गुनाहों का शहर - 3
"एक बात बताओ मंजरी तुम जानती होंगी। राकेश ने बल्ब निकालने के लिए क्या इसी स्टूल का इस्तेमाल किया था?" पुरुषोत्तम ने पूछा।
"नहीं साब। नीचे जाती सीढ़ियों के नीचे एक दस फूट की लकड़ी की सीढ़ी रखी है। उसका इस्तेमाल किया था। पुरुषोत्तम जल्दी से वो सीढ़ी ऊपर ले आया। उसने सीढ़ी बल्ब के पास लगाया और उसपर चढ़ गया। फिर एक छोटे औजार से होल्डर को खोला और बड़ी मशक्कत से उसमे से एक छोटा सा यंत्र निकाला। और उसे संभाल कर अपने पास रख लिया।
"यह क्या है साब!" मंजरी ने पूछा।
"तुम्हे इसकी खबर नहीं है।" पुरुषोत्तम ने हैरानी से पूछा।
"सच में साब मुझे नहीं पता।"
"कोई बात नहीं। अब जैसा वो लोग तुम्हे करने को कहे तुम वैसा ही तुम करना। उन्हें यह खबर नहीं होनी चाहिए कि मुझे उनके बारे पता हो चुका है।"
"जी साब" मंजरी ने कहा।
"अब मैं चलता हूँ। और मेरा आज का टिफ़िन तुम्हारे नाम" पुरुषोत्तम ने कहा।
"ये सिर्फ आपका है साब" मंजरी ने कहा।
"सिर्फ मेरा?! तुम इसे खा सकती हो इट्स ओके।"
"इसमें ज़हर है साब!"
"क्या!" पुरुषोत्तम हैरान था।
"हा साब। इस खाने में ज़हर मिला है।"
"अब तुम्हे इस बारे में भी कोई जानकारी नहीं होगी।" पुरुषोत्तम ने पूछा।
"नहीं साब। इतना पता था। ज़हर डाला जाएगा आज के खाने में, लेकिन कौन डालेगा इसकी खबर नहीं है।" मंजरी ने कहा।
"यानी मुझे फसाने की और मारने की दोनों तैयारी हो चुकी थी। जो यंत्र कमरे के होल्डर में से मिला है शायद वो एक कैमरा है। जिसमें सब रिकॉर्ड हो गया। फिर उसकी फ़िल्म को बादमे इस तरह काट-छाट किया जाता कि यूँ लगे क़त्ल मैंने किया हो। वो भी नकली क़त्ल। नकली क़त्ल के एवज में असली क़त्ल की सज़ा। और सज़ा से पहले मौत। लांछन भी और मौत भी।
पुरुषोत्तम ने टिफ़िन को भी अपने साथ रख लिया। "साब.." मंजरी बोल पड़ी। "अपुन बहुत शर्मिंदा है। ऐसा नहीं करना चाहिए था। दिल से माफी मांगती हूँ साब माफ करदो।" मंजरी ने भीगी आंखों से कहा।
"मुझे तुम्हारी आँखों में सच्चाई दिख रहीं है मंजरी। मुझे उम्मीद है तुम अब ऐसा कोई काम नहीं करोगी।"
पुरुषोत्तम अपना कुछ सामान और वर्दी को बैग में रखता हुआ बोलने लगा
"तुम एक अच्छी इंसान हो, अपना जीवन खुशी और प्यार ढूंढने में बिताओ इस तरह के कामों में नहीं। ये दुनिया बेहद खराब हैं। हम पुलिस वालों की, मुजरिमों की ज़िन्दगी कब थम जाए कह नहीं सकते। तुम तो एक आम नागरिक हो। जिंदगी को जियो मंजरी! इसे गुज़ारों मत चंद पैसों के लिए। खुशियां ढूंढो। जो तुम्हे हर जगह मिलेगी। सभी चेहरों में मिलेगी। खुदमें मिलेगी।"
पुरुषोत्तम ने कहा। और एक पल मंजरी की आंखों में देखकर वहां से विदा हो गया। मंजरी के गालों पर फिर आंसुओं ने लकीर बना दी। वो पुरुषोत्तम को जाते देखती रही।
