(पुनः पूर्णविराम प्राप्त करती एक प्रेम-गाथा)
Full length Hindi Natak
PART-3
दूसरा अंक
[प्रथम दृश्य]
(रात्रि का समय है| राहुल लेपटाप पर काम कर रहा है| वहाँ प्रिया आ जाती है| राहुल खड़ा हो जाता है व प्रिया पर एक नजर डालता हुआ अपने कमरे की ओर जाता है |)
प्रिया : मुझे मालूम है कि आप मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे और आपका सोचना वाजिब भी है | आखिर मैंने आपको धोका दिया है न ? लेकिन राहुल जब तुम मेरी बात एक बार सुनोगे, तो तुम्हें भी मेरे प्रति ....
राहुल : तुम्हारे प्रति क्या ? (प्रिया की बात काटते हुए कहा ) विश्वास रखूँगा? क्षमा करूँगा ? भूल जाऊँगा कि तुमने तुम्हारे स्वार्थ के लिए मुझसे व मेरे प्रेम के साथ खेल खेला था ? और यह बच्चा किसका है ? जिसे तुम मेरा बता रही हो ? तुम्हें मालूम है न ? जब तक हम साथ रहे थे, तब तक अलग-अलग कमरों में रहते थे ? एक बार मुझ पर जो बीता, वह चाहे मैं भूल भी जाऊँ, लेकिन तुमने मेरी स्वर्गवासी पत्नी की आत्मा को भी दुःख पहुँचाया है| मेरी मनपसंद वस्तुओं को जानने के लिए तुमने उसकी डायरी का उपयोग किया ? शादी के पहले दिन ही तुमको दिया था न कि तुम्हें बातों को गोल-गोल घुमाने की आदत नहीं है, तो यदि उसी दिन तुमने अपने अरमान बता दिए होते तो मैं तुम्हें सहर्ष जाने देता | यह 7 दिनों को गुजारने का नाटक क्यों किया ?
(राहुल के तीक्ष्ण तीर जैसे सवालों ने प्रिया के आँसुओं के बाँध को तोड़ दिया और आँसूं तीव्र गति से बहने लगे |)
राहुल : प्रिया की मृत्यु के बाद मैंने स्वयं को समझा दिया था कि अब मैं पुनः प्रेम नहीं करूँगा ! उसके सिवाय मेरे दिल में किसी दूसरे की जगह नहीं हो सकती है | उसी धारणा से मैं जीवन गुजारने के लिए तैयार था | फिर तुम्हारे साथ शादी हुई और तुम्हारे साथ कुछ दिन हँसी-मजाक में गुजारे | उसके बाद मेरे दिल में तुमने जगह बना ली और मेरे दिल को पुनः प्रेम करने के लिए मजबूर कर दिया | प्रिया... मैं तुमसे प्रेम करने लगा था | तुम्हारे साथ जीवन गुजारने के सपने देखने लगा था| ( आँसू बहाकर बोला) लेकिन तुम तो मेरे साथ कपट करती थीं| कठपुतली की तरह नचाती थीं| तुम्हारे इस खेल में मेरी हार हुई है और सिर्फ मेरी ही हार हुई है | अब मेरे दिल में तुम्हारे लिए क्या... मेरे घर में भी जगह नहीं है| पिताजी को हार्ट-अटैक की बीमारी न होती तो तुम्हारी यह हकीकत उन्हें बताने में कुछ देर नहीं लगती ! जब तक माताजी-पिताजी यहाँ हैं, तब तक ही तुम यहाँ हो, उनके घर से जाने के बाद तुम भी जा सकती हो |
प्रिया : हाँ, राहुल ! चली जाऊँगी, तुम्हारे दिल से और तुम्हारे घर से भी, लेकिन एक बार मेरी भी बात सुन लो ! प्लीज ! अब मैं तुम्हें धोका नहीं दे रही हूँ |
राहुल : अब ? या पहले ! तुम्हारी बात सुनाने का तुम्हें कोई हक़ नहीं है ! मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि माँ-पिताजी ऐसा व्यवहार कैसे कर रहे हैं, मानो उन्हें यह पहले से ही मालूम हो कि तुम प्रेग्नेंट हो ?
