Pyar ki Seema - 1 in Hindi Drama by Sanjay Nayka books and stories PDF | प्यार की सिमा - 1

Featured Books
  • You Are My Choice - 41

    श्रेया अपने दोनो हाथों से आकाश का हाथ कसके पकड़कर सो रही थी।...

  • Podcast mein Comedy

    1.       Carryminati podcastकैरी     तो कैसे है आप लोग चलो श...

  • जिंदगी के रंग हजार - 16

    कोई न कोई ऐसा ही कारनामा करता रहता था।और अटक लड़ाई मोल लेना उ...

  • I Hate Love - 7

     जानवी की भी अब उठ कर वहां से जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी,...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 48

    पिछले भाग में हम ने देखा कि लूना के कातिल पिता का किसी ने बह...

Categories
Share

प्यार की सिमा - 1

 

(पुनः पूर्णविराम प्राप्त करती एक प्रेम-गाथा)

Full length Hindi Natak

PART-1

प्रथम अंक

[प्रथम दृश्य]

(पर्दा खुलते ही ड्राइंगरूम दिखाई देता है, लेकिन ड्राइंगरूम की स्थिति अस्त-व्यस्त है| अखबार इधर-उधर बिखरे पड़े हैं| सोफे के कवर बेतरतीब लगे हुए हैं| कपड़ा, तौलिया सोफे पर लटक रहे हैं| दीवार पर लगी तस्वीरें आड़ी-तिरछी हैं और सभी फूल गुलदस्ते से अलग बिखरे पड़े हैं| नवदंपत्ति विवाह के परिधान में प्रवेश-द्वार से प्रवेश करते हैं| युवक ने शेरवानी और युवती ने शादी का जोड़ा पहना हुआ है| युवक शेरवानी का गला कुछ ढीला करता है और सोफे पर पैर फैला कर बैठ जाता है, लेकिन युवती तो अब भी कमरे की हालत को देखती रहती है|)

युवक : ओह सॉरी! आओ आप भी बैठो

(ड्राइंगरूम की हालत को देख रही युवती को रोकते हुए कहा)

(युवती अपना सूटकेस बताती है|)

युवक : ओह!! आप सामने के कमरे में अपना सामान रख सकती हो |

(युवती अपना सूटकेस लेकर उस कमरे में जाती है| युवती के जाने के बाद युवक ड्राइंग-रूम की हालत ठीक करने के लिए बिखरे हुए सामान को व्यवस्थित करने में लग जाता है| कुछ देर बाद वह युवती सफ़ेद साड़ी पहन कर आती है| पहले पहनी हुई शादी की साड़ी के स्थान पर अब विधवा की सफ़ेद साड़ी आ गई थी| माथे पर लगा सिंदूर और गले में पहना हुआ मंगलसूत्र गायब हो चुका था और दुल्हन के चेहरे का तेज उड़ चुका था| ड्राइंगरूम को व्यवस्थित करने के काम को छोड़ कर युवक अब युवती को एकटक देख रहा था|)

युवती : मुझे मालूम है कि आप क्या सोच रहे हैं? यही न कि कुछ घंटे पहले

तो विवाह हुआ और अचानक यह विधवा का वेश? हाँ... आपका

सोचना वाजिब है| मुझे बात को गोल-गोल घुमाकर कहने की आदत

नहीं है और जो भी कहती हूँ वह स्पष्ट कहती हूँ| मेरी यह दूसरी शादी है|

मैं एक विधवा हूँ| मुझे दूसरी शादी नहीं करना थी, लेकिन घरवालों

की खोखली बातों और उनकी खुशी के कारण मुझे यह शादी मेरी

मर्जी के बगैर करनी पड़ी| मैं आपको अँधेरे में नहीं रखना चाहती हूँ,

इसलिए आप मेरी ओर से कुछ अपेक्षा रखें, उसके पहले ही यह खुलासा

कर देती हूँ|

(युवती की बात सुन कर युवक कुछ पल तक शांत रहता है| कुछ देर वहाँ शांति छाई रहती है, उसके बाद युवक बिना कुछ कहे अपने कमरे में चला जाता है| वह कमरा उस कमरे के ठीक सामने है, जिसमें युवती सूटकेस लेकर गई थी| वह युवक उसके हाथ में एक फोटो और हार लेकर आता है और उस फोटो को सामने की दीवार पर लटका कर वह फोटो पर हार चढ़ाता है| युवक को युवती एकटक देखती रहती है|)

युवक : अधिक सोचने की जरूरत नहीं है, जिस तरह आपको बात को गोल-गोल घुमाकर कहने की आदत नहीं है, उसी प्रकार मैं भी आपको अँधेरे में नहीं रखना चाहता हूँ| यह मेरी स्वर्गवासी पत्नी का फोटो है| उनकी मृत्यु को एक वर्ष हो गया है| मेरी भी यह दूसरी शादी है और मैंने भी यह शादी मेरे घरवालों की खुशी के लिए ही की है|

