kishor kii diary in Hindi Short Stories by sudha bhargava books and stories PDF | किशोर की डायरी

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किशोर की डायरी

किशोर की डायरी

सुधा भार्गव

मुझे कुछ कहना है

किशोरावस्था जीवन का एक यथार्थ है बाल्यवस्था से युवावस्था तक पहुंचने की यह एक कड़ी है किशोर अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश इसी अवस्था से शुरू करते हैं उनमें शारीरिक -मानसिक परिवर्तन परिलक्षित होने लगते हैं उलझन में फंसे ---- दुविधा में पड़े किशोर अपने माँ-बाप से प्रथम सहयोग, मार्गदर्शन व प्यार की उम्मीद करते हैं

दुर्भाग्य से भौतिकवाद के अनुयायी माँ-बाप को जीवन की भागदौड़ से इतना समय कहाँ कि वे धैर्य से किशोर की जिज्ञासा शांत कर सकेंउसके सर पर स्नेह का चंदोवा तान सकें,अपने अहं और मान-

प्रतिष्ठा को ताक में रखकर उसके ह्रदय की कोमल तरंगों की आहट ले सकें

थके -हारे झुंझलाए से वे अपने व्यंग्य बाणों और थप्पड़ों से किशोर का तन -मन झुलसा देना चाहते हैं । उनकी आँखें तानाशाह सी कहती हैं -- खबरदार जो सर उठाया, कुचल दिए जाओगे । उपेक्षा, अपमान, ह्रदय हीनता से किशोर निराश हो उठता है । जब तक घरवाले समझते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और सुनने में आता है -उसके लड़के ने आत्म हत्या कर ली हैं, अरे वो किसनू तो स्कूल ही न पहुंचा ---गजब हो गया --आजकल बच्चों से कुछ कहने का धर्म नहीं ।

एक किशोर की डायरी को तो देख मैं हैरान हो गई। बाल्यवस्था से किशोरावस्था की ओर करवट बदलते हुए उसने बड़ी ईमानदारी से अपनी पीड़ा को उसमें व्यक्त किया है। मैंने तो 62 पृष्ठों में केवल उस की भाषा और विचारों को व्यवस्थित किया है।

सुधा भार्गव

***

शायद प्रकृति प्रदत्त एक ऐसा तरीका है

जो खाली घोंसले का स्वागत करने के लिए

मात-पिता को तैयार करता है

-केरेन सेवेज

21 कड़ियाँ

पहली कड़ी

कहने को तो वह न खाती है न पीती हैसोती तो एकदम नहीं हैचाहे जब उसे हिलाडुलाकर अपने मन की बात कहने बैठ जाता हूँबड़े धैर्य से मेरे दिल की धड़कनें सुनती हैमेरा भेद तो किसी के सामने खोलती ही नहींदुनिया में सबसे ज्यादा उस का विश्वास करता हूँसच पूछो तो वह मेरे बहुत करीब हैमैं उसे बहुत प्यार करता हूँ

यह प्यारी-प्यारी मेरी डायरी है---सुख दुख की साथिन! रात-रात मेरा साथ देती हैजैसे ही मैं डायरी लिखना शुरू करता हूँ मेरे सारे दुख गायब हो जाते हैंएक नई शक्ति से भर जाता हूँ और बड़ी हिम्मत से पहाड़ सी बाधा के साथ टक्कर लेने उठ खड़ा होता हूँ

डायरी के पन्नों पर शब्द बिखरे पड़ते हैंजो रंगीन कम बदरंग ज्यादा नजर आते हैंमगर ऐसा क्यों! मेरा क्या कसूर जो मैंने सजा पाई? यही कि मैं एक किशोर हूँ

दूसरी कड़ी

माँ तुम सुबह सात बजे ही अपने औफिस के लिए घर से निकल पड़ती हो केवल चाय पी पाती हो लौटती हो बहुत थकी हुई मुझे तुम पर बहुत तरस आता है जी चाहता है भाग -भाग कर तुम्हारे काम करूं, लेकिन कर नहीं पाताकरूं कैसे! जानता ही नहीं उन्हें करना

कल मेरा गृह कार्य कराते समय बहुत झल्ला रही थीं मैंने सोचा तुम्हारे आने से पहले सुलेख तो लिख ही सकता हूँ बहुत ध्यान से धीरे-धीरे लिखाघर में तुम्हारे घुसते ही मैं इतराते बोला-मैंने अपना गृहकार्य ख़तम कर लिया है --देखो न माँ

क्या माँ -माँ की रट लगा रखी है, एक मिनट तो सांस लेने दो

तुम झल्ला उठीं और मैं खिला –खिला मुरझा गयासिर थामे गुमसुम बैठ गया --शायद मनाने आओपर माँ --- नहीं आईं ---चाय पीने के बाद सो गई थीं

शाम को तुम देर से उठीं उस समय मैं बाहर खेलने जा रहा थामुझे रोक लिया-कहाँ चले नबाब, लाओ जरा देखूँ क्या किया है ?

सुलेख पर नजर पड़ते ही तमतमा उठीं –अरे,यह क्या !ज्यादातर शब्द लाइन से बाहर निकले हैं कोई अक्षर छोटा है कोई बड़ाकितनी बार कहा है --ठीक से लिखा कर पर नहीं!न सुनने की तो कसम खा रखी हैकहाँ तो बोली नहीं और बोलीं तो मुझे काट कर चली गईंमेरी सारी खुशियाँ भी अपने साथ ले गईं

माँ, तुम दुनिया में पहले आईं मैं बाद में आया तुम्हारे हाथ बड़े -बड़े हैं, मेरे छोटे –छोटेतुम्हें लिखने का जो अनुभव हैं मुझे नहींअगर मेरे अक्षरों की बनावट खराब है तो क्यों आशा करती हो कि मैं भी तुम्हारी तरह मोती से अक्षर बनाऊँ

मुझे और खुद को एक ही तराजू के पलड़ों में न तौलोमुझे कुछ समय दोअभ्यास करने दो माँ मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ, तुम्हारी बात जरूर सुनूंगा पर मेरी बात भी तो सुनोहर समय की डांट-फटकार से क्या मैं आज्ञाकारी बन सकता हूँ।

