Ah q ki sachchi kahani - 7 in Hindi Fiction Stories by Lu Xun books and stories PDF | आ क्यू की सच्ची कहानी - 7

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आ क्यू की सच्ची कहानी - 7

आ क्यू की सच्ची कहानी

लू शुन

अध्याय सात : क्रांति

सम्राट श्वान थुङ के शासन काल में तीसरे बरस नवें चंद्र मास की चौदहवीं तारीख को, जिस दिन आ क्यू ने अपना बटुआ चाओ पाए-येन को बेच दिया था, आधी रात के समय जब तीसरी घड़ी ने चौथा घंटा बजाया तो एक बड़े-से पालवाली विशाल नाव चाओ परिवार के घाट पर आकर लगी। यह नाव अँधेरे में उस समय किनारे लगी, जब गाँववाले गहरी नींद सो रहे थे, इसलिए उन्हें कानों-कान खबर नहीं लगी, लेकिन पौ फटने पर जब नाव वहाँ से जाने लगी, तो कई लोगों ने उसे देख लिया। खोज के बाद पता चला कि नाव प्रांतीय सरकारी परीक्षा में सफल प्रत्याशी की थी।

इस घटना से वेइचवाङ में बडी खलबली मच गई। दोपहर होने तक सभी गाँववालों के दिल तेजी से धड़कने लगे। चाओ परिवार इस नाव की यात्रा के उद्देश्य के बारे में बिल्कुल मौन रहा, लेकिन चाय की दुकान और शराबखाने में जोरों से चर्चा थी कि क्रांतिकारी शहर में प्रवेश करने वाले हैं और प्रांतीय सरकारी परीक्षा में सफल प्रत्याशी शरण लेने गाँव में आ गया है। केवल श्रीमती चओ की राय इससे भिन्न थी। उनका कहना था कि प्रांतीय परीक्षा में सफल प्रत्याशी केवल कुछ टूटे-फूटे संदूक वेइचवाङ में रखवाना चाहता था, पर चाओ साहब ने उन्हें वापस भिजवा दिया। वास्तव में प्रांतीय परीक्षा में सफल प्रत्याशी और काउंटी परीक्षा में सफल चाओ परिवार के प्रत्याशी की आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी। इसलिए बुरे समय में भला एक-दूसरे के काम कैसे आ सकते थे! यही नहीं, श्रीमती चओ चाओ परिवार के पड़ोस में रहती थीं और शेष लोगों के मुकाबले अधिक अच्छी तरह जानती थीं कि क्या हो रहा है, इसलिए उनकी बात में कुछ अधिक दम मालूम होता था।

फिर भी इसके बाद यह अफवाह फैल गई कि प्रांतीय विद्वान स्वयं नहीं आया, बल्कि उसने एक लंबा पत्र भेजा है, जिसमें उसने चाओ परिवार से अपना दूर का रिश्ता निकाल लिया है। सोच-विचार करने के बाद चाओ साहब को यह लगा कि संदूक रखने में उन्हें कोई हानि नहीं होनेवाली, इसलिए उन्होंने संदूक अपनी पत्नी के पलँग के नीच छिपाकर रखवा दिए। जहाँ तक क्रांतिकारियों का संबंध है, कुछ का कहना है कि वे सफेद रंग के लोह टोप और कवच पहनकर सम्राट थुङ चन की मातमपुर्सी करते हुए उस रात शहर में प्रवेश कर चुके हैं।

आ क्यू क्रांतिकारियों के बारे में बहुत पहले से जानता था और इस साल उनके सिर कटते अपनी आँखों से देख चुका था, पर वह सोचता था कि क्रांतिकारी विद्रोही होते हैं और अगर विद्रोह हो गया, तो हालात उसके लिए और कठिन हो जाएँगे, इसलिए वह उन्हें हमेशा नापसंद करता था और उनसे दूर ही रहता था। कौन सोच सकता था कि वे लोग प्रांतीय परीक्षा में सफल प्रत्याशी को भी, जिसकी प्रसिद्धि चारों ओर तीस मील के इलाके में फैली हुई थी, इतना डरा सकते हैं? नतीजतन आ क्यू खुश हुए बगैर नहीं रह सका। गाँववालों में फैले आतंक से उसकी खुशी और बढ़ गई।

"क्रांति चीज कोई बुरी नहीं," आ क्यू ने सोचा, "उन सबकी समाप्ति हो... उन सबका नाश हो.. मैं स्वयं भी क्रांतिकारियों के पास जाना चाहता हूँ।"

कुछ समय से आ क्यू बहुत तंग था और शायद असंतुष्ट भी, इसके अलावा दोपहर के समय उसने खाली पेट दो प्याला शराब भी पी ली थी। नतीजतन उसे नशा आसानी से चढ़ गया। जब वह अपने खयालों में डूबा हुआ चला जा रहा था, तो उसे एक बार फिर लगा जैसे हवा में उड़ रहा हो। अचानक न जाने कैसे उसे महसूस हुआ कि वह स्वयं ही क्रांतिकारी है और वेइचवाङ के लोग उसकी हिरासत में हैं। अपनी खुशी को दबाने में असमर्थ होकर वह सहसा चिल्ला पड़ा, "विद्रोह! विद्रोह!"