(दोनों ने एक दूसरे को अपनी-अपनी हकीकत बता कर मन में चल रही अटकलों को दूर कर दिया है|)

युवक : यदि आप विवाह-विच्छेद करना चाहती हों तो.... मतलब की तलाक चाहती हों, तो मैं आपको तलाक देने के लिए तैयार हूँ| क्योंकि हम दोनों एक ही नाव पर सवार हैं, लेकिन हमारी मंजिल एक नहीं है|

युवती : हाँ, आपकी बात सही है| लेकिन तलाक हम दोनों के हित में नहीं है|

युवक : क्यों? तलाक के द्वारा ही तो हम अपने-अपने रास्तों पर जा सकेंगे|

युवती : हां, लेकिन! घरवाले ही इसमें रोड़ा बने हुए हैं, उसका क्या? अर्थात् जब घरवालों को मालूम पड़ेगा कि हम अलग हो गए हैं, तो वे फिर हमें शादी की जंजीरों में बाँध देंगे और घर-संसार के जाल में उलझा देंगे|

युवक : हाँ, आपकी बात सही है| मेरे पिताजी को मालूम पड़ेगा तो वे मेरा खून ही पी जाएँगे| नहीं जी... तलाक के विचार को तो दरकिनार करना होगा, लेकिन फिर दूसरा कौनसा रास्ता है?

युवती : एक रास्ता है|

युवक : क्या?

युवती : हम एक दूसरे के साथ फ्रेंड बन कर रहें तो?

युवक : फ्रेंड?

युवती : हाँ | यदि हम फ्रेंड बन कर रहें और अपनी-अपनी हकीकत के बारे में अपने घरवालों को वाकिफ नहीं करें तो ! हमारे घरवाले हम पर कोई शक भी नहीं करेंगे! समझे?

युवक : हाँ, समझ गया, लेकिन यह नाटक कितने दिन चलेगा?

युवती : जितने दिन चले, उतने दिन ! यह नाटक हम चलाएँ, उतने दिन तक चल सकता है, यदि हम हमारे माता-पिता को इस हकीकत के बारे में नहीं बताएँ तो !

युवक : ठीक है| तो चलो हम सोने की तैयारी करें?

युवती : हाँ, हम अलग-अलग कमरों में सोने की तैयारी करेंगे|

युवक : हाँ, यही तो मैं कह रहा हूँ| मैं चेहरे पर तो ऐसा ही दिखाई देता हूँ, लेकिन वैसे एकदम सामाजिक हूँ|

युवती : सही बात है, सामाजिक रहने में ही भलाई है|

युवक : ओह !

युवती : गुड नाईट (वह अपने कमरे की ओर जाती है|)

युवक : हाँ, गुड नाईट! रात में कुछ काम हो तो...

(युवती रुक जाती है और युवक की ओर देखती है|)

युवक : अरे, रात में कुछ जरूरत हो तो... मुझे उठाना मत, क्योंकि मैं जब एक बार सो जाता हूँ, तब फिर सवेरे ही उठता हूँ|

युवती : सब लोग जब रात को सो जाते हैं, तब फिर सवेरे ही उठते हैं|

गुड नाईट

(युवती अपने कमरे में चली जाती है)

युवक : हाँ, गुड नाईट

युवक : वाहन भारी है| (स्वर्गीय पत्नी के फोटो की ओर देख कर युवक ने कहा)

युवती : क्या कहा?

युवक : ओह माय गॉड ! हॉर्न भी भारी है| (कुछ धीमे से) कुछ नहीं, गुड नाईट !)

(दोनों अपने-अपने कमरों में जाते हैं|)

[अँधेरा]

[दूसरा दृश्य]

(शादी के दूसरे दिन की सुबह ड्राइंगरूम के लिए मानो नई रोशनी लेकर आई है| जो

ड्राइंगरूम अब तक अस्त-व्यस्त था, वह अब सुव्यवस्थित होकर मानो मुस्करा रहा है|

एक दूसरे से जुड़े हुए सोफे के कवर आज मिल गए हैं| दीवार पर लटक रही तस्वीरें अब

सीधी हो गई हैं| इधर-उधर बिखरा सामान अपने स्थान पर पहुँच गया है| फूलों से

सुशोभित गुलदस्ता महक रहा है| युवक अपने कमरे से आता है)

युवक : अरे... यह मेरा ही घर है या किसी और का? (आश्चर्यचकित होकर ड्राइंगरूम के चारों ओर अपनी नजर दौड़ाता है|) हाँ यार, यह तो मेरा ही घर है| कल तक तो यह घर जंगल जैसा था, लेकिन आज जंगल में मंगल हो गया ! लेकिन यह मंगल करनेवाला है कौन? निश्चित ही कलवाली आईटम ने ही यह सब किया होगा| सफाई में तो यह तेरे जैसी ही है| (उसकी पत्नी के फोटो की ओर नजर कर कहा) अरे सुनो ! सुबह हो गई है| (युवती के लिए जोरों से आवाज लगाता है) यार, मुझे तो उसका नाम भी मालूम नहीं है ! क्या नाम होगा ? कैसी है किस्मत मेरी ! शादी की इस जल्दी-जल्दी में, जिसके साथ शादी हुई, उसका नाम भी भी मुझे मालूम नहीं है ! कल उससे इतनी बात की, लेकिन उसका नाम भी नहीं पूछा| अरे हाँ... शादी की कुंकुम-पत्रिका में होगा|

