एक अमूल्य हीरा- ओडोना
सोनिया गुप्ता
विश्व में अनेकों युद्ध लड़े गये, जिनका अंत भयानक ही रहा, कईं योद्धा शहीद हुए, कईं घायल हुए और कईं अपने परिवारों से बिछड़ गये ! पर इन्हीं युद्धों के दौरान कईं कहानियाँ और बनी, और पनपी, जिन्होनें या तो प्रेम का रूप लिया या कोई सीख दी, जो आज तक सभी याद करते हैं ! इस कहानी में एक ऐसे योद्धा का ज़िक्र है, जो कि दूसरे विश्व युद्ध में लड़ते हुए बच तो गया पर अपने देश की खातिर वो बाद में भी कईं वर्षों तक लड़ता रहा !
जापान का रहने वाला ‘हीरो ओनोडा’, जो कि जापान की ही एक कंपनी में काम करता था ! उसको आर्मी में भर्ती होने का शुरू से ही शोंक था, २० वर्ष की आयु में ही उसको सेना में भर्ती होने का प्रस्ताव मिला, और वह अपना सब काम,घर बार छोड़कर तुरंत वहाँ अपने देश की सेवा के लिए चल पड़ा ! वहाँ उसकी काबिलियत की बड़ी प्रशंशा हुई और उसको एक खास ट्रेनिंग के लिए चुना गया, जिसमें उसको गुर्रिला प्रशिक्षण सिखाया गया ! उस प्रशिक्ष्ण का उदेश्य योद्धाओं को यह सिखाना था की, विषम परिस्थितियों में किस तरह दुश्मनों का सामना किया जाता है और किस तरह गुप्त रहकर दुश्मन की सारी जानकारी हासिल की जाती है,तथा कैसे दुश्मन के होश उड़ाए जा सकते हैं ! १९४४ में दिसम्बर माह में उसको फिलिपीन के लुबांग द्वीप पर तैनात किया गया ! उसको यह बोला गया कि वह कार्य काफ़ी सख्त है,और उसको बहुत संघर्ष करना पड़ेगा,हो सकता है उसको कईं दिन तक भोजन भी नहीं प्राप्त हो, खाली नारियल ही मिले खाने को ! और उसको यह वादा दिलाया कि मिशन खत्म होने पर उसको सही सलामत वहाँ से ले आएँगे ! ओनोडा को एक टापू में छोड़ दिया गया और वह तभी से अपने मिशन पर जुट गया, उसने वहाँ मौजूद जापानी सैनिकों से सम्पर्क किया और वहाँ की सारी जानकारी हासिल की !
कुछ सप्ताह बीते, ओनोडा और उसके साथियों पर दुश्मनों ने आक्रमण कर दिया, जिसमें कईं योद्धा घायल हुए,पर कईं मर भी गये ! दुश्मनों ने सभी टुकड़ियों का पता लगा लिया, सिवाय ओनोडा और उसके दो तीन साथियों की टुकड़ी का पता कोई नहीं लगा सका ! कईं दिन तक उनको भूखा प्यासा रहना पड़ा, और कभी कभी तो गाँव वालों को डराकर वो खाने का इंतजाम करते थे !
