पी कहाँ?
रतननाथ सरशार
अनुवाद - शमशेर बहादुर सिंह
आठवीं हूक
अब इधर का हाल सुनिए कि नूरजहाँ बेगम की माँ और बहन उसी जंगल के बाग में साहबजादी की तसल्ली और हिफाजत और इलाज और निगरानी के लिए टिके रहे। पहलेपहल तो नूरजहाँ बेगम लिहाज के मारे दिल ही दिल में 'पी कहाँ! पी कहाँ!' कह कर दिल की जरा-जरा ढारस व दिलासा देती थी, कि ऐसा न हो कि ये लोग यह आवाज सुन कर अपने दिल में कहें कि लड़की हाथ से जाती रही - बिलकुल बदलिहाज हो गई : कल की छोकरी और हमारे सामने यह बदलिहाजी! लेकिन जब जुनून ने औप ज्यादा जोर किया, और सब्र का दामन हाथ से छूटने लगा, - तो शर्म बिला इजाजत गायब-गुल्ला : किसका लिहाज और किसका खयाल, और किसकी शर्म और किसका पर्दा। ये सब बातें और खयाल तो होश के साथ होते हैं। अब यह खुले-बंदों शोर मचा-मचा के पी को ढूँढ़ने लगी - 'पी कहाँ! पी कहाँ!' किसी की शर्म, न लिहाज, बिलकुल दीवानी हो गई। पिंजड़ा हाथ में ले लिया और बाग में गश्त करने लगी। पी कहाँ! पी कहाँ! हर दरख्त, हर दर-दीवार, हर रविश और क्यारी, हर नहर, हर जड़ी-बूटी और पत्ते से पूछती थी : 'पी कहाँ!' माँ बहन रोया करती थीं। बहनोई बहुत ही रंजीदा। नौकर-चाकर सब गम से उदास - कि इस सिन में यह कौन बीमारी पैदा हो गई, जिसका इलाज ही नहीं। नवाब दूल्हा ने शहर से हकीम साहब को बुलवाया। तीन दिन तक हकीम साहब मरज की अटकल लिया किए, और इलाज शुरू कर दिया। शहर से कई अरक खिंचवाके मँगवाए, और ये सब दवाएँ नामी अत्तारों की दुकान से आती थीं। इलाज में कोई कोर-कसर नहीं रखी गई। हकीम साहब ने जान लड़ा दी। मगर -
मरज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की!
जब बिलकुल मजबूर हो गए तो हकीम साहब ने कहा - हजरत अब किसी अच्छे डाक्टर से भी सलाह लीजिए। हमारे नजदीक तो इनकी बीमारी दो हालतों से खाली नहीं। या तो किसी का साया है, या किसी पर इस साहबजादी का (आहिस्ता से) दिल आया है।
ये मायूसी के लफ्ज सुन कर नवाब दूल्हा को और भी रंज हुआ, कि हकीम साहब ने साफ-साफ जवाब दे दिया और खुद सलाह दी कि अब डाक्टर को दिखलाइए। इनके नजदीक यह कोई मरज नहीं है। या तो किसी भूत-परेत का साया है - किसी झाड़ने फूँकनेवाले या आमिल को बुलाएँ, या किसी से आँख लड़ गई है - उसको ढूँढ़ निकालें। बीवी से जाके उन्होंने कहा - लो साहब, अब तो लड़की की तरफ से पूरी मायूसी हो गई। बीवी ने पूछा - क्यों, क्यों? खैर तो?
नवाब - खैर कहाँ है। हकीम साहब ने जवाब दे दिया। उनकी राय है कि डाक्टर को दिखाओ, या झाड़-फूँक हो! और एक बात और भी बेतुकी-सी कही, कि मालूम होता है, यह साहबजादी किसी पर आशिक हैं। उसके इश्क ने यह हालत पहुँचाई और यह नौबत आई, अब इनका इलाज करना फजूल है।
बेगम - यह बात सही है। किसी से कहना नहीं। वह जो मुआ दारोगा उनके यहाँ था, उसके लड़के निगोड़े पर इसकी जान जाती थी, और इसकी सबब से यह तबाही दुश्मनों के हाल पर पड़ी। यह बात उसने ठीक कही। यह बिजोग है।
और वह लड़का है कहाँ?