बहुत से माँ-बाप नहीं समझते

कि वे अपने शब्दों से

अपने चेहरे की भाव-भंगिमा से

बच्चों को बहुत कुछ दे जाते हैं—

उनसे बहुत कुछ कह जाते हैं

जो उनके हित में नहीं।

तीसरी कड़ी

माँ, मैं एक-एक दिन उँगलियों पर गिनता रहता हूँ –सोमवार, मंगल,बु, बृहस्पत, शुक्रशनिवार पर आकर रुक जाता हूँ शनिवार-रविवार को तो तुम्हारी छुट्टी होती है

आज भी तो शनिवार है–तुम्हारे साथ घूमने जाऊँगा,अपनी मनपसंद आइसक्रीम खाऊंगाखुशी के मारे हवा में उड़ा जा रहा हूँओह,यह क्या हुआ! तुम्हारी तो किटटी पार्टी निकल आई –तुम्हें तो जाना ही पड़ेगा लेकिन पार्टी तो 3 बजे से शुरू हैतुम कहाँ हो ?--माँ –माँ---सारा घर छान डाला पर तुम न मिलींगहरी सांस भर बैठ गया

दिव्या हमारे घर की नौकरानी है उससे मालूम हुआ तुम बाजार गई हो साड़ी खरीदनेसाड़ी से तो घर में दो अलमारियाँ भरी पड़ी हैं

पापा ने तो एक बार टोका भी था –जब भी कहीं जाती हो नई साड़ी खरीदती होएक साड़ी दो बार नहीं पहनी जा सकती क्या?

तुमने छूटते ही कहा –आप नहीं समझेंगे, यह मेरी शान का सवाल हैफिर मैं कमाती हूँ तो अपने ऊपर खर्च भी कर सकती हूँआपको बुरा क्यों लगने लगा

पापा तुम्हारे मामले में बहुत कम बोलते हैं, यदि बोलते भी हैं तो उन्हें इसी तरह चुप करा देती हो माँ, पापा भी तो धन कमा कर लाते हैं वे तो अपने ऊपर इतना खर्च कभी नहीं करते वे सबका ध्यान रखते हैं तुम केवल अपनाऐसा क्यों है माँ!

आप दोपहर के 2 बजे बाजार से लौट कर आईं जल्दी -जल्दी तैयार होकर बोलीं-“तुम्हें मिसेज सिन्हा के घर छोड़ देती हूँ लौटते समय ले लूंगी

माँ मैंने खाना भी नहीं खाया है

क्यों नहीं खाया !घर क्या मैं अपने साथ बाँध कर ले गई थीएक दिन अपने आप खा लेता तो क्या हो जातादिव्या से ले लेताअब तो वह चली गई मुझे देर हो रही है ---ऐसा कर, बिस्कुट का पैकिट ले और इसे आंटी के घर खा लेना आलू चिप्स भी हैं, पेट तो भर ही जाएगा

सिन्हा आंटी ने गर्म -गर्म फुल्का बनाकर दियामैंने पेट भर कर खाया वे मीठी आवाज में बोलीं खाने के समय बिस्कुट नहीं खाओ, बाद में खा लेना उनकी बात ठीक लगीपेट भरा होने पर मैं सो गयाउठा तो देखा -आंटी दूध का गिलास लिए खड़ी हैं उनके प्यार में मैं नहा गया और दूध गटागट पी गयाअंदर एक टीस सी उठी और मैं कराह उठाकाश माँ तुम भी ऐसा करती तो मैं कितना खुश नसीब होता

तुम्हें भुलाने के लिए पप्पू के साथ खेलने में लग गयावह सिन्हा आंटी का बेटा हैजब तक तुम नहीं आईं पप्पू के साथ खेलता ही रहा और सच में तुम याद नहीं आईंयाद करके करता भी क्यामुझसे ज्यादा तो तुम्हें अपनी पार्टियां प्यारी हैएक बार न सोचा होगा मेरी हंसी छीनकर तुम अपनी सहेलियों में बाँट रही हो। । मुझे लेने तुम आईं तो सोचा-क्यों आ गईं, देर से आतीं तो अच्छा होता

घर पहुंचकर तुमने दूध दियामेरे पेट में जगह ही नहीं थीकुछ दूध से भरी थी तो कुछ आंटी के स्नेह सेबड़े आश्चर्य से तुमने पूछा-बिस्कुट खाने के बाद भूख नहीं लगी?

आंटी बहुत अच्छी हैंउन्होंने मेरी पसंद की अरहड़ की दाल बनाई थीदाल-चावल छककर खायेशाम को तो उन्होंने दूध भी पिला दिया” मैं अपनी धुन में बोलता चला गया

नदीदा कहीं का ---तुझे तो हम कुछ खाने को देते नहीं ,टूट पडा भुक्कड़ की तरह दाल-चावल पर खाया तो खाया, दूध पीकर भी आ गयामिसेज सिन्हा भी क्या सोचती होंगी हम तेरा ध्यान नहीं रखते

बिजली सी कड़क आवाज सुन मैं सहम गयामुंह पर ताला लग गया पर अंदर ही अंदर कुछ बहने लगातुमने जितनी दुनिया देखी माँ, मैंने उतनी नहीं तुम क्या सोचती हो --- दूसरा क्या सोचता है !मैं नहीं जानता जो मेरा मन कहता है वह मैं कर लेता हूँजो देखता हूँ उसे कह देता हूँमुझे अपनी इच्छा के बारे में पहले से बता दिया करोमैं वही कर लिया करूंगातुम्हारे गुस्से से मेरा दिल कांपने लगता है

मेरी माँ ----मुझसे प्यार से बोलोगी तो अच्छा लगेगा। प्यार से बोलो न एक बार।

प्यार से

मुरझाए फूल भी खिल जाते हैं

डांटने से

खिले फूल भी मुरझा जाते हैं।

चौथी कड़ी

यह दुनिया मुझे अद्भुत लगती है रात में तारे चमकते देख कर मैं खुशी से उछल पड़ता हूँ उन्हें पकड़ने की कोशिश करता हूँ पर वे मेरे हाथ नहीं आतेदिन में तो न जाने कहाँ छिप जाते हैंढूँढ़ते -ढूँढ़ते थक जाता हूँ

मैंने एक बार इनके बारे में तुमसे पूछा भी थाहँसकर बोलीं –‘मैं फ़ोन करके पूछ लूंगी वे ---कहाँ हैं? आज तक--- नहीं ---पूछापूछा भी होगा तो भूल गई हो

स्कूल के बगीचे में लाल, पीले नीले फूल खिले हैंउन्हें देख मैं चकित रह जाता हूँ और सोचता हूँ कि हम लाल, पीले, नीले क्यों नहीं होतेमैंने इसका कारण भी पूछा थातुमने कहा-इसका उत्तर तो भगवान् ही दे सकता हैउसने ही हम सबको बनाया हैउसे फ़ोन करना पड़ेगा

कुछ दिनों बाद मैंने फिर पूछा-“माँ फ़ोन किया था?