करीब एक साल बाद यानि की १९४५ में, उसी गाँव के लोगों ने ओडोना और उसके मित्रों की टुकड़ी को यह खबर पहुंचाई कि किसी ने उनको यह बताया है, कि विश्वयुद्ध तो कभी का समाप्त हो चूका है, और उसमें जापान की हार हो गयी है,जापान ने अपने हथियार फैंक दिए हैं और खुद को आत्मसमर्पित कर दिया है ! परन्तु, ओडोना बहुत ही शातिर दिमाग का योद्धा था, वह समझ गया था कि यह केवल दुश्मनों की चाल मात्र है ! उसने अपनी टीम वालों को आश्वाशन दिलाया कि ये सब गाँव वाले मिलकर उनको गाँव से निकालना चाहते हैं, पर हम इनको कामयाब नहीं होने देंगे और अपनी जंग जारी रखी ! ओनोडा और उसके साथी गाँव वालों को मारने भी लग गये, और छिपकर जंगल में रहते रहे! एक दिन गाँव वालों ने तंग आकर अपनी सरकार से उनकी शिकायत कर दी, और अपनी सुरक्षा की मांग की ! कुछ दिन बाद वहाँ की सरकार ने पूरे जंगल पर आक्रमण कर दिया और पन्ने फिकवा दिए जिनपर लिखा था,कि युद्ध समाप्त हो चूका है, और परमाणु बम्ब भी तुम्हारे देश पर अमेरिका गिरा चूका है,अब वे खुद को समर्पित कर दें,छिपकर रहने का कोई मतलब नहीं बनता ! परन्तु, ओनोडा और उसके साथी is बात पर अभी भी भरोसा नहीं करते थे ! उन्होंने उनकी बात नहीं मानी,और वहीँ छिपे रहे ! वे यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि उनका देश ऐसे हार मान सकता है,उन्हें भरोसा था कि एक दिन उनको रिहा कराने उनकी सर्कार अवश्य आएगी !
जब वहाँ की सरकार ने देखा कि ओनोडा और उसके साथियों पर तो कोई असर ही नहीं पड़ रहा, तो माइक लेकर घोषणाएं की गयी, धमकी दी गयी, यहाँ तक कि जापानी अख़बार में भी सुर्खियाँ छपवाई गयी और उनके पर्चे भी जंगल में फैंके गये ! परन्तु ये जाबांज अपनी देशभक्ति में इतने परिपूर्ण थे कि उनको यकीन ही नहीं होता था !
यह सिलसिला कईं वर्षों तक ऐसे ही चलता रहा, ओनोडा और उसके साथी जंगल में छिपे रहे, और उन्होंने देखा कि अब वर्दी पहने सरकारी लोग आस पास कम नजर आते थे, और ज्यादा गोलाबारी भी नहीं होती थी, परन्तु ओनोडा दुश्मन को कमजोर नहीं समझता था, उसने अपने साथियों को कहा कि संकट अभी भी टला नहीं है, हो सकता है, सरकारी लोग आम वेश भूषा में गाँव में घूम रहें हों,हमें चकमा देने को ,ये सब दुश्मन की चाल है !
इसी तरह ये सब छिपकर ५ वर्ष तक और वहीँ रहते रहे ! परन्तु, उनमें से उनके एक साथी ने उनको धोखा दिया और खुद को जाकर आत्मसमर्पित कर दिया, बिना अपने साथियों को बताये ! जब यह बात ओनोडा और उसके दोस्तों को पता चली तो उन्होंने अपनी जगह और अपनी योजना दोनों को बदल लिया !
योद्धा लड़ते रहे और करते करते अगले ५ वर्ष और बीत गये ! उसके कुछ ही समय बाद उनमें से एक साथी मारा गया, और अब वे केवल दो ही शेष रह गये ! परन्तु उन्होंने हार नहीं मानी, और अगले १७ वर्ष तक वहाँ तैनात रहकर दुश्मनों की ख़ुफ़िया जानकारी हासिल करते रहे, उनको अपने देश पर इतना भरोसा था कि उनका देश ऐसे हार नहीं मान सकता, उनको यकीन था कि विश्वयुद्ध अभी भी जारी है! जबकि कईं बार ओनोडा का साथी विचलित हो जाता था और उससे कह देता था कि चल हम भी खुद को आत्मसमर्पित कर देते हैं, पर ओनोडा कहता कि उसको यहाँ भेजा ही इसी शर्त पर गया था कि वह हर हाल में अपने देश के लिए अंतिम क्षण तक जीवित रहेगा ! ओनोडा इसी विश्वास के भरोसे जिन्दा रहा !
अगले २७ वर्ष बीत गये, वहाँ की सरकार ने गोलाबारी के दौरान ओनोडा के साथी को भी मार दिया, अब ओनोडा अकेला ही रह गया था ! जब यह खबर जापान की सरकार तक पहुंची, तो उनको यकीन था कि ओनोडा अवश्य जीवित होगा ! उन्होंने अपना एक गुप्त जहाज़ फिलिपीन के उसी टापू मे भेजा जहाँ ओनोडा तैनात था, परन्तु,जैसा की यह योद्धा छिपने में माहरत हासिल कर चुका था,उसकी खुद की देश की सरकार भी उसको खोजने में नाकामयाब रही और बिना उसको ढूंढें ही जापान लौट आई !