क्या जाने मुआ कहाँ गया!
वह दारोगा तो शरीफजादा है। अच्छे खान्दान से है। बारहे का सैयद, रसूल की औलाद। लड़का भी पढ़ा-लिखा था, और बहुत खूबसूरत। जब यह हालत हो गई, तो हमारे देखने में इससे तो बेहतर यही है कि इसी के साथ निकाह हो जाय। कोई जुलाहा या कबड़िया नहीं है... और जो लड़की की जान जाती रही! उस लड़के का कहीं पता लगाना चाहिए। हम बड़े नवाब को बुलवाते हैं।
जो सलाह हो वह करो। हमको अंगारों पर समझो! अल्लाह का दिया सूखी रोटी का टुकड़ा मैके-ससुराल दोनों में बहुत हैं, और उसको देके खायँ। मगर यह बैठे-बिठाए मुसीबत कहाँ से सर पर पड़ गई। इसका क्या इलाज है? अब्बाजान को जरूर बुलवाओ। अब यह बीमारी खेल नहीं है। रोजबरोज बढ़ती जाती है।
नवाब दूल्हा ने उसी दम अपने ससुर के नाम खत लिखा, जिसमें उन्हें बताया कि मरीज की हालत अब यहाँ तक पहुँच गई है कि जनाब हकीम साहब ने जवाब दे दिया। उनकी राय है कि किसी अच्छे डाक्टर को दिखलाइए। वह कहते हैं कि यह कोई बीमारी नहीं है। या तो इन पर किसी का साया पड़ा है, या किसी पर इनका दिल आया है। गुजारिश यह है कि आप फौरन डाक्टर साहब को ले कर रवाना हूजिए। अगर होम्योपैथिक डाक्टर को लाइए तो दवाओं का बक्स उनसे साथ जरूर होगा, और अगर एलोपैथिक हों तो जरूरी दवाएँ लेते आएँ। सबकी यही राय है कि आप यहाँ चले आइए। तबीअत की हालत बहुत ही नाजुक है। बहरहाल खुदा का भरोसा रखना चाहिए। बड़ी बेगम साहब दिन-रात रोया करती हैं, क्योंकि मरीजा की बीमारी ने अब पागलपन की शक्ल ले ली है। अफसोस। मगर जो मर्जी-ए-खुदा!
यह खत पढ़ते ही नवाब साहब ने डाक्टर साहब को साथ लिया और पालकी-गाड़ी पर रवाना हुए। पहुँचे, तो कुल हाल सुना। डाक्टर साहब ने मरीजा को देखा। पूछा, दिल का क्या हाल है? जवाब - पी कहाँ! पूछा - जरा आप हमारे सवाल का जवाब दे सकती हैं? जवाब - पी कहाँ! थोड़ी देर के बाद डाक्टर ने फिर कहा - अच्छा मिजाज का हाल खुलासा बताइए जवाब - पी कहाँ! पी कहाँ! डाक्टर खामोश हो रहा।
हकीम साहब ने कुछ देर के बाद उससे कहा - जरा नब्ज दिखाइए। और वह लड़की खड़ी हो कर चिल्लाने लगी - पी कहाँ! पी कहाँ! सब लोग खामोश और उदास, जैसे कागज की तस्वीरें हों।
जब डाक्टर साहब को अलैहदा ले गए, तो सलाह-मशविरा होने लगा। और आखिर कर यही राय तय पाई कि कोई बहुत सख्त सदमा पहुँचा है, जिसके सबब से दिमाग सही नहीं रहा और सारा जिस्म निढाल और बेकाबू हो गया है। नवाब और नजीर बेगम और करीब-करीब घर-भर को इस बीमारी का कारन मालूम था। मगर मुँह से नहीं निकालते थे, कि बदनामी की बात है : कि रईस शरीफ की लड़की, और