Pee Kahan - 4 in Hindi Fiction Stories by Ratan Nath Sarshar books and stories PDF | पी कहाँ? - 4

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पी कहाँ? - 4

पी कहाँ?

रतननाथ सरशार

अनुवाद - शमशेर बहादुर सिंह

चौथी हूक

पीतल के एक खूबसूरत पिंजड़े में एक काला कोयला-सा जानवर भुजंगे की औलाद, जंगली कौवे का नामलेवा, कोयल का पानीदेवा, बंद है। और यह पिंजड़ा एक कमरे में खूँटी पर टँगा हुआ है और थोड़ी-थोड़ी देर के बाद जोर-जोर से आवाज लगा रहा है - 'पी कहाँ!' फिर दम ले कर 'पी कहाँ!' फिर जरा देर में - 'पी कहाँ!' इसके जवाब में एक जानवर, उसी रंग, उसी के बराबर वही आवाज लगा रहा है : 'पी कहाँ! पी कहाँ!' आवाज की गूँज इन दोनों की पुकारों की आवाज को दुहराती है। चार आवाजें तो 'पी कहाँ!' की ये आ रही हैं - तीन जमीन पर से और एक आसमान पर से, और इन आवाजों के साथ एक आवाज और शामिल हो गई थी - यह उसी पाकदिल, पाक-तबीअत, उदास-उदास से रहनेवाले नौजवान मर्द की थी जो रात को सतखंडे पर से जानवर को ले आया था : जुल्‍फ कमर तक बिखरी हुई, दीवानों की तरह इधर से उधर गश्‍त करने के वक्‍त पतली कमर हजारों ही बल खाती थी। इतने में फैजन ने भी दिल्‍लगी में आवाज लगानी शुरू की - 'पी कहाँ! पी कहाँ!'

इस पर इस सुंदर सजीले लड़के ने एक ठंडी साँस भरी और फैजन की तरफ देख कर कहा - क्‍यों बहन, तुम अब हमको चिढ़ाने लगीं, खुल्‍लम-खुल्‍ला बनाने लगीं! इस वक्‍त तुम्‍हारे अब्‍बा यहाँ होते तो हमारा हाल देख कर कितना रोते, और तुम हमारे रोने पर हँसती हो। कोई तापे, किसी का घर जले! फैजन ने हाथ जोड़ कर गले से लगाया। चारों लड़कियों में फैजन सबसे ज्‍यादा गुस्‍ताख थी और मुँह-चढ़ी, - मगर तमीज के साथ। इसके बाप को इस लड़के से दिली मोहब्‍बत थी और बिलकुल वैसी ही मोहब्‍बत करता था जैसे कोई अपने लड़कों और बच्‍चों से मोहब्‍बत करता है। यह इसका कोका था।

फैजन - जरी, अलग आइए! (अलग ले जा कर मैं हाथ जोड़के अर्ज करती हूँ कि खुदा के लिए मुझे सब बता दो - जो-जो मैं पूछूँ। मुझसे कुछ छिपा हुआ तो है नहीं। मगर यह बताओ कि तुम्‍हारे दुश्‍मनों के... यह दीवाना-पन कैसा!

उस लड़के ने अपनी बाँहें फैजन के गले में डाल दीं। अगर कोई गैर मर्द देख लेता तो समझता कि इन दोनों में आश्‍नाई जरूर है। वर्ना इस सिन की लड़की और उसके गले में इस बेतकल्‍लुफी से हाथ डाल कर लिपटे तो इसमें कुछ दाल में काला जरूर है। हालाँकि इस किस्‍म की कोई बात न थी। दोनों में एक को भी बदी का खयाल न था। खैर! - फैजन के गले में हाथ डाल कर उस लड़के ने रोना शुरू किया। फैजन ने प्‍यारी को इशारा किया कि पानी लाओ। वह फौरन पानी ले कर गई। रूमाल तर करके फैजन ने आँसू पोंछे।

लड़का - बहन, ले, अब पूछती हो तो सुनो और कान धन के सुनो। मेरी हालत बिलकुल ऐसी है, जैसे (पिंजरे की तरफ इशारा करके) - उसकी। यह भी बदसूरत, भोंडा, और हम भी अब इस गम और रंज के मारे बद-सूरत हो गए हैं। हाय, यह भी सियाह है, और यहाँ भी अब तमतमाहट है। यह भी 'पी कहाँ! पी कहाँ!' की आवाज लगता है, और मैं भी। यह भी किसी की तलाश में पागल है, और मैं भी हूँ। यह भी पिंजड़े की कैद में है, और मुझे भी गम ने जकड़ रखा है। इसमें ओर मुझमें बस इतना फर्क है कि यह वस्‍ल के लुत्‍फ उठाए हुए है, और यहाँ उसके भी भूखे हैं।

फैजन - मैं समझ गई। अच्‍छा, फिर अब इसका क्‍या? यह तो खैर जो कुछ हुआ वह हुआ! अब एक बात तो बहुत ही जरूरी है, वह बताओ। यह पपीहा कहाँ से आया? हम सबको हैरत है कि यह क्‍या बात है। किसी की कुछ समझ ही में नहीं आता। हमारी जान तक हाजिर है - तुम्‍हारे लिए जान तक हाजिर है। मगर खