The Author Dr Gayathri Rao Follow Current Read मेरी कविताए By Dr Gayathri Rao Hindi Poems Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books রাজনৈতিক তরজা রাজনৈতিক তরজা অশোক ঘ... অপরাধী কে? অপরাধী কে? এক নারকীয় ধর্ষণ ও খুনের তদন্ত, বিচার ও কিছু প্রশ্... সংক্ষিপ্ত রামচরিত্র মানবাশোক বিরচিত অথ রামকথা যদি থাকে গজানন, করিনু নমন, রামের... পল্লবিত জনরব অনেকদিন আগের কথা, তখন এই বঙ্গভূমি ছোট বড় নানা রাজ্যে বিভক্... কবিতামঞ্জরী - কবির কবিতাগুচ্ছ শ্রেষ্ঠ প্রাণী অশোক ঘোষ ধরণীর মাঝে যত প্রাণী আছে সবা হতে আ... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share मेरी कविताए (6) 1.5k 8k 2 मेरी कवितायें डॉ. गायत्री राव ये किताब समर्पित है : मेरे माता - पिता ; मेरी प्रेरणा - सौम्या तंडन जी को प्राक्तन "अगर कलम गहना है, तो शब्द उसके मोती हैं" ये तीन साल पहले की बात हे जब मे अपनी लेखन को लेकर मनोभावपूरव प्रबल हुई और विभिन्न शैलियो पर अपनी लेखन का प्रयोग शुरू की | कई यदाचीत विषयो पर अपनी बचपन से लिखना शुरू किया था और समय के परे विभिन्न विषयो पर ; मेरी प्रेरणादायक संगति पर लिखने की प्रयास मे प्रगती करने लगी | मे इस लेखन के क्षेत्र मे एक अबूभवहीन व्यक्ति मानती हू ,और मेरी ये किताब "मेरी कविताए " के ज़रिए मेरी ये पहली प्रयास दुनिया के सामने प्रस्तुत करती हू | इस पुस्तक में कविताओं की अधिकांश रचना मेरी भावनाओं का अभिव्यक्ति है, जबकि कुच्छ कागज पर मेरे प्रेरणादायक विचार हैं | लेखक के बारे मे कला , विभिन्न रूपो मे आती है , और शब्द मे पिरोए दिल की भावनाओ को जताए लेखन हे | पेशे से एक डॉक्टर , डॉ. गायत्री राव एक उभरते लेखक है | विभिन्न कला मे रूचि रखने के साथ , अब लेखन के क्षेत्र मे भी अपना पहचान बनाने चली है | वह एक उग्र पाठक होने के साथ-साथ विभिन्न शैलियों मे और भाषाओ मे लिखने का आनंद लेती है | अपने सक्रिय कार्यक्षेत्र के अलावा उन्होंने चित्रकारी, कविताओं को लिखने, लघु कथाएँ लिखने के लिए अपने जुनून का क्षितिज बढ़ाया | उसकी इच्च्छा दुनिया से अपनी कला और लेखन के साथ जुड़ना है, इसके लिए उसने ब्लॉगिंग और विभिन्न गैलरी के माध्यम से , चित्रकारी के प्रदर्शन से शुरूवात किया | वह अपने प्रवर्ततियों में विश्वास करती है और उसका मकसद उसके काम के माध्यम से प्रेरणादायक, अद्वितीय, गहरे सकारात्मक संदेश देना है | उनका जीवन वैज्ञान और डॉक्टरी के क्षेत्र में समर्पित है, लेकिन कला, लेखन और संगीत के लिय उनका उत्साह कभी पीछे नहीं रहा है | इतना ही नहीं, 2015 में, भारत के माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्च्छ भारत अभियान में भाग लेने से देश में उनके योगदान ने उन्हें वर्ष 2015 में सब टीवी के लोकप्रिय ताराक मेहता का उल्टा चाशमा पर स्वछता सेनानी पुरस्कार के साथ सम्मान के लिय नेत्रत्व किया | "मेरी कविताए " इनकी पहली प्रयास है अपनी कविताओं के ज़रिये अपनी भावनाओ को व्यक्तिगत रूप में प्रस्तुत करने का और इस पुस्तक में कविताओं की अधिकांश रचना मेरी भावनाओं का अभिव्यक्ति है, जबकि कुच्छ कागज पर मेरे प्रेरणादायक विचार हैं | सूचि प्रकरण 1. मेरी आशायें ---------------------------------------------- 2. वक़्त------------------------------------------------------- 3. बचपन------------------------------------------------------ 4. मैं नारी हूँ--------------------------------------------------- 5. वो रात अजब सी ..