सभी गाँववाले आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगे। आ क्यू ने इतनी अधिक करुणा भरी आँखें पहले कभी नही देखी थीं। इन्हें देखकर उसे भरी गर्मी में बर्फ का पानी पीकर मिलने वाली ताजगी महसूस हुई। इसलिए वह और अधिक खुश होकर जोर से चिल्लाता हुआ आगे बढ़ गया, "ठीक है, जो मेरे मन भाएगा आज मै वही लूँगा, जो भी मेरे मन भाएगा, उसे मित्र समझूँगा।

"त्रा ला, त्रा ला

है अफसोस मुझे मैंने हत्या कर डाली

चूर नशे में होकर अपने चड़ भैया की,

है अफसोस मुझे मैंने हत्या कर डाली...

या, या, या।

त्रा ला, त्रा ला, थुम थी थुम!

हड्डी-पसली चूर तुम्हारी लोहे की छड़ से कर दूँगा।"

चाओ साहब और उनका बेटा अपने दरवाजे पर दो रिश्तेदारों के साथ क्रांति के बारे में चर्चा कर रहे थे। आ क्यू ने उन्हें नहीं देखा और अपना सिर पीछे किए गाते हुए आगे बढ़ गया - "त्रा ला, त्रा ला थुम थी थुम!"

"अरे दोस्त आ क्यू।" चाओ साहब ने डरी आवाज में पुकारा।

"त्रा ला!" आ क्यू गाता चला गया। वह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि उसके नाम के साथ दोस्त शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है। उसे पूरा विश्वास था कि उसने गलत सुना है। उसे किसी ने नहीं पुकारा। सो उसने अपना गाना जारी रखा - "त्रा ला ला, थुम थी थुम!"

"अरे दोस्त क्यू!"

"है अफसोस मुझे तुमने हत्या कर डाली... "

"आ क्यू!" काउंटी परीक्षा में सफल प्रत्याशी ने उसका पूरा नाम लेकर पुकारना ही पड़ा।

तभी आ क्यू रुका, "कहिए क्या है?" उसने अपना सिर एक ओर झुकाकर पूछा।

"क्यू दोस्त... अब... " चाओ साहब की जीभ लड़खड़ाने लगी, "क्या यह सच है कि अब तुम धनी बनते जा रहे हो?"

"धनी बनता जा रहा हूँ? बेशक, जो वस्तु मेरे मन भाती है उसे ले लेता हूँ।"

"आ क्यू दोस्त, आ क्यू, हम जैसे गरीब दोस्तों की ओर ध्यान देने की तुम्हे फुर्सत कहाँ है?" चाओ पाए-येन ने थोड़ा शंकित होकर कहा, जैसे क्रांतिकारियों के रुख की गहराई तक पहुँचने की कोशिश कर रहा हो।"

"गरीब दोस्त? लेकिन तुम तो मुझसे अधिक धनी हो।" आ क्यू ने उत्तर दिया और वहाँ से चला गया।

वे निराश होकर मौन खड़े रहे, तब चाओ साहब और उनका बेटा अपने घर के भीतर चले गए। उस दिन इस सवाल पर तब तक विचार करते रहे जब तक बत्ती जलाने का समय नहीं हो गया। जब चाओ पाए-येन घर पहुँचा, तो उसने अपनी कमर से बटुआ निकालकर पत्नी को दिया और उससे कहा कि इसे अपने संदूक की तह में छिपा दे।

कुछ समय तक आ क्यू को ऐसा लगा, जैसे हवा में उड़ रहा हो, लेकिन जब कुल-देवता के मंदिर में पहुँचा, तो उसका नशा उतर चुका था। उस रात मंदिर के पुजारी के बूढ़े पुजारी ने भी उसेक साथ अप्रत्याशित रूप से दोस्ताना व्यवहार किया और उसे चाय भी पिलाई। इसके बाद आ क्यू ने पुजारी से दो चौकोर केक माँग लिए और उन्हें खाने के बाद चार आउंस की एक बड़ी अधजली मोमबत्ती और एक छोटा मोमबत्तीदान माँग लिया। मोमबत्ती जलाकर वह अकेला ही अपने कमरे में लेट गया। जैसे-जैसे मोमबत्ती की लौ दीप महोत्सव की रात की तरह घटती जा रही थी, वैसे-वैसे वह एक अलग ही ताजगी और खुशी महसूस कर रहा था और इसके साथ उसकी कल्पना भी नई उडान भरने लगी थी।