(युवक सिर खुजाता हुआ शादी की कुंकुम-पत्रिका ढूँढने के लिए इधर-उधर तलाश करता है|)

युवक : कहाँ होगी? कहाँ होगी ? वक्त पर कोई चीज मिलती ही नहीं है ! हाँ, मिल गई (कार्ड खोलता है|) अरे, यह तो अप्पू की दूकान का उद्घाटन का कार्ड है, ओह, इसकी तो तारीख भी निकल गई है, यदि पहले मिल गया होता तो फ्री में आईसक्रीम हो जाती !

(कुंकुम-पत्रिका ढूँढना अब भी जारी रखता है|)

हाँ, अब मिला ! देखने दे, यह अभी की शादी की ही कुंकुम-पत्रिका है न? दिनाँक 27 दिसंबर 2015, हाँ यही है| सुपुत्र ‘राहुल’ हाँ यह है मेरा नाम और सुपुत्री ‘प्रि... या’ ?

(कुंकुम-पत्रिका में छपा नाम देखकर राहुल कुछ देर विचार-मग्न हो जाता है|)

राहुल : प्रि... या ?

(दीवार पर टंगी उसकी पत्नी की तस्वीर पर नजर घुमाता है|)

राहुल : इसका नाम भी प्रिया ?

(प्रिया रसोईघर में से विधवा के कपड़ों में चाय लेकर आती है|)

प्रिया : चाय पी लो (चाय देकर अपने कमरे में चली जाती है|)

(राहुल चाय पीता है|)

राहुल : अरे... यह चाय तो एकदम मेरी मनपसंद की ही है ?

(डोरबेल बजती है| राहुल दरवाजा खोलने के लिए जाता है और तब दरवाजा खोलने

के साथ ही पड़ोस में रहनेवाली शांति आंटी आ जाती हैं|)

राहुल : शांति आंटी ?

शांति आंटी : हाँ, अंदर आऊँ ?

राहुल : अंदर आने के लिए क्या बाहर से आज्ञा लेनी पड़ती है? अभी और कितने अंदर आना है ?

शांति आंटी : ठीक है, और किसी दिन ले लूँगी ? कहाँ है मेरी बहू ?

राहुल : बहू ?? वह उसके कमरे में है|

शांति आंटी : ठीक है, मैं उसके कमरे में ही मिल लेती हूँ|

राहुल : नहीं...

शांति आंटी : क्यों नहीं ? मैं तो जाऊँगी |

राहुल : अरे, शांति आंटी ! शांति रखो ! इस तरह आप कैसे जा सकती हैं ?

शांति आंटी : क्यों नहीं जा सकती हूँ ?

राहुल : क्योंकि वह कपड़े बदल्र रही है|

शांति आंटी : ओह, ऐसा है| चल फिर मैं यहीं राह देखती हूँ|

राहुल : शायद देर भी लग जाए ! आप फिर किसी और समय पधारें न !

शांति आंटी : क्यों देर लगेगी ? कपड़े बदलना है, कपड़े बनाना तो है नहीं | चल मैं उसके कमरे में जाती हूँ|

राहुल : अरे, शांति आंटी ! आप अगस्त क्रांति क्यों बन रही हैं ? आती ही होगी, आप बैठिए| बोलिए, क्या लेंगी ?

शांति आंटी : बहुत लूँगी, बोलो दोगे ? हाँ, हाँ (हँसती है|)

राहुल : फिर मजाक !

(शांति आंटी बैठ जाती हैं| राहुल प्रिया के कमरे की ओर तिरछी नजर से देखता है, क्योंकि प्रिया विधवा के कपड़े पहनकर कमरे में गई थी| वह कमरे की ओर देखता हुआ इधर-उधर चक्कर लगाता है|)

राहुल : शांति आंटी, आपने तो आज नए कपड़े पहने हैं न ? लगता है, फिल्म देखने का प्रोग्राम है|

(तेज आवाज में बोलता है|)

शांति आंटी : फिल्म देखने का कौनसा प्रोग्राम ! एक फिल्म है, ‘डेनी घेरछप्पा’ की और दूसरी है ‘लव बुक्स’ की ! मुझे दोनों ही अच्छी नहीं लगती हैं और इतने जोर से क्यों बोल रहे हो ? और दिन में इस तरह गोरखा की तरह चक्कर लगाना बंद करो !

(उसी वक्त राहुल वहीं खड़ा रह जाता है|)

राहुल : आंटी, ‘डेनी घेरछप्पा’ अर्थात ‘डेनी डेन्जोपा’, यह मैं समझ गया, लेकिन लव बुक्स’ ?