***
पुरुषोत्तम ने काला मोहल्ला से बीस मिनट की दूरी पर स्थित एक होटल में कमरा लिया। रात दस के आस-पास पुरुषोत्तम का दोस्त होटल पहुंचा। जिसका नाम अजय है। एक पच्चीस से सत्ताईस साल का इंसान। बाल कंधे तक बड़े और क्लीन शेव। अजय जासूस कम और मॉडल ज़्यादा नज़र आता था। पुरुषोत्तम ने उसे सारी बात बताई।
"अच्छा!" अजय कहने के साथ-साथ खाने और पीने का इंतज़ाम कर रहा था। पलंग पर ही उसने एक छोटा टेबल लगाकर उसपर सारा सामान रख दिया। दो सिल्वर फॉयल के पैकेट खोलकर रख दिये। जिनमें फ्राइड चिकन था। सोड़ा बोटल और जेम्सन के दो पैग बनाएं।
"तुम जानते हो फिर भी तुमने दो पैग क्यों बनाएं?" पुरुषोत्तम ने सवाल किया।
"जानता हूँ। लेकिन जीवन में कभी-कभी कुछ परिस्थितियां ऐसी आती है। जब हम इन सब चीजों से ऊपर उठ जाते है। महंगी शराब और चिकन खाने वाला इंसान बुरा नहीं होता। फिर ऑप्शन है तुम्हारे पास। नहीं पीना चाहो तो न पियो।" अजय व्हिस्की के कुछ सिप पीकर बोला।
पुरुषोत्तम अपने इस फैसले के चलते दिमाग पर ज़ोर दे बैठा था। इंसानों के उसूलों पर शायद ही कोई शैतान हावी हो सका है। जो उसकी राह भटका दे। इंसान अपनी गलती से खुदको खोता है। उसे विश्व की कोई चीज भटका नहीं सकती जब तक वह खुद भटकना नहीं चाहता। खुद इंसान अपनी मर्ज़ी से दलदल में फंसता है। पुरुषोत्तम के सामने उसका समर्पित जीवन और उस पर मंडराता बड़े लोगों का खतरा घूम रहा था। उसने व्हिस्की का पैग उठाया। और एक ही बार में पूरा गटक गया।
"आराम से जनाब" अजय ने कहा।
"सिगरेट लाए हो?" पुरुषोत्तम ने पूछा। जिसकी बात पर अजय की बरबस हंसी निकल गई।
महफ़िल खत्म होने के बाद पुरुषोत्तम ने फिर अजय का ध्यान दोनों चीजों पर केंद्रित करना चाहा।
अजय ने पहले कैमरे नुमा यंत्र को जांचना चाहा।
"ये तो एक माइक्रो कैमरा है।" अजय ने कहा। फिर उसने अपने बैग से मेग्नीफाइन ग्लास निकाला और माइक्रो कैमरे को बड़ी बारीकी से जांचा। "एक स्वचालित माइक्रो कैमरा। जो सिर्फ तस्वीरे लेने में सक्षम है।" अजय ने बताया।
"क्या हम इसकी तस्वीरें देख सकते है?" पुरुषोत्तम ने पूछा।
"ज़रूर क्यों नहीं।" अजय ने अपने एक अन्य बैग से एक यंत्र निकाला। कैमरे को उस यंत्र से जोड़ा और कुछ बटन दबाएं। फिर उस यंत्र की स्क्रीन पर तस्वीरें दिखने लगी।
उसमे हमला हुए दिन से आज तक सारी तस्वीरें थी।
"ये हर दो मिनट में तस्वीरें निकालता था।" अजय ने कहा।
"क्या इसे किसी और जगह से नियंत्रित किया जा रहा था।" पुरुषोत्तम ने पूछा।
"नहीं। जैसा मैंने बताया यह स्वचालित है। एक बार इसे फिट करके छोड़ दो। फिर ये अपना काम करता रहेगा।" अजय ने कहा।
"और इस खाने में मौजूद ज़हर का कुछ करवा सकते हो।" पुरुषोत्तम ने पूछा।
"मैं सुबह होते ही इसके नमूने जांच के लिए ले जाऊंगा। मैं तुम्हारी हर मदत करूँगा। निश्चिंत होकर सो जाओ। मैं तुम्हारे साथ हूँ। हम इस केस को कुछ दिनों में ही पूरा करके क्लोज करवा देंगे।" अजय ने कहा। पुरुषोत्तम ने उसका शुक्रिया अदा किया। और सोने की कोशिश करने लगा।
