(१)
मोहब्बत
तू मेरी मोहब्बत का है चेहरा,
मेरे दिल में उतर जाओ,
मुझसे जुदा ना रह सके तू,
इतने मेरे करीब आओ।
तुझ बिन सोचूँ ज़िंदगी तो लगती सितम है।
यादों, ख्वाबों, बातों में, बसे हो सिर्फ तुम,
यूँ ही बहता जाऊँ, रहूँ मैं तन्हा और गुम;
चैन भी तभी आये, जब भी देखूँ मैं तुझे,
बस एक तुम ही तुम हो, ओर कुछ ना अब सुझे।
तू मेरी मोहब्बत.....
ज़ुबाँ की ना सुनो तो, समझ लो दिल की भाषा,
रही है दिल में मेरे, सिर्फ तेरी ही एक आशा;
सोच में तुम्हारी अब मुझको तुम ढालो,
जान में सुकूँ आये, कुछ एसा कर डालो।
तू मेरी मोहब्बत.....
(२)
ख्वाईश
शबनमी होठ है, आ तुझे चूम लूँ,
हर घडी, बस तेरी, बाहों में झूम लूँ;
मेरी ख्वाईश यही है,
तू क्यूँ आती नहीं है,
तेरे जिस्म को मैं छू लूँ, बडे आराम से....
ये गुलाबी चेहरा, मुझको खूब भाये,
मेरे लबों पे, मुस्कान सी लाये;
तेरी खुश्बू से ही मेरा, जी भर जाये,
मेरी आँखें भी तुझे, हर वक्त पाये।
शबनमी होठ....
ना होश में हूँ, बस हूँ मदहोश मैं,
तुझमें सिमट जाऊँ, रहूँ तेरी आगोश में;
आ भी जाओ अब तो, मेरे दिल के जहाँ में,
ज़िंदा तेरे लिए हूँ, ओर करुँ क्या यहाँ मैं।
शबनमी होठ....
(३)
बेज़ूबाँ
बेज़ूबाँ मैं बेज़ूबाँ, तुझे क्या कहूँ तू बता,
रात-दिन तुझे चाहूँ मैं, कैसे करुँ मैं बयाँ;
खो गया हूँ तेरे प्यार में, ये कैसे हो गया।
बेज़ूबाँ मैं बेज़ूबाँ.....
दिल ये कहता है, तू मेरी हो जाये,
तेरे जो गम हो, वो मेरे हो जाये।
कोई भी ना हो यहाँ, तेरे मेरे दरमियाँ....
बेज़ूबाँ मैं बेज़ूबाँ.....
आँखें तो नम है, तुझे देखे ही जाये,
जैसे ही तुम हो, ये वैसे ही पाये।
तू बेखबर, मैं बेसबर, इंतज़ार में हूँ यहाँ....
बेज़ूबाँ मैं बेज़ूबाँ, तुझे क्या कहूँ तू बता।
(४)
इश्क-ए-खुशाली
मेरा ये दिल, हो के बाँवरा,
मनाता है, इश्क-ए-खुशाली,
इसका या उसका, जाने बिना ये,
मनाता है, इश्क-ए-खुशाली।
अंजाम जाने ना,
मेरी क्यूँ माने ना,
कुछ भी बताये ना, ये मेरा दिल....
शिकवा कोई भी ना,
कोई गिला भी ना,
एसा क्यूँ करता है, ये मेरा दिल....
सुबह होगी, शाम होगी,
अब तो हर रात, इश्क-ए-दिवाली।
करता है इश्क तो,
जीता है मस्त तो,
लेता क्यूँ रिस्क है, ये मेरा दिल....
ना है ये शर्तों पे,
ना है ये शब्दों पे,
क्या टिक पायेगा, ये मेरा दिल....
जीत होगी, हार होगी,
अब तो हर बात, इश्क-ए-निराली।
(५)
तेरा ही चेहरा
वो तेरा ही चेहरा था, जो आँखों में समाया था,
नज़रें मिली जब पहली बार तो..
मेरा दिल खो ही गया।
वो तेरा ही चेहरा था, जो आँखों में समाया था।
वो तेरा ही सपना था,
जिसे मुझको जपना था;
शामों सुबह थी एक वजह,
तेरे पास होने की...
वो असर भी गहरा था, जो दिल में बसाया था,
नज़रें मिली जब पहली बार तो..
मेरा दिल खो ही गया।
वो तेरा ही चेहरा था, जो आँखों में समाया था।
वो पल का चलना था,
जहाँ तुझको रूकना था;
हर मोड पे, राह छोड के,
तू क्यूँ चल पडी...
