अभिमन्यु लड़ रहा है।
कविता वर्मा
रात का सन्नाटा अपने चरम पर था। गली भी दूधिया रोशनी में ऊँघ रही थी। अपने इलाके की लड़ाई लड़ते कुत्ते अब थक कर किसी ओटले की ओट में गुड़ीमुड़ी एक दूसरे से सटे एक दूसरे को गर्मी पहुँचाने की कोशिश करते नींद की आगोश में पहुँच चुके थे। हर घर के दरवाजे खिड़की पूरब की तीखी ठंडी हवा की तीक्ष्ण मार से बचने के लिए कस कर बंद थे। हर घर रजाई कम्बल गोदड़ी की गर्माहट में डूबा हलके भारी खर्राटों से गूँज रहा था। उस रात गजब की ठण्ड थी। ठण्ड ने सुबह से ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे। सूरज ने भी उससे साँठ गाँठ कर उसका साथ दिया था। सुबह देर से उसने अपनी गर्माहट बिखेरी तो शाम को जल्दी ही उसे समेट कर चल दिया। घरों में अँधेरा भरने के पहले ही अँगीठी अलाव जल गए थे लेकिन वे भी कब तक इस ठिठुरन से लड़ते सब सिर पटक कर लस्त पड़े थे।
ऐसी सर्दी में पैर उठाकर रजाई अलग फेंकते और हाथों को रजाई से बाहर निकालते उसने गुड़ीमुड़ी शरीर को सीधा कर पीठ बिस्तर पर फैलाई। कमरे की ठंडी हवा शरीर की गर्माहट महसूस कर उसकी तरफ लपकी तो एक ठंडी लेकिन सुकून भरी सिहरन उस उनींदे शरीर में दौड़ गई। वह कसमसा सी गई। रजाई के अलावा शरीर से उपजी गर्मी ने उसकी गर्दन वक्ष पेडू को पसीने से भिगो दिया था। प्यास से उसका मुँह ही नहीं गला भी सूख रहा था। एक सनसनाहट सी पूरे शरीर में दौड़ती उसकी रीढ़ को कंपकंपा रही थी। उसने रजाई से बाहर निकले एक पैर के पंजे को रजाई के अंदर पड़े दूसरे पंजे पर बैचेनी से ऊपर से नीचे रगड़ा मानों उस सनसनाहट को ऊँगलियों के पोरों से होते हुए शरीर के बाहर निकाल रही हो। लेकिन वह बाहर निकलने के बजाय दूसरे पंजे में प्रवाहित हो तीव्र गति से पिंडलियों जांघों से होती उस तप्त गुहा में समाकर उसे और बैचेन कर गई। अनायास नींद में उसका हाथ वहाँ पहुँचा उँगलियां भींच गईं जैसे उस सनसनाहट और बैचेनी को थाम लेंगीं। उसने अकबका कर आँखें खोलीं। कमरे में लगा नीला बल्ब उसे यथास्थिति दिखाने में सक्षम था। उसने बाईं ओर करवट बदली। ठन्डे खाली बिस्तर पर हाथ फेरते वह बेबसी के एहसास में डूब गई। दो बूँद आँसू बाईं और से उठाकर तप्त सीने से लगाए ठन्डे तकिये में जज्ब हो गये। उसने खाली ठन्डे बिस्तर पर हाथ फेर बिस्तर की ठंडक से इस जलन को शांत करने की कोशिश की।
अभी दो दिन पहले तक इस बिस्तर के बाईं तरफ करवट लेकर वह सुकून की सरगोशियों में डूब जाती थी। दो मजबूत बाँहों के बंधन और चौड़े सीने के सहारे इस तूफ़ान से पार पा जाती थी। उसके शरीर के कटाव और गोलाइयों पर सरसराती उँगलियाँ , तप्त होंठों की फड़कन को दबाते होंठ , कसमसाते बदन को मजबूत जकड़न से रोकते मजबूत बाँहों और पैरों के बंधन। वह संतृप्त हो नींद के आगोश में समा जाती। आज बाईं ओर का वहखाली बिस्तर उसके अंदर की तड़प को बेबसी में बदल रहा है।
पंद्रह दिन पहले ही तो वह ब्याह कर इस घर में आई थी। उस रात दरवाजा बंद होने की आवाज़ के साथ उसने सिर उठा कर मजबूत कद काठी के अभिमन्यु को अपने समक्ष खड़े देखा था। उसके शेरवानी उतारने के बाद उसके चौड़े सीने और बाँहों में फड़कती मछलियों को देखकर तो जैसे वह पलक झपकना ही भूल गई थी। अभिमन्यु की शरारती आँखों से नज़रें मिलते ही वह लाज से खुद में सिमट गई थी।