***
अगली सुबह पुरुषोत्तम को अजय ने नींद से जगाया। पुरुषोत्तम देखा अजय तैयार हो चुका था। उसने घड़ी देखी दस बजकर सात मिनट हो रहे थे।
"मैंने खाने के नमूने अपने साथ ले लिए है। मैं कुछ घंटों में ही रिपोर्ट के साथ लौटता हूँ।" अजय ने कहा। और वहां से निकल गया। पुरुषोत्तम भी उठकर तैयार हो गया। जिसके लिए उसे लगभग एक घंटा लग गया। पुरुषोत्तम ने वर्दी पहनी और पुलिस स्टेशन के लिए रवाना हो गया।
"एस.आई पुरुषोत्तम रिपोर्टिंग सर।" पुरुषोत्तम ने डी.एस.पी नरेश को सलाम करते हुए कहा।
नरेश ने बिना उसकी ओर देखे उसके आगे एक लिफ़ाफा रख दिया। और फ़ोन पर किसी से बात करने लगा। एक क्षण दोनों की नज़रे मिली। नरेश ने उसे इशारे से लिफ़ाफा उठाकर जाने के लिए कहा।
प्रत्यक्ष पुरुषोत्तम जानता था। लिफ़ाफे में क्या है। उसने लिफ़ाफे को मोड़कर जेब में रख लिया। और काला मोहल्ला की ओर निकल पड़ा। वह मंजरी के मकान पर पहुंचा। मंजरी अब भी शर्मिंदा थी।
"क्या किसी ने तुमसे संपर्क किया?" पुरुषोत्तम ने पूछा।
"नहीं साब। अभी तक तो नहीं किया। पर शायद बंड्या से किया होगा।" मंजरी ने कहा।
"बंड्या कहाँ है।"
"अभी आता ही होगा साब।" मंजरी ने बताया।
"देखों में खुदको छुपा लेता हूँ। ज़रूर बंड्या मुझे देखकर भागने की कोशिश करेगा" पुरुषोत्तम ने कहा। "मैं यहां दरावजे के पास छुप जाता हूँ। मंजरी ने सहमति दी।
दस मिनट बाद बंड्या लौटा। मंजरी यूँ व्यवहार कर रहीं थी जैसे कुछ हुआ ही न हो। बंड्या के दरवाजा पार करते ही पुरुषोत्तम दरावजे के सामने खड़ा हो गया। बंड्या उसे देखकर बुरी तरह डरने लगा। पुरुषोत्तम ने मंजरी को भीतर बुलाया और दरवाजा बंद कर लिया।
"देखों बंड्या!" पुरुषोत्तम अपनी रिवॉल्वर निकालते हुए बोला "जो कुछ जानते हो एक ही सांस में बोल पड़ो। वरना मेरे पास इस रिवॉल्वर का लाइसेंस है। और मैं सच में तुम्हे शूट कर दूंगा।" पुरुषोत्तम ने कहा। बंड्या कांप कर रहा था। उसने एक बार मंजरी की तरफ देखा। फिर पसीना पोंछने लगा।
"राकेश सर आए थे और उन्हें ही मैंने चाबी दी थी। उन्होंने हमें पचास हजार दिए थे।" बंड्या ने कहा।
"दूसरा आदमी कौन था राकेश के साथ" पुरुषोत्तम ने पूछा।
"अपुन को सच में नहीं मालूम साब" बंड्या बोला। इसी के साथ पुरुषोत्तम ने उसकी ओर रिवॉल्वर तान दी। बंड्या और बुरी तरह कांपने लगा।
"नहीं पता तुम्हें। अगर तुम दोनों मुझसे कुछ छुपा रहे हो तो बता दो अब भी वक्त है।" पुरुषोत्तम ने चेतावनी दी।
"हमे सच में कुछ नहीं मालूम साब… अपुन..!
पुरुषोत्तम ने ट्रिगर दबा दिया।
"बंड्या! मंजरी की चीख निकल पड़ी। लेकिन जल्दी ही उसे एहसास हुआ रिवॉल्वर से गोली नहीं चली। बंड्या लगभग बेहोश हो चुका था। मंजरी ने उसे संभालकर एक लोहे के पलंग पर बैठा दिया।
"कोई संपर्क करे तो तुम मुझे इस फ़ोन नंबर पर फ़ोन करके बता देना। मुझे उम्मीद है तुम ऐसा ही करोगी" पुरुषोत्तम ने कहा। मंजरी ने हा में सिर हिलाया।
पुरुषोत्तम वहां से विदा हो गया।
***