प्रिया : हाँ मैंने माँ-पिताजी को कहा था कि मैं प्रेग्नेंट हूँ, क्योंकि मेरे पास ...
राहुल : यह कहा ? क्यों कहा ?(आँखों में उष्मा व आवाज में तीव्रता के साथ वह बोला)
प्रिया : हाँ, राहुल !यही कह रही हूँ कि तुम मेरी बात सुनना नहीं चाहते हो न?
राहुल : हाँ, बात नहीं सुनुँगा ! क्योंकि तुम मनघडंत कहानी घड़ने में होशियार हो | ऐसी कहानी घड़ कर सुनाओगी कि मैं भी सोचने के लिए मजबूर हो जाऊँगा| दूध का जला छाछ को भी फूँक मार कर पीता है| अब मैं तुम्हारी किसी भी बात में नहीं आऊँगा ! प्रिया, तुम्हारे जाने के बाद मैंने फिर अकेले रहने की आदत डाल ली थी| मैं तो तुम्हे भूल ही गया था और तुम फिर आ गई ! प्रिया, फिर तुम आई ही क्यों ?
प्रिया : राहुल ! तुम्हें कहूँ तो झूठा मानोगे, लेकिन मैं आई हूँ तुम्हारे लिए .... | तुम्हारे प्रेम के लिए ! हाँ, पर्ची में लिखा था कि अब मुझसे प्रेम नहीं होगा, लेकिन तुमसे जुदा होने के बाद मेरा तुम्हारे साथ फिर प्रेम हो गया है | राहुल आई लव यू |
राहुल : एकदम झूठ ! सरासर झूठ ! यदि तुम मुझे ही प्रेम करती तो यह बच्चा ? किसका लेकर फिर रही हो ? (झल्ला कर कहा)
प्रिया : हाँ, यह भी कहती हूँ, राहुल !
राहुल : चलो, एक और कहानी सुनने के लिए तैयार हो जाओ !
प्रिया : नहीं, यह हकीकत है |
राहुल : हकीकत तो यह है कि तुम जिस लड़के से प्रेम करती थी, उसने तुम्हें धोखा दिया होगा और उस लड़के ने अपना स्वार्थ सिद्ध होने के बाद तुमको छोड़ दिया होगा और उसका बच्चा लेकर मेरे घर आई हो और दूसरे का बच्चा मेरा बता रही हो |
प्रिया : ऐसा कुछ नहीं है ! मुझ पर विश्वास रखो ! आपको मेरी बात ....
राहुल : नहीं सुनना, तुम्हारी झूठी बात !
(पिताजी की आवाज आती है |)
पिताजी : अरे राहुल्ये ! क्या पार्ट टाईम गोरखा की नौकरी शुरू की है ? अरे सो जाओ, क्या बक-बक करते रहते हो !
राहुल : हाँ, पिताजी !
(प्रिया को फिर रोता हुआ छोड़कर राहुल अपने कमरे में जाता है |)
[अँधेरा]
[दूसरा दृश्य]
(पिताजी दरवाजे से परेशानी के साथ आते हैं |)
पिताजी : कैसा शहर है ? बैठने को जगह है, लेकिन छाँह नहीं है ! बड़ी-बड़ी सडकें तो हैं, लेकिन कायदा नहीं है ! चारों ओर ट्राफिक और ट्राफिक ! शांति की तलाश में निकलें तो शांतिभाई चाहे मिल जाए, लेकिन मन की शांति ढूँढना हो तो रुकावटें आती हैं |
(माताजी और प्रिया रसोईघर में से आते हैं |)
माँ : क्या हुआ सवेरे-सवेरे ?
पिताजी : अरे दुर्घटनाग्रस्त होते-होते बच गया 1 नहीं तो मेरी सुबह वहीं हो जाती ! अब समझ में ही नहीं आता है कि रोड पर चलना है या उस पर उड़ना है !
माँ : क्यों क्या हो गया ?
पिताजी : इस ट्राफिक लाईट के बारे में मुझ कुछ समझ में ही नहीं आता है | लाल लाईट हुई तो मैं समझा कि लाल कपड़े वाले जा सकेंगे, इसलिए मैंने भी लाल कुर्ता पहना, इसलिए मैं तो रोड क्रास करने के लिए गया और वहीं लाल गाड़ी आ गई और मैं किसी तरह बचा | अब समझ में आया कि लाल लाईट हो तो लाल गाड़ी वाले जा सकेंगे !
