तेरी कोई खोज नहीं है
- आनन्द सहोदर
1
मां सरस्वती वंदन है ।
गूंजे वीणा तार तार
स्वर होता उर के आर-पार पार
झंकार अवनि अंबर पताल
वीणा करती क्रंदन है
मां सरस्वती वंदन है ।
कल कल कलरव
मर मर झरझर
जीवन है मां जैसे निर्झर
मां आंचल में आलोक ज्ञान
सुरभित वायु चंदन है
मां सरस्वती वंदन है ।
2
हे बंधु तुम्हें निष्काम सुमन ,
तन मन प्राणों का अर्पण है ।
नैनों के गंगाजल में घुला ,
भावों का सुंदर चंदन है ।।
अर्पण नैनो का अंबर है ,
शोभित तन पर पीतांबर है ।
न्योछावर हूं न्योछावर हूं ,
करकमलों में प्रभु वंदन है ।।
वाणी दधि मधु मन तुलसी है ,
हरि प्रेम सुंदर चरणामृत ।
आ जाओ सहोदर हृदयासन ,
कितना प्यारा अभिनंदन है ।।
श्रीवत्स ह्रदय में चरण पद्म ,
आयुध भुजचार सुशोभित है ।
देखें अक्रूर कालिंदी में ,
वसुदेव देवकीनंदन है ।।
3
जा दिन से प्रभु तुमहि पधारे ।
ता दिन से उर कुंज निकुंज में
फूल खिले बहु सारे ,
मन मधुकर कर चरण कमलमें
भ्रमत-भ्रमत नहिं हारे ।
निज जन जान करी कछु कृपा
कुटिल कलुष मिटेसारे,
तन-मन पुलक रोम भये ठाणे
नैना दर्शन नहिं अघारे ।
जीवन तब अनमोल रतन छवि
मध्य मगन ह्वै जा रे ,
करुण पुकार सुनी तो सहोदर
रुक ना सके प्रभु प्यारे ।
4
क्या किया है तूने नर बनकर
श्री राम को अगर पुकारा नहीं ,
पीकर निशदिन हरि नाम रतन
जीवन अनमोल सुधारा नहीं ।
संसार आसार बिना हरि के
दुख द्वंद के जाल बने सगरे ,
सांचा अमृत हरि चरणामृत
पी ले मन मोह महा तजके ।
कंचन सी काया पाकर के
भवसूल को अगर उखाड़ा नहीं ,
क्या किया है तूने नर बनकर
श्रीराम को अगर पुकारा नहीं ।
बस राम सहोदर राम भजो
श्रीराम के नाम में कितनो मजो ,
हरि सो हीरा पहनो हिय में
अब बहुत भयो संसार तजो ।
खेले नैया इतनी पागल
भवसागर पार लगाय सके ,
क्या किया है तूने नर बनकर
श्रीराम को अगर पुकारा नहीं ।
5
राम रतन है राम जतन है ,
राम मगन है राम चमन है ।
राम गगन है राम सकल है ,
राम राम है राम राम है ।।
राम बंधु है सखा राम है
पिता राम है मात राम है ।
राम लक्ष्मण भरत शत्रुहन
रामसिया है पियाराम है ।।
जिसका तनमन रामरंगा है ,
उसनेे जीवन राम जिया है ।
जिसके मन में राम से प्रीति
उसका जीवन धन्य हुआ है ।।
6
मन मंदिर में राम तुम्हीं हो
जीवन का आधार तुम्हीं हो ,
जपें निरंतर नाम तुम्हारे
कर्म भक्ति तप त्याग तुम्ही हो ।
अत्याचारी दानव दल से
लोहा लेना सिखलाया है ,
मनुज चरित धरती पर करके
जीवन का पथ दिखलाया है ।
केवट को भी गले लगाया
शबरी का झूठा स्वीकारा ,
गीध रीछ बन्दर भालु से
तुमने कितना नेह बढ़ाया ।
श्री राम के आदर्शों को
जिसने जीवन में अपनाया
पाया है सम्मान जगत में
श्रीराम सा वह कहलाया ।
7
श्री रामदूत हनुमान का यश प्रेम से तुम गाइए।
श्री राम भक्त हनुमान को तुम बार-बार मनाईए ।।
जय पवनसुत बलबुद्धि और विवेक के निधान हो
हे अंजनी के लाल तुम हे वीर केसरी लाल हो ।
अपने सकल कलिकलुष को तुम आज ही मिटाइए ,
श्रीरामदूत हनुमान का यश प्रेम से तुम गाइए ।।
हैं असुर सुर नर नाग किन्नर तेरे बल को जानते ,
श्री राम जी भी अपने मुख से बल तेरा बखानते । हृदय में तुम हनुमान के श्रीराम जी को ध्याईये ,
श्रीरामदूत हनुमान का यश प्रेमसे से तुम गाइए ।।
