विषय सूची
क) एक नाई राह
ख) काश
ग) देख ज़रा
घ) माँ, ओ माँ
एक नाई राह
जिंदगी से हार कर, यूँ रोते ना बैठेंगे;
है अगर हौसला, तो एक राह नाई बनाएँगे।
आँखो से बहते अश्रु को ताकत हम बनाएँगे;
है अगर हौसला, तो एक राह नाई बनाएँगे।
मंजिल है पाना हमें, राहों में काटें तो आएँगे;
है अगर हौसला, तो एक राह नाई बनाएँगे।
मानावता को इस जग में हम पुन: वापस लाएँगे;
मानाव रुप दिया उसना, हम इसका कर्ज चुकाएँगे;
है अगर हौसला, तो एक राह नाई बनाएँगे।
हिन्दू-मुस्लिम कि लड़ाई जग से हम मिटाएँगे;
सब यहाँ हैं, उसके दम से सबको हम बताएँगे;
है अगर हौसला, तो एक राह नाई बनाएँगे।
एक धर्म है, एक जात है, सबको हम बताएँगे;
है मानावता धर्म हमारा,है जात हमारी भारतीए;
ये बात सबको बताएँगे।
छुआछुत का भेद मिटा कर सबको हम अपनाएँगे;
अपनी मातृभूमि को एक नाई पहचान दिलाएँगे;
है अगर हौसला, तो एक राह नाई बनाएँगे।
चैनो-अमन का एक दीपक इस जग में हम जलाएँगे;
चारों ओर होगी रौशनी काले बादल छट जाएँगे;
सच्चाई की ताकत से एक नाया जहाँ रच जाएँगे;
है अगर हौसला, तो एक राह नाई बनाएँगे।
***
काश
काश! काश कि कुछ ऐसा हो जाए,
की उना काँपते हुए हथेलियों को,
उनके बच्चों का सहारा मिल जाएं,
दौलत के लिए लड़ते भाईयों में,
बच्चपन का वो खोया प्यार लौट आए,
काश! काश कि कुछ ऐसा हो जाए।
काश! काश कि कुछ ऐसा हो जाए,
कि औरतें, बेटीयाँ व बहनों को हर मोड़ पर
अपनी सुरक्षा का डर ना सताए
वे बेखोफ हो कर आसमान को छुँ जाए
काश! काश कि कुछ ऐसा हो जाए।
काश! काश कि कुछ ऐसा हो जाए,
कि लड़के लड़कियों को छेड़ने के बजाय
उन्हें सम्मान देना सिख जाए,
काश! काश कि कुछ ऐसा हो जाए।
काश! काश कि कुछ ऐसा हो जाए,
कि धर्म -जाती की लड़ाई बस यहीं थम जाए,
एक धर्म और एक जात की नाई परिभाषा से
भारत एक बार फिर मिसाल बन जाए
काश! काश कि कुछ ऐसा हो जाए।
काश! काश कि कुछ ऐसा हो जाए,
कि एक माँ की कोख में पलने वाली,
उस मासुम सी बच्ची को भी इस दुनियाँ में आने का
हक मिल जाए,
लड़के-लड़की में फर्क करने वाली समाज से
यह प्रथा बस मिट जाए।
काश! काश कि कुछ ऐसा हो जाए।
काश! काश कि कुछ ऐसा हो जाए,
कि देश में बदलाव के लिए हूँकार भरा जाए,
युवा में वो आग है जो चट्टानो को भी पिघला जाए।
बस जरुरत है एक कदम बढ़ाने की,
फिर वक्त भी दूर नाही जब,
हमारा यह देश बदला-बदला सा
नज़र आए,
काश! काश कि कुछ ऐसा हो जाए।
***
देख ज़रा
क्यो उदास है तू, मुश्किलें भी टल जाएगी,
मुस्कुरा कर देख कर ज़रा।
सपने पूरे होंगे मंज़िल साफ़ दिखेंगी,
आँखों से बहते आँसू पोछ कर देख ज़रा।
किसे पता कल हो ना हो, आज के गमों
को भुलाकर
मस्ती के गोते खा कर देख ज़रा।
क्या हुआ अगर आज हारा है तू,
कल ज़रुर जितेगा, ये सोचकर आगे बढ़
जिंदगी कल कुछ और होगी, एक बार हौसले को बुलंद
कर के देख ज़रा।
किस्मत के भरोसे क्यों है तू ख़्वाब पूरे होंगे
अपनी किस्मत खुद लिख कर देख ज़रा।
क्यों हर पल खुद को कमज़ोर मानता है
कमज़ोर नही हूँ यह सोच, सपने उड़ाना भरेंगे।
खोल कर अपने पर सारे देख ज़रा।
दु:ख-सुख एक सिक्के दो पहलू है, सुख और
दु:ख का यह ताना-बाना विकास कि एक परिपाटी है,
दु:ख-सुख जीवन में आते है कुछ सिखलानें को,
इनसे कुछ सिख कर देख ज़रा।
यह मत सोच की मैं कितना बदक़िस्मत हूँ,
की तकलीफें मुझसे दूर जाती नही
बल्कि यह सोच की मैं कितना खुदकिस्मत हूँ,
कि तकलीफें मेरी जिंदगी में बार-बार दस्तक देतीं है,
तकलीफें आती है तो ख़ुशियाँ देकर जाती है,
एक बार इन तकलीफों को मुस्कुरा कर देख ज़रा।
आज अकेला है तू पर कल पूरा संसार तूझे पुछेगा,
बस एक बार मुस्कुरा कर, जिंदगी को गले लगा कर
देख ज़रा।
***
माँ, ओ माँ
माँ, ओ माँ
तू मेरी पुकार सुना रही ना माँ
कोई मेरी पुकार नहीं सुना रहा,
मैं तेरे अंदर पल रही एक
नन्हीं परी हूँ,
ये लोग मुझे दुनिया में आने नहीं देंगे पर तू इनसे लड़
मुझे इस दुनिया में लाएगी ना माँ।
मेरी आवाज़ बना इस दुनियाँ तक मेरी पुकार पहूँचाएगी
ना माँ।
पापा को बोलो मैं उनकी अंश हूँ, मुझे इस दुनिया में आने से
ना रोके माँ,
बेटियाँ बोझ नहीं है, वो को ख़ुशियों की चाबी है,
फिर क्यूँ ये समाज हमे इस दुनिया में आने नहीं देना
चाहता है माँ।
क्यूँ सब बेटा ही चाहते है, बेटियाँ नहीं,
बेटे को भी तो किसी की बेटी ही जन्म देती है ना माँ।
माँ, ओ माँ
मैं तेरे अन्दर पल रही नन्हीं परी, तू मेरी
आवाज़ सुना रही ना माँ।
ये समाज इतना क्रुर क्यो है माँ, क्यूँ ये बेटियों को जिने नहीं देते,
तू इनसे लड़ मुझे जिंदगी देगी ना माँ।
***