माँ : ओह, तुम अब शांति से घर में बैठो |
(राहुल आता है |)
पिताजी : अरे, घर बैठकर भी क्या करूँ ?
माँ : अरे, टीवी देख लो ! राहुल बेटा, पिताजी के लिए टीवी चालू कर दो|
राहुल : टी. .वी. ?
(माताजी और प्रिया रसोईघर में जाती हैं |)
पिताजी : चलो, तो फिर टी.वी ही देख लूँ |
राहुल : टी. वी. चालू करना है ? (परेशानीयुक्त आवाज में कहा )
पिताजी : हाँ, टी.वी. ही चालू करना है ! उसे उठाना नहीं है !
राहुल : ठीक है, पिताजी बैठो !
(राहुल धीरे-धीरे टी. वी. की ओर जाता है और टी. वी. चालू करने के लिए इधर-उधर के स्विच दबा कर कोशिश करता है, लेकिन टी. वी. चालू नहीं होता है|)
पिताजी : आज ही चालू हो जाएगा न ?
राहुल : हाँ, पिताजी ! बस अभी चालू हो जाएगा !
पिताजी : आखरी बार किस दिन चालू किया था ?
राहुल : एक्चुअली ! हम टी. वी. बहुत नहीं देखते हैं |
पिताजी : तो मेज पर भार रखने के लिए टी. वी. लाए हो |
राहुल : ऐसा नहीं है, पिताजी ...
पिताजी : चल अब रहने दे !
(रसोईघर में से माँ और प्रिया आती हैं |)
माँ : हमारा तो रसोई का सब काम निबट गया ! टी. वी. चालू हुई या नहीं ?
पिताजी : कहाँ चालू हुई ! कब से माथा-पच्ची कर रहा है ! मालूम नहीं, बाबा आदम के जमाने का टी. वी, लाया है |
माँ : ओह ! अब क्या करें ? खाली बैठना तो मुझे अच्छा नहीं लगता है !
प्रिया : रेडिओ चालू करते हैं !
(राहुल की ओर शर्मीली हास्य के साथ कहा और राहुल प्रिया को आँखें फाड़कर देखता है |)
पिताजी : हाँ, रेडिओ चालू करो !
राहुल : रेडिओ ?
पिताजी : रेडिओ तो तुम्हारे जमाने का है न ? चालू होगा न ?
राहुल : हाँ, पिताजी !
पिताजी : चलो, तो चालू करो !
राहुल : लेकिन पिताजी, इस वक्त अच्छे गीत नहीं आते हैं !
पिताजी : अच्छे गीत, मतलब ?
राहुल : मतलब कि इस दौर के धम-धमा-धम गीत !
पिताजी : सभी चैनलों पर ?
राहुल : नहीं ...
पिताजी : बस तुम रेडिओ चालू कर अपने कमरे में चले जाओ ! हम सुनेंगे वे धम-धमा-धम गीत ...
राहुल : यहीं हूँ | चालू करता हूँ !
(राहुल भगवान को प्रार्थना करता है, वैसा इशारा करता है |)
पिताजी : नारियल नहीं फोड़ना है ! रेडिओ ही चालू करना है !
राहुल : हाँ- हाँ, पिताजी !
(राहुल रेडिओ चालू करता है |)
पहला गीत : चढ़ गया ऊपर रे .... अटरिया पर लोटन कबूतर रे ....
(राहुल फटे हुए दूध जैसा चेहरा बनता है| माँ और प्रिया अंदर-अंदर हँसते हैं और पिताजी राहुल को आँखें फाड़-फाड़ कर देखते हैं |)
दूसरा गीत : सरकाई लो तकिया, जाड़ा लगे ?
(पिताजी सब ओर से चेहरा हटा कर जोर-जोर से गले से खिच... खिच करते हैं |)
(प्रिया राहुल की ओर शर्मीली मुस्कराहट से देखती है |)
(राहुल फिर चैनल बदलता है |)
तीसरा गीत : दरवाजा खुला छोड़ आई, नींद के मारे
(पिताजी सिर पर हाथ रखते है और राहुल फिर चैनल बदलता है |)
चौथा गीत : चोली के पीछे क्या है ? चूंदड़ी के नीचे क्या है ?
