Vachanbaddh in Hindi Moral Stories by Rajan Dwivedi books and stories PDF | वचनबद्ध

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वचनबद्ध

वचनबद्ध

प्रशिक्षण प्रारंभ हुए कोई चार माह बीत चुके थे कि एक दिन अचानक वो आई एक नई प्रशिक्षु के रूप में. ‘वो’ इसलिए कि कोई भी उसका नाम तो जनता नहीं था तबतक. ‘सर मे आई कम इन’ बोलकर जब उसने कक्षाकक्ष के एकमात्र दरवाजे से प्रवेश किया तो अंदर बैठे प्रशिक्षुओं की पचासों जोड़ी निगाहें उधर ही उठ गयी... गोरा रंग, तीखे नयन नक्श, आँखों में काजल, करीने से बनाये गए लम्बे बाल, कानो में सोने के कुंडल, लाल प्रिंटेड सलवार सूट में अपनी औसत कद के बावजूद बहुत खूबसूरत दिख रही थी ‘वो’. स्लेटी पैंट-शर्ट और सफ़ेद शलवार-स्लेटी कुर्ता वाले उस क्लास में सबसे अलग... जैसे सूखे हुए बाग़ में सुर्ख गुलाब का फूल. उसके आने से न सिर्फ चलता हुआ लेक्चर रुका बल्कि कईयों की सांसे भी थम गईं. सब उसे निहार रहे थे तभी प्रशिक्षक महोदय ने संक्षिप्त सा परिचय दिया, ‘ये मिस सुनीता है और अब से आपकी बैच मेट है’, वो वहीँ सबसे आगे बैठ गयी. लेक्चर के बाद सुनीता ने शालीन मुस्कान के साथ आस पास की लडकियों से परिचय प्राप्त किया, ये मुस्कान उसे और भी आकर्षक बना रही थी. इस दौरान सुनीता अपनी तेज नजरों से सबके चेहरों को स्कैन कर रही थी... लड़के भी उत्सुकतावश उसी को देख रहे थे. अगले कुछ दिन वो ही सबकी चर्चा का केंद्र बनी रही विशेषरूप से लड़कों की. उसके आने से वहां की दूसरी लड़कियां ऐसे महत्त्वहीन हो गयी थी जैसे चाँद के आने से सितारों की सुन्दरता लुप्त हो जाती है… और ऐसा हो भी क्यों न वहां ऐसा था ही कौन जो उससे मुकाबला कर पाता... उसकी तो हर अदा निराली थी. उसके कपड़े पहनने का ढंग, उसका उठाना-बैठना, बात करने का तरीका और सभी को अपनी ओर खींचती मनमोहक मुस्कान. जब चलती तो एक अजीब सी हलचल पैदा होती देखने वालों के दिल में... ऊपर से वो कमर तक लहराती उसकी चोटी एक जादू सा जगाती थी. लड़के तो दीवाने थे उसके... बेसब्री से उसके आने इन्तजार करते... और उसके आते ही उनके मुरझाये चेहरे पर बहार छा जाती. कई दिन यही क्रम चला... सुनीता कक्षा में सभी पर निगाह दौड़ाती और जिस किसी लड़के पे नजर रूकती वो तो उस दिन का राजा होता और बाकी लडकों की ईर्ष्या का कारण.