इश्क! बहू-बेटियों को इश्कबाजी से क्या काम! मगर नजीर बेगम के दूल्हा को इसका हाल नहीं मालूम था, अब उनको भी मालूम हो गया। रात को नवाब दूल्हा और बड़े नवाब में सलाह हुई और बड़ी रद्दो-बदल के बाद बड़ी बेगम और नजीर बेगम बुलवाई गई, और सबकी सलाह से यह तय हुआ कि उस लड़के की तलाश चारों तरफ की जाय और उसी के साथ निकाह हो, ताकि लड़की की जान बचे। गो गरीब का लड़का है, हमको या हमारी लड़की को रुपए की कौन कमी है। अब यह फिक्र हुई कि वह लड़का मिले, और बड़ी कोशिश की जाय कि मिल जाय।
दूसरे रोज यह लड़की पी कहाँ! पी कहाँ! कह रही थी कि महरी ने आन कर नवाब साहब से कहा कि दो-एक साहब हाथी पर सवार बाग के फाटक पर खड़े हैं और हजूर से मिलना चाहते हैं। नवाब के कान खड़े हुए। यहाँ कौन आया है, भई, और फिर हाथी की सवारी पर। नवाब दूल्हा को बुलवाओ! ये अपनी बीबी के उनके कमरे में बातें कर रहे थे, कि उनको इत्तला हुई, दोनों बाहर आए। नवाब के पास दामाद ने जा कर कहा - इरशाद! उन्होंने हाल बताया। यह बाग के बाहर आए और हाथी की दोनों सवारियों को देख कर खुश हुए। फीलबान ने 'बिरी' कह कर हाथी को बिठाया। पहले एक साहब उतरे। दूसरे साहब भी उतरने ही को थे कि हाथी उठने लगा, और फीलबान ने फिर 'बिरी' कह कर बिठाया। पहले साहब तो कूद पड़े, और दूसरे साहब के लिए जीना लगाया गया। यह भी उतरे।
हकीम साहब और दारोगा जी कुर्सियों पर बैठे। अंदर से मामा खासदान लाई। हुक्का लाई। नवाब साहब आए।
नवाब - (दोनों से गले मिल कर) जनाब हकीम साहब की अर्से के बाद आज जियारत हुई। मिजाज शरीफ। कहिए दारोगा साहब, खैरिसत है?
दारोगा - हजूर खैरियत तो नहीं है।
नवाब - क्यों, क्यों, साहबजादा आपका कहाँ है?
हकीम - इनका साहबजादा कैसा? इनके बापके भी साहबजादा था? वह लड़का तो ताल्लुकदार है।
कुल हाल बयान किया।
नवाब साहब दंग हो गए, और लड़की की बेचैनी का हाल कहा। दारोगा और नवाब और हकीम और नवाब दूल्हा, सब खुश। अंदर-बाहर घर-भर में खुशियाँ।
पहले तो नूरजहाँ बेगम की माँ को इस बात का यकीन न आया। कहा, यह हमारे खुश करने को तसल्ली दी जाती है। मगर इस भोंडी और झूठी बात से भला कब तसल्ली हो सकती है? ऐसी किस्मत हमारी कहाँ! नजीर बेगम को भी यकीन न आया। मगर इनके मियाँ कभी झूठ नहीं बोलते थे, इस सबब से उन्होंने अपनी माँ को तसल्ली दी कि अम्मीजान यह खबर झूठ नहीं हो सकती। कभी हमसे झूठ नहीं बोला जाता है। झूठ से हमको नफरत है। अच्छा महरी से पूछिए, मामा से दरियाफ्त कीजिए। हाथ कंगन को आरसी क्या है। महरी ने कहा, वह मुए दारोगा आए है। और वह हकीम है जिन्होंने बीबी का इलाज किया था। मामा सिर्फ दारोगा को पहचानती थीं। दोनों गवाही में पूरी उतरीं। नवाब दूल्हा से कसमें दे-दे कर बड़ी बेगम ने पूछा - बेटा, मुझे अपनी सास न समझो, अपनी माँ समझो। मैं तो तुमको दामाद नहीं, अपना बेटा समझती हूँ। नवाब दूल्हा ने तसल्ली दी, और कहा - खुदा को अच्छा ही करना मंजूर है।