अरे फ़ोन नहीं हो पायाभगवान् तो आकाश में रहते हैंवहां की टेलीफोन लाइन खराब है

इस बार तो मुझे विश्वास हो गया कि मेरी बातों के लिए समय नहीं,बस मुझे टालना चाहती होकुछ दिनों की ही बात है, फिर तो मैं बड़ा हो जाऊंगाजब तक छोटा हूँ मुझे अपना कुछ समय दे दो दुनिया के रहस्य मेरे दिमाग में खलबली मचा देते हैं जो ---सोने नहीं देतेउनके बारे में मेरी जिज्ञासा शांत कर दो माँ

जिज्ञासा

विलक्षण बुद्धि का

प्रतीक है।

सेमुअल जॉनसन

जिज्ञासा

नाजुक सा

एक पौधा है

जो

आजादी की चाहत में

उत्तेजित

हो उठता है

अल्बर्ट आइंस्टीन

पांचवीं कड़ी

माँ, अक्सर 7 बजे तक घर आ जाती हो पर आज रात के 9 बज गए शायद तुम्हारे आफिस में मीटिंग थीएक बार न सोचा होगा--पापा टर्की गए हैं तुम भी बाहर --पापा भी बाहरमैं अकेले कैसे रहूँगाअकेलापन मुझे साँप की तरह डसने लगता हैबुरे -बुरे विचार दिमाग में आसन जमाकर बैठने लगते हैंमैं बीमार हो गया तो ---कोई भूत आकर पकड़ ले तो ---

पापा यह नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते एक महीने में 20 दिन अमेरिका .इटली, न जाने कहाँ-कहाँ रहते हैंवैसे पापा मौका पाते ही मेरे साथ गप्पबाजी करते हैं, बाजार से मेरी इच्छा की टाफियां,टोपियाँ दिलाते हैंतुम तो यहाँ रहते हुए भी मेरे लिए न के बराबर हो

एक बार तुमने पापा से कहा भी था-बाहर जाने से अच्छा अपने देश की ही नौकरी अच्छी है

पापा तो भड़क उठे-तुम नौकरी क्यों नहीं छोड़ देतीं घर को कुशलता से चलाना भी बहुत बड़ा काम है तुम्हें कितना पैसा चाहिए ---मैं दूंगा घर को बर्बाद होने से बचा लोपापा की आवाज रोनी सी हो गई

मैं बहुत घबरा गयापापा से लिपट गया पापा ने मुझे चूम लियासमझ नहीं आया पापा मेरी तरह रोये -रोये से क्यों हो गएवे तो मेरी तरह छोटे नहीं हैं! फिर भी --कोई बात मिलती है हम दोनों की

अकेलापन

और

अनचाहत होना

दुनिया की

सबसे बड़ी गरीबी है ।

मदर टेरेसा

छटी कड़ी

समय काटे नहीं कट रहा हैहवा से पर्दा भी हिलता है तो लगता है तुम आ गईं टी. वी देखते -देखते दस बार नींद के झोंके ले चुका हूँवीडी गेम खेला, मनपसंद चाकलेट खाई आलू चिप्स के तो दो पैकिट खा गयाडिनर हो गया समझो सोना भी चाहता हूँ और नहीं भीनींद का समय है नींद तो आयेगी पर तुमसे बात नहीं हो पायेगीकितनी देर से तुम्हारा चेहरा देखने को तरस रहा हूँइसीलिए नींद भगाने की कोशिश में हूँ

सुबह उठते ही वही भागदौड़काम की भागदौड़ नहीं रहती, मोबाल और टेलीफोन की भागमभाग रहती है नानी से आप बहुत देर तक बातें करती हो कभी सोचा! तुम मेरी माँ हो, मेरा दिल भी तुम्हारे सामने खुल जाना चाहता हैमाँ की खशबू चाहता है चाहता हूँ तुम मेरे बालों में अपनी लम्बी -लम्बी उँगलियाँ घुमाओ और मैं गहरी नींद में सो जाऊं

मुझे अलग कमरे में सुलाती हो ताकि स्वस्थ रहूं ठीक ही सोचती हो मगर इस मन का क्या करूं !रात में नींद खुलने पर बाथरूम जाता हूँ नींद उछट जाती है डर लगने लगता है किसी कोने में जंगली बिल्ली नजर आती है तो कहीं छिपकली दीवार पर चढ़ती हुईमाँ जल्दी आओ मुझे अपनी बाँहों में थाम लो और लोरी सुनाकर सुला दो

एक बार काली रात के गहरे सन्नाटे से घबराकर तुम्हारे कमरे का दरवाजा खड़खड़ा दिया था तो मुझे ऐसे दुत्कार दिया जैसे गली के कुत्ते को भगाते हैं सोच सोचकर लगता है मन से जरूर बीमार हो जाऊँगा

सातवीं कड़ी

आज रात मौसी -मौसा जी मिलने आये थेमैं चुपचाप बैठा उनकी बातें सुन रहा था मैंने सोचा -मुझे भी कुछ कहना चाहिए वर्ना मौसी समझेंगी मैं गूंगा हूँ

मैंने आहिस्ता से कहा –“मौसी आप एक बात बतायेंगी?

क्या बेटा?

हवाईजहाज-- जमीन पर दौड़ता है, हवा में भी उड़ता हैचिड़िया धरती पर फुदकती आकाश में उ जाती है तितली फूलों पर बैठती है और पंख फैलाए उड़ान भरती है मैं केवल जमीन पर ही चल पाता हूँउनकी तरह उड़ क्यों नहीं सकता ?

भोले बेटे, तुम्हारे पंख नहीं हैं

क्यों नहीं हैं ?