वो तेरा ही पेहरा था, जो दिल में लगाया था।
नज़रें मिली जब पहली बार तो..
मेरा दिल खो ही गया।
वो तेरा ही चेहरा था, जो आँखों में समाया था।
(६)
तेरे बिना
इस ज़िंदगी में तेरे बिना क्या रखा है जो मैं जीऊँ,
ये फुरकतों का जमेला है क्या, ज़हर क्यूँ मैं पीऊँ।
ख्वाइशों के सिलसिलों में,
फंस गया मैं तेरी मुरादों में;
लम्हों की कदर नहीं है,
खुशियाँ भी नहीं इरादों में।
इस ज़िंदगी में तेरे बिना क्या रखा है जो मैं जीऊँ,
ये फुरकतों का जमेला है क्या, ज़हर क्यूँ मैं पीऊँ।
फुरसतों के मंज़र पर,
लिपट गया मैं तेरी असर पर;
जन्नतों की परवाह नहीं है,
बस तू आ जा किस्मत बदलकर।
इस ज़िंदगी में तेरे बिना क्या रखा है जो मैं जीऊँ,
ये फुरकतों का जमेला है क्या, ज़हर क्यूँ मैं पीऊँ।
(७)
पल
एक पल तो लागे है अपना,
दूजा लागे बैगाना;
एक पल में जो है सुकूँ तो,
दूजे मैं है जुनूँ।
इनको मैं मोड लूँ,
इनकी आदत मरोड लूँ,
बेसहारा करता जाये... ये पल।
हर बात में, इस रात में, कोई ना कोई तो राज़ है,
इन पलों को मैं, समेट लूँ, कुदरत को भी एतराज़ है;
इनकी परवाह जो करुँ तो, ये दिल क्यूँ नाराज़ है।
एक पल तो यादें है अपनी,
दूजे पल है बैगानी;
एक पल में जो है सुकूँ तो,
दूजे मैं है जुनूँ।
ये जा रहे, चले जा रहे, इनकी यही तो फितरत है,
ना मुड सके, ना जुड रहे, इनकी यही तो किस्मत है;
इनको रूस्वा जो करुँ तो, ये दिल को क्यूँ दिक्कत है।
एक पल तो राहें है अपनी,
दूजे पल है बैगानी;
एक पल में जो है सुकूँ तो,
दूजे मैं है जुनूँ।
(८)
सोचता हूँ....
खामोशी से ज़िंदगी ने इशारा किया मुझको,
बेरहमी से ज़िंदगी ने बेचारा किया मुझको।
सोचता हूँ, प्यार बिना क्यूँ है इतनी तनहाई,
रातों में भी, ख्वाबों में मुझे, मिलती है परछाई।
खामोशी से ज़िंदगी ने इशारा किया मुझको,
बेरहमी से ज़िंदगी ने बेचारा किया मुझको।
सोचता हूँ, गम बिना क्यूँ नहीं चलती ये ज़िंदगी,
बढे बेचैनी, मेरी हर एक दिन, आये ना करार कहीं, अब एक पल भी।
खामोशी से ज़िंदगी ने इशारा किया मुझको,
बेरहमी से ज़िंदगी ने बेचारा किया मुझको।
सोचता हूँ, मुश्किल बिना, क्यूँ नहीं मिलती ये मंझिल,
बेवजह लगे, ज़िंदगानी, रही ना है ये, किसी के काबिल।
खामोशी से ज़िंदगी ने इशारा किया मुझको,
बेरहमी से ज़िंदगी ने बेचारा किया मुझको।
(९)
आ जाओ..
तुम क्यूँ हुए मुझसे जुदा,
तुम हो मेरे जीने की वजह;
हूँ मेहफूज़, तेरे प्यार में,
पल कट रहे, तेरे इंतजा़र में।
आ जाओ, अब आ भी जाओ,
दिल है मेरा, इसे ना यूँ सताओ।
मैं हूँ तेरे ख्वाबों के दरमियाँ,
तुमने मुझे प्यार इतना किया;
फिर छोड के, तुम क्यूँ चल दिये,
मैं हूँ यहाँ, तेरी ख्वाइश लिये;
आ जाओ, अब आ भी जाओ,
दिल है मेरा, इसे ना यूँ सताओ।
जीना मुझे तुमने सिखाया,
मेरा जीना भी क्या जीना था;
यूँ गम का साया कर गये,
दिल से खुशी का जहाँ लेकर गये;
आ जाओ, अब आ भी जाओ,
दिल है मेरा, इसे ना यूँ सताओ।