रात के बारा बज रहे थे!
अंधेरा जमी पर उतर आया था!
गुलशन की अम्मी ईधर उधर बेसब्री से धूम रही थीं!
उसके चहेरे पर परेशानी के भाव मंडरा रहे थे उसके मनमे आज बेचेनी थी!
चार पांच बार वो अपने शौहर को बता चूकि थी कि जब से गुलशन जिया के घर से वापस लौटी है तब से वो कुछ बदली बदली सी लग रही है...!
वहाँ से आने के बाद एक भी बार वो अपने कमरे से बाहर नही निकली..!
तब उनके शौहर ने एक दो बार कहा भी की थक गई होगी तो आराम करती होगी अपने कमरे मे..!"
पर अब बात आपे से बहार थी सूब्हा से उसने खाना भी नही खाया था!
रात को भी वो खाने पर नही आई!
तो उसकी अम्मी को टेन्शन होने लगी!
वह उसके कमरे के डोर तक पहूंची..!
दस बजे उसे बुलाने आई थी तब वो गेहरी निंद मे सो रही थी!
उसे आवाज लगाई पर वो उठी नही थी!
मगर अब उन्हे टेन्शन होने लगी थी!
रोज रात को ग्यारा बजे तक वो टी.वी पर उसके फेवरेट प्रोग्राम देखती!
उसके बाद खाना खाती फिर सोती!
पर आज क्या हूवा था उसे की वहां से आने के बाद वो एक भी बार कमरे से बाहर नही निकली थी!
जब गुलशन की माँ ने देखा की उसके कमरे का डोर अभी भी बंद है !
उसे लगा कमरे से हल्की सी आवास आ रही थी ईस वक्त उसके कमरे मे कौन हो सकता है..?
उनके चहेरे की लकिरे तंग हो गई!
वो खिडकी की और बढी!
वो जानती थी की खिडकी में एक छोटी सी जुर्री है! जहां से भीतर का नजारा देखा जा सकता है!
खिडकी के पास पहूंच कर पर्दा हटाकर उन्होने अपनी नजरे उस छोटी सी जुर्री पर सटा दी.!
भीतर का नजारा देखकर एक बार वहां से उन्होने आंखे हटाली!
उन्हे यकिन नही हो रहा था!
अपनी तसल्ली के लिये फिरसे वो देखने लगी !
वही नजारा था!
अपनी बेड पर गुलशन बीलकूल निर्वस्त्र पडी थी!
उसके दोनो हाथ किसीने जकड रखे हो ईस तरह उपर की और फैले हूये थे!
दोनो पैर भी विरुध्ध दिशा मे फैले थे और उन पैरो मे हल्की हल्की हिलचाल थी!
गुलशन दर्द से बार बार कराह रही थी उसके होठ बार बार खुल रहे थे सिकूड रहे थे!
उन्हे समजते देर न लगी की गुलशन के साथ क्या हो रहा था!
उसके बिस्तर पर गुलशन के साथ जरुर कोई था !
वो किसी साये के साथ हम बिस्तर थी..!
'या अल्लाह..!'
उनके मुख से दर्द निकला जैसे!
एसी बात अपने शोहर को वो बता नही सकती थी! और अपनी बच्ची को ईस हाल मे उसके बाप को दिखाना बडी शर्म की बात थी!
ईस लिये ईतना कुछ देखने के बाद भी वो कसमसा कर रेह गई!
उनको निंद नही आ ऱही थी तो उनके शोहर ने कहा
क्यो ईतना परेशान हो रही हो तूम वो शायद जिया के घर से खाना खाकर ही आई होगी!
ईस लिये वो खाने पर नही आई..!
डॉंन्ट वरी..!
पर वो शौहर से क्या कहेती ...!
यही की जाऔ अपनी बच्ची को जाकर देखो...! कैसे तडप रही है वो...?