शांति आंटी : अरे यार, ‘प्रेम चोपड़ा’

(उस समय प्रिया नई नवेली दुल्हन के कपड़े पहनकर उनके कमरे में आ जाती है और शांति आंटी के चरण-स्पर्श करती है| प्रिया को दुल्हन के रूप में देख कर राहुल राहत की श्वास लेता है|)

शांति आंटी : ओह, जीती रहो, बेटी !

राहुल : प्रिया ये हैं सु... स... स... स (मुँह पर उंगली रख कर) आंटी

प्रिया : मैं समझी नहीं (राहुल का इशारा प्रिया नहीं समझती है|)

राहुल : ओ.के. मैं समझाता हूँ| ये हैं शांति आंटी, लेकिन इन्हें कभी शांति नहीं रहती है| उनकी कुछ बातों को समझने के लिए तो हमें दिमाग लगाना पड़ता है| धीरे-धीरे तुम्हें मालूम हो जाएगा| कुछ जल्दी आतीं तो दो नाम के डेमो मिल जाते !

प्रिया : ओह, ऐसा है|

शांति आंटी : अरे, ओ डेमोवाले ! एकदम सोने जैसी सुंदर बहू लाया है| प्रिया बेटा, तुझे किसी की नजर न लगे ! यहाँ आओ, तुझे अजय देवगन की घरवाली लगा दूँ|

प्रिया : अजय देवगन की घरवाली ? (घबराहट- भरी आवाज में बोलीं)

राहुल : डेमो मिल गया न ? ओ. के. समझाऊँ... अजय देवगन की घरवाली मतलब काजल, आंटी काजल लगाने की बात कह रही हैं|

प्रिया : ओह !

शांति आंटी : चल, अब बातों के लड्डू बनाना बंद कर ! तुमने मेरे पैर छुए ? आशीर्वाद लिए ?

राहुल : अरे आंटी ! आप इतनी बुजुर्ग नहीं हुईं कि आपके आशीर्वाद लेने पड़े, आप तो अभी जवान हैं|

शांति आंटी : चल अब, झुक या तेरे घर फोन लगाऊं ? तेरे मम्मी और पापा को कहूँ कि तुम बड़ों का मान नहीं रखते हो|

राहुल : आंटी आप भी... चलो ठीक है, पाय लागू, आंटी |

शांति आंटी : अब ‘पाय लागू’, ‘रीमा लागू’ या ‘डाक्टर श्री राम लागू’ का ज़माना गया|

राहुल : ओह, डेमो वाली आंटी...

(राहुल जैसे ही पैर छूने के लिए झुकता है, आंटी उसे रोक लेती हैं|)

शांति आंटी : रहने दे अब ! मैं तो अभी जवान हूँ न (हँसती हैं)

राहुल : थैंक यू आंटी

शांति आंटी : इट्स माय एक्टिवा

राहुल : इट्स माय प्लीजर... प्रिया आंटी के लिए चाय बनाओ, नहीं तो फिर डेमो पर डेमो आएँगे|

(प्रिया रसोईघर में जाती है|)

शांति आंटी : राहुल यहाँ आना तो !

राहुल : क्यों ?

शांति आंटी : आओ तो ! मैं शाकाहारी हूँ, तुम्हें खा नहीं जाऊँगी|

(राहुल आंटी के नजदीक बैठ जाता है| आंटी राहुल की आँखों में आँखें डाल कर देखती हैं|)

शांति आंटी : आँखें बहुत लाल है न ? लगता है, रात्रि में जागरण किया है ! किसने सोने नहीं दिया ? तुमने या बहू ने ?

(जोर-जोर से हँसती है|)

राहुल : आंटी आप भी ... इस उम्र में... अंकल को कहना पड़ेगा...

शांति आंटी : अंकल के बारे में क्या कहना ! वे तो रात को वाचमेन बन जाते थे (फिर जोर-जोर से हँसती है)

राहुल : अरे आंटी... ऐसा कुछ नहीं ! वह तो बस थकान के कारण ...

शांति आंटी : थकान ?? कैसी थकान (और अधिक मजाक करते हुए)

राहुल : देखो पीछे...

(प्रिया चाय लेकर आती है|)

प्रिया : आंटी चाय (चाय देती है)

(आंटी चाय पीकर फिर रख देती है|)

शांति आंटी : एक बात पूछूँ, बहू बेटा?

राहुल : नहीं, आंटी !

शांति आंटी : क्यों ? मैं तुमसे थोड़े ही पूछ रही हूँ ! मैं तो प्रिया से पूछ रही हूँ|

प्रिया, एक सवाल पूछूँ ?

प्रिया : हाँ, पूछो न !

शांति आंटी : ज़रा नजदीक तो आओ|

(प्रिया आंटी के नजदीक जाती है|)

शांति आंटी : तुम्हें पाव-भाजी बनाना आता है? मेरे बेटे को यह बहुत अच्छा लगता है|

राहुल : हाश, कुछ वाचमेन वाला तो नहीं पूछा न (धीमे से)

शांति आंटी : क्या बड़बड़ा रहा है, तोतलामेन ?

