नाम है आंखों में चमक गए हो तुम ।।

***

7

परिंदों को यहां पर आशियाना मिल नहीं सकता ।

सियासत कह नहीं सकती ये साखें जानती हैं ।।

हुकूमत की हकीकत को यूं ही कब तक छिपाओगे ।

हुआ कितना बखेड़ा है दीवारें जानती है ।।

मुहब्बत दिल में रखने से भला कुछ भी नहीं होगा ।

जवां बेबस भलां हों पर निगाहें जानती है ।।

यह आईना तुम्हारा है यह पत्थर भी तुम्हारे हैं ।

कि शायर मर नहीं सकता किताबें जानती है ।।

तेरी दीवानगी मैं यूं फिदा कितने हो गए होंगे ।

जमाना जानता है यह मजारें जानती है ।।

***

8

नफरत की आग में जलने लगी है बस्तियां ।

भंवर में फंसने लगी है यार उनकी कश्तियां ।।

आदमी का कुछ ना पूछो आदमी बेजान है ।

जान की कीमत लगाने लगी हैं हस्तियां ।।

उम्र भर बदहाल रहकर गम उठाते ही रहे ।

इन गरीबों की कहीं ना टूट जाएं पसलियां ।।

प्यार से मेरी तरफ तुमने जो देखा इक नज़र ।

ख्वाब में उड़ने लगीं हैं आजकल ये तितलियां ।।

***

9

हरजाई साजन से दिखते ।

ऐसे सख्स कमीने लगते ।।

जिनने कुर्ते लुचवाए हैं ।

नेता कितने सीधे लगते ।।

घोटालों के गेम खेलते ।

रेलगाड़ी से सरपट चलते हैं ।।

उबड़-खाबड़ से रास्ते में ।

जंग खाती फटफटिया लगते ।।

अंदर काले बाहर काले ।

काले कारनामे जब करते ।।

संसद की सीढ़ी से फिसलते ।

और तिहाड़ में जाकर सड़ते ।।

***

10

हर जगह सच का बोलबाला है ।

और झूठे का मुंह काला है ।।

सिसकियां ले रही यहां मस्जिद ।

रोता गुरुद्वारा और शिवाला है ।।

कैसे भगवान इनको माफ करें ।

छीनते जो रहे निवाला है ।।

तन के उजले मन के कालों ने ।

कर दिया देश में हवाला है ।।

प्यार की रोटियां चलो सेकें ।

भूखे हाथों में आज हाला है।।

***

11

महंगाई में मुफलिसी जीने नहीं देगी ।।

कलम की भूख है मुझको अभी मरने नहीं देगी ।।

ये मुर्दों की जवानी सीख कर आए हुए हैं लोग ।

अंधेरी रात है जिंदा मुझे रहने नहीं देगी ।।

मुहब्बत है कि दीवाना बनाकर रख दिया मुझको ।

मैं अब हंस भी नहीं सकता यह रोने भी नहीं देगी।।

मैं बचपन चाहता हूं फिर खिलौने देखकर यारों ।

बड़ी अजीब दुनिया है मचलने भी नहीं देगी ।।

बड़ी मुश्किल से मैंने उसको राजी कर लिया लेकिन ।

यकीं हर बात पर दुनिया उसे करने नहीं देगी।।

खुदा मैं जानता हूं तू मुझे सब कुछ लुटा देगा ।

यह दुनिया है जो मुझको मोहब्बत करने नहीं देगी ।।

सियासत खूब चलती है मजहब की दुकानों पर ।

यह ऐसी चाल है जो ठीक से चलने नहीं देगी ।।

***

12

पगडंडियों सा है जमाना पगडंडियों सा है ।

मंजिलें कुछ भी नहीं पगडंडियों सा है ।।

आबरू कुछ भी नहीं है हुस्न के बाजार में ।

आदमी नंगा यहां पगडंडियों सा है ।।

रूप तेरा जबसे छलकने है लगा ।

छहरा ये चेहरा तेरा पगडंडियों सा है ।।

जब से तेरे प्यार की आंधी चली ।

लब्ज मेरा हो गया पगडंडियों सा है ।।

जुल्म कितना भी करो कुछ ना कहें ।

भारती जीवन तेरा पगडंडियों सा है ।।

जो तेरे माथे पे रख्खा है सिंन्दूर ।

खून खून से लतपत हुई पगडंडियों सा है ।।

बढ़ गई है पेट की इतनी हवस ।

आदमी भूखा यहां पगडंडियों सा है ।।

***

13

सपनों की बारात गई ।

साथ चांदनी रात गई ।।

झूठ कपट लाचारी में ।

मानव की औकात गई ।।

सच कहने के कारण ही ।

हाथों से सौगात गई ।।

गीता में डूबा है मन ।

इधर उधर की बात गई ।।

चली भावना जो मन की ।

खूब बरस बरसात गई ।।

***

14

जिंदगी में हर सुबह हर शाम होती है ।

गर खुशी थी कल तो आॅखें आज रोती हैं ।।

ऊंघते दोपहर में भी लोग कैसे भागते हैं ।

आदमी जगता है लेकिन आंख सोती है ।।

प्यार की दहलीज पर बैठे हुए भगवान की ।

आंख नम होती है जब भी बात होती है ।।

आंख से आंसू सहजता रात भर में भी रहा ।

याद बन जाए तो वही हीरे मोती है ।।

रूप में डूबी ना आंखें जान पाई ये कभी ।

दौड़ती चंचल लहर सागर में खोती है ।।

***

15

गम भुला कर यहां पे जीने को ।

कौन कहता है तुझसे पीने को ।।