इतने में दरख्त से आवाज आई - पी कहाँ! और फैजन ने साहबजादी से कहा -हमारी सलाह मानिए, तो अब इस पपीहे को आजाद कीजिए। जिस तरह आपने यह खुशखबरी इतनी मुद्दत के बाद सुनी, उसी तरह इसको भी खुश कर दीजिए। और सच्ची बात यह है - कि दोनों नर-मादा कोसते होंगे कि किस जालिम ने हम पर यह इतना बड़ा जुल्म ढाया कि नर को मादा और मादा को नर की खबर ही नहीं। एक आसमान पर, दूसरा पाताल में।
बेगम - मैं खुश, मेरा खुदा खुश।
नजीर - अरे हाँ, छोड़ दो बेचारे को। मियाँ-बीवी फिर मिल जायँ!
फैजन - हमारी तो यही सलाह है।
प्यारी - सरकार, सैकड़ों दुआएँ देंगे। क्या इनके जान नहीं है?
सितारन - कैसी हूक उनके दिल से उठती है!
बेगम - अरे, बरसों का साथ होगा!
खवास - हमें बड़ा तरस आता है!
नजीर - तरस की बात ही है।
इतने में नूरजहाँ बेगम उठीं और पिंजरा खोल कर कहा - उड़ जा! और पपीहा निकल के फुर्र से उड़ गया। नर और मादा की जोड़ी फिर एक हो गई, और इतने दिन के बिछुडे हुए मिले।
नवाब साहब ने अपने दोनों मेहमानों की बड़ी खातिर की। अंदर मामा ने नजीर बेगम की निगरानी में खाना पकाया - मुर्ग और बटेर और तीतर और हिरन और हरियल और मछली और बकरी का गोश्त - सात किस्म के जानवरों का गोश्त पका था। दो तरह का नमकीन पुलाव, एक किस्म का मीठा मुजस्सिम मुर्ग का कबाब। मछली दफना के पकाई गई थी। कई किस्म के मसाले पड़े हुए, काँटे सब गल गए थे। बैगन का डलमा इस कारीगरी से पका था, कि देखने से कच्चे बैगन मालूम होने थे - कि अभी-अभी खेत से तोड़ के बैगन आए हैं। - और तराशिए तो वह खुशबू कि दिमाग तर हो जाय, और खाइए तो सारी खुदाई का खाना भूल जाइए।
नूरजहाँ को कुछ-कुछ तो यकीन आता था। मगर अभी-अभी वह सोचती थी कि सपने की-सी बातें मालूम होती हैं। फैजन को अलैहदा ले जा कर कहा - फैजन तुम्हारी क्या राय है? यह बातें सब क्या सुन रही हो। अगर यह सब सच है, तो फिर तो मारे खुशी के मेरी जान ही निकल जायगी। मैं खूब जानती हूँ कि मैं सपना नहीं देख रही हूँ, जागती हूँ। लेकिन यह खबर ऐसी है कि यकीन कम आता है। अंधा जब पतियाए जब आँखें पाए। यह मुमकिन है कि उन्होंने मेरी तसल्ली के लिए दारोगा को बुला लिया हो, और उसको कुछ ले-दे के अपनी तरफ कर लिया हो। मेरी अच्छी फैजन, इसकी टोह लो!