राहुल : कुछ नहीं आंटी

शांति आंटी : प्रिया, पाव-भाजी बनाना आता है न ?

प्रिया : हाँ, आता है|

शांति आंटी : बहुत अच्छा ! चलो तो अब इजाजत लेती हूँ|

प्रिया : आंटी ! भोजन कर ही जाओ न ! मैंने राजबाप बनाया है|

शांति आंटी : राजबाप ????

प्रिया : राजमा, आंटी|

शांति आंटी : ओह राजमा ! मेरी भाषा समझ में आ गई ? नहीं, फिर कभी, चलो

तो अब मैं इजाजत लेती हूँ |

(आंटी जाते-जाते दरवाजे के पास खड़ी रहती हैं और राहुल को बुलाती हैं|)

शांति आंटी : राहुल बेटा ! यहाँ आओ तो ...

(राहुल जाता है|)

शांति आंटी : पाव-भाजी तो बहाना था, प्रिया की आँखें भी लाल थीं... नॉटी,

तुम भी वाचमेन निकले (गाल उमेठते हुए कहती हैं|)

शांति आंटी : प्रिया बेटा... बिरला !

प्रिया : ओ.के. आंटी टाटा

राहुल : तुम भी आंटी की भाषा सीख गईं !

प्रिया : हाँ, लेकिन आंटी आपको क्या कह रही थीं ? आँखें लाल, ऐसा कुछ ?

राहुल : लोगों की दूर की दृष्टि बहुत तेज होती हैऔर तुम्हारे कान बहुत

तेज मालूम पड़ते हैं !

प्रिया : क्या बोले ?

राहुल : कुछ नहीं ! अरे, आंटी को तो मजाक करने की आदत है|

प्रिया : ठीक है| कपड़े बदल कर आती हूँ |

(अपने कमरे की ओर जाती है|)

राहुल : हलो, रहने दो न ! इन कपड़ों में अच्छी लगती हो| बादल चाहे चन्द्रमा

को ढक लेता हो, लेकिन उसकी सुन्दरता को वह नहीं ढक सकता |

(प्रिया बिना कुछ कहे अपने कमरे की ओर जाने लगती है|)

राहुल : हेलो ! हम एक दूसरे से कल से बात कर रहे हैं, लेकिन मुझे तुम्हारा नाम मालूम नहीं था, फिर बाद में अपनी शादी की निमंत्रण पत्रिका में देख कर मालूम हुआ कि तुम्हारा नाम प्रिया है व मेरा नाम राहुल है|

प्रिया : मालूम है |

राहुल : मालूम है ?

प्रिया : हाँ, मैं तुम्हारे जैसी नहीं हूँ कि जिसके साथ शादी हो रही हो, उसका नाम भी मालूम न हो !

राहुल : ओह ! सॉरी ! लेकिन यह नहीं मालूम होगा कि मेरी स्वर्गवासी पत्नी का नाम भी प्रिया ही था|

प्रिया : यह भी मालूम है |

राहुल : यह भी मालूम है ? किस तरह ?

प्रिया : फोटो के नीचे नाम लिखा है न, इसलिए !

राहुल : ओह !

प्रिया : और तुमने क्या कहा ? नाम था? नाम तो सदैव ही रहता है, सिर्फ मनुष्य ही नहीं रहता है |

राहुल : पॉइंट है, अगेन सॉरी सॉरी ... इस कमरे की सफाई देख कर मुझे प्रिया की याद आ गई| वह भी कमरे को इसी तरह साफ़ रखती थी|

प्रिया : चलो, मस्का मारना बंद करो ! कोई भी स्त्री घर की सफाई रखती

ही है, अब फिर से सॉरी न कहना

(राहुल सॉरी बोलने वाला था, तब उसे बोलने से रोकती है|)

 

(प्रिया कमरे की ओर जाती है|)

राहुल : हाँ, बात ठीक है कि कोई भी स्त्री घर की सफाई रखती ही है, लेकिन तुम्हारे हाथ की पुदीना वाली कड़क मीठी चाय का स्वाद तो .... (बोलते हुए रुक जाता है|)

प्रिया : क्या हुआ, क्यों रुक गए ?

राहुल : कुछ नहीं, जाने दो, कहूँगा तो तुम कहोगी कि मुझे तो मालूम है !

प्रिया : नहीं कहूँगा, बस !

राहुल : सवेरे की चाय का स्वाद... इतना समान कैसे हो सकता है ?