इसके दो वर्ष बाद घटना में एक मोड़ आया, दो वर्ष बाद एक जापानी नवयुवक ‘सुजुकी’ जो कि एक विद्यार्थी था, उसने एक योजना बनाई और एक प्रण लिया, कि वह विश्व दौरा करेगा और उसने इसके लिए तीन चीजों को खोजना अपना लक्ष्य बनाया ; ओनोडा, पांडा, तथा स्नोमैन !यहाँ एक अनोखा दृश्य सामने आया, इतने वर्षों से जिस ओनोडा को पूरा जापान नहीं खोज पाया, उसको इस नवयुवक ने खोज लिया ! सुजुकी उसी टापू प्रज्ञा झनोनोद को छोड़ा गया था और सुराग इक्कठे कर ओनोडा तक पहुंचा! सुजुकी ने ओनोडा को विश्वास दिलाया की युद्ध कबका समाप्त हो गया है, चलो अब घर चलो, तुम्हारे परिवार के सभी सदस्य तुम्हारी राह तक रहे हैं ! पर देशप्रेम का भक्त, ओनोडा, किसी बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था ! ओनोडा बड़ा ही काबिल योद्धा था,जिसने अकेले ही इतने वर्षों में नजाने कितने ही दुश्मनों को अपनी गोली का शिकार बनाया था,और कितने ही चालाक दिमाग से दुश्मनों के छक्के छुड़ाए ! उसने सुजुकी को बोला,मैं अपने वचन का पक्का हूँ,मुझे मेरी सरकार ने एक भरोसे पर यहाँ भेजा था,और कहा था कि युद्ध खत्म होने पर वो मुझे लेने अवश्य आएँगे, अगर वो जिंदा रहा तो !उसने सुजुकी को जाने को बोल दिया ! अंत में सुजुकी हारकर अकेला ही लौट गया और उसने जापानी सरकार को समस्त घटना के बारे में बता दिया ! सुनकर जापानी सरकार के रोंगटे खड़े हो गये,और साथ ही उनको ओनोडा पर फक्र भी महसूस हुआ !
जापानी सरकार अपने योद्धा को अब ऐसे हाल में नहीं देख सकती थी, उन्होंने उस समय के तत्कालीन रिटायर्ड कमांडो को सूचना भेजी और सैनिकों की टुकड़ी लेकर फिलिपीन पहुंचे, उसी टापू पर जहाँ,ओनोडा रहता था, जब जापानी सरकार ने सारा सच उसको बताया, ओनोडा की आँखों में आंसुओं की धारा बहने लगी, उसको यकीन नहीं हो रहा था, कि उसने अपनी जिंदगी के इतने साल एक झूठी आस में ही बिता दिए ! मन ही मन खुद को कोस रहा था यह योद्धा कि उसके हाथों जाने अनजाने ही कितने ही बेक़सूर गाँव वासियों की हत्या हो गयी, अनायास कितने ही पापों का भागीदारी बन गया वो!
खायर जैसे कैसे खुद को सम्भाला, और सैनिक की वर्दी पहने ही जंगल से बाहर निकला, निकलते ही सबसे पहले,अपनी बंदूक फिलिपीन राष्ट्रपति को सौंपी और खुद का आत्मसमर्पण करते हुए उनसे माफ़ी मांगी ! परन्तु, फिलिपीन सरकार को भी ऐसे देशप्रेमी पर नाज़ था, उन्होंने उसको बोला,कि तुमने कोई गुनाह जान बूझ कर नहीं किया है, यह उसका उसके देश के प्रति समर्पण और निस्वार्थ प्रेम था,जो वह अंत तक यही समझता रहा कि उसका देश ऐसे युद्ध में हार मान ही नहीं सकता, इसीलिए यही सोचता रहा कि युद्ध अभी भी चल रहा था शायद ! उसको पूरे सम्मान के साथ वहाँ से विदा किया गया !