अब मैं साफ-साफ बता दूँ, वह लड़का दारोगा जी का नहीं है, वह ताल्लुकेदार का लड़का है, कोई राजा का। राजा जब मर गया, तो रानी ने अपने देवर से निकाह किया। उस देवर ने रानी को बेदखल कर दिया, और भाई के लड़के को निकाल दिया और सोलहों आने का मालिक बन बैठा। अब वह भी जाता रहा। तब रानी ने लड़के की तलाश की। बड़े नवाब तो दारोगा जी और लड़के को निकाल ही चुके थे। लोगों से खोज लगाके लड़के को ढूँढ़ा। रानी ने इन लोगों को हजार-हजार रुपया दिया। लड़का अब राजा हो गया। मगर आपकी जुदाई से उनके दुश्मनों की बुरी हालत है। यह तो हकीम आए हैं, यही राजा का इलाज करते हैं। दारोगाजी को लेके यहाँ आए हैं। अब लीजिए, एक ही अठवारे के अंदर जा कर अपने प्यारे से मिलिए।
नूरजहाँ बहुत ही खुश हुई। जामे में फूली नहीं समाती। दिल का अजब हाल था। अबर कारूँ का खजाना और तमाम दुनिया की सलतनत मिल जाती तो भी उस पर लात मारती। वह सब एक तरफ और वह और उसका प्यारा एक तरफ।
प्यारी - सरकार, मुबारक, वह भारी जोड़ा लूँगी कि बादशाहजादियों, वजीरजादियों ने भी न पहना हो।
फैजन - बेशक, बेशक। इसके बढ़के और खुशी क्या होगी!
सितारन - दारोगाजी बड़े खुश हैं। मैं चाय लेके गई थी, ना। कहने लगे, तुम भी चलोगी? हमने कहा - जी हाँ!
फैजन - चलेंगे कहाँ?
सितारन - ए तुमको बसंत की कुछ खबर ही नहीं। चलेंगे कहाँ की अच्छी कही! सारा घर भर जायगा।
प्यारी - क्या लड़की को वहाँ ले जायँगे? यह कौन दस्तूर है भला?
सितारन - ए बहन, सुना तो यों ही है।
नूर - यह क्या बात है, फैजन?
फैजन - नई बात सुनी।
इतने में फैजन ने नजीर बेगम से दरयाफ्त किया। नजीर बेगम ने अलैहदा ले जा कर कहा - सितारन ठीक कहती है। उस लड़के की तबीअत बहुत बिगड़ गई है। नूरजहाँ से - खबरदार-खबरदार! - न कहना। हकीमों ने जवाब दे दिया है। अल्लाह अपना फजल करे। मगर हकीम की राय है कि नूरजहाँ के देखते ही अच्छे हो जायँगे। क्योंकि यही बीमारी है, और इस बीमारी इलाज यही है कि नूरजहाँ से मिलें। और इधर नूरजहाँ की वहशत भी जाती रहेगी।
फैजन - ए अब जाती ही है। मगर बात तो सुनो। क्या वह साहबजादा अब यहाँ तक आने के भी काबिल नहीं।
नजीर - नहीं।
फैजन - तो यहाँ से कौन-कौन जायगा?
नजीर - सारा घर-भर। कुल काफला रवाना होगा। नादिरजहाँ बेगम को बुलवाया है। नादिरजहाँ बेगम नजीर की छोटी बहन का नाम था। यह नूरजहाँ की हमजोली थी,और साल भर उसकी शादी को हुआ था। फैजन ने नूरजहाँ से कहा - सब मामला लैस है। अब आप जरा न घबराइए। घबराने की कोई बात नहीं है। वहाँ इस वजह से चलना होगा कि बड़ी रानी उस लड़के को अब दम-भर भी अपने पास से जुदा नहीं करती हैं। कई बार गश आ गया। और बीमार हो-हो गए। जब उन्होंने दारोगा और हकीम साहब को रवाना किया और कहला भेजा कि अगर हमारे बच्चे की जान लेना न मंजूर हो, तो जल्द निकाह हो जाय।
नूर - फैजन, तुम्हारा वह पंडित बड़ा सच्चा निकला।
फैजन - ए हजूर बड़ी पक्की बात बताता है। उसने जो कहा, वही हुआ। पर मंगल के दिन बताता है। नहा-धोके, पाक-साफ होके आता है, और बिना स्नान-पूजा किए, हाथ नहीं देखता। हाल सुनता है। उससे हमने पूछा। पहले उसने नाम पूछा, फिर हाल पूछा। फिर मुझसे कहा, कोई फूल अपने दिल में ले लो। हमने फूल दिल में लिया, चम्बेली का फूल। ए बस, कुछ पढ़ के, और कुछ हिसाब करके तड़ से बता दिया : सफेद फूल लिया है। और हमसे कहा - जल्द मतलब हासिल हो जायगा।
नूर - वाहरे पंडित - बाम्हन है?