---------------------------------------- 6. यादें ------------------------------------------------------- 7. ज़िंदगी ----------------------------------------------------- 8 .सपने ------------------------------------------------------ 9. मेरी परछाई------------------------------------------------- 10. इंतज़ार----------------------------------------------------- 11. ख्वाइशें----------------------------------------------------- 12. मेरी उड़ान -------------------------------------------------- 13. अजनबी हूँ मैं --------------------------------------------------------- 14. कट्पुतली ---------------------------------------------------- 15. कोरा काग़ज़ ------------------------------------------------ 16. नारी -------------------------------------------------------- 17. बेरोज़गारी ---------------------------------------------------- 18. कुछ बातें ऐसी …------------------------------------------------------ 19. मेरी प्रेरणा हो तुम------------------------------------------- 20. कोहरा ------------------------------------------------------ 21. पल दो पल की यादें ------------------------------------------------- --- 22. एक अकेली औरत ---------------------------------------------------------- 23. कविता------------------------------------------------------------------------ 24. घर से दूर--------------------------------------------------------------------- 25. फिर वो दिन..------------------------------------------------------------------------- मेरी आशायें डॉ गायत्री राव सागर की लहर छूती है जैसे किनारे तरसती है मेरी आशायें एक किनारे की तलाश में उड़ते हुए पंचियों को जब देखे मेरी निगाहे ऐसी ऊँचाइयो को छूने की आस लेती मेरी आशायें मेरी आशायें जैसे रात के जगमगाते सितारे भले टूटे मेरे सपने पर ना बिखरे मेरी आशायें सुख दुख़ की रीत में दुनिया बसी है इसी सुख दुख की नाव में बहती है मेरी आशायें मेरे मन के भीतर बसी आशाओं की नदी है सागर से मिले की आस लिए बैठी है कभी उगता चाँद तो कभी ढलते सूरज देती मुझे राहें मंन की यही व्यथा है मेरी आशाओं का बहता दरिया है पाया नही किनारा है मेरी आशायें एक चंचल धारा है वक़्त डॉ गायत्री राव कभी कभी मैं ये सोचा करती हूँ आख़िर ये वक़्त क्या है जिसपे हम निर्भर है क्या ये कोई अदृश्य धारा है या कोई चमत्कार है क्या ये कोई माया है या भ्रम है आख़िर ये वक़्त क्या है जिसपे हम निर्भर है ना किसी के लिए रुकता है ना किसी के आगे झुकता है ना इसकी कोई सीमा है क्या ये कोई विशाल सागर है आख़िर ये वक़्त क्या है जिसपे हम निर्भर है किसी के कल में रहता था किसी के आज में रहता है आख़िर ये वक़्त कहाँ बहता है जिसपे हम निर्भर है किसी के खुशी बनकर आता है किसी के घाम की