मतलब कि कुछ तो 19-20 होता है, लेकिन तुम्हारे हाथों का

स्वाद तो, मेरी स्वर्गवासी पत्नी जैसा ही है |

प्रिया : हाँ... यह मुझे नहीं मालूम

(प्रिया आगे बढ़ती है|)

राहुल : कहाँ चलीं ? शादी के लिए कंपनी ने 10 दिन की छुट्टी दी है| तुमने ही तो कहा था कि हम पति-पत्नी के तरीके से साथ नहीं रह सकते हैं, लेकिन मित्र की तरह तो साथ रह ही सकते हैं न ? आओ, बैठ कर एक दूसरे के साथ सुख-दुःख की बातें करते हैं |

(प्रिया बैठ जाती है|)

राहुल : बोलो, तुम्हें क्या पसंद है ? मतलब कि तुम्हारी हॉबी क्या है? मैं कोई इंटरव्यू नहीं ले रहा, यह तो जस्ट बात आगे बढ़ाने के लिए ...

प्रिया : मुझे दूसरों को उल्लू बनाना बहुत अच्छा लगता है !

राहुल : हें ??

प्रिया : हाँ, हाँ (हँसती है) मजाक कर रही हूँ| मुझे कुकिंग का जबरदस्त शौक है| पढ़ना अच्छा लगता है, सीरियल की तुलना में फिल्म अधिक पसंद आती है, रेडिओ सुनना अच्छा लगता है ... बस और तुम्हें ?

राहुल : बहुत सुंदर|

प्रिया : एक सवाल पूछूँ ?

राहुल : बिल्कुल ...

प्रिया : आपकी पत्नी की मृत्यु किस तरह हुई ? यदि आप कहना नहीं

चाहते हो तो इट्स ओ. के.

(राहुल अपनी जगह से खड़ा हो जाता है और फिर प्रिया की तस्वीर के सामने खड़ा रहता है|)

राहुल : प्रिया के साथ मेरा जीवन हँसी-खुशी के साथ गुजर रहा था, लेकिन फिर पता नहीं हमारे सुखी परिवार पर किसकी नजर लग गई और प्रिया को ब्रेन हेमरेज की बीमारी ने जकड़ लिया| वह बीमारी प्रिया पर ऐसी हावी हो गई कि वह सीधे कॉमा में चली गई और उसके बाद तो, फिर आँख की पलकों के माध्यम से ही उसके साथ बात होती थी ! उसकी आँखों से सतत बहनेवाले आँसू मेरे प्रेम की निशानी थे| उसे बचाने के लिए मैंने जी-जान एक कर दी, लेकिन अंत में प्रिया के प्राण-पखेरू मेरे सामने ही उड़ गए | उस समय मैं इतने जोर से रोया कि आकाश भी काँप जाए, लेकिन उस समय संभालनेवाला कोई नहीं था| डॉक्टर ने तो पहले से ही कह दिया था कि केस हाथ में नहीं है, लेकिन मैंने उसे मेरे दिल में जिंदा रखा हुआ था| प्रिया की मृत्यु के बाद परिवार के दबाव व उनकी खुशी के कारण मुझे दूसरी शादी करना पड़ी|

(राहुल बात करते-करते रोता जा रहा था और कमरे में कुछ देर शांति रहती है|)

राहुल : यह बात मैं सबको कहता नहीं, लेकिन आज अचानक !

प्रिया : आई एम सॉरी

राहुल : नो नो इट्स ओ. के. ! आई एम फाईन

प्रिया : तो आप अकेले क्यों रहते हो ? मतलब कि आपके मम्मी-पापा को यहाँ बुला लिया होता तो ! (बात को पलटते हुए कहा)

राहुल : हाँ, मैंने उनसे कहा था, लेकिन उन्हें गाँव के अलावा कहीं अच्छा ही नहीं लगता है| शहर उन्हें माफिक आए, वह थोड़ा कठिन है और फिर साथ ही गाँव में खेतीबाड़ी और ढोर-ढँकर का भी ध्यान रखना पड़ता है! लेकिन वे महीने में एक-दो बार यहाँ आ ही जाते हैं और मैं मेरी छुट्टियों में गाँव चला जाता हूँ ... मैं मालूम कर सकता हूँ कि तुम्हारे पति की मृत्यु कैसे हुई ?

प्रिया : एक एक्सीडेंट में उनकी मृत्यु हो गई, आई एम सॉरी बट इससे अधिक मैं कुछ नहीं कह सकती

राहुल : हाँ, इट्स ओ. के.

(कुछ पलों के लिए फिर शांति छा जाती है|)

राहुल : दोनों की बात से वातावरण शायद कुछ भारी हो गया ?

प्रिया : अच्छा, आप आपके शौक के बारे में कुछ तो कहो !

राहुल : शौक के बारे में ? सच में यदि कहूँ तो एक पढ़ा-लिखा इंजिनियर हूँ, लेकिन शौक तो पूरी तरह देशी ही हैं|

प्रिया : यह तो ठीक है, लेकिन शौक के साथ पढ़े-लिखे का क्या संबंध ?