(माँ और प्रिया मन ही मन हँसते हैं और अब पिताजी अपने गुस्से को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं, इसलिए जोर से बोलते हैं |)
पिताजी : बंद करो, यह तुम्हारा नॉन-वेज रेडिओ !
(राहुल तुरंत रेडिओ बंद करता है |)
पिताजी : इससे तो ट्रेफिक की आवाज अच्छी है ! चलो, मैं तो अब वापिस लौटता हूँ
माँ : अरे खड़े रहो ! चलो टाईम पास करने के लिए अंत्याक्षरी खेलते हैं !
राहुल : क्या माँ ! टाईम पास करने के लिए हमेशा बस अंत्याक्षरी खेलना ?
पिताजी : तुम्हारे पास दूसरा कोई विकल्प है ?
राहुल : विकल्प ? (विचार करता है)
पिताजी : चलो, रहने दो अब ! हाँ, तो अंत्याक्षरी खेलते हैं !
माँ : चलो, तो अब टीम बना लेते हैं ! मैं और प्रिया एक टीम में !
पिताजी : आहा.... हां.... मुझे मालूम है कि स्त्रियों को गीत बहुत आते हैं, इसलिए प्रिया को तुमने अपनी टीम में ले लिया और राहुल जैसा कच्चा नींबु को मेरी टीम में धकेल दिया !
राहुल : कच्चा नींबु ??
पिताजी : प्रिया मेरी टीम में हो, तब ही मैं खेलूँगा, नहीं तो....
माँ : हां, ठीक है ! प्रिया आपकी टीम में, बस ! राहुल, तुम मेरी टीम में, हम जीत जाएँगे न !
राहुल : लेकिन माँ मुझे नहीं खेलना है |
पिताजी : मौन व्रत है ? या रविवार को ऑफिस जाना है ?
राहुल : नहीं
पिताजी : चलो रहने दो अब ! चलो खेलो !
(शांति आंटी आती हैं |)
शांति आंटी : क्या खेलने की बात चल रही है ? मैं भी खेलूँगी !
माँ : अरे शांति ! अंत्याक्षरी खेलने की तैयारी कर रहे हैं ! टीम तो दो-दो सदस्यों की बन गई है, तुम कैसे खेल सकती हो ?
शांति आंटी : ओह... हो, मुझे भी खेलना था !
पिताजी : तुम जज बन जाओ !
शांति आंटी : जज ? जो आर्डर... आर्डर करे, लेकिन उस आर्डर को कोई माने नहीं, वही न ?
पिताजी : इस शांति को क्या पीलिया हो गया है ? इसे कोई समझाओ !
प्रिया : मेरे पास एक आईडिया है |
शांति आंटी : मेरे पास वोडाफोन है |
प्रिया : ओह आंटी ! मैं यह कह रही थी कि मेरे पास एक आईडिया है, जिसमें टीम बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ती है !
शांति आंटी : वह कैसे ?
प्रिया : यदि हम एक अलग तरीके से अंत्याक्षरी खेलें तो ! देखिए, हम अंत्याक्षरी अंतिम अक्षर से खेलते हैं न ? यहाँ हम अक्षर से नहीं बल्कि शब्द से खेलेंगे |
माँ : प्रिया, कुछ समझ में नहीं आया |
प्रिया : हाँ माँ समझाती हूँ | प्रत्येक सदस्य चिठ्ठी में गीत से संबंधित एक शब्द लिखेगा और उसे इस बॉक्स में डाल देगा| उदाहरण के लिए मैंने चिठ्ठी में शब्द लिखा ‘गगन’ और वह चिठ्ठी शांति आंटी ने उठाई, तो उन्हें ‘गगन’ का कोई गीत गाना पड़ेगा| जैसे कि ‘नीले गगन के तले, धरती का प्यार पले’, सबको मालूम हो गया न ?
(सब सहमति प्रदर्शित करते हैं|)
प्रिया : और जिसे इस शब्द का गीत नहीं आता होगा, वह हार जाएगा और जिसे आएगा, वह खेल में रहेगा और जो अंत तक रहेगा, वह जीतेगा ! बोलिए, ठीक है न ?