शुरूआती आठ दिन सोने से और रात चाँदी सी ही गुजरी लेकिन उसके बाद हर रात पर विरह की काली छाया बढ़ती गई। एक दूसरे में खोकर वे दोनों इस छाया से बचने की कोशिश जरूर करते लेकिन मौका मिलते ही वह पहले से और विशाल रूप में दोनों के बीच आ खड़ी होती। फौज में सूबेदार अभिमन्यु को छुट्टी ख़त्म होते ही जाना था। एक दो दिन और रुक जाने की उसकी मार्मिक गुहार भी उस फौजी के अनुशासन को डिगा ना सकी। अभिमन्यु के लिए तो जाना मुश्किल था ही सावी की ललक का अंदाजा हो जाने के बाद वह और ज्यादा कष्टकारी हो गया था। आधी रात में उसे जगा देने वाली सावी अकेले कैसे रहेगी यह बात अभिमन्यु को भी परेशान कर रही थी। उसके ना रहने पर शायद सावी की ललक खुद ब खुद कम हो जाये यही सोच कर वह दिल को तसल्ली देता रहा।
चारों ओर भयावह सन्नाटा था। दूर दूर तक फैली बर्फ की चादर गहरे काले आसमान में छिटके पड़े तारों की रौशनी में भी भरपूर चमक रही थी। सीमा से कुछ ही मीटर अंदर उस सर्द कठोर जमीन पर घासफूस और बर्फ हटा कर अपनी मशीनगन की दूरबीन पर आँख गड़ाए कुहनी और सीने के बल लेटे जवान उस पार होने वाली हलचल के प्रति सतर्क थे। दूर दूर तक नीरव निस्तब्धता एक डरावना मंजर पैदा कर रही थी। अभिमन्यु और उसके साथियों के लिए तो यह रोज़ की बात थी। वीराने में कर्तव्य को गर्मजोशी से ओढ़े ये जवान हर रात गुजार देते थे। ऐसे में अपने शरीर की किसी और जरूरत का उन्हें भान ही कहाँ रहता था ? थक कर चूर अभिमन्यु सुबह ड्यूटी से फारिग होकर जब अपने बैरक में पहुँचता तब सावी की याद उसे घेर लेती। बैरक में सभी अकेले थे इसलिए सभी एक दूसरे के साथ थे। आपस के हँसी मजाक चुटकुले किसी की याद को किसी के साथ रहने ही कहाँ देते थे। उनकी बातों पर हँसता मुस्कुराता अभिमन्यु दिल की उदासी को पलकों में छुपाकर सो जाता।
"काका जी प्रमाण , कैसी हो काकी प्रमाण। " विनय की आवाज़ सुन उदासी में डूबे घर में झनझनाहट सी हुई। चार दिन मेहमानों और शादी की रौनक और दस दिन अभिमन्यु के रहने से नई दुल्हन की रुनक झुनक अभिमन्यु के जाते ही सन्नाटे में बदल गई थी।
"आओ बेटा बड़े दिनों बाद रास्ता भूले ," काकी ने लाड से उलाहना दिया। अभिमन्यु के बचपन का दोस्त है विनय बचपन से जवानी तक उसके कितने ही दिन शामें रातें इसी घर में गुजरती थीं। अभिमन्यु के फौज में भर्ती होने के बाद वही काका काकी का सहारा था। वक्त जरूरत हारी बीमारी से लेकर शादी की तैयारियों तक कोई काम विनय के बिना होता ही कहाँ था ? वही विनय अभिमन्यु के ड्यूटी पर लौटने के पंद्रह दिनों बाद आज आया है।
" काकी शहर में मौसी की तबियत ठीक नहीं थी तो उनके पास चला गया था। "
"अरे " अब ठीक हैं मौसी से शुरू हुई बातें घर परिवार गाँव शहर काम धंधे से लेकर कहाँ कहाँ तक चली जातीं अगर रुनझुन पायल की झंकार ने उन्हें रोक ना लिया होता। चाय पानी की ट्रे तिपाई पर रखकर सावी पलटी ही थी कि "कैसी हो भौजी ?" की आवाज़ ने उसे रोक लिया। "लगता है हमें पहचान नहीं रहीं हैं आप। " विनय ने हलके से परिहास से रुक कर जवाब देने को मानों मजबूर कर दिया।