महफ़िल सजाता है आख़िर ये वक़्त कितनो को सवार्ता है जिसपे हम निर्भर है कभी गुज़रता है तेज़ी से कभी धीमी रोशनी दे जाता है क्या ये वक़्त कभी थमा है या ये भी कोई माया है क्या किसी को खबर है आख़िर ये वक़्त क्या है जिसपे हम निर्भर है बचपन डॉ गायत्री राव मॉ के आँचल में जब सर रखकर सोती थी वो अपनी कोमल स्पर्श से बाल सहलाते लोरी सुनती थी निंदिया की गोध में सुहाने सपने सवार्ती थी ना फ़िक्र ना परेशानी होती थी हर मौसम सुहाना था कभी चलती काग़ज़ की नाव तो कभी पकड़ते तितलिया भरमार ज़िंदगी बस खुशियों का ख़ज़ाना था ना खबर होती थी सुबह की ना शाम का ठिकाना था किताबो से होती जहाँ आँख मिचोली दोस्तों के संग मस्ती के बहाने अनमोल था. रोने की ना वजह थी ना ह्सने केलिए कोई बहाना मासूमियत सी भारी ज़िंदगी का बचपन एक अनोखा दास्तान था मैं नारी हूँ डॉ गायत्री राव मे लाडली हूँ हस्ती खिलती कली हूँ अपनी माता पिता की परी हूँ सबकी आँखों का तारा हूँ मैं बेटी हूँ घर की आँगन की खुशी हूँ दूसरों की घर की ज्योति बॅन विदा होकर जाती हूँ मैं पत्नी हूँ अर्धांगिनी हूँ पति के संग रहूं वो संगिनी हूँ मैं मॉ हूँ ज़नम देती हूँ नये सिरे को जनम देती हूँ मैं ममता की मूरत हूँ मैं अंधेरो की रोशनी हूँ एक मिसाल हूँ मैं नारी हूँ मैं नारी हूँ वो रात अजब सी .. डॉ गायत्री राव वो रात अजब सी थी जब मैं नदी किनारे बैठी थी ढलते सूरज को देखते हुए गहरी सोच में डूब गयी थी वो रात अजब सी थी मैं अपना सब कुछ लिए अपने ही भंवंडर में डूब रही थी वो रात अजब सी थी जब पानी की सैलाब में मेरी आँखें डूबी थी वो रात अजब सी थी जब दिल बेपनाह हुई थी शोर ओ शौखत से आकर जैसे एक सन्नाटे में खोगई थी एक ख्वाइश लिए चल पड़े थे मेरे कदम वो ख्वाइश पूरी करने की आस में डूबी हुई वो रात अजब सी थी जब मैं साहिल तक आके अपनी निशान छोड़गई थी... यादें डॉ गायत्री राव आज दिल के दरवाज़े पे पुरानी यादों ने दस्तक दी है चल पड़ी हूँ आज मैं अपनी यादों की महफ़िल में कुछ पन्नो को छोड़ कर उन बातों को तराशा है वो जो दिल के करीब था कोई उनकी यादों को समेटा है इस अंजानी दुनिया में कई चेहरे घूमते है कुछ अपने तो कुछ बेगाने मेरी नज़र बस उस चेहरे पे थम जाती है जो अपना सा लगता है बिना उनके जैसे मेरी यादों के पन्ने बिखर जाती है खुद की यादें भी जैसे पराई लगने लगती है ऐसा क्यू होता है जब अपना कोई खो जाता है एक सन्नाटा सा छा जाता है उस चेहरे के जाने से जैसे सब बदल जाता है पल भर में बिखरी यादे पल भर में बदला ज़माना आज दिल के दरवाज़े पे पुरानी यादों ने दस्तक दी है चल पड़ी हूँ आज मैं मेरे बिखरे पन्नो को जोड़ने ज़िंदगी डॉ गायत्री राव एक .बंद पिंजरे मे जैसे कट ती है ज़िंदगी अब कदमों ने हाथों को थामे गुज़ारे ज़िंदगी बिखरे पन्नो को जोड़ ने की चाहत लिए चले है हम दिल में एक ख्वाइश के दिए जलाए उस उजाले को ढूनडते है हम उड़ने की एक आस लिए अपने पंखों को खोले है हम बस एक आस है ज़िंदगी बड़ी सैलाब है इस डूबते दरिया में तैर ते हुए जीने के ख्वाब सजाए हम एक बंद पिंजरे में जैसे कट ती है ज़िंदगी खुले बाहें जैसे आज़ाद पंछी है अब ये ज़िंदगी सपने डॉ गायत्री राव जिसे चाहे उसे पा लूं सारी दुनिया को हथेली में ले लूं कुछ अलग कर सबको अपना रंग दिखाऊ काटो की राह पर चल,फूल बनके खिलूं पंछी बनकर , आसमान को छू जाउ खुद को ऐसा बनाऊ के दुनिया में हुनर से पहचान बनाऊ एक ख्वाब लिए चल पडी हूँ मैं सपनों की उड़ान लिए मेरी खोई हुई शक्षियत को पहचान दिलाने चली हूँ मैं मेरी परछाई डॉ गायत्री राव एक ही सवाल गूँज ती है कौन है वो जो मेरे पास अक्सर रहा करती है कभी मेरी घम का साया बनती तो कभी मेरी खुशी में मुस्कुराहट की परछाई बनती है मैं उदास रहूं तो वो उदास होती है दुख - सुख में हरदम मेरे साथ रहती है रोशनी में वो मेरी हमदम बनी रहती है मुश्किल हो मंज़िल वो हर कदम में मेरी हमसफ़र बनी रहती है उसे साया कहूँ या परछाई वो हरपाल मेरे साथ रहती है वो सिर्फ़ महसूस होती है मेरी परछाई मेरे जीवन में ख़ास है. इंतज़ार डॉ गायत्री राव लम्हा लम्हा इंतज़ार है उस एक लम्हे के लिए आए वो लम्हा एक पल के लिए राहों में खड़े हुए सुबह से शाम होगेयी नज़ाने कितने बरसातें और मौसम बीत गई पलकें झपकाए तो तुम्हारी छवि नज़र आती अभी मिलूं जो तुमसे एक ख़ास एहसास होता अभी मेरी खामोशी में तेरा चेहरा देती है हसी लम्हा थम जाए जब तुम सामने आती कभी ख्वाइश है मेरी की मेरी आवाज़ तुम तक पहुँचे अभी तेरे नैन से अपने नज़रें मिलाउ अभी और अपने दिल का इज़हार कर दु अभी घड़ी के काँटे नही लेती है रुखसत पर लम्हा लम्हा इंतजार है उस एक लम्हे के लिए आए वो लम्हा एक पल के लिए ख्वाइशें डॉ गायत्री राव मेरे दिल में है ख्वाइशे अनकही कैसे बताउ मैने सोचा ना था कभी नये पन्नो की तलाश में फिरती हू गली गली ना जाने मंज़िल कहाँ है मेरी मेरे दिल में है ख्वाइशे अनकही कैसे बताओ मैने सोचा ना था कभी इन आँखों में थम गये है आॅसु कई बेज़ुबान हो गये लफ्ज़ होटो तक आकर अभी मेरे दिल में है ख्वाइशें अनकही कैसे बताउ मैने सोचा ना था कभी दुनिया में रहूं कहीं पाती हूँ राहें अनदेखी सुनती है मेरी तन्हाई मेरी आरज़ू अनकही मेरे दिल में है ख्वाइशें अनकही कैसे बताउ मैने सोचा ना था कभी मेरी उड़ान डॉ गायत्री राव एक हाथ ने मुझे थामा था जब मेने अपने पावन् पहली बार ज़मीन पर रखा था गिरते संभालते लड़खड़ते हुए कदम बढ़ाया जिनकी ओर पलकें उठाकर जब देखा मैने अपनी माॅ का आँचल पाया था नज़रें मिली जिनसे पहले ख्वाब देखना सीखा उनसे मेरे ग़लतियों को सुधार कर सपनो को जब नया पंख मिला मैने अपनी माॅ का स्पर्श पाया था रहूं जब मैं अकेले पाए ना कुछ भी सांझ सवेरे डरूँ मैं जब अंधेरो से रोशनी में साथ दिया एक साया था मैने अपनी माॅ का साया पाया था कभी टूटे होस्नलों को जोड़े कभी रुके कदम को थामे मेरी हॉंसलों की उड़ान मे जिसको मेने पाया था मैने अपनी माॅ को अपनी हिम्मत में पाया था मेरी उड़ान जिसने भराया है मेरी ख्वाब जिसने सजाया है नये पंख जिनसे पाए है आज उसी हाथ हो मैने थमा है मेने अपनी माॅ को पाया है अजनबी हूँ मैं डॉ गायत्री राव इस अंजानी राहों पर चलती हुई मुसाफिर हूँ मैं मूढ़ते हुए गलियों के लिए एक अजनबी हूँ मैं दुनिया के सवालों से घेरी हुई एक जवाब हूँ मैं अपनी पहचान को ढूंडती हुई चलती हुई ख्वाब हू मैं मेरी तन्हाई पर मुस्कुराती है ये रास्ते मेरे अतीत को सांझती ये दीवारें नज़रें ताक्ति है उन दरवाज़ों को जिसने सुनी ना हो मेरी