इसी बीच माँ तुम बड़ी बेरहमी से मेरा गला घोंटने आ गईं --

कितनी बार कहा है बड़े जब बातें करते हैं तो बीच में नहीं बोलना चाहिए फालतू की बातें मत करो और जाओ अपने कमरे में

मैं घुटकर रह गयाउफ!न खुद बात करती हैं न दूसरों से मुझे बात करने देती हैंतुम मुझसे अधिक शक्तिशाली हो, इसलिए मुझ कमजोर को तुम्हारे सामने घुटने टेकने पड़ेआंसुओं को सभांलता वहां से उठ गयामेरा भी तो मन करता है सबसे मिलने कोसबके साथ हंसने को मैं व्याकुल रहता हूँ

अनुशासन ही सिखाना था तो स्नेह का हाथ फेरकर भी समझा सकती थीं इस तरह मेरा अपमान करने की क्या जरूरत हैमेरी भी तो कोई इज्जत हैछोटा हूँ तो क्या हुआ, महसूस तो उसी तरह करता हूँ जैसे तुम करती होमैं आपसे अच्छा व्यवहार करूं इसके लिए आपको भी शिष्ट होना पड़ेगा

आठवीं कड़ी

दादी माँ बताती हैं --आप रोज मंदिर जाती थीं भगवान् से कहती थीं --मुझे एक गुड्डा चाहिएउसने गुड्डे के रूप में मुझे भेज दिया उस समय मेरे दांत नहीं थे, चल फिर भी नहीं सकता था आपने मुझे दूध पीना सिखाया रगड़ -रगड़ कर नहलातीं,गोदी में लिए घूमतीं धीरे -धीरे दांत निकल आये, चलने फिरने लगा, पहले दाल चावल सटक जाता था, अब खूब चबा -चबा कर खाता हूँ

माँ यह सब एक दिन में नहीं हुआ, धीरे -धीरे हुआ फिर क्यों आशा करती हो मैं जल्दी काम करूँ और वह एकदम ठीक भी होधीरे धीरे ही तो सीखूँगातुम्हें धैर्य तो रखना ही होगाक्यों अपनी आवाज में कड़वाहट घोल लेती हो लगता है मुझ से तंग आ गई होपर मेरा इसमें क्या दोष! कुछ तो बताओ

मैं खुद आपके पास चलकर नहीं आया बल्कि बुलाया गया मैं तो भगवान् का दिया उपहार हूँ इसकी देखभाल तो करनी ही पड़ेगी --चाहे खुश होकर करो या दुखी होकरदुखी होकर करोगी तो मैं मुरझा जाऊँगाखुश होकर करोगी तो खिल उठूँगाप्यार भरी छुअन, प्यार भरी निगाहें तो मैं पैदा होते ही पह्चानता हूँ

नौवीं कड़ी

आज मुझे रिपोर्ट कार्ड मिला मेरे दोस्तों के साथ उनकी माँ या पापा थेकोई आफिस से छुट्टी लेकर आया तो कोई घर का काम छोड़कर आयावे मैडम से मिलकर अपने बच्चे की कमियाँ या खूबियाँ जानना चाहते थे

तुम कैसे आतीं,आफिस में कुछ ख़ास लोग जो आने वाले थेमेरी परवाह भी कहाँ है आपको! पापा को तो यह भी नहीं मालूम होगा कि मैं कौन सी कक्षा में पढ़ता हूँ ! स्कूल जाने के लिए मैं सुबह जल्दी उठता हूँ उस समय वे सोते रहते हैं काफी रात को फैक्टरी से लौटते हैं तो मैं सो जाता हूँएक घर में रहते हुए भी लगता है हम बहुत दूर-दूर हैंताज्जुब है, उन्हें अपने बॉस के लिए,दोस्तों के लिए,तुम्हारे लिए खूब समय है बस मेरे लिए नहीं

मैं अनाथों की तरह रिपोर्ट कार्ड लेने गयामेरा लटका मुंह देखकर मैडम बड़े अपनेपन से बोलीं –परेश मेहनत करो, तुम अच्छे बच्चे हो अपनी मम्मी से कहना -फ़ोन पर बात कर लेंमन में हंसा --मेरे लिए फुरसत हो तब ना

शाम को रिपोर्ट कार्ड मैंने तुम्हारी हथेली पर रखा देखते ही उसे इतनी जोर से जमीन पर पटका मानो बिच्छू ने डंक मार दिया हो हर विषय में मुझे बी ग्रेड मिला था आपने दो -तीन चांटे मेरे गाल पर जड़ दिएबिना रोये मैं चुप खड़ा रहा असल में अब मुझे मार खाने, डांट खाने की आदत सी हो गई है खाने -पीने -सोने के साथ यह भी मेरे लिए जरूरी हो गया है

मेरी चुप्पी से तुम्हारा पारा चढ़ गया ---बेशर्म की तरह खड़ा है, न जाने दिमाग में क्या भरा है तीन -तीन मास्टर पढ़ाने आते हैं, तब भी बी मिलता हैकितना हमारा पैसा खर्च करवाएगा !

मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ -पैसे से मेरे लिए बुद्धि नहीं खरीदी जा सकतींमेरा दिमाग उड़ा सा रहता है पढने की इच्छा ही नहीं होतीता भी हूँ तो दिमाग को ज्यादा देर काबू में नहीं रख पातागुस्से से तमतमाता तुम्हारा चेहरा आँखों के आगे आ जाता है मेरा शरीर कांपने लगता है, आपकी डांट मेरे लिए जहर हैकड़वे बोल शरीर में तीर की तरह चुभते रहते हैं मुझे सब फीका -फीका लगता है मेरे में न पने का उत्साह है न आगे बढ़ने की लगन

यह उत्साह मास्टर जी नहीं दे सकते मेरी तारीफ में यदि तुम दो शब्द भी बोल दोगी तो मुझे बड़ी ठंडक पहुंचेगी मुझसे कहो तो- --बेटा आगे बढ़ो --ऐसा करोगे तो जरूर अच्छे नंबर लाओगे मुझे एक बार प्यार से रास्ता तो दिखाओ --फिर देखना मेरा उत्साह !अपने साथियों को पढ़ाई में क्या खेल में भी पछाड़ दूँगा एक बार मेरी ओर ममता का हाथ तो बढ़ाओ ---

आप अपने व्यवहार से जैसा सिखाओगी, उसकी छाप हमेशा के लिए मेरे दिमाग पर पड़ जायेगी अब ये आदतें अच्छी होंगी या बुरी, यह मैं नहीं जानताइसे भी तुम या तुम्हारी दुनिया निश्चित करेगी मैं तो इस समय दूसरों के हाथों की कठपुतली हूँ

दसवीं कड़ी

नौकरानी को सुबह आने में देर हो गई घर में दूध – ब्रेड की जरूरत थीपापा जैसे ही बाजार जाने को तैयार हुए, मैंने कहा –मैं दूध ब्रेड लेकर आता हूँ

तुम कहाँ जाओगे तुम्हारे हाथ से चोर -उचक्का रुपया छीन कर ले जा सकता है पापा आपने मुझे एक पल में ही बता दिया कि मैं किसी काम का नहीं

माँ से थोड़ी उम्मीद जगी पूछामाँ ब्रेड ले आऊँ

नहीं --नहीं,बासी ब्रेड ले आओगेसड़क भी ऊबड़ खाबड़ है,गिर पड़ोगेघर में ही बैठो मन में उथल पुथल होने लगी --क्या मैं इतना बेबकूफ हूँ!