जैसे ही ओनोडा जापान पहुंचा, उसका जापानी सरकार ने विशेष रूप से स्वागत किया,और उसको एक नायक की उपाधि प्रदान की,उसके कंधों पर तगमो से सुस्स्जा की गयी, सर पर टोपी डालकर,उसको बन्दूकों की सलामी दी गयी ! सरकार ने उसको अपने देश के लिए बिताये ३० वर्षों के लिए ख़ास मानदेय भी प्रदान किया ! बकायदा उसको वेतन और उसके परिवार का व्यय खर्च भी दिया !
ओनोडा अपने देशभक्ति और समर्पण से बेहद संतुष्ट था ! उसने अपनी जमा की पूँजी में से गरीबों के लिए कईं कार्य किये, और कईं अनाथ बच्चों को दान दिया ! उसने कईं नवयुवकों को अपनी सीखी हुई प्रशिक्ष्ण विद्या सिखाई, और देश के प्रति प्रेम को उजागर किया ! ओनोडा को सिर्फ एक ही चीज खटकती थी,बदला हुआ जापान, जो कि आधुनिकता के घुन में is तरह जंग लगा चुका था, कि जैसे एक शुद्धता तो अब रही ही नहीं थी वहाँ के वातावरण में ! कुछ सालों बाद वह जापान छोड़कर ब्राजील चला गया और वहाँ के एक छोटे से गाँव में रहने लगा ! वहीँ उसने शादी भी की, और अपनी जिंदगी का नया सफर शुरू किया !
१९९६ में ओनोडा उसी जगह,उसी गाँव, उसी टापू पर गया,जहाँ फिलिपीन सरकार से छिपकर वो इतने बरसों रहा, उसने वहाँ के गाँव वालों के नाम अपनी जमा पूंजी में से एक निश्चित १०००० डालर राशी का दान किया ! और वहाँ के लोगों से क्षमा याचना भी मांगी ! ओनोडा ने एक ऐसी डोकुमेंटरी भी निकाली जिसका नाम रखा “नो सरेंडर, माय ३० इयर वार” ! यह आज भी इसी नाम से प्रचलित है !
कईं वर्ष बीते,ओनोडा ने अपने जीवन में और बहुत से नेक कार्य किये ! १७ जनवरी २०१४ को ९१ वर्ष की आयु में ओनोडा का निधन हो गया ! जापान ही नहीं अपितु समस्त संसार ओनोडा के जीवन को सम्मान देता है, उनको सलाम करता है, उनके देशभक्ति भाव और समर्पण को आज तक याद किया जाता है !
आज के is बदलते दौर में ऐसे नायक मिलने तो दूर, उनका नाम तक सुनना नसीब नहीं होता !स्वार्थ से भरे इस संसार में केवल अपने ही हितों के बारे में लोग सोचते हैं और अपने देश को भूल चुके हैं ! ओनोडा की जीवन कहानी से एक सीख मिलती है, कि सच्चा योद्धा वही है जो अंतिम क्षण तक अपने देश के लिए अपने प्राणों की परवाह न किये बगैर लड़ता रहे! जिसमें देश के प्रति भक्ति भाव का जज्बा इस कद्र जागृत रहे कि कितने भी तूफान आ जाएं, कितनी भी मुश्किलें आ जाएं, पर अपने कर्तव्य को हरगिज़ नहीं छोड़ेगा !
विश्वयुद्ध शुरू हुआ, लड़ा गया, समाप्त हुआ, पर कईं ऐसी कहानियों को जन्म दे गया, जो इतिहास के पन्नों अमर होकर रह गयी हैं ! ऐसे वीरों को शत शत नमन !
इन चाँद सितारों का देखो कहना है
‘ओडोना’ सा पाया हमने गहना है
बीच नहीं है चाहे हम सबके तू ,
हमेशा दिलों में पर तूने रहना है !
डॉ सोनिया /सर्वाधिकार सुरक्षित ३०.४.१८.