"विद्रोह? बहुत मजा आएगा... क्रांतिकारियों का दल आएगा। सबके सिर पर लोहे का सफेद टोप होगा और शरीर पर सफेद कवच। वे तलवारों, लोहे की छड़ो, बमों, विदेशी बंदूकों, नुकीले दुधारे चाकुओं और हुकवाले भालों से लैस होंगे। वे कुल-देवता के मंदिर में आएँगे और पुकारेंगे, "आ क्यू, आ जाओ " तब मैं उनके साथ चला जाऊँगा।

"तब ये सारे गाँववाले हास्यास्पद स्थिति में होंगे, घुटने टेक कर गिड़गिड़ा रहे होंगे, "आ क्यू, हमें बख्श दो।" लेकिन उनकी बात कौन सुनेगा। सबसे पहले युवक डी और चाओ साहब को मौत के घाट उतारा जाएगा, उसके बाद काउंटी की सरकारी परीक्षा में सफल प्रत्याशी और नकली विदेशी दरिंदे की बारी आएगी, लेकिन शायद मैं कुछ लोगों को छोड़ दूँ। कोई समय था, जब मैं मुछंदर वाड़ को छोड़ देता, लेकिन अब तो मैं उसकी सूरत भी नहीं देखना चाहता।

"चीजों के लिए मैं सीधा अंदर चला जाऊँगा और संदूक खोल डालूँगा - चाँदी की सिल्लियाँ, विदेशी सिक्के, विदेशी छींट की जाकिट... सबसे पहले मैं काउंटी की सरकारी परीक्षा में सफल प्रत्याशी की पत्नी का निड़पो पलंग मंदिर उठा ले जाउँगा और छ्देन परिवार की मेज-कुर्सियाँ भी या चाओ परिवार की मेज-कुर्सियाँ इस्तेमाल करूँगा। मैं अपने हाथ से तिनका भी नहीं तोड़ूगा, केवल युवक डी को आदेश दूँगा कि मेरे लिए सारा सामान उठा लाए और थोड़ी फुर्ती दिखाए, वरना उसे मेरा थप्पड़ खाने के लिए तैयार रहना चाहिए।

"चाओ स-छन की छोटी बहन बड़ी कुरूप है। कुछ ही बरस में श्रीमती चओ की लड़की भी युवा हो जाएगी। नकली विदेशी दरिंदे की पत्नी केवल ऐसे आदमी के साथ सोने को तैयार है, जिसके चोटी न हो। छिह, वह भली औरत नहीं। काउंटी की परीक्षा में सफल प्रत्याशी की पत्नी की पलकों में निशान हैं। आमा ऊ बहुत दिनों से दिखाई नहीं दी, न मालूम कहाँ है। अफसोस है कि उसके पैर बहुत बड़े हैं।"

इससे पहले कि आ क्यू कोई संतोषजनक फैसला कर पाता, उसके खर्राटों की आवाज आने लगी। चार आउंस की मोमबत्ती केवल आधा इंच जली थी, उसकी टिमटिमाती लाल रोशनी में आ क्यू का खुला हुआ मुँह चमक रहा था।

"हो, हो।" आ क्यू सहसा चिल्लाया और सिर उठाकर फटी-फटी आँखों से चारों ओर देखने लगा, पर जब उसकी नजर चार आउंस की मोमबत्ती पर पड़ी, तो वह फिर लेट गया और खर्राटे भरने लगा।

अगले दिन प्रातः बड़ी देर से जागा। बाहर गली-मोहल्ले में पहुँचा, तो हर वस्तु पहले जैसी ही नजर आई। उसे भूख लग रही थी। बहुत विचार लड़ाने पर भी उसे कोई रास्ता नहीं सूझा। सहसा मन में एक विचार आया। वह धीरे-धीरे चल पड़ा और जानबूझकर या अनजाने में 'शांत आत्मोत्थान भिक्षुणी विहार' जा पहुँचा।