शांति आंटी : हाँ, एकदम ठीक है |
पिताजी : राहुल, तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं है न ?
राहुल : मुझे ! कोई आपत्ति तो नहीं है |
प्रिया : चलो, तो ये लें चिठ्ठी और गीत के लिए एक शब्द लिखकर बॉक्स में डाल दें |
(सभी अपनी चिठ्ठी में खूब सोच-विचारकर शब्द लिखते हैं व एक-एक कर चिठ्ठियाँ डालते हैं |)
शांति आंटी : चलिए, यह काम पूरा हुआ, अब पहली चिठ्ठी कौन उठाएगा ?
पिताजी : कौन क्या ? पहली चिठ्ठी राहुल उठाएगा !
राहुल : अरे ! ऐसा थोड़े ही चलेगा ! माँ, समझाओ न !
माँ : हाँ ! समझाती हूँ ! प्रिया, तुम्हीं बताओ, पहली चिठ्ठी कौन उठाएगा ?
प्रिया : छोटों से ही शुरू करते हैं ? मैं सबसे छोटी हूँ, तो पहली चिठ्ठी मैं उठाऊँगी और मेरे बाद राहुल और फिर शांति आंटी और उसके बाद माँ-पिताजी उठाएँगे ! ठीक है न ?
पिताजी : अब राहुल को कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए !
राहुल : हाँ, मुझे ही सब आपत्तियाँ हैं ! (धीमे से बड़बड़ाया)
पिताजी : क्या बोले ?
राहुल : कोई आपत्ति नहीं, पिताजी ! चालू करें |
प्रिया : लेकिन प्रत्येक खेल के कुछ नियम होते हैं, उसी तरह इस अंत्याक्षरी के भी नियम हैं | नियम : कोई किसी दूसरे की मदद नहीं कर सकेगा, सब एक साथ ही चिठ्ठी उठाएँगे, लेकिन चिठ्ठी का शब्द तब ही पढ़ा जाएगा, जब स्वयं एक गीत गा चुका होगा | समझ गए ?
(सब पुनः सहमति दर्शाते हैं और अंत्याक्षरी चालू हो जाती हैं |)
(प्रिय बॉक्स में से एक चिठ्ठी उठाती है और उसमें लिखे नाम का उच्चारण करती है |)
प्रिया : ‘जीवन’
(प्रिया गीत गाती है)
‘मेरी साँसों में है तू समाया
मेरा जीवन तो ई तेरा साया
तेरी पूजा मैं तू करूँ हमदम
ये है तेरे करम, कभी खुशी कभी गम’
(दूसरी चिठ्ठी राहुल उठाता है और चिठ्ठी में लिखे शब्द का उच्चारण करता है |)
राहुल : ‘दिल’
(राहुल गीत गाता है)
‘दिल मेरा चुराया क्यूँ
जब ये दिल तोड़ना ही थी
हमसे दिल लगाया क्यूँ
जब यह मुँह मोड़ना ही था
(तीसरी चिठ्ठी शांति आंटी उठाती हैं और शब्द का उच्चारण करती हैं |)
शांति आंटी : ‘दीवाना’
गीत:
‘ये मेरा दिल, प्यार का दीवाना
दीवाना, दीवाना, प्यार का मस्ताना
मुश्किल है प्यारे, तेरा बच कर जाना
ये मेरा दिल, प्यार का दीवाना
(चौथी पर्ची माँ उठाती है, और पर्ची में लिखे शब्द का उच्चारण करती है|)
माँ : शक्ति
गीत:
‘इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना
हमें चले नेक रास्ते, हम से कोई भूल हो ना’
(पाँचवीं पर्ची पिताजी उठाते हैं, और पर्ची में लिखे शब्द का उच्चारण करते हैं)
पिताजी : डॉन
गीत:
‘अरे दीवानों, मुझे पहचानों
कहाँ से आया, मैं हूँ कौन ?
मैं हूँ कौन ? मैं हूँ कौन ? मैं हूँ मैं हूँ मैं हूँ डॉन ?