प्यार की सरहदों के पार कहीं ।

एक मंजिल तो मिले जीने को ।।

प्यार से घोंप लूं खंजर अपने ।

चीर दूं सरहदों पे सीने को ।।

काम आए तो गर वतन के लिए ।

फेंक दूं जान के नगीने को ।।

वो अगर प्यार से बुलाए तो ।

छोड़ कर चल दूं मैं मदीने को ।।

***

16

मुलजिमों की बात बेसर-पैर की है ।

जालिमों ने दुश्मनों पर खैर की है ।।

कल से वह नेता बड़े क्या बन गए ।

दूर जा जाकर उन्होंने सैर की है ।।

कल जो मिलने रोज घर आते रहे ।

आज आने में उन्होंने देर की है ।।

हर जगह अब खौंफ केवल आदमी का ।

चाल भी सच है कबीरा भेड़ की है ।।

क्या बताएं क्या जमाना आ गया ।

जंगलों में ना दहाड़ शेर की है ।।

क्या प्रदूषण से बचा लेगा कोई ।

फिर शहीदी हो रही इस पेड़ की है ।।

तुम सभंल जाओ सहोदर है समय ।

नाव डूबेगी अगर कुछ देर की है ।।

***

17

मिलने आते हैं दूज-तीज हमें ।

मानते जो रहे अजीज हमें ।।

राम अशफाक चंद्रशेखर से ।

ढूंढे मिलते नहीं अजीज हमें ।।

खुदा ने प्यार से तो दे दी है ।

चौड़ी छाती फटी कमीज हमें ।।

फूटी कौड़ी नहीं सुहाता है ।

इस जमाने में बदतमीज हमें ।।

जाने कैसे कदम बढ़ाएगी

अबला मिलती सदा कनीज हमें ।।

***

18

चांद तारे जमीन पर ला दूंगा ।

सारी दुनिया तुझे लुटा दूंगा ।।

प्यार से तूने कुछ भी मांगा तो ।

जान की बाजी में लगा दूंगा ।।

तूने कश्मीर मुझ से छीना तो ।

मौत की मैं तुझे सजा दूंगा ।।

यार पीने से गम अगर कम हो ।

प्यार से मैं तुझे पिला दूंगा ।।

***

19

गैरों को तुमने जाम पिलाया है किस तरह ।

अपनों को तुमने आज रुलाया है किस तरह ।।

टूटे हुए शीशे चुभते हैं दिल में मेरे ।

शमशीर निगाहों को बनाया है किस तरह ।।

तुमको जअम आज बताओ किसका है सनम ।

जख्मी लवों को तुमने कुरेदा है किस तरह ।।

गैरों की बात का हमें पहले यकीं न था ।

पर देखते हैं बेवफा हो तुम भी किस तरह ।।

जिंदा ही दफन करके मुझे देखते हैं लोग ।

होती है देखते हैं मौत किसकी किस तरह ।।

***

20

गंध सी महकी तू मेरे पास है ।

खूबसूरत है बहुत ही खास है ।।

क्या कहूं बस प्यार का तू है गगन ।

और बस मुझको भी तुझ पर नाज है ।।

हर खुशी तेरी खुशी मेरी खुशी ।

गम भी हर तेरा मेरे ही साथ है ।।

चांद को देखा तो कुछ ऐसा लगा ।

तू बहुत ही आज मेरे पास है ।।

आजा तेरी मांग में भर दूं सिंदूर ।

चांद तारे भी बहुत ही पास हैं ।।

***

21

अंधेरों से कहना यहां से दूर रहें ।

चिरागों ने यहां जलने की कसम खाई है ।।

हमको मंदिर और मस्जिद में बांटने वालों ।

ये न भूलें कि हम भी भाई भाई हैं ।।

देश के दुश्मन में तुझे मिटा दूंगा ।

बड़ी मुश्किल से बिस्मिल की याद आई है ।।

ए मोहब्बत तुझे आसमां दे दूं ।

इस मिट्टी में महकती हुई जो आई है ।।

ए गरीबी संभल कर चलना ।

देश में मंहगाई बहुत छाई है ।‌।

ए सहोदर तुझे शहीदों की दुआ लग जाए ।

देश पर मर मिटने की तूने जो कसम खाई है ।।

***

22

समंदर में सोया हुआ दीप हूं मैं ।

जिसमें मोती निकलता है वह सीप हूं मैं ।।

मुझे अपनी तकदीर पर छोड़ने वालों ।

तुम्हारे होंठ पर गुनगुनाता गीत हूं मैं ।।

बिजलियों की बेवफ़ाई से मायूस मत होना ।

मैं बरसता हुआ बादल हूं शीत हूं मैं ।।

नफरतें फिर मुहब्बत में बदल जायेंगी ।

तुम मेरी ओर तो देखो प्रीत हूं मैं ।।

सहोदर की कलाई पर बंधी राखी बताती है ।

निभाई जा सके जो भी हमेशा रीत हूं मैं ।।

***

23

समंदर सीप लहरें और किनारे है ।

गगन में चांद सूरज और सितारे हैं ।।

चमन मैं फूल भंवरे और पंछी गुनगुनाते हैं ।

अकेला तू कहां कितने अभी तेरे सहारे हैं ।।

कितने गुमनाम चेहरों में तू इक पहचान रखता है ।

तू अब मायूस ना होना तुझे कुछ गीत गाने हैं ।।

सियासत के गलीचों में तरक्की अब नहीं मिलती ।

उनके झूठे वादे हैं और नारे हैं ।।

सहोदर तू कलम का है सिपाही डर नहीं सकता ।

वतन के चाहने वालों के अंदाज निराले हैं ।।

***

मधुसूदनगढ़, जिला - गुना (म.प्र.)