कदमों की आहटें जाउ जिस गल्ली पाया मेने अपना कुछ वो गल्ली एक मोढ़ पे आकर कदम रुक गई राह होगई थी पूरी वहीं टूटे हुए दीवार पर कुछ लिखा पाया जिसने मुझे अपना वजूद समझाया जो ना समझे मुझे एक प्रश्न हूँ मैं जिसने समझा मुझे एक खुली किताब हूँ मैं कट्पुतली डॉ गायत्री राव इंसान सा आकार है अनेक रूप है उठना चाहा , पर जान नही थी नही पता था मुझे में किसी की डोर से बँधी एक कट्पुतली हूँ हर बंधन को तोड़ , आज़ाद होना चाहती हूँ कभी उछला , कभी बदला तो कभी अपनी शब्दों तले मुझे नचाया ना है मुझे बॉल्नी का अधिकार ना मुझमें हिलने की ताकत किसी के इशारों पर चलती हूँ में किसी की डोर से बँधी एक कट्पुतली हूँ गाती , गुनगुनाती कभी दर्द में है मुस्कुराइ पर कुछ बयान ना कारपाई पाया नही खुद का दिमाग़ है फिर भी सब को अपनाया है में किसी की डोर से बँधी एक कट्पुतली हूँ अब हर बंधन को तोड़ , आज़ाद होना चाहती हूँ कोरा काग़ज़ डॉ गायत्री राव कहने अपनी जज़्बात कलम उठाया था मगर इन हाथों ने दम तोड़ दीया कहना था बहुत कुछ मगर अल्फ़ाज़ ने साथ छोड़ दिया दिल की बातें बयान करना चाहा था मगर बात ज़ुबान तक आकर होटो में सिलगए कुछ लम्हें वो मुस्कुराहट के पलकों में अब नामी बनकर छिपगए समेटकर यादें लिखने एक कविता कुछ शब्दों को तराशने लगी मगर शब्द भी मुखर गये ज़िंदगी की उन पन्नो में स्याही बिखरगया आख़िर काग़ज़ कोरा ही रहगया नारी डॉ गायत्री राव नारी से ही रीत है नारी से ही प्रीत है नारी शक्ति है तू संसार का प्रतीक है कभी ममता की मूरत है कभी स्नेह सा अभिमान है देती है जानम हमे तुझमें समाई ईश्वर की छाया है नामुमकिन को मुमकिन करें ऐसा तेरा काम है कभी तू यमराज से प्राण लाई कभी तूने हे तलवार उठाई अपनी कदमों को आगे बढ़ाते हुए दुनिया को है तूने चलाई ज़ाहा भी तू जाए वहाँ का तू मान है अनेकों रूप में ढली नारी तू एक इतिहास है तुझसे अंधेरो की अंत है तुझसे एक अज्वल भविष्य की शुरूवात है तू जीवन की धारा है तेरी अस्तित्व तेरी पहचान है तू एक वरदान है नारी तू महान है बेरोज़गारी डॉ गायत्री राव कुछ करने की चाह लिए चलता रहता हूँ कभी यहाॅ तो कभी वहाँ शहर शहर घूमता हूँ में एक बेरोज़गार हूँ कुछ करने की चाह लिए चलता रहता हूँ इंटरनेट की इस युग में गली गली भटकता हूँ इस एंप्लाय्मेंट एक्सचेंज के नाम में काई फॉर्म्स भरता हूँ कभी बुज़ुर्ग कहने लगते है बेटे तुम क्या करते हो अपना मूह छुपाए हासकर चला जाता हूँ सत्ता बदली , सरकरार बदले ना बदला रिज़र्वेशन का बुखार इस रोज़गारी के भोज तले मैं आज भी ओफ्फीशीयली बेरोज़गार ही कहलाता रहा बस इतना ही कहूँगा बेरोज़गारी में रहना नही आसान इतना समझ लीजिए ये सत्ता और रिज़र्वेशन्स का तराना है हमे चलते जाना है कुछ बातें ऐसी … डॉ गायत्री राव कुछ बातें ऐसी जो मेरे दिल के करीब है कुछ ख्वाब ऐसी जो मेरे अश्कों में बसी है काग़ज़ में पिरोए थे कुछ ऐसी बातें याद दिलाते है वो मेरे ज़िंदगी के बिखरे पन्ने कुछ खुशी के रंग थे तो कुछ बेरंग हो गये कुछ लम्हें ऐसी सुनेहेरे नज़ाने कहाँ खोगये एक भीनी सी खुश्बू कोने में छिपे रुमाल से जब आती है कुछ अनकही एहसासों को जताती है कहीं होती शुरूवात तो कहीं करवटें लेगयि नज़ाने किस मोढ़ पर आकर मेरी कहानी