(प्रिया पर्ची उठाती है, और शब्द का उच्चारण करती है- बाबुल|)
गीत:
मैं तो छोड़ चली, बाबुल का देश, पिया का घर प्यारा लगे,
कोई मैके को दे दो, सन्देश, पिया का घर प्यारा लगे,
(राहुल की ओर इशारा करती है)
(राहुल पर्ची उठाता हैं, और शब्द का उच्चारण करता है|)
गीत:
‘तड़प-तड़प के इस दिल से आह निकलती रही,
मुझको सजा दी प्यार की, ऐसा क्या गुनाह किया ?
तो लुट गए, हाँ लुट गए हम तेरी मोहब्बत में’
(आंटी पर्ची उठाती है, और शब्द का उच्चारण करती है- ‘हुस्न’)
गीत:
‘आ जाने जा, मेरा ये हुस्न जवाँ-जवाँ’
तेरे लिए ही आस लगाए, ओ जालिम आ जाना’
(माँ पर्ची उठाती है, और शब्द का उच्चारण करती है- ‘नगमा ’)
गीत:
एक प्यार का नगमा है,
दो दिन की जवानी है,
जिंदगी और कुछ नहीं, तेरा- मेरी कहानी है|’
(पिताजी पर्ची उठाते हैं, और शब्द का उच्चारण करते हैं- ‘रंग’)
गीत:
गोरे रंग पर न इतना गुमान कर
गोरा रंग दो दिन में ढल जाएगा,
(शांति आंटी की ओर इशारा करते हैं)
मैं शमा हूँ, तू है परवाना,
मुझ से पहले तू जल जाएगा,
(यह कड़ी शांति आंटी गाती हैं)
(प्रिया पर्ची उठाती है, और पर्ची में शब्द आता है- ‘बंधन’|)
गीत:
‘तेरे मेरे बीच में, तेरे मेरे बीच में,,
कैसा है यह बंधन अनजाना,
मैंने नहीं जाना, तूने नहीं जाना’
(राहुल पर्ची उठाता हैं, और पर्ची में शब्द आता है- ‘गलियाँ’)
गीत:
‘तेरी गलियों में न रखेंगे, कदम आज के बाद
तेरे मिलने को न आएँगे, सनम आज के बाद,
तेरी गलियों में....’
(आंटी पर्ची उठाती है, और पर्ची में शब्द आता है- ‘समुन्दर’)
गीत:
सात समुंदर पार मैं तेरे पीछे-पीछे आ गई, तेरे पीछे-पीछे आ गई,
ओ जुल्मी मेरी जान, तेरे क़दमों के नीचे आ गई,
सात समुंदर पार मैं तेरे पीछे-पीछे आ गई,’
(माँ पर्ची उठाती है, और पर्ची में शब्द आता है- ‘चिकनी चमेली’)
माँ : यह कैसा शब्द ‘चिकनी चमेली’ ? ‘छींकनी’ तो सुना था,, यह तो पहली बार सुना ?
(सब माँ को कुछ समझाने की कोशिश करते हैं, लेकिन नियम के अनुसार कोई मदद नहीं कर सकता है| उसके बाद टिक 1, टिक 2 और टिक 3 होने पर माँ इस खेल से बाहर हो जाती हैं| फिर पिताजी पर्ची उठाते हैं, और पर्ची में शब्द आता है- ‘शीला की जवानी’)
पिताजी : यह भला कैसी ‘जवानी’ ? ‘जवानी दीवानी’ सुना था, लेकिन शीला की जवानी तो पहली बार ही सुना ? ऐसे गीत गाने से तो हार जाना अच्छा !
(इस तरह पिताजी भी खेल से बाहर हो जाते हैं और अब खेल में तीन व्यक्ति ही रह जाते हैं, राहुल, प्रिया और आंटी)
पिताजी : एक मिनट ! ये ‘चिकनी चमेली’ और शीला की जवानी’ गीत के शब्द किसने लिखे ?
(सबकी नजरें शांति आंटी की ओर जाती हैं |)
शांति आंटी : अरे मैंने नहीं लिखे ! चलो खेल को आगे बढ़ाते हैं | प्रिया पर्ची उठाओ ! तुम्हारी बारी है न ?