फैजन - हाँ, बाम्हन है, बड़ा नामी पंडित।
नूर - इनाम का काम किया है।
यें बातें होती थीं कि नवाब-दूल्हा अंदर आए और बड़ी बेगम से बातें करने लगे। नूरजहाँ ने उनकी बातें बड़े गौर से सुनीं। खूब दिल लगा के। और हर फिकरे, हर जुमले, हर बात पर बाछें खिली जाती थी। फैजन तो बेहद ही खुश। प्यारी भी खुशी से खिली हुई। सितारन जामे में फूली नहीं समाती थी। दुलारी को गोया लाखों रूपये मिल गए थे। घर में खुशी के शादियाने बजते थे। अभी-अभी सबके सब रंज में भरे हुए थे : किसी को चैन नहीं, नूरजहाँ की तबीअत दम-बदतर होती जाती थी, और बदतर क्या माने, यों कहना चाहिए कि जनून जोश पर था, दीवानी हो गई थी और अच्छे होने की उम्मीद करीब-करीब खत्म। मगर मिजाज ने एकाएक पलटा खाया। गम के लश्कर को खुशी की फौज ने भगा दिया - रंज की पल्टने उखड़ गई, खुशी और चैन की अमलदारी हुई।
यहाँ से एक साँड़नी सवार दौड़ाया गया कि राजा राहतहुसैन से जा कर कहे कि हकीम साहब और दारोगाजी, मय काफले के आते हैं, और जिनके सबब से आपके दुश्मनों की तबीअत कमजोर हो गई है, उनको भी साथ लाते हैं। इसी हफ्ते में निकाह की रस्म पूरी होगी, इत्मीनान रखिए। हम सब कल ही दाखिल हो जायँगे।
साँड़नी सवार यह खत ले कर रवाना हुआ, और इधर नूरजहाँ बेगम ने नजीर बेगम के साथ मुद्दत-बाद खाना खाया। अब तक दिल की वहशत और जनून की वजह से न खाया वक्त से खाती थीं और न भूख लगती थी, और न खाने में लुत्फ था। अपने आपे ही में न थीं, खाना कैसा! आज अलबत्ता पेट भर के खाना खाया, और खाना भी तकल्लुफी और मजेदार था, और हँस-हँस के खाया। बात-बात में शोखी। न पी कहाँ की पुकार, न आँसू, न बेकरारी। आँखों में पहले से भी ज्यादा नूर आ गया। सब कमजोरी जाती रही। दिल का अजब हाल था। जरा काबू से और जाता रहे, तो वाकई खुशी के मारे दम निकल जाय। जब खाने-पीने से छुट्टी पाई, तो फैजन से कहा - चुपके से किसी बहाने से बाहर जाके दारोगा साहब से कहो कि पूछती हैं - मिजाज कैसा है? अब तो कोई रुकावट न होगी? निकाह पर उनकी माँ राजी हैं, या अभी कुछ आगा-पीछा सोच रही हैं। कहना - खुदा को दरम्यान में रख कर और कुरान की कसम खा कर सच्चा हाल कहें।
फैजन ने चुपके नजीर बेगम से कहा - तुम बाग में जाके जरी देर ठहरी। और ऊपर खुश-खुश आके, अलग ले जाके, कहा, कि दारोगा कहते हैं कि जब हम लोग रवाना हुए कि इनको ले जायँ, और जब से उनको पूरा-पूरा यकीन हो गया है कि दिल की मुराद जल्द पूरी होगी, तब से बड़ी खुश हैं और नौकरों को अभी से भरपूर इनाम दिए, और जोड़े झड़ाझड़ बन रहे हैं। नौबत अभी से बिठा दी है। उसकी टकोर दूर तक जाती है। गोरे बुलवाए हैं और अंग्रेजी बाजा बजेगा। साहब लोगों की दावत की है। ...यही सब बातें कहना...