राहुल : हाँ, बात सही है| मुझे नए व्यंजन खाने का बहुत शौक और जब प्रिया जीवित थी, तब हर संडे को वह मेरे लिए कुछ नया बनाती व साथ ही मुझे बाईक पर बगैर डेस्टीनेशन के कहीं दूर निकाल जाना अच्छा लगता है, जहाँ मुझे कोई रोकनेवाला न हो... आर.टी.ओ. ऑफिसर भी नहीं !

समुद्र की लहरों को फ़ुटबाल की तरह किक मारना बहुत अच्छा लगता है, फिर चाहे तब पानी के छींटे दूसरों पर उड़े या न उड़े|

झरमर बरसती बरसात में एकटक होकर आकाश को देखना तब तक अच्छा लगता है, जब तक कि बरसात की बूँदें मेरे पूरे चेहरे को भिगो न दे|

गहन अंधकार में जुगनुओं की रोशनी में रास्ता पार करना अच्छा लगता है|

बरसात के समय हिल स्टेशन पर टहलना अच्छा लगता है|

ठंड के मौसम में चप्पलों के बगैर हरी घास पर चहलकदमी करना अच्छा लगता है|

जिस जगह के दस्तावेज भूतप्रेत के नाम पर हों, वहाँ पिकनिक मनाना अच्छा लगता है ! घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह इच्छा अब तक अधूरी है |

रात में ए.टी.एम.पर सोए हुए वाचमेन को जगाना अच्छा लगता है| छोटे बच्चों को उनके गाल खींचकर रुलाना अच्छा लगता है|

सरकारी कर्मचारी के पास से काम कराना अच्छा लगता है|

अंत में शादी के जुलूस में नाचते-गाते बारातियों को देखना तब तक अच्छा लगता है, जब तक कि वह जुलूस दिखाई देना बंद न हो जाए|

प्रिया : एक मिनट ! लगता है तुम्हें अकेले ही शौक पूरा करना अच्छा लगता है ?

राहुल : हाँ, अकेले ही ... मैं मेरे माता-पिता का एक ही पुत्र हूँ | भाई-बहन के बगैर ही बचपन बीता | होस्टल में भी अकेला ही रहा| शादी के बाद प्रिया का सहारा मिला, लेकिन वह भी लिमिटेड समय के लिए ...मानो भगवान ने एक वर्ष के लिए इस्पेशल ऑफर दिया हो ! एक वर्ष बीता और फिर ऑफर भी पूरा !

(कुछ समय के लिए दोनों चुप हो गए|)

राहुल : माफ करना, कॉमेडी सीन को इमोशनल सीन बना दिया|

प्रिया : नहीं ! आज तक किसी से हॉबी पूछी है तो ये ही ओल्ड इज गोल्ड शौक जैसे कि रीडिंग, रायटिंग, कुकिंग, प्लेयिंग, शापिंग और किसी को चेटिंग .. बस इन्हें ही परोसते देखा है| लेकिन आपके शौक तो सब से हटकर हैं और यदि सच कहूँ तो मुझे भी तुमसे प्रेरणा लेना चाहिए|

राहुल : अरे ! यह कुछ अधिक हो गया |

प्रिया : अरे ! सच कह रही हूँ |

राहुल : चलिए, आप फिल्म देखने के शौक की बात कर रही थी न ?

चलिए टी. वी. पर फिल्म देखते हैं |

(राहुल टी.वी. चालू करता है, लेकिन टी.वी. चालू नहीं होता है| टी.वी. चालू करने के लिए वह सब तरह की कोशिश कर लेता है, लेकिन टी.वी. चालू नहीं होता है|)

राहुल : अरे, टी.वी. को क्या हुआ ? चलो कुछ नहीं, दूसरा शौक . रेडिओ सुनते हैं |

प्रिया : हाँ, रेडिओ ही सुनते हैं|

राहुल रेडिओ चालू करता है|)

गीत बजता है, ‘रुक्मणी, रुक्मणी शादी के बाद क्या-क्या हुआ...’

राहुल : कुछ नहीं हुआ (धीमे से )

प्रिया : क्या ?

राहुल : अरे, कुछ नहीं ! दूसरी चैनल लगाता हूँ |

(राहुल दूसरी चैनल लगाता है|)

गीत बजता है, ‘भीगे होंठ तेरे प्यासा दिल मेरा....

कभी मेरे साथ कोई रात गुजार, तुझे सुबह तक मैं करूँ प्यार’

(प्रिया शर्मीली मुस्कराहट के साथ शर्म से पानी-पानी हो गई|)

राहुल : अधिक हो गया |

(फिर चैनल बदलता है|)

गीत है, ‘सर्दी की रातों में हम सोए रहे एक चादर में’

(प्रिया के हास्य में वृद्धि होती है, लेकिन वह हाथ रखकर उसे छुपा लेती है|)

राहुल : गरीब लगते हैं ! एक ही चादर है|

(फिर चैनल बदलता है|)

आवाज, ‘हमेशा निरोध के उपयोग का आग्रह रखें |

निरोध एक, फायदे अनेक’

(अब प्रिया अपने हास्य को काबू में नहीं रख पा रही है और जोर-जोर हंस रही है|)

राहुल : आज क्यों ऐसे गीत आ रहे हैं ?