(प्रिया पर्ची उठाती है, और पर्ची में लिखा शब्द बोलती है- ‘जोगन’|)
गीत:
‘माई नी माई, मुंडेर पे तेरी बोल रहा कागा,
जोगन हो गई तेरी बहाई, मन जोगी संग लागा
(राहुल पर्ची उठाता हैं, और पर्ची का शब्द बोलता है- ‘प्यार’)
गीत:
‘तू प्यार है किसी और का, तुम्हें चाहता कोई और है,
तू पसंद है किसी और की, तुझे देखता कोई और है’
(आंटी पर्ची उठाती है, और शब्द बोलती है- ‘मालिक’, इस शब्द को पढ़ कर आंटी ऐसा चेहरा बनाती है, मानो यह शब्द उन्होंने पहली बार सुना हो और वे इस शब्द के बारे में सोचती हैं, लेकिन समय-मर्यादा के समाप्त होने के कारण, वे भी खेल में से बाहर हो जाती हैं | अब प्रिया और राहुल ही खेल में हैं | प्रिया गीत के माध्यम से अपनी बात राहुल तक पहुँचाती है और राहुल दर्द भरे गीत गाकर प्रिया को धोखे की याद दिलाता है |)
पिताजी : अंत में प्रिया ही जीतेगी |
माँ : नहीं ! राहुल भी हार जाए, वैसा नहीं है |
(प्रिया पर्ची उठाती है, और शब्द बोलती है- ‘आशिकी’|)
गीत:
‘हम तेरे बिन अब रह नहीं सकते, तेरे बिन क्या वजूद मेरा,
तुझसे बिछड़ जाएँ, तो खुद से हो जाएँगे जुदा,
क्योंकि तुम ही हो ... क्योंकि तुम ही हो,
मेरी आशिकी बस तुम ही हो,
(राहुल पर्ची उठाता हैं, शब्द बोलता है- ‘प्यार’)
गीत:
‘हर घड़ी बदल रही है, रूप जिंदगी
छाँह है, कभी-कभी तो धूप जिंदगी,
हर पल यहाँ जी भर जिओ
जो है समां, कल हो न हो’
(प्रिया पर्ची उठाती है, और शब्द बोलती है- ‘पल’, प्रिया ‘पल’ शब्द के गीत के बारे में सोचती है. लेकिन उसे याद नहीं आता है | राहुल को ‘पल’ शब्द पर गीत याद आ जाता है, इसलिए वह खुश हो जाता है, लेकिन प्रिया सोचती ही रहती है | राहुल काउंटिंग चालू करता है |)
राहुल : टिक टिक 1, टिक टिक 2 और टिक टिक 3 और मैं जीत गया | हैं हेय
(अंत में प्रिया भी खेल से बाहर निकल जाती है और राहुल जीत जाता है |)
पिताजी : दर्द भरे गीत गाकर आखिर जीत ही गया |
माँ : मैंने तो पहले ही कहा था कि राहुल ही जीतेगा !
पिताजी : हाँ, हाँ, चलो अब ज़रा आराम कर लेते हैं |
माँ : हाँ, आप चलो |
(सभी राहुल का अभिनंदन कर अपने-अपने कमरों में चले जाते हैं और अब राहुल और प्रिया ही रह जाते हैं | राहुल की ओर प्रिया प्रेम भरी नजरों से देखती है, लेकिन राहुल चेहरा घुमा लेता है )
राहुल : देखा, जीत तो हमेशा सत्य की ही होती है | जूठ को सदैव हार ही
मिलती है | मुझे हराना चाहती थीं न ?
(राहुल ने प्रिया को सुनाते हुए कहा )
प्रिया : मुझे तुम्हें नहीं हराना है, लेकिन मुझ पर लगाए गए आक्षेपों को हराना है | हाँ, तुम सच्चे हो, इसलिए तुम जीत गए ! लेकिन मुझे सच्चाई बयान करने का मौका तो दो ?
(राहुल जवाब दिए बगैर आगे बढ़ता है | प्रिया वह गीत गाती है, जिसके कारण वह हारी थी और राहुल को आभास कराती है कि वह जानबूझकर हारी थी |)
(प्रिया गीत गाती है ‘दो पल रुका ख्वाबों का कारवाँ और फिर चल दिए तुम कहाँ, हम कहाँ |)
(राहुल प्रिया को देखता ही रहता है | बेकग्राउंड में गीत बजता रहता है |)
[अँधेरा]
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