"पहचानेंगे कैसे नहीं बिलकुल पहचानते हैं? इस परिहास ने सावी को भी बोलने का हौसला दिया। महीने भर की ब्याही बहू शादी के बाद पहली बार किसी गैर मर्द से बात करने में संकोच तो करेगी ही। अकेलेपन से जूझती सावी को किसी से बतिया लेने की उत्कंठा ने भी बल दिया। बात करते विनय ने एक भरपूर दृष्टी सावी पर डाली। माथे तक खिंचे घूँघट की ओट में आधे छुपे चेहरे की उदासी और आँखों का सूनापन उससे छुप ना पाये। सावी भी शायद भाँप गई कि उसकी दशा पढ़ ली गई है वह हड़बड़ाकर पलटी तो विनय ने अचकचा कर अपनी नज़रें हटा कर ट्रे में रखा पानी का गिलास उठा लिया और एक साँस में पी गया।
उस रात सीमा पार से हुई फायरिंग ने अभिमन्यु के बगल में तैनात सैनिक को बुरी तरह घायल कर दिया। एक हताशा सी तारी होने लगी थी अभिमन्यु पर जब वह उसे अधलेटे ही घसीट कर ढलान पर ले गया। अचानक सावी का चेहरा कौंधा था उसके जेहन में। अगर इसकी जगह वह होता तो ? उस शाम उसने सावी से बात की तो वह भावुक हो गया। अभी तो वह छुट्टियों से लौटा है अगले छह महीने तो अभी छुट्टी भी नहीं मिलने वाली। उसे ही सावी के बिना नहीं रहना सावी को भी उसके बिना रहना है , कैसे रहेगी वह अभिमन्यु सोचने लगा। सावी की उसके लिए वह तड़प वह ललक याद करके दिल के एक कोने में खुद के लिए गर्व होता है तो दूसरी तरफ वह सोच में पड़ जाता है। वह कुछ कहता नहीं है क्या कहे ? कुछ कहकर दोनों की ही उदासी और अकेलेपन को कुरेदना ही तो है।
सावी ने अब घर की माँ पिताजी की सारी जिम्मेदारियाँ संभाल ली हैं। सौदा सुलुफ लाने से लेकर घर बाहर के हर छोटे बड़े काम वह करती है बहू है घर की। बुढ़ापे के कारण पिताजी और गठिया के दर्द में जकड़ी माँ चलने फिरने से वैसे भी लाचार हैं। आजकल तो सावी मंदिर भी जाने लगी है साथ ही जानपहचान रिश्तेदारी में मिलने जुलने भी है। अच्छा है सबसे मिलते जुलते मन लगा रहता है बहू का माँ पिताजी यही सोच कर संतुष्ट हैं।
पिछले पाँच दिनों से फायरिंग चल रही है। अभिमन्यु के तीन साथी मारे जा चुके हैं। हर साथी को ताबुत में उतारते उसका दिल डूब जाता है। कभी कभी वह वहीँ खड़े एकटक अपने साथियों की निष्प्राण देह को ताकता रहता है। कभी कभी उसे उस देह पर अपना चेहरा नज़र आता है तो कभी सावी का आँसुओं से भीगा चेहरा। अजीब सी मनस्थिति है उसकी। अपने कर्तव्य के प्रति तो सजग है लेकिन दिमाग में भारी उथल पुथल चल रही है। साथियों का शोक मोर्टार के धमाके सा दिमाग की व्यवस्थित भावनाओं को तहस नहस कर दे रहा है।
आज उसकी बटालियन में पाँच नये रंगरूट आये हैं। सख्त ट्रेनिंग के बाद पहली बार असली युद्ध में दुश्मन के आमने सामने आने से रोमांचित हैं। उनके जोश को संभालना बेहद जरूरी है कहीं कोई गड़बड़ ना कर दें स्थिति बहुत तनावपूर्ण है। अभिमन्यु उन्हें जरूरी दिशा निर्देश दे रहा है लिस्ट में अपने गाँव का नाम देख कर अभिमन्यु चौंक गया। "बुलाकीराम " वह आवाज़ लगाता है।