एक दिन मध्यावकाश में जब अधिकतर लड़के-लड़कियां इधर-उधर होते थे सहसा उसकी नज़र सबसे पिछली बेंच पर गयी जहाँ आकाश, मनीष, रवि, लाला, रितेश बैठे थे ... वे वहीँ बैठते थे ......सबसे पीछे की बेंच पे... कोई दूसरा वहां जाता ही नहीं था..... एक अघोषित सा रिजर्वेशन था उस सीट का. वह उठी और सधे क़दमों से सबसे पिछली सीट की ओर बढ़ी और वहां बैठे रवि से कहा, ‘क्या आप मुझसे दोस्ती करेंगे’? ‘यहाँ सभी परस्पर दोस्त ही हैं’ रवि ने उत्तर दिया. वह बिना कुछ और बोले मुस्कुराकर चली गयी. उसके अगले ही दिन वह अपना बैग लिए रवि की सीट पर जा पहुची, ‘क्या मै यहाँ बैठ सकती हूँ?’, उसने पूँछा. वहां पहले से ही चार लोग बैठते थे... ऐसे में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गयी. मौके की नजाकत को भांपकर मनीष बोला, ‘जरूर बैठिये .. हम सबको बहुत ख़ुशी होगी... मैं कोई दूसरा ठिकाना ढूंढता हूँ’. और वह उसके आगे की सीट पर बैठ गया. सब इतना तेजी से घटा की रवि की दूसरी ओर बैठे लाला ने आँख दबाकर कहा, ‘भाई संभलना... बहुत तेज चैनेल है... आजतक से भी तेज... बड़ी ख़बरें आयेंगी’ और हीहीही करके हंसने लगा. सुनीता अब रोज वहीँ बैठने लगी... रवि की बगल में. रवि गेहुवन रंग, लम्बी और सुडौल कद-काठी का स्मार्ट युवक था. वह वहां के अच्छे प्रशिक्षुओं में था... हिंदी भाषा पर विशेष अधिकार उसे औरों से अलग बनाती थी. रवि के सटीक और संतुलित उत्तरों ने ही संभवतः उसे प्रभावित किया था. जल्दी ही दोनों में नजदीकियां दिखने लगीं. औपचारिकता पर मित्रता प्रभावी हो गयी. दोनों आप से तुम हो गए. बातचीत के विषय भी बदल गए. दोस्त-यार, पसंद-नापसंद, घर-परिवार, फिल्मे-किताबे, समाज-राजनीती, प्यार-मोहब्बत हर वो विषय जिस पर बात हो सकती थी, होने लगी... वर्जित कुछ भी नही था. यहाँ तक की अपने प्यार के बारे में भी दोनों ने दिल का हर कोना खोल दिया. सुनीता ने अपने कॉलेज टाइम के दोस्त लकी के बारे में बताया जो उसके लिए पागल था और जिसे वह भी पसंद करती थी पर उससे कभी अपने दिल की बात कह ही नहीं पाई. युवावस्था, परिवार-समाज का भय सब ने रास्ता रोक रखा था और कॉलेज भी जल्दी ही ख़तम होगया... हाँ, इस बीच उनकी नज़रें टकराती और उलझती रही. कॉमन फ्रेंड्स के माध्यम से कुछ बातें भी हुईं पर कभी दिल की बात जुबान पर न आ पाई. साथ ही उसने यह भी कहा की शायद वह युवावस्था का आकर्षण था, प्यार नहीं.

उसने रवि से पूछा की क्या उसकी जिन्दगी में कोई लड़की है?

रवि ने कहा ‘हाँ है’.

उसने आँखे फाड़कर कहा ‘अच्छा जी.... कभी बताया तो नहीं... दोस्तों से चोरी.... कौन है, कहाँ की है, कब मिले’, आदि कई प्रश्न एक ही साँस में पूछ डाले.

’धीरज रखो बताता हूँ’ रवि ने कहा फिर उसने सविता के बारे में बताया जिसे वह प्यार करता था पिछले ५ सालों से... उसकी पसंद-नापसंद, रंग-रूप आदि हर छोटी-बड़ी बात पर अगले कई दिन चर्चा हुई. रवि ने उसकी तस्वीर भी दिखाई.

‘अरे ये तो बड़ी सुंदर है’, कुहनी मारकर सुनीता ने कहा, ‘शादी क्यों नही कर लेते?’ ‘करूंगा पर अभी शायद समय नहीं आया’, रवि ने कहा.

रवि और सुनीता की दोस्ती दिनोदिन परवान चढ़ रही थी. सुनीता रवि के पास बने रहने की हर कोशिश करती उसने रवि को अपना टिफ़िन शेयर करने को राजी कर लिया. अब वो रवि के पसंद का खाना रोज लाती और दोनों साथ खाते व बाते करते. ‘देखो ये सब्जी मैंने बनाई है...कैसी है? अच्छा, कल क्या खाओगे? आज स्टफ्ड पराठे लाई हूँ.. तुम्हारे लिए.... खा लो .. ये नखरे अपनी बीवी को दिखाना .. अरे यार पूरा दिन निकल जाता है यहीं ... खाओगे नहीं तो कैसे चलेगा?’ उसकी बातें कभी ख़तम ही नहीं होती. रवि जब भी तारीफ करता या मुस्कुरा देता तो कहती, ‘ये हुई न बात’. कभी कहती, ‘तुम्हे पटा रही हूँ.. सुना है दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है’ और हंसती. कभी कहती, ‘तुम्हारा कोई कर्ज था पिछले जनम का... वही अदा कर रही हूँ.’

धीरे-धीरे सुनीता बहुत खुल गयी थी... अपनी सारी बातें रवि से साझा करती. एक दिन उसने अपनी कुछ तस्वीरें दिखाई जिसमे वो साड़ी में थी और पूछा, ’कैसी लग रही हूँ’?

‘हूँ... अच्छी’, रवि बोला.

‘बस्स अच्छी.... सेक्सी नहीं....हाउ मीन.. रवि!..’, शरारत से उसने कहा फिर रवि की आँखों में झांक कर बोली, ‘अच्छा एक बात बताओ.....जब मै तुम्हारे पास ऐसे बैठती हूँ तो तुम्हे कैसा लगता है?’

‘ये कैसा सवाल है .... कैसा लगता है... हम दोस्त है .. और वैसा ही लगता है.... जैसे लाला, रितेश, या मनीष के साथ’, रवि इसे जल्दी टालना चाहता था इसीलिए उसने ये तमाम नाम गिनाये थे.

‘अरे जाओ मियां ... अपना कहीं इलाज करा लो... ये ‘दोस्ताना’ वाली बाते मुझे न समझाओ.... तुम्हारा झूठ तो चेहरे से ही टपक रहा है... देखो न कैसे ब्लश कर रहा है’ कुहनी मार कर उसने कहा और ऐसे हंसी कि रवि को कोई जवाब न सूझा.

इसीतरह दिन गुजर रहे थे... गुजरते दिनों के साथ प्रशिक्षण ढलान पर था जबकि दोस्ती उफान पर. इसी बीच वह एक दोस्त की शादी में शामिल होने गयी. मैरिज हॉल रवि के घर के पास ही था तो वह उसके घर भी आयी. खूब शृंगार किया था... सुर्ख लहंगा-चोली, बिंदी, झुमके, चूड़ियाँ, गले में एक सोने की चेन, गहरी लाल लिपस्टिक... बिलकुल दुल्हन लग रही थी. थोड़ी देर की मुलाकात में ही उसने रवि के पूरे परिवार का दिल जीत लिया. सौन्दर्य और संस्कार की प्रतिमूर्ति लग रही थी वह. कुछ देर बाद जब मुस्कुराते हुए उसने सबसे विदा ली तो रवि की माँ ने उसका माथा चूम लिया. रवि उसे छोड़ने टैक्सी स्टैंड तक आया तो आँखों में आंसू लिए उसने रवि का हाथ थाम कर कहा, ‘इतना प्यार दिलाने के लिए धन्यवाद... मै कितनी खुश हूँ.. बता नहीं सकती... बस ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ इसे नजर न लगे.’

फिर वह समय आया जब एक दिन सुनीता ने चहकते हुए कहा, ‘रवि! मै तुम्हारी दुल्हन बनना चाहती हूँ... तुमसे शादी करना चाहती हूँ.... हाँ सच्च...और ये मेरे परिवार की सहमति से कह रही हूँ... मेरे पापा इसी सप्ताह तुम्हारे घर जाने वाले है ... और पता है...’

इससे पहले की वह कुछ और कहती रवि ने उसे टोका, ‘यह कैसे हो सकता है... तुम्हे तो पता है.. यह नहीं हो सकता.... रोको उन्हें मेरे घर जाने से’.

सुनीता का चेहरा फक्क हो गया... सारी ख़ुशी कही गायब ... दमकता हुआ चेहरा पीला पड़ गया... आँखों से आंसू बह निकले... रोते हुए ही बोली, ‘क्यों नहीं हो सकता .... क्या मै सुंदर नहीं हूँ..... क्या मैं तुम्हे प्यार नहीं करती .... क्या तुम मुझे पसंद नही करते?’ वह लगातार रो रही थी.

‘नहीं सुनीता वह बात नहीं है ... तुम सच में बहुत सुंदर हो ...तुम में वह सभी खूबियाँ है जो कोई पुरुष अपनी पत्नी में चाहता है.... पर कारण तुम्हे पता है’, रवि ने समझाने की नियत से कहा.