औऱ क्या हो रहा है उसके साथ..?'
वह चूप हो गई थी!
जैसे गहेरी सोच मे डूब गई हो!
"अब बच्ची को कैसे बचाया जाए ?"
वही सवाल उनके मनमे खदक रहा था!
गुलशन की अम्मी वो नजारा देखकर खौफजदा हूई! जेसे पलटी वैसे ही उसकी सांसे रूक सी गई!
चिखना था फिरभी हलक से चीख न निकली!
वो क्या देख रही थी तौबा.. ¡
ठीक उसके सामने गुलशन खडी थी¡
गुलशन की अम्मी को एक बार कमरे मे देखने की¡ जिग्यासा हूई¡
पर उसकी हिम्मत ना हूई!
गुलशन का नग्न देह उसकी आँखोमे चुभ रहा था.!
किसी औरने गुलशन को ईस रुपमे देख लिया तो..?
फिलहाल ईस वक्त उन्हे डर गुलशन से लगा!
वो अपनी बडी बडी आंखो से अपनी अम्मी को देख रही थी!
"क्या देख ऱही हो बूढीया..?"
अपनी बेटी के मुखसे एसी बात सूनकर गुलशन की मां तिलमिला उठी!
उसकी जबान तालु से जा चिपकी थी!
उसके मुहसे गेंगें फेंफें होने लगी.!
गुलशन ईस वक्त जैसे होशोहवास मे नही थी!
वो आगे बढी !
उसकी आंखे गुस्से से लाल हो गई थी!
तेरी हिम्मत कैसे हुई हमारे कमरे मे झांकने की..?
गुलशन की मां हडबडाकर पीछे की और भागी !
गुलशन उसका पीछा करने लगी,
उसकी मा काफी हद तक गभरा गई थी!
गेलरी मे लेम्प की मध्यिम रोशनी थी!
ईस वक्त किसी को भी ना देखकर गुलशन की मा को लगा जैसे अब ये जान ले लेगी!
वो अपनी जान बचाकर आगे के कमरे मे धुस गई!
उसकी सांसे तेजी से चल रही थी!
यह कमरा पूरी तरह खाली था!
एक बेड थी!
दो बडेबडे सोफे थे!
दीवारो पर परदे की सरसराहट थी!
औऱ जान लेने वाला सन्नाटा था!
दरवाजे को चटखनी चढाकर वो लंबी लंबी सांसे ले रही थी!
डर उस पर ईस तरह हावी था की वो बार बार पूरे कमरे मे नजरे धुमा लेती थी!
उसकी बेटी अब कोई पाशवी शक्ति के शिकंजे मे फँसी थी!
वो कीसी को पहेचान नही रही थी!
किसी की भी जान लेने पर वो आमदा थी!
उसका भरोसा करना मतलब मौत को जान बूज कर दावत देना था!
गुलशन की मां बडी कश्मकश मे थी की
कैसे अपनी जान बचा कर यहां से निकला जाये!
वो नजरे गडाये बाहर मौजुद हो सकती है!
कोई औऱ आ गया तो गुलशन उन्हे भी अपने लपेटे मे ले सकती थी!
ईस वक्त उसके रास्ते मे जो भी आये वो बख्शने वाली नही थी
गुलशन की मां ने हिम्मत करके फिर से दरवाजा खोला..!
गेलेरी सूनसान थी!
कोई भी चहलपहल नही थी!
सब कमरो के दरवाजे बंद थे!
गुलशन की मा को ईस वक्त दौड लगाकर अपने कमरे मे धुस जाना ठीक लगा..!
वो भागी!
जैसे अभी भी उनके पीछे भूत पडा न हो...!
वो अपने कमरे मे धूसी की उसकी रूह डर से कांप उठी!
उसके सामने बडा ही खौफनाक द्रश्य मौजुद था..!
वो अपनी जगह पर ही कांपने लगी!
(क्रमश:)
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