फैजन बाग में गई। सितारन से गेंद धड़क्का खेला। आपस में चुहल हुई।
सितारन - तख्त की रात को जरी खूब निखरना!
फैजन - यह क्यों! तख्त की रात को दुल्हन को निखरना चाहिए कि हमको!
सितारन - शायद, पलँग की...
फैजन - (आहिस्ता से थप्पड़ लगा कर, मुस्करा कर) कुतिया कहीं की!
सितारन - ओ हो! दिल में तो खिल गई होगी!
फैजन - हम अपनी खिदमत तुम्हारे सुपुर्द कर देंगे।
सितारन - हमारा वहाँ कौन काम?
फैजन - किसे उम्मीद थी सितारन, कि खुदा यह दिन दिखाएगा!
सितारन - तोबा करो बहन!
फैजन - मगर इसमें शक नहीं कि अल्ला रक्खे चाँद-सूरज की जोड़ी है।
सितारन - अ हा हा हा! क्या चाँद और क्या सूरज - तुमको चूम लेने तक का तो हक है!
फैजन - तुम्हीं... जाके!
सितारन - यह इतना बिगड़ती क्यों हो? (मुस्करा कर) और दिल में खुश होती होगी कि हम भी इतने हुए!
फैजन - इतने हुए क्या माने! कुछ मैं बुढ़िया-सिढ़िया हूँ - या कोई कानी-खुदरी हूँ। सूबेदार का लड़का कैसा लट्टू था! गाँव-गिरावँ लिखे देता था!
सितारन - अक्ल की दुश्मन हो!
फैजन - अरी सिड़न! अल्लाह को देना होगा तो यों ही देगा।
सितारन - अच्छा, ले अब तुम जाओ, वह बड़ा इंतजार कर रही होगी।
फैजन बहुत ही खुश कोठे पर गई, और इशारे से नूरजहाँ बेगम को बुलाया।
फैजन - वहाँ तो बड़ी-बड़ी तैयारियाँ हो रही हैं।
नूर - (खुश हो कर) हाँ! क्या?
फैजन - साहब लोगों की दावत होगी। कलकत्ते से अंग्रेज बावर्ची बुलाए गए हैं। गोरों का बाजा होगा। नौबत बिठाई गई है।
नूर - अभी से! अमीर तो हैं ही।
फैजन - बड़ी बी अपनी हक्स निकालेंगी। एक बेटा है, उसकी शादी में सभी अरमान निकालेंगी। भारी-भारी जोड़े अभी से तैयार हो रहे हैं। एक से एक बढ़िया। हाथियों के वास्ते गंगा-जमनी हौदे चाँदी-सोने के बन रहे हैं। दारोगाजी ने कहा कि सब सामान लैस है।
गरज यह कि नूरजहाँ के खुश करने और तसल्ली देने के लिए नजीर बेगम ने दस झूठी बातें कही थीं तो बी फैजन ने तर्रारी के साथ निन्नानवे उससे और बढ़-बढ़ के कहीं। और नतीजा यह हुआ कि नूरजहाँ अपना पिछला सारा रंज इस तरह भूल गई कि जैसे रंज कभी हुआ ही न था।
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