थोड़ी देर में रसोई में पानी लेने पहुंचा पीछे -पीछे माँ, तुम जा पहुंची---क्या करना है ?

फ्रिज से पानी लूंगा

मैं देती हूँ, तू इसे खुला छोड़ देगा

छुट्टी के दिन बस यही नाटक होता है जब तुम आठ-आठ घंटे घर से गायब रहती हो तब भी तो नौकरानी गड़बड़ करती रहती है उससे कुछ नहीं कहतीं कहें भी कैसे ---ज़रा चूँ चपड़ की तो घर का काम छोड़कर चली जायेगी मैं तो घर छोड़कर जा भी नहीं सकता मेरी मजबूरी का फायदा उठाया जाता है

मुझे तुम कोई काम नहीं सिखाओगी ----बस डराती होगी या डरती होगी फिर तो मुझे कोई काम ही नहीं आयेगा ऐसी जिन्दगी से मैं तंग आ चुका हूँ मुझे कायर बना कर रख दोगी शुरू में सबसे गलती होती है गलती नहीं करूंगा तो सीखूँगा कैसे ? अपने पर भरोसा कैसे होगा क्या तुम चाहती हो --बात -बात पर तुम्हारा मुंह ताकता रहूं, अपने पैरों पर न खड़ा होऊं

ग्यारहवीं कड़ी

मेरा चचेरा भाई कक्षा 5 में पढ़ता हैउसका नाम लक्ष्य हैज्यादातर कक्षा में पहले या दूसरे नंबर आता है गरमी की छुट्टियों में चाची हमेशा उसके साथ आती हैं चाची घर पर ही रहती हैं पेंटिंग का उन्हें बड़ा शौक है इतने सुन्दर रंग लगाती हैं कि देखने वाला उसे खरीद ही ले चाचाजी काम के चक्कर में देश -विदेश जाते रहते हैंउनके हिस्से का प्यार भी वे उस पर उड़ेल देती हैं

वह बड़ा भाग्यवान है जो उसे चाची जैसी माँ मिली हैं स्कूल से आकर एक -एक बात उन्हें बताता है चाची धैर्य से सुनकर अपनी राय देती हैं एक अच्छे दोस्त की तरह हमेशा उसकी जरूरत पर उसके साथ खड़ी रहती हैं

उसको कोई मास्टर पढ़ाने नहीं आता चाची ही उसकी गुरू हैं

माँ, तुम हमेशा उससे बराबरी करती रहती हो ---देख तो कितने अच्छे नंबरों से पास हुआ है कुछ तो सीख उससे ऐसा कहकर हमेशा मुझे नीचा दिखाती हो मेरी आँखें आंसुओं से भर जाती हैं उन्हें टपकने से जबरदस्ती रोकता हूँ पर मन करता है दहाड़ मारकर रो पडूँ --शायद कोई मेरे अन्दर का दर्द समझ सके

हाँ ---हाँ मुझमें और लक्ष्य में अन्तर है। ठीक उसी तरह --जैसे उसकी माँ और मेरी माँ में है। अभी मुझमें इतना कहने का साहस नहीं है पर एक दिन साहस आ ही जाएगा और यह सच अवश्य कहूँगा ।

बारहवीं कड़ी

इस बार लक्ष्य छुट्टियों में नही आ रहा है । चाचा जी अस्वस्थ हैं। चाची उनको अकेला छोड़ नहीं सकतीं और लक्ष्य बिना चाची के कहीं रह नहीं सकता ।

तुमको जब यह मालूम हुआ तो खुशी-खुशी मुझे चाचाजी के पास भेजने का इरादा बना लिया वह भी एक माह को । बिना मुझसे पूछे मेरे बार में निर्णय ले लिया । एक बार तो मुझसे पूछ लिया होता ---। जानता हूँ --बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ --मेरे रहने से तुम्हारी आजादी में खलल पड़ता है । अब कुछ दिनों को तो बंधन मुक्त हो गईं । मुझे भी माँ की याद नहीं सतायेगी ---आदत जो पड़ गई है बिना तुम्हारे रहने की ।

एक बात नहीं समझ सका जब कोई माँ अपने बच्चे की अंगुली पकडे सड़क पर जाती है या उसे दुलारती है, जब खूटे से बंधी गाय अपने बच्चे को चूमती -चाटती है तो मेरे सीने में बेचैनी होने लगती है दोनों हथेलियों से मुंह ढाप कर सिसकने लगता हूँ ऐसा मेरे साथ क्यों होता है---- ?

कोई भूख लगने पर रोता है कोई माँ के न होने पर रोता है, कोई मनपसंद खिलौना न मिलने पर आँसू गिराता है मेरे पास तो यह सब कुछ है फिर भी आँखें बार -बार भर आती हैंकी भाषा कोई नहीं जानता !

तेरहवीं कड़ी

पापा एक हफ्ते के बाद सिंगापुर से आये हैं उनका हवाई जहाज देर से आया माँ तुमको डिनर पार्टी में जाना था उनका इन्तजार नहीं कर सकींमैं ड्राइंग रूम में बैठकर घड़ी देखने लगा ----मेरे पापा----- आते होंगे ---बस आते ही होंगे

पापा आ गए बड़े थके -थके लग रहे थे घर में घुसते ही उनकी निगाहें तुम्हें ढूँढ़ रही थीं

माँ, आपके बिना वे अकेले हैं मैं अकेलेपन का दर्द जानता हूँ वह तो अच्छा है कि मैं यहाँ हूँ मैं ही उनका साथ दे दूँगा पापा नहा -धोकर कुर्सी पर बैठने ही वाले थे कि मैं चिल्लाया –पापा मेरे पास बैठोवे चेहरे पर एक जबरदस्ती मुस्कान लाये और मेरी पास वाली कुर्सी पर बैठ गए मुझे बड़ा सुख मिला इससे

मुझे बहुत भूख लग रही थी सोचा पापा को भी लग रही होगी, सो मैंने पूछा –खाना लाऊँ !

तुमने खा लिया बेटे ?