(प्रिया अपना हास्य रोकती है|)

राहुल : क्यों हँसते हुए रुक गई ? हँसती हुई अच्छी लगती हो | आपका हास्य आपकी सुंदरता बढ़ाता है|

प्रिया : अब यह अधिक हो गया |

राहुल : अरे, सच कह रहा हूँ |

प्रिया : ठीक है | आओ, आप यहाँ बैठो, मैं मेरा फेवरीट प्रोग्राम लगाती हूँ |

(राहुल अपनी जगह बैठ जाता है और प्रिया रेडिओ का चैनल बदलती है|)

आर. जे. की आवाज

:नमस्कार मित्रों, आपका स्वागत है, हमारे इस प्रोग्राम में,

जिसका नाम है, ‘डी.डी.टी..’ जिसका अर्थ है ‘डायरेक्ट दिल तक’,

यह प्रोग्राम खास उन श्रोताओं के लिए है, जो अपना संदेश अपने

प्रियजनों को पहुँचाना चाहते हैं|

 

श्रोता : हेलो, ‘डायरेक्ट दिल तक’, प्रोग्राम ?

आर. जे. : हाँ, कौन बोल रहे हैं ?

श्रोता : मैं प्रकाश बोल रहा हूँ |

आर. जे. : प्रकाशजी, आपका ‘डायरेक्ट दिल तक’, प्रोग्राम में स्वागत है और बोलिए आपके प्रियजन को आप क्या सन्देश पहुँचाना चाहते हैं ?

प्रकाश : मैं मेरा संदेश मेरी गर्लफ्रेंड चाँदनी को पहुँचाना चाहता हूँ, जो मुझे व मेरे प्रेम को छोड़कर चली गई है|

आर. जे. : ओह, क्या हो गया था ?

प्रकाश : मैं व चाँदनी पिछले दो वर्षों से साथ थे और एक-दूसरे के साथ शादी करने के लिए भी तैयार थे | फिर अचानक चाँदनी ने एक धनवान व्यक्ति के साथ शादी कर ली और हमारे प्रेम का त्याग कर व मुझे छोड़कर वह चली गई |

आर. जे. : ओह ! वेरी सेड ! तो आपको बहुत दुःख हुआ होगा ?

प्रकाश : हाँ, दुःख तो हुआ था, लेकिन इससे मेरा चाँदनी के प्रति मान भी बढ़ा, क्योंकि मुझे छोड़ने का निर्णयन चाँदनी का स्वयं का था| उसने यह निर्णय उसके घर की परिस्थिति के कारण लिया था | जिसके घर में पैसे की आवक की अपेक्षा जावक अधिक हो, तब वहाँ स्वयं के सपनों को भी तिलांजलि देना पड़ती है| चाँदनी ने वही किया, जो उसके परिवार के हित में था | आज उसके बीमार माता-पिता का ठीक से इलाज हो रहा है| उसके छोटे भाई-बहन अच्छा जीवनयापन व शिक्षण ले रहे हैं| यदि चाँदनी का विवाह मेरे साथ हुआ होता, तो मैं शायद इतना नहीं कर सकता था | मैं चाँदनी को बेवफा का उपनाम नहीं देना चाहता | मैं तो सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ कि चाँदनी मेरा प्रेम तुम्हें खुश रखना चाहता था, लेकिन आज तुम जहाँ भी हो, खुश रहना और चाँदनी के प्रकाश को तुम्हारे परिवार पर बिखेरती रहना| बस, मुझे यही संदेश चाँदनी तक पहुँचाना था|

(राहुल नम आँखों से ताली बजाता है| प्रिया की आँखें भी नम हो जाती है|)

आर. जे. : प्रकाशजी सलाम है, आपके प्रेम को ! आपने साबित कर दिया है कि सच्चा प्रेम उसके प्रेमी की खुशी में ही है| बोलिए, चाँदनी को कौनसा गीत सुनाएंगे ?

प्रकाश : दो पल रुका, ख्वाबों का कारवाँ

आर. जे. : तो सुनिए आपकी पसंद का गीत

गीत का शुरुआती म्यूझिक

(राहुल और प्रिया एक दूसरे की आँखों में आँख डालकर खड़े हो जाते हैं|)

दो पल रुका, यादों का कारवाँ और फिर चल दिए तुम कहाँ, हम कहाँ

(दोनों एक दूसरे को देखते हुए नजरें हटा लेते हैं और अपने-अपने कमरों की ओर आगे बढ़ते हैं और फिर एक-दूसरे की ओर देखते हैं|)

दो पल की थी ये दिलों की दास्ताँ और फिर चल दिए तुम कहाँ, हम कहाँ

(पुनः क्षण भर नजर एक कर और फिर नजर चुराकर अपने-अपने कमरों की ओर जाते हैं|)

(गीत का जोरदार बेकग्राउंड संगीत बजता रहता है|)

[अँधेरा]