है कोई ऐसा सृष्टि में जो तुमसे जी बलवान है ,
मैं क्या कहूं प्रभु तेरे बल को तेरा बन श्रीराम है ।
यदि कृपा चाहो राम की हनुमान को मनाइए
श्री रामदूत हनुमान का यश प्रेम से तुम गाइए ।।
8
भजले प्राणी संघर्ष शंकर शंकर
मन मतवाला भज अभयंकर ।
हो रहा जगत में हर-हर हर
जित देखो तित शंकर शंकर ।।
भजले......।।
जब गंगतरंग उठे मन में
शंकर शंकर तू जपे मन में ।
डर नहीं किसी का है जग में
हर संकट को हरता शंकर ।।
भजले....।।
शंकर शंकर का शंखनाद
जब बोल उठे तेरे उर में ।
मद मान मोह पाखंड भगें
सुधरे जीवन यह क्षण भंगुर ।।
भजले....।।
मन मत्त हुआ अमृत पीकर
शंकर का चरणामृत पीकर ।
शंकर शंकर शंकर शंकर
मैं कहता हूं शंकर शंकर।।
भजले.....।।
9
भज प्यारे तू भज प्यारे तू भज भोले भंडारी ।।
हरि ने हर का नाम जपा तो बने सुदर्शनधारी ,
गौरा भी भजकर शंकर को बन बैठी कल्याणी ।
गंगा का भी नाम जगत में अमर हुआ है तब से ,
जबसे शंकर जटासमाई कहलाईं कलिमलहारी ।।
भज प्यारे तू ।।
भक्तों को आनंद देने वह चंद्रमौली कहलाते हैं
संकट समाज का हरने वह नीलकंठ बन जाते हैं । अंग भवभूति अखंड समाधी लगी हुई है जिनकी , जीवन सुचि तेरा हो जाए भजले प्यारे तू कामारी ।।
भज प्यारे तू ।।
डमडम डमरु डमडम डमरु जब शंकर का बज जाता है ,
जग को साॅबर वर देने उनका तांडव हो जाता है । ज्योतिर्मय शिव शंकर ही हैं तेरी जीवन ज्योति ,
निर्भय होकर भजले प्यारे भवभय हारी है त्रिपुरारी ।।
भज प्यारे तू ।।
10
तेरे चरणों अविनाशी
होली अब ना मोसे उसे खेल ।
रंग बिरंगी होली आई
मन ने प्रियतम प्रीत लगाई ,
करना हो तो कर ले प्यारी
तू भी मुझसे प्रेम सगाई ,
वरना चली जाएगी इक दिन
इस जीवन की रेल ।
तेरे चरण पढूं अविनाशी............
इस जीवन की नौका डगमग
होली है कैसी है भगवन ,
माया मोह की पिचकारी से
जग में मेरा रंगा हैं तन मन ,
खूंटी से बंधवा दे इसको
मन है अड़ियल बैल ।
तेरे चरण पढूं अविनाशी.............
होली है आंखों की धारा
मन प्रहलाद बना जो प्यारा ,
चमकेगा इक दिन ध्रुव तारा
बरसेगी अविचल रसधारा ,
फतेह सिंह जोरावर जैसा
धोधे मन का मेल ।
तेरे चरणों अविनाशी
होली अब ना मोसे खेल ।
11
होली की धूलेड़ी में
धूल में सनो है तन
चंदन की सौंध यामे
गंध मकरंद की है।
भारत की माटी में
ममता है माता की
तभी धूल धूसर हुए
राम और कृष्ण है।
देश की माटी को
मस्तक पे धारू में
मोहूं को लगे है
भवभूति भगवान की ।
रंग है गुलाल है
अबीर वीर मस्तक पे
सब कुछ धूल धरे
भूलि भूलि फिरें हैं ।
12
तेरी कोई खोज नहीं है तेरा दर्शन कठिन नहीं है ।
तू मेरे पीछे से हटजा मुझसे कुछ भी छिपा नहीं है ।।
मैं मीरा की तड़फ खोजता विष का प्याला पीकर।
मैं शबरी का प्रेम खोजता झूठे बेर खिलाकर ।।
मैं कबीर का ज्ञान खोजता साखी शबद रमैनी पढ़कर ।
तुलसी की भक्ति को खोजता मानस की चौपाई पढ़कर ।।
गौतम की करुणा को खोजता हंसों के जोड़े पर रोकर ।
भीष्मपिता का शौर्य खोजता कांटों की सैया पर सोकर ।।
नानक की वाणी को खोजता गुरुग्रंथ साहिब पढ़कर ।
श्री कृष्ण का योग खोजता गीता की वाणी को सुनकर ।।
मधुसूदनगढ़ , जिला- गुना ( म.प्र.)
anandsinghgurjar99@gmail.com