नहीं पापाआँखों में उदासी छा गई

चलो दोनों मिलकर खाते हैं

हम मेज -कुर्सी पर पास -पास बैठ गए पापा ने पहले मेरी प्लेट लगाई फिर अपनी मैं खुश होकर खाने लगा मालूम है क्यों ?बहुत दिनों के बाद ऐसा मौक़ा आया कि पापा मेरे साथ थे लेकिन पापा बना हिले-डुले बैठे ही रहे मैंने झुककर उनकी आँखों में झांका |पापा की आँखें गीली थीं अचानक एक बूँद टप से उनके हाथ पर चूँ पड़ी मैं सिसक पड़ा- नहीं पापा !मैंने लपककर उस बूंद को मिटा दिया

पापा ने मुझे अपने सीने से चिपका कर भींच लिया आज मुझे मालूम हुआ मेरी ही नहीं मेरे पापा की आँखें भी गीली रहती हैं मगर पापा की क्यों! --समझ नहीं पा रहा हूँ

चौदहवीं कड़ी

स्कूल से आते ही तुमसे कुछ कहने को मेरा मन मचल रहा थामैं ज़्यादातर अपने दोस्त रिक्की के साथ रहता हूँआज मुझे आभास हुआ कि मैं उससे लंबा हो गया हूँमेरी खुशी का ठिकाना न रहा इस प्रसन्नता को तुम्हारे साथ बांटना चाहता थासोचा था मुझे गौर से देखोगी और सीने से चिपका लोगीलेकिन मेरा सारा उल्लास पल में जाता रहा मैंने तुम्हें पापा से कहते सुना तुम्हारा बेटा बहुत जिद्दी है न सुनने की तो उसने कसम खा रखी है

मुझमें एकाएक विद्रोह का भाव जाग उठाचिल्ला-चिल्लाकर कहने को मन चाहा -अब तक तो मैंने आँख मींचे तुम्हारे पीछे चलने की कोशिश की पर अब जिद्दी बनकर ही दिखाऊँगाउनकी तानाशाही से मैं थक चुका थाबिना कुछ बोले अपने कमरे मेँ चला गयाआज पहली बार मैंने उनकी अवहेलना करनी चाहीन जाने कहाँ से इतना मुझमें साहस आ गयामैं खुद पर चकित थादेर तक न सो सका खुद ही कारण खोजता रहा हारकर सो गया

सुबह देर से उठातुम्हारा रौद्र रूप देख सिटपिटा गयामेरा दोस्त रिंकू,उसको तो तुम जानती होंगीउसके घर में सुबह उठते ही सब आपस में शुभ प्रभात कहते हैंउसकी दादी माँ सीने से लगाकर उस पर प्यार की बारिश शुरू कर देतीं हैरिंकू का तो रोम-रोम खिल जाता हैपढ़ता भी खूब है खेल में भी पीछे नहींएक मैं हूँसुबह से ही बिना कुछ किए अपने को थका- थका सा अनुभव करता हूँयह कब तक चलेगा!

कभी कभी सोचता हूँ क्या मैं वास्तव में जिद्दी हूँ?पर दूसरे पल यह विचार आता है मैं नहीं तुम जिद्दी होतभी तो तुम मुझे हर कीमत पर अपने इशारों पर नचाना चाहती हो

मुझे अपशब्द कहने से पहले या व्यंगबाण छोडने से पहले कुछ तो सोच लिया करो कि तुम्हारा बेटा कितने जख्म पाएगाकितना अच्छा होता यदि मैं उन जख्मों को दिखा सकताशायद मेरी पीड़ा का अहसास हो पाता

तुमसे तो मेरी डायरी भली जो याद करते ही मेरी आँखों के सामने होती है और जब तक मैं चाहूँ अपनी हथेलियों और अंगुलियों से उसे सहला सकता हूँ

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कुछ बातें

सीखना बहुत जरूरी है

संकलित

पंद्रहवीं कड़ी

तुम तो बदलोगी नहीं पर मैं अब अपने को बदलना चाहता हूँ। बेपेंदी के लोटे की तरह कब तक लुढ़कता रहूँगा! सब कुछ तो सहन शक्ति से बाहर हो रहा है। चारों तरफ मुझे धुआँ ही धुआँ नजर आता है जिसमें मेरा दम घुट रहा है। छुट्टी के बाद घर मेँ घुसने को मेरा मन नहीं करता।

मुझे अपने को बदलना ही होगा। मुझमें परिवर्तन आ भी रहा हैं। मेरी पेंट छोटी हो गई है। जूता भी काटने लगा है। कल पापा ने मुझे नया जूता और कपड़े खरीदवाए। वे जान गए कि मैं बड़ा हो रहा हूँ। पर तुम दोनों में से कोई यह नहीं जान पाया कि शरीर से ही नहीं मैं मन से भी बड़ा हो रहा हूँ। पहले से अधिक भावुक हो गया हूँ। गलत और सही में अंतर कर सकता हूँ। अब बेरुखी और डांट पहले की तरह सहन नहीं होती। मेरी तुमसे और पापा से प्रार्थना है कि कहने से पहले अपने शब्दों को तौल अवश्य लें । कहीं मैं चिढ़कर जबाव न दे दूँ। फिर तो यही कहोगे –कल का छोकरा जबान चलाता है।

सोलहवीं कड़ी

पापा-मेरी दुनिया बड़ी हो रही हैअब आप तक ही मेरी दुनिया सीमित नहीं हैउसमें मेरे दोस्त भी शामिल हो गए हैंअब मैं संकोची नहीं रहा अपने साथियों से खूब बतियाता हूँमेरे दोस्त बहुत अच्छे हैंहम मिलकर कल्पना के गुब्बारे उड़ाते हैंजिनके रंग बड़े चमकीले होते हैंउनकी चमक में उदासी न जाने कहाँ गुम हो जाती है

माँ,मैं अपने दोस्तों के बारे में तुमसे कुछ छिपाना नहीं चाहता इसलिए घर आकर जब मैंने अपने दोस्तों के बारे में बताना चाहा तो तुमने बुरा सा मुंह बना लियाबोलीं “चुपचाप खाना खाओज्यादा बकड़-बकड़ करने की जरूरत नहीं

तुमको लगा, मेरे दोस्त मुझे तुमसे छीन रहे हैंतुमसे ज्यादा मैं उनको महत्व दे रहा हूँपिछले शुक्रवार को स्कूल से आते ही मेरे दोस्त का फोन आ गयातुम तो बिगड़ पड़ीं-“अभी तो दोस्तों के बीच से आया हैफिर क्या जरूरत आन पड़ी दोस्त को जो तुझे फोन कर बैठा---- उसे कोई काम-धाम नहीं ! फोन नीचे रखो