"यस सर की आवाज़ की तरफ नज़र घूमते उसने इस जवान को ध्यान से देखा। एक छोटे से कसबे के वासी जल्दी ही परिचय जान पहचान के कुछ सूत्र जोड़ कर एक दूसरे के आत्मीय बन गए।
रातों की लम्बाई घट चली है साथ ही ठंडी रातों में कुछ गुनगुनाहट घुलने लगी है। आधी रात में ऊँघती सड़कें अब देर रात या पौ फटने के पहले तक कुत्तों के अधिकार क्षेत्र की लड़ाई का मैदान बनी रहती हैं। कमरे में नीला बल्ब जल रहा है। नींद में उसने पैर से रजाई को एक तरफ फेंक दिया। ठंडी हवा ने उसके तप्त शरीर को हौले से छुआ तो उसने सुकून से गुड़ीमुड़ी शरीर को सीधा कर पीठ बिस्तर पर फैलाई।बाई ओर का बिस्तर खाली है उसने नींद में ही उसपर हाथ फेर अपने शरीर की तपन को कम करने की कोशिश की। चार महीने हो गए हैं अभिमन्यु को गये। वह हफ्ते में एक बार फोन करता है। सावी ठुनक कर उसे याद करती है। शुरू शुरू में तो उसके बिना बैचेन रातों की बात करते करते रो देती थी। बेबस अभिमन्यु किसी तरह उसे समझाता और कितनी मुश्किल से खुद संभलता यह सावी कहाँ जान पाती थी।
आजकल उनकी बातों में स्थिरता आ गई है। सीमा पर गोलीबारी की ख़बरों से सावी दहल जाती है। वह माँ पिताजी उनकी बीमारी दवा डॉक्टर खर्च की बातें करती है। अभिमन्यु सुकून की साँस लेता है सावी समझदारी से उसकी और खुद की जिम्मेदारी संभाल रही है। सावी ने उसे बताया है कि आजकल वह मंदिर भी जाने लगी है वहाँ उसे बड़ी शांति मिलती है। भगवान के दर्शन कर बड़ी हिम्मत मिलती है और वह अकेले सब संभाल पाती है। कभी कभी जब मन बहुत विचलित होता है वह देर तक मंदिर में बैठी रहती है। अभिमन्यु सुनकर सुकून महसूस करता है साथ ही उसे ध्यान से रहने और खुद का ख्याल रखने के लिए भी आगाह करता है।
"सावी इतनी देर तक मंदिर में बैठना ठीक नहीं है बेटा जमाना खराब है। लोगों की कुदृष्टि बहू बेटियों पर रहती है। सूरज ढलने के पहले घर आ जाया करो। " माँ चिंतातुर लाड़ से सावी से कहतीं।
" जी माँजी जाने कैसे आज मन रम गया उठते ही नहीं बना अब से ध्यान रखूँगी।" धीमे से कहकर सावी रसोई में चली गई। उसका रोम रोम प्रफुल्लित है तन मन बेहद हल्का है वह मंद स्वर में गुनगुना रही है उसका रोम रोम गुनगुना रहा है। सावी खाना बना रही है पिताजी जल्दी खाना खाते हैं उसके बाद उनकी दवाई का समय हो जाता है।
अभिमन्यु और बुलाकीराम में स्नेह सूत्र मजबूत हो रहा है। ड्यूटी के बाद का समय वे साथ साथ बोलते बतियाते बिताते हैं। माँ की बीमारी की खबर मिलते ही बुलाकीराम ने छुट्टी की अर्जी दी है। कुछ दिनों से सीमा पर शांति है इसलिए स्पेशल केस में उसे हफ्ते भर की छुट्टी मिल गई है। अभिमन्यु ने उससे विशेष अनुरोध किया है कि वह घर जाते हुए थोड़े से सेब और दो शॉल ले जाये।