‘तुम मुझे ऐसे ठुकरा नहीं सकते .... मै तुम्हारी बातों से बहलने वाली नहीं हूँ.. मेरे ख्वाब झूठे नहीं हो सकते’ सुनीता रोये जा रही थी.

‘देखो... मैंने तुम्हे बताया था ना सविता के बारे में.... फिर तुमने ऐसा क्यों सोच लिया’, रवि ने सफाई देते हुए कहा.

‘हाँ बताया था, पर वो तुम्हारा कल थी और मै आज हूँ.... वो समय बीत गया... वर्तमान में जीना सीखो रवि!..... ये जिन्दगी किसी का इन्तजार नहीं करती... मै सर्वथा तुम्हारे योग्य हूँ... फिर शायद ईश्वर की भी यही इच्छा है.. नहीं तुम मुझसे मिलते ही क्यों.. अब तक तुम्हारा विवाह हो चुका होता’, सुनीता ने प्रतिवाद किया.

रवि ने कहा ‘समय बीत जाने का अर्थ यह नही कि हमारा सम्बन्ध नहीं रहा, ईश्वर की बात न करो इसी ने सविता को भी मिलाया है वो भी तुमसे पहले..... हाँ दूरी है मानता हूँ .. पर परस्पर विश्वास भी कुछ है... प्यार तो है.‘

‘क्या मतलब प्यार है... क्या मेरा प्यार झूठ है... वो कुछ साल पहले मिली तो उसका प्यार सच्चा और मै बाद में मिली तो मेरा प्यार कुछ नहीं... क्या देर से आना मेरा दुर्भाग्य है... मै तुम्हे इतना प्यार दूँगी कि तुम सब भूल जाओगे’, हिचकियाँ लेते हुए सुनीता ने बात काट कर कहा.

‘मै तुम्हे पसंद करता हूँ... पर हमने एक साथ जीने की कसम ली है, मैंने उससे वायदा किया है.... यदि मैंने तुमसे विवाह कर लिया तो मै अपनी ही दृष्टि में गिर जाऊंगा... भविष्य में कभी भी स्वयं से नजर नही मिला पाऊंगा... उसे आज भी मेरी प्रतीक्षा है... मुझे नहीं पता की कब इसका अंत होगा... या कितनी कठिनाई आएगी इस मार्ग में... दूसरी ओर तुम्हारा रास्ता है जो हर प्रकार से सुगम है... पर क्या अपनी सुविधा के लिए अपने वचन से फिर जाऊँ... वचन-भंग कर दूं... मेरी दृष्टि में वह मनुष्य ही नहीं जो अपना वचन न निभा सके... इस जगत में मात्र मनुष्य में ही वचन देने और निभाने की शक्ति है... मै तुम्हारी भावनाओं का ह्रदय से सम्मान करता हूँ पर मै वचनबद्ध हूँ’, रवि ने हाथ जोड़ लिए.

सुनीता देर तक रोती रही फिर शांत होकर बोली, ‘क्या मेरा प्रेम अधूरा ही रहेगा?’

‘प्रेम तो प्रेम है, वह अधूरा कैसे हो सकता है, प्रत्येक प्रेम-दृष्टि, स्पर्श, चुम्बन या समर्पण सब स्वयं में पूर्ण प्रेम है,’ रवि ने दार्शनिक अंदाज में इस प्रकार कहा कि वह चुप हो गयी.

थोड़ी देर बाद उसने दृढ़ निश्चय से कहा ‘हो सकता है मेरी डोली तुम्हारे घर न आ सके पर मै अपनी बेटी के रूप में डोली में तुम्हारे घर बहू बन कर आऊंगी जरूर और इस बार तुम मना नहीं करोगे, वचन दो’.

रवि ने अश्रुपूरित नेत्रों से उसकी आँखों देखकर कहा, ‘मै वचन देता हूँ.. और इसे अपनी आखिरी सांस तक निभाऊंगा... ईश्वर से प्रार्थना करूंगा की वह इसे पूर्ण करने में सहायता करे.. मै वचनबद्ध हूँ.’

आँखों की कोर पर देर से ठहरा आंसू बह निकला किसी ने भी इसे रोकने का प्रयास नहीं किया.

समाप्त