कर्मा
जब वो मुझे देने के लिये नोट गिन रहा था उसी वक़्त मुझे लगा कि वो भूल चुका है कि मैने उसे पाँच सौ का नही बल्कि सौ का नोट दिया है। मैंने दुकान में आते हीं नोट पकड़ा दिया था। रेगुलर कस्टमर था। उसने भी नोट पकड़ लिया, उठा के पाँच सिगरेट भी पकड़ा दिये, जो मैं हर दिन वहीं से खरीदता था। लेकिन उस वक़्त वो और लोगो को भी डील कर रहा था। उसके बाद दो तीन और भी जल्दी मचाने वाले लोग आ गये। उनके बाद वो मुझे लौटाने के लिए नोट गिन रहा था। उसे सिर्फ बीस रुपये लौटाने थे।
उसने ड्रावर में हाथ डालकर दो दो सौ के दो नोट निकाले, दो दस का नोट पकड़ा, खट से उन्हें दुबारा गिना, चार सौ बीस रुपये और मुझे पैसे बढ़ा दिये।
मैंने सोचा कि उसे टोक दू पर फिर लगा।
चलो...भगवान पैसे दे रहें हैं क्यों मना करू... !!
मैंने नोटों की तरफ देखे बिना उन्हें हाथों में लिया और जल्दी से आगे बढ़ गया। दूकान हमारे सोसाइटी के अंदर ही थी। हर शाम मैं वहीं से पांच सिगरेट खरीदता था। ज्यादातर मैं पाँच सौ के नोट हीं देता था, क्योंकि शाम के खरीदारी की शुरआत उसी की दुकान से होती थी। वहाँ खुल्ले आराम से मिल जाते थे।
ठेके, दिल्ली में शराब की दुकान को ठेका बोलते हैं, में उस वक़्त बहुत भीड़ होती थी, खुल्ले ले के वहाँ जाता, अपना क्वार्टर खरीदता और अगर कुछ और छोटा मोटा खरीदना होता तो खरीदता, नही तो फिर वापस अपने फ्लैट। यही शाम की ज़िंदगी थी मेरी…
दूकान के बाहर तेजी से निकला तो आज ठेके की ओर कदम और तेजी से बढ़ गए, मन किया आज थोड़ा बढ़ के व्हिस्की खरीद लेता हूँ...
भगवान ने दे दिया है..!!
चिकेन खरीदने का भी ख्याल आ गया।
आज चिकेन बनाया जाये, बहुत दिन हो गये...
फिर सोचा...
कौन बनाने के झमेले में पड़े, हाफ तंदूरी हीं खरीद लेता हूँ!!!
कदम खुद ब खुद पहलवान ढाबे की ओर मुड़ गये। तब लगा पीछे कोई पुकार रहा है। मन हीं मन मे तो ख़ैर कदम डगमगा हीं गये लेकिन रुका फिर भी। बल्कि और सीधा देखते हुए चलना चालू रखा।
भाई साहेब, अरे सर!! रुको तो...!!
अब तो रुकना हीं था, अब तो आवाज़ भी पहचान में आ गयी थी। सोसाइटी में हीं रहता था। इधर उधर लिफ्ट वगैरह में हाय हेलो हो जाती थी।
बड़ी जल्दी में निकल गये... मैं तब से आवाज़ दे रहा हूँ।
अच्छा सुना नही, कुछ और सोच रहा था।
हाँ ,क्या हुआ?? सब ठीक तो है।
हाँ ठीक है आप बताइये...
मुझे अब थोड़ा सांत्वना हुआ कि शायद वो इस संदर्भ में नही आया है।
और इधर कहाँ...
पहलवान ...
जैसे मुँह से निकला, वैसे लगा कुछ और बोल देना चाहिये था।
अच्छा आज चिकेन क्या बात है।
आप ??
बस आपही के साथ... बोलकर मुस्कुरा दिया।
अच्छा आप भी चिकन के मूड में हैं आज…
मैंने भी जोक क्रैक करने की कोशिश की।
हाँ घर मे कोई है नहीं अब कौन हर रोज कुकिंग करे।
तब तक ढाबा आ गया। मैंने वहाँ पँहुचते काउंटर पे ही बोल दिया।
हाफ तंदूरी पैक कर दो
उसने बोला...
मेरा भी हाफ तंदूरी कर दो और एक दाल तड़का और चार रोटी भी पैक कर दो।
बोलकर वो मेरी तरफ देखा और वही बोला जो लोग बोलते हैं जब उनके पास बोलने के लिए और कुछ नही होता है।
और सुनाइये…
मैं तो बस उससे पीछा छुटाना चाहता था। मैंने काउंटर पे पूछा...
टाइम लगेगा ...!!
उसने बोला… नही बस पाँच मिनट...जिसका मतलब सभी जानते हैं पंद्रह मिनट से कम नहीं हीं होता है।
मैंने इधर उधर देखा और बिना उसके जवाब का इंतेज़ार किये बोला...