भिक्षुणी विहार उस बरस के वसंत के समान ही शांत था। उसकी सफेद दीवारें और चमकदार काला फाटक वैसे ही दिखाई दे रहे थे। एक पल सोचने के बाद उसने फाटक पर दस्तक दी, जिसे सुन कर भीतर से एक कुत्ता भौंकने लगा। उसने तुरंत टूटी-फूटी ईंटों के टुकड़े उठा लिए और फाटक पर पहुँचकर और जोर से खटखटाने लगा। काले फाटक को उसने इतनी जोर से पीटा कि उस पर कई जगह निशान पड़ गए। अंत में उसे फाटक खोलने के लिए किसी के आने की आहट सुनाई पड़ी।

टूटी ईंटों के टुकड़े हाथ में उठाए आ क्यू अपनी दोनों टांगें फैलाकर काले कुत्ते से जूझने को तैयार खड़ा था। भिक्षुणी विहार का फाटक थोड़ा-सा खुला, मगर काला कुत्ता बाहर नहीं आया। आ क्यू ने भीतर झाँका, तो उसे केवल बूढ़ी भिक्षुणी दिखाई दी।

"तुम यहाँ फिर क्यों आ गए?" बात शुरू करते हुए उसने पूछा।

"क्रांति हो गई है... क्या तुम्हें नहीं मालूम ?" आ क्यू ने अस्पष्ट आवाज में कहा।

"क्रांति... क्रांति तो यहाँ एक बार हो चुकी है," बूढ़ी भिक्षुणी बोली।

उसकी आँखें रो-रो कर लाल हो रही थीं, "तुम्हारी इन क्रांतियों से हम पर न जाने क्या बीतेगी?"

"क्या कहा?" आ क्यू ने चकित होकर पूछा।

"तुम्हें क्या पता? क्रांतिकारी यहाँ पहले ही आ चुके हैं।"

"कौन-से क्रांतिकारी?" आ क्यू ने और ज्यादा ताज्जुब से पूछा।

"काउंटी की सरकारी परीक्षा में सफल प्रत्याशी और नकली विदेशी दरिंदा।"

यह सुनकर आ क्यू के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, वह बिल्कुल हक्का-बक्का रह गया। उस बूढ़ी भिक्षुणी ने देखा कि उसका लड़ाकू तेवर कुछ कम हो गया है, तो उसने फौरन फाटक बंद कर दिया, ताकि यदि आ क्यू फिर से धक्का दे, तो वह खुल न सके। जब उसने दुबारा खटखटाया, तो कोई उत्तर नहीं आया।

यह उसी सुबह की बात थी। काउंटी की परीक्षा में सफल चाओ परिवार के प्रत्याशी को एकदम खबर मिल गई। जैसे ही उसे पता चला कि क्रांतिकारी उस शहर में प्रवेश कर गए हैं, उसने झट अपनी चोटी लपेटकर सिर पर छिपा ली और सबसे पहले छ्येन परिवार के नकली विदेशी दरिंदे से मिलने गया, जबकि उन दोनों के संबंध पहले कभी अच्छे नहीं रहे थे, लेकिन अब समय आ गया था कि "सब मिल कर समाज सुधार करें," इसलिए उन दोनों के बीच बड़ी आत्मीयता से भरी बातचीत हुई। दोनों फौरन एक जैसी विचारधारावाले साथी बन गए और उन्होंने क्रांतिकारी बनने की प्रतिज्ञा कर ली।

कुछ देर दिमाग लड़ाने के बाद उन्हें याद आया कि 'शांत आत्मोत्थान भिक्षुणी विहार' में एक शाही शिलालेख लगा हुआ है, जिस पर लिखा है - "सम्राट की जय।" इसे तुरंत हटा दिया जाना चाहिए। यह विचार आते ही वे अपनी क्रांतिकारी योजना को कार्यान्वित करने तुरंत भिक्षुणी विहार जा पहुँचे। बूढ़ी भिक्षुणी ने उन्हें रोकने की कोशिश की और उनसे कुछ कहा, इसलिए उन्होंने उसे छिङ सरकार समझ कर डंडों व घूसों से उसी खोपड़ी पर अऩेक वार किए। जब दोनों चले गए, तो भिक्षुणी ने विहार का निरीक्षण किया। शाही शिलालेख टुकड़े-टुकड़े करके जमीन पर फेंक दिया गया था। कीमती श्वेन त धूपदान, जो करुणा की देवी क्वानइन की मूर्ति के सामने रखा था, वहाँ से गायब हो चुका था।

यह सब आ क्यू को बाद में मालूम हुआ। उसे इस बात का बड़ा अफसोस था कि उस समय वह सोता क्यों रह गया और वे लोग उसे बुलाने क्यों नहीं आए। उसने मन-ही-मन कहा - "हो सकता है उन्हें अब भी यह पता नहीं हो कि मैं क्रांतिकारियों की पंक्तियों में सम्मिलित हो चुका हूँ।

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