बिना कारण जाने ही तुम बिखर पड़ींबीमार होने के कारण वह स्कूल नहीं आ पाया था इस कारण होम वर्क जानने के लिए फोन किया था

मैंने डर कर फोन नीचे नहीं रखा बल्कि उसे होम वर्क बता कर ही रहातुमने मुझे घूरा और गुस्सा होकर चली गईंएक पल मैंने सोचा तुम्हें मना लूँपर तुम्हें मनाकर अपने को क्यों छोटा करूँ जबकि मेरी कोई गलती नहींक्या दोस्त की सहायता करना गलत है? मुझे जो ठीक लगा मैंने कर दिया

सत्रहवीं कड़ी

कुछ दिनों से मेरी आवाज बड़ी अजीब सी हो गई हैभारी-भारी फटे बांस सीसारी लड़कियां मुझे चिढ़ाती हैंपहले तो मैंने सोचा आइसक्रीम खाने से गला बैठ गया हैठीक हो जाएगाजब एक माह तक आवाज ठीक न हुई तो घबरा उठा मैंने पाप से पूछा भी कि मेरी आवाज को क्या हो गया हैहँसकर टाल गए-कुछ नहीं कुछ नहीं -- सब ठीक हो जाएगा

मुझे बड़ा बुरा लगा तुम पापा कैसे हो! डाक्टर को दिखाने की बजाय खुद डॉक्टर बन बैठेमेरी जरा चिंता नहींमैंने अपने दोस्त करन को अपनी आवाज के बारे में बताया कि शायद वह मेरी कुछ मदद कर सकेमगर वह भी हँस पड़ामैं खीज पड़ाबाद में बोला “मेरे पिता जी ने बताया है कि अब हम बच्चे नहीं रहे हम किशोरावस्था से गुजर रहे हैं और ऐसे में शरीर में बहुत से बदलाब आते हैंआवाज के बदलने का भी यही कारण है

मेरी चिंता दूर हुई पर कसक सी उठी पापाजो जानकारी मुझे दूसरों से मिली वह आपसे भी तो मिल सकती थीसब कुछ जानते हुए भी आपने मुझे दूसरों की दया पर छोड़ दियामेरे प्रति इतनी लापरवाही क्यों?

अठारहवीं कड़ी

माँ तुम्हें और पिताजी को जब घर - बाहर की बातों पर सलाह मशविरा करनी होती है तो मुझे किसी बहाने अपने पास से हटा देते हो। समझते ही नहीं अब मैं बच्चा नहीं रहा बड़ा हो रहा हूँ। मैं भी किसी विषय पर सोचकर अपनी राय दे सकता हूँ। आप लोगों की हाँ में हाँ मिलाने का समय चला गया।

मैं सब तो नहीं समझता, लेकिन कुछ तो समझने लगा हूँ उसी का मान करके मुझे अपने से एकदम अलग न किया करो। मन में आता है तुम से भी कोई बात नहीं पूछूंगा। जो मन में आयेगा वही करूंगा। अपने पैरों पर खड़ा होकर दिखाऊँगा। पर यह सब तुमसे कहने से कोई लाभ नहीं। न कभी मेरा विश्वास किया और न करोगे। इसलिए चुप रहना ही बेहतर है। इस चुप्पी को डायरी के पन्नों पर जरूर बिखेर दूंगा। एक वही तो है जो मेरी बात बड़े धैर्य से सुनती है। उसे सब सच-सच बताता हूँ क्योंकि उससे डरता नहीं हूँ। मेरे न जाने कितने दोस्त डर के कारण मम्मी-पापा से झूठ बोलने लगे हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपका बेटा सच्चाई से मुँह न मोड़े तो बात-बात में डराना-धमकाना छोड़ दो।

उन्नीसवीं कड़ी

माँ-----मैंने अपने मन की हलचल के बारे में तुम्हें कभी नहीं बतायामेरे ह्रदय का हाहाकार तुमने कभी नहीं सुना भावनाओं की भीड़ में मैं खो गया पर किसी ने मुझे ढूंढने की कोशिश नहीं की मुझ में जो परिवर्तन हो रहे थे यदि तुम चाहतीं तो मेरी आँखों में झांककर ही देख सकती थीं, मेरे मनोभावों को पढ़ सकती थीं पर मेरी तो हमेशा अवहेलना की गई, उपेक्षा की दीवार में जीतेजी चुन दिया ऎसी उम्मीद न थी तुमसे कैसी माँ हो !

कल बीत गया पर मैं अपना कल नहीं भूला हूँ कैसे भूल जाऊं -----उमंगों पर छिडका तेजाब, कल्पना की टूटी सुनहरी कमान

मैंने जब भी फूल से गीतों को गुनगुनाया, आपने झटके से उनकी कोमलता छीन ली ऐसा करने से मैं जगह -जगह से जख्मी हो गया हूँयह आपको और पापा को दिखायी देने वाला नहीं जख्म बाहर नहीं --मेरे अन्दर ---मेरे दिल में हैं ये घाव जल्दी भरने वाले नहीं भर भी गए तो दुखन तो देते ही रहेंगे

मैंने तो पैदा होते ही सुना था --आप लोग बड़े हैं जब मैं बड़ा होने लगा तो सहा नहीं गया यह न समझना --आप लोग हर हालत में मेरा प्यार पाने के अधिकारी हो यह कम भी हो सकता है --पर मैं ऐसा होने नहीं दूंगा क्योंकि इसका नतीजा जानता हूँ जिस तरह से बिना प्यार के मैं तड़प रहा हूँ उसी प्रकार आप लोग तड़पोगे और यह मैं देख नहीं सकताएक बात और है जैसा तुमने किया वैसा मैं भी करने लगूँ तो आपमें और मुझमें अंतर ही क्या रह जाएगा नहीं --नहीं मैं इतिहास नहीं दोहराऊँगा