आप रुकिए यहाँ मैं जरा बगल से आता हूँ...
और जितनी तेजी से ये बोला उतनी तेजी से कदम बढ़ा लिये। वो पीछे से फिर बोला...
अरे सर रुकिये, आज तो आप बड़े जल्दी में हैं...
रुका तो नही पर चाल धीमी करते हुए गरदन घुमा के बोला...
बस बगल से आ रहा हूँ...
सर जानता हूँ , एक बियर मेरे लिए भी पकड़ लीजिएगा...पैसे हैं आपके पास!!!..
उसने आपने हाथ पीछे के जेब में डाला पर्स निकालने के लिये...
फिर बोला...
अच्छा चलिये ठीक है आइये देता हूँ…
अब मुझे एक बारगी लगा पीछे मुड़ के जाऊं और पैसे अभी हीं ले लू उससे, पर न्यूटन के गति का पहला नियम, जब तक खुद को रोकता, पाँच कदम और आगे बढ़ गया था।
कहीं ये जानता तो नहीं, ओह्ह!! इस तरह के छोटे -मोटे उधार वसूलना आसान नहीं होता है, मुझे रुक के पैसे उससे उसी वक़्त ले लेने चाहिए थे,
फिर खयाल आया...
चलो अभी ढाबे में जब पर्स निकालेगा तब ले लूँगा…
अपनी जल्दीबाज़ी पे खीजता हुआ मैं ठेके की भीड़ में शामिल हुआ और जान बूझ के सिर्फ उसका खर्च बढ़ाने के लिये, उसके लिये चालीस रुपये अधीक वाली बियर की बोतल खरीद ली। इस चक्कर मे खुद के लिये जो थोड़ा आगे बढ़कर व्हिस्की खरीदने वाला था, वो भी भूल गया और रेगुलर जो पीता था वही ले के लौट पड़ा।
जब वापस लौटा तो देखा वो दोनो हाँथो में पॉलीथिन पकड़े खड़ा था। मैंने पूछा ...
हो गया…
वो बोला...
हाँ!! हो तो गया!! मगर आपकी जल्दीबाज़ी में... मैंने वहाँ दुकान में हज़ार का नोट दिया था, आपकी इस जल्दी में बिना बाकी लिए आपके साथ चला आया। आप यहाँ मेरा भी दे दो, अभी दुकान में चलते हैं, उससे खुल्ले लेके आपको हाँथो हाथ वापस करता हूँ।
गुस्सा तो मुझे ऐसा आया कि लगा यहीं पे फट पडूँ। उसकी आँखों में देखा ये देखने के लिये कि कहीं वो मुझसे खेल तो नहीं रहा है। वो बोला ...
सर.. जल्दी कीजिये कहीं ऐसा ना हो कि वो भूल जाये। तीन सौ दस हुआ है यहाँ…
जेब से पैसे निकाले, काउंटर पे दिया और चुपचाप उसके साथ चल पड़ा। रास्ते में उसने बियर अपने हाथ में ले लिया और मुझे मेरी तंदूरी पकड़ा दी। अब चाल उसकी तेज थी। पीछे मुड़कर बोला...
सर स्लो हो गये आप... देर हो गयी तो भूल जाएगा वो, वैसे भूलते तो नहीं हीं ये लोग...!!!
मुस्कुराहट तो पहले से हीं उसके चेहरे पे थी हीं, ये बोलके तो थोड़ा हँसा भी वो...
मुझे अब उसकी ये चालाकी एकदम अच्छी नहीं लग रही थी।मुझे लगा वो जान बूझ के ये सब कर रहा है, कुछ ज्यादा हीं हीरो बन रहा है। अपने इस छोटी सी बेईमानी पे बड़ी कोफ्त हुयी। आखिरकार निकल हीं गया मेरे मुँह से...
मुझे लगता है आपके पैसे उसने मुझे दे दिये…
मतलब...
अभी ढाबे में पैसे देते वक्त मैंने देखा, जब मैंने सिगरेट खरीदा तो उसे सौ के खुल्ले लौटाने थे लेकिन लगता है उसने मुझे पाँच सौ के लौटा दिये...
बोलते हीं एक बड़ी रूहानी आज़ादी का एहसास हुआ।
वो बोला...
अरे वाह...ये तो बड़ा अच्छा हुआ, ठीक है फिर आप जा के उसे लौटाइये पैसे, मैं अब उससे कल लेके, आपको देता हूँ।
अरे क्यों क्या हुआ..
बोला …
सर पांच पंचपन हो गये, 6 बजे से मेरी फ़ेवरिट मूवी शुरू होने वाली है सेट मैक्स में, एक भी सीन मिस नही कर सकता...
अरे ऐसी कौन सी मूवी है...
कर्मा सर कर्मा...
मेरे मन मे आवाज़ आयी...
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