Shantidham in Hindi Motivational Stories by Neerja Dewedy books and stories PDF | शान्तिधाम

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शान्तिधाम

शान्तिधाम

नीरजा द्विवेदी

भीड़-भाड़ वाले सदर बाज़ार की प्रमुख गली में "जयहिन्द टी स्टाल" के सामने दूसरी तरफ़ एक दुकान अब्दुल कसाई की है जिसके सामने पौलिथिन का झालरदार पर्दा टंगा है.बगल में एक पिंजड़े में कुछ मुर्गियां बन्द हैं. एक लड़का मुर्गियों से खचाखच भरे दो पिंजड़े ट्रक से नीचे उतार कर रखता है और पहले से रखे पिंजड़े की बची हुई मुर्गियों को बाहर निकालकर ऊपर वाले भरे पिंजड़े में ठूंस देता है.

पिंजड़े में कुछ अल्हड़-जवान मुर्गे हैं,कुछ मुर्गियां हैं और कुछ चूज़े हैं.नये लाये गये चूज़ों में से एक, पहले लाई गई अपनी मां मुर्गी को वहां देखकर, खिल उठता है. प्रसन्नता से फ़ुदक कर वह मां के समीप आता है. मां के पंखों में चोंच घुसा कर व चोंच लड़ा कर प्यार जताता है, चूं-चूं करता मां से सटकर बैठ जाता है. अपने बच्चे को देखने की आशा छोड़ चुकी मुर्गी मां बच्चे के अन्धकारमय भविष्य की आशंका से विचलित होकर उसे अपने पंखों में दबा लेती है. दो दिन से दाना-पानी के बिना उसकी अपनी जो दुर्गति हो रही थी, वही अब उसकी सन्तान की भी होने वाली थी. कितनी सौभाग्यशाली थीं वे मुर्गियां जिन्हें ग्राहक पसन्द कर ले जा चुके थे या जिनको अब्दुल्ला का तेज़ चाकू हलाल कर चुका था.

दोपहर होते-होते तेज़ धूप निकल आई. पिंजड़ों पर धूप पड़ने से मुर्गियां भूखी-प्यासी तड़पने लगीं. दाने को कौन कहे दो बूंद पानी तक के आसार न थे. मुर्गी मां का तो और बुरा हाल था. परसों यहां आने के पूर्व उसे थोड़ा दाना चुंगने को मिल गया था और चलने के पूर्व उसने रास्ते में पड़ने वाली नाली से चोंच मारकर कुछ पानी पी लिया था. जब उसे दोनों पैर बांधकर, उल्टा लटकाकर लाया जा रहा था उसे अपनी पीड़ा से अधिक मां से बिछुड़ने पर अपने बच्चों की हृदयद्रावी चीत्कारें द्रवित कर रही थीं. पिंजड़े में ठुंसे हुए उसका परसों का दिन निराहार, निर्जल बीत गया. कल मंगलवार था अतः बहुत से हनुमान भक्त मुर्गी लेने नहीं आये. साथ वाली कुछ मुर्गियों के कष्टों का एक- एक करके अन्त हो गया पर वह बेचारी इतनी सौभाग्यशाली नहीं निकली. उसके भाग्य में अभी भूखे- प्यासे तड़पना शेष था.

पिंजड़े में नये आये जवान मुर्गे ख़तरे से अनजान नहीं थे परन्तु भय की भावना को दरकिनार करके वे कमसिन मुर्गियों से छेड़छाड़ करने से बाज़ नहीं आ रहे थे. चूज़ा मां से लिपट कर भूखा- प्यासा चिल्ला रहा था. अब्दुल्ला बीच-बीच में आकर पिंजड़े पर ज़ोर से हाथ मारकर या डन्डा फ़टकार कर मुर्गियों को शोर मचाने को डपट जाता. शाम होते- होते कई मुर्गियां अब्दुल्ला के साथ गईं और वापस नहीं आईं तो चूज़े ने मां से प्रश्न किया-" मां दूकान का मालिक इन मुर्गियों को कहां ले जाता है? जिन्हें वह ले गया था वे कहीं दिखाई नहीं दे रही हैं." मां दुविधा मे पड़ गई कि अपने नन्हे चूज़े को क्या उत्तर दे? कुछ सोच कर वह बोली-" वे सब शान्तिधाम गई हैं."

अब तक बचे हुए लगभग सभी मुर्गे- मुर्गियों की स्फ़ूर्ति एवं ऊर्जा समाप्त हो चुकी थी. सब पिंजड़े में धूप से कुम्हलाये पुष्पों की भांति गर्दन झुकाये बैठे थे. चूज़ा बार- बार अपनी मां से दाना-पानी मांग रहा था और मुर्गी मां उसकी कातर दृष्टि का सामना नहीं कर पा रही थी. इतने में अब्दुल्ला ने आकर मुर्गी मां को टांगें पकड़ कर बाहर घसीटा तो चूज़ा बिलखने लगा. अपना अन्तिम समय निकट समझ कर मुर्गी मां को अपनी पीड़ा का अन्त होता दृष्टिगोचर हुआ परन्तु जब उसकी दृष्टि अपने चूज़े पर पड़ी तो उसकी ममता बिलख उठी. अनुनय कर वह अब्दुल्ला से बोली-" आपकी बहुत कृपा होगी यदि आप मुझसे पहले मेरे चूज़े को ले जायें."

" कैसी मां हो तुम जो अपने सामने अपने बच्चे की मौत चाहती हो"?--अन्य मुर्गियों ने उसे धिक्कारा. अब्दुल्ला ने भी चकित होकर उसकी ओर देखा तो मुर्गी मां बोली-" मेरा बच्चा भूखा-प्यासा तड़प रहा है. अभी तक तो वह मुझसे लिपट कर सान्त्वना पा रहा था. मेरे जाने के बाद वह बिचारा अनाथ न जाने कब तक तड़पेगा?" अब्दुल्ला ने व्यंग्य से मुर्गी मां की ओर देखा और उसे घुड़कते हुए उसकी टांगें पकड़ कर उसे बाहर खींचने लगा. मुर्गी मां अपने चूज़े को धीरज बंधाते हुए बोली-" तुम रोना नहीं, मैं शान्तिधाम जा रही हूं. तुम्हारे लिये दाना- पानी की व्यवस्था करके तुम्हें अपने पास बुला लूंगी." चूज़ा आस भरे नेत्रों से अब्दुल्ला के द्वारा मां को ले जाये जाते देखता रहा ----.