बीसवीं कड़ी

जन्मदाता मैं घर छोड़ रहा हूँ सुना ---- तुमने !मैं जा रहा हूँ---बस एक बार कह दो --आज का दिन मंगलमय हो मेरे पंख निकल आये हैंहर दिशा में उडूँगा --उड़कर देखूँगा मेरी जीत कहाँ छिपी हैहर तरह की लड़ाई स्वयं लडूँगा मुझे, न रोकना न आँसू बहाना मुझे अपना रास्ता ढूँढने दो मैं बहती हवाओं को देखना, छूना चाहता हूँउनके इशारे समझना चाहता हूँ ऐसे में संदेह और खौफ की खिचड़ी दिमाग में पक सकती है, खतरे की घंटियाँ नींद उड़ा सकती हैं

मुझे इन सबकी परवाह नहीं --मैं अपनी हँसी के लिए हँसूँगा ---अपनी खुशी के लिए नाचूँगा । सोच रहे हो बहुत बोलता हूँ लेकिन बोलने दो ---।

मैंने अनगिनत आँसू गिराए,कितनी रातें नहीं सोया पर यह एक तरह से अच्छा ही हुआ। इसी से अपने पैरों पर खड़े होने का साहस जुटा पाया हूँ। अब मुझे हर बात तुमसे नहीं पूछनी होगा न ही हर बात का हिसाब देना होगा। मेरा यह रवैया देख शायद तुम हंसी उड़ाओ –यह पगला गया है क्या! मुझे इसकी भी चिंता नहीं।

मुझे जब दूसरों की जरूरत थी तब किसी ने ध्यान न दिया । अब क्या! अब तो मैंने जंग छेड़ दी है और यह जंग जीतकर रहूँगा। बस मेरी नुक्ताचीनी करना छोड़ दो। और अकेला छोड़ दो। लगता है मुसीबतों ने मुझे समय से पहले बड़ा कर दिया है।

इक्कीसवीं कड़ी

मैं अपना सुनहरा संसार खोजने जा रहा हूँ । मेरे जाने के बाद पापा आप शायद उदास हो जाएँ पर माँ तो यही कहेगी-- लड़के के पंख लग गए है। धक्के खाकर चार दिनों के बाद ही घर न लौट आया तो मैं उसकी माँ नहीं।

घर छोड़ते समय मुझे अच्छा नहीं लग रहा हैं। पर मैं अपने कितने चीरे लगवाऊँ कितनी बार सम्मान खोकर जीऊँ ! अब मैं कुछ बन कर ही दिखाऊँगा। कहाँ जा रहा हूँ---खोजना नहीं। मेरा भरोसा करना पापा, आपका नाम नहीं डूबने दूंगा।

जहाँ भी जाऊंगा आपकी यादें साथ रहेंगी उनसे निकलता प्रकाश ही मेरे लिए काफी है जो मेरे रास्ते के अँधेरे को मिटाता चला जाएगाविकास मंच की ओर कदम उठ रहे हैं ---बढ़ रहे हैंबिखरे ---टूटे--- सपनों को बटोरकर ही रहूँगा

भूले से भी न टोकना न आवाज देना --थोड़ा संतोष रखना एक दिन मैं लौटूँगा अवश्य लेकिन कुछ बनकर जिससे आप गर्व से कह सकें --यह मेरा बेटा है

चिंता तो मेरी एकदम न करनामेरे साथ मेरी साथिन है--- जो मुझे कभी अकेलापन महसूस नहीं होने देती, जिसे बड़ी बेदर्दी से एक बार माँ ने जमीन पर पटक दिया था पर उसने चूँ तक न की। कहाँ मिलेगी ऐसी साथिन –मेरी प्यारी डायरी!

लेखन यात्रा

लेखन तो कविता से शुरू हुआ था पर अब प्रमुख साहित्यिक विधा कथा-कहानी हो गई है। अब चाहे वह कथा हो या लघुकथा, बालकथा हो या लोककथा ।

अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। भारतीय पत्रिकाओं और अंतर्जाल पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी है। बालकहानियाँ, लोककथाएँ व प्राचीन लघुकथाएं ई बुक्स के अंतर्गत समाहित हैं।

लेखिका एक ब्लॉगर भी हैंउनका एक ब्लॉग बालकहानियों का खजाना हैजिसकी लिंक है -http://baalkunj.blogspot.in/

अनेक पेपर बुक्स व ई बुक्स प्रकाशित हो चुकी है

काव्य संग्रह

रोशनी की तलाश में

प्रकाशित बालकहानी पुस्तकें -

१ अंगूठा चूस,-अहंकारी राजा,- जितनी चादर उतने पैर पसार,4-मन की रानी छतरी में पानी,5-चाँद सा महल

आत्मकथापरक बाल उपन्यास जब मैं छोटी थीका शीघ्र प्रकाशन होने वाला है

बालसाहित्य से संबन्धित 8 ई बुक प्रकाशित हो चुकी हैं । गंगे यमुने, हड़प्पा-कडप्पा, बदलते रंग -प्राचीन लघुलोककथाएं है। उलझन भरा संसार,मिश्री मौसी की मटकी,फूलों का राजा, -जंगल में मंगल, आदि बाल कहानियों का भंडार हैं। ‘मेरे प्यारे बाबा’ में छोटी-छोटी रोचक घटनाओं का आनंद भी आप ले सकते हैं।

बाल कहानियों का चयन स्कूल के हिन्दी पाठ्यक्रम में हो चुका है

एन॰सी॰ई॰आर॰टी॰द्वारा प्रस्तावित यूनाईटेड हिन्दी भाषा की पाठ्य पुस्तक उद्या कक्षा 2 में बालकहानी मुछन्दर जूतेवालाप्रकाशित

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का ही एक विभाग है उसके द्वारा वैभव हिन्दी पाठमाला टेक्स्ट कम वर्क बुक कक्षा 5 के लिए बालकहानी मूर्खता की नदी का चयन व प्रकाशन कहानियों का अन्य भारतीय भाषा में अनुवाद, दिल्ली आकाशवाणी रेडियो स्टेशन में महिला विभाग, बाल विभाग से कई वर्षों तक जुड़ाव रहा

अंतर्जाल पत्रिका साहित्य कुंज में कनाडा के संस्मरण का क्रमश: प्रकाशन हो रहा है20 कड़ी प्रकाशित हो चुकी हैं

सम्मान व सम्मानित कृति

जितनी चादर उतने पैर पसार बाल कहानियों की पुस्तक को राष्ट्रीय शिखर साहित्य सम्मान मिला

रोशनी की तलाश कविता संग्रह को डॉ कमला रत्नम सम्मान मिला

राष्ट्र निर्माता पुरस्कार (प॰बंगाल) प्राप्त हुआ

संपर्क

सुधा भार्गव

भारत

e.mail--subharga@gmail.com

समाप्त