अभिमन्यु की ड्यूटी बदल गई है। सीमा पर बर्फ पिघल रही है बसंती बयार तन मन में पुलक भरने लगी है। देर रात तक अभिमन्यु सावी का फोटो लिए उससे बातें करता रहता है। उसकी बलिष्ठ बाहों में दुबकी छुईमुई सी सावी उससे लिपटी उत्तेजना से काँपती सावी , आधी रात में नींद खुल जाने पर उसे कौतुक से ताकती सावी। अभिमन्यु पागल हो जाता है ख्यालों में उसे बाँहों भर कर उसके चेहरे माथे बालों पर चुम्बनों की झड़ी लगा देता है। उसके अकेलेपन के लिए खुद को जिम्मेदार मान कर सावी से माफ़ी माँगता है। "मुझे माफ़ कर दो सावी मुझे तुम्हें अकेले छोड़ कर आना पड़ा। " वह बुलाकीराम के वापस आने की राह देख रहा है। उसने उसे ख़ास ताकीद दी है सावी कैसी है ठीक से देखे समझे उससे बात करे। उसकी हँसी को परखे कहीं माँ पिताजी की ख़ुशी के लिए नकली हँसी तो नहीं ओढ़ रखी है।
बुलाकीराम वापस आ गया है। बुलाकी घर गया था सबसे मिलकर आया है। माँ ने देशी घी में बने आटे लड्डू भेजे हैं। नमकपारे चूड़ा सत्तू भी भेजा है। अभिमन्यु सावी के हालचाल जानने को उत्सुक है उसके साथी घर से आये खाने पीने के सामान पर टूट पड़े हैं लेकिन उसे उसकी रत्ती भर भी चिंता नहीं है।
"बुलाकी तुम्हारी माँ कैसी हैं अब ?" अचानक अभिमन्यु को याद आता है।
" अब ठीक हैं मुझे देखकर ज्यादा अच्छी हो गई हैं। " बुलाकी अभिमन्यु का इशारा समझता है। उसे अभिमन्यु को बहुत कुछ बताना है गाँव की खबरें कम नहीं होतीं।
आज फिर तारों भरी रात है अभिमन्यु और बुलाकी बंद गले की जैकेट पहने तारों की छाँव में बैठे हैं। बर्फ पिघलने से जहाँ तहाँ घास उग आई है लेकिन उसकी हरियाली रात की कालिमा को सोख कर उसे और गहरा बना रही है जिससे तारों की रौशनी दूर तक दिखाने में असमर्थ है। दोनों पास पास बैठे हैं लेकिन एक दूसरे के चेहरे बहुत साफ़ नहीं देख पा रहे हैं।
"सावी से मिले थे बात की उससे ?" अभिमन्यु बैचेन है जानने को। यह की वह ठीक है और यह भी कि वह उसकी याद में दुखी है उदास है।
बुलाकी बहुत देर से चुप है। वह अभिमन्यु को देखता है उसका चेहरा साफ़ नहीं दिखता। वह भी अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लेता है। अभिमन्यु को उसकी चुप्पी खल रही है। वह यह तो जानता है कि बुलाकी घर हो आया है सबसे मिल आया है। सावी से भी मिला है।
जोरदार धमाके की आवाज़ से अफरातफरी मच गई है। बैरक में सायरन गूँज रहा है जो तुरंत तैयार होकर मोर्चा सँभालने का संकेत है। आधी नींद से उठे सैनिक ताबड़तोड़ वर्दी में समाते जा रहे हैं। बूटों की आवाज़ गूँज रही है। अपने हथियार थामे सभी मुस्तैदी से आदेश सुन रहे हैं। दुश्मन देश के सिपाही सीमा में घुस आये हैं उन्होंने सैन्य अड्डे को अपना निशाना बनाया है। अभिमन्यु भी यंत्रवत तैयार होकर आदेश सुन रहा है। उसे अपने साथियों को लेकर अड्डे में दुश्मनों का सफाया करना है। घर में घुस आये दुश्मन को ढूँढना मुश्किल काम है। वे उन्हीं के जैसे भेष में होंगे सतर्क रहना होगा कहीं अपने लोगों पर ही हमला ना हो जाये। वह पूछना चाहता है अगर हमला अपनों ने ही किया हो तो क्या करे ?
धमाके अभी भी हो रहे हैं अभिमन्यु के दिलदिमाग में। खबर तो गाँव से मिली सावी और विनय की। हमला तो बेहद अपने ने किया क्या करे ? अपनों को दुश्मन भेष में देख धराशयी कर दे या खुद को काबू में रख उसे सफाई देने का मौका दे। सीमा पर चल रही जंग लडे या खुद के भीतर चल रहे युद्ध का सामना करे। अभिमन्यु हथियार उठाकर चल पड़ा है सामना करने।
कविता वर्मा