रुकगई कुछ बातें ऐसी , जो अब अल्फ़ाज़ बनकर रहगए कुछ ख्वाब ऐसी जो खयालो में रहगये मेरी प्रेरणा हो तुम डॉ गायत्री राव मेरी अभिलाषा हो तुम मेरी कल्पना हो तुम मेरी ख्वाब में बसी एक हसीन चित्र हो तुम मेरी मंन के भीतर छिपाए अनकही भावनाये हो तुम शब्द में पिरोए हुए कवि की कविता हो तुम बहती धारा की लेहर हो तुम सुर में मदहोश हो ऐसी गीत हो तुम मेरी साधना हो तुम मेरी उमंग को जताती एक आशा की किरण हो तुम मेरी हर सास में समाई वो एहसास हो तुम मेरी जीवन की परिभाषा हो तुम मेरी मुस्कुराहट का राज़ हो तुम मेरी प्रेरणा हो तुम मेरी प्रेरणा हो तुम कोहरा डॉ गायत्री राव घने कोहरे में ढके हुए खिड़की को देख जैसे मैं इन्न शब्दों को लिखती हूँ मेरे भीतर छिपे एक नयी दुनिया को खोज ती हूँ उन कोहरे के पीछे से उभरती नयी तस्वीरें है कुछ अनकही यादें तो कुछ नयी बातें दोहराती है उस कोहेरे से गुज़रती चली एक साया है ना भिन्न रूप ना आकार उसने पाया है हाथ मिलाने चली थी नज़दीक उस्स साये की के अचानक उगते सूरज में कोहरा ढाल गया वो साया नज़ाने कहाँ खोगया पल दो पल की यादें डॉ गायत्री राव बातें उनकी यादें उनकी पल दो पल की यादें हमारी हसी उनकी गीत उनकी पल दो पल की नघमो में यादें हमारी मीत उनकी प्रीत उनकी पल दो पल की इस महफ़िल में यादें हमारी दुआएं उनकी हज़रत उनकी चन्द लम्हों में यादें हमारी शब्द उनकी कलम हमारी चन्द लफ़्ज़ों की इन कविताओं में पल दो पल की यादें हमारी एक अकेली औरत डॉ गायत्री राव घर के एक कोने मे बैठी एक अकेली औरत है अपनी ही परछाई मे ढूंडती एक नयी दोस्त है रात की खामोशी मे सुनती अपनी धड़कने अपनी कोमल बाल सहलाती खोजती रोशनी की किनारे कभी मन ही मन मुश्कूराती तो तन्हाई मे बीते लम्हो को दोहराती इस अकेलेपन की भूल भूलइया मे एक अकेली औरत खो चुकी है मन्न के तेखाने मे कुछ अधूरे सपने बुन रही है कविता डॉ गायत्री राव खोए कभी तेरे शब्द व्यक्त मे करू दिल मे छिपी अनकही बातें उन्हे बया मे करू कभी दर्द मे कभी खुशी मे तेरी भावनाए स्याही मे लिखदू मे एक कविता हू कभी तेरी आशा की किरण बनकर मे आउ टूटे तेरे खाब मेर अल्फाज़ो से उन्हे पन्नो मे सज़ाउ तेरी हर अश्को में लफ्ज़ बनकर बहज़ाउ मे एक कविता हू तेरी प्रेरणा मे मै समाई तेरी भक्ति और भाव मे शक्ति बनके मे आई तेरी हर रंग मे तूने मुझे है पाई मे एक कविता हू घर से दूर डॉ गायत्री राव घर से दूर मे मजबूर मे मुसाफिर चलू मिलू दूर बेसबब राह थी और रेतो से घेरे मुकम्मल थी अंजानी राहो से गुज़रती मनज़ीन मेरी तख़्ती ये निगाहे अब उस मोढ़ पर रुकने की घर से दूर मे मजबूर मे मुसाफिर चलू मिलो दूर फिर वो दिन.. गायत्री राव आज दिल ने फिर वो दिन याद किया जब हाथ थामे मेरी माॅ ने मुझे चलना सिखाया था आज दिल ने फिर वो दिन याद किया जब सपने संग निंदिया को माॅ ने अपने आँचल में सावरा था आज दिल ने फिर वो दिन याद किया जब अंधेरोन में रोशनी बनके माॅ ने मुझमें हिम्मत दिया था आज भी वो दिन याद है अपनी दर्द को भूलकर माॅ ने मुझे हसना सिखाया था और आज दिल उन यादों को फिर जीना चाहता है उन सपनों की आँचल में खोना चाहता है फिर से उन्न हाथों को थामकर चलते हुए, माॅ , तेरी हर मुस्कान की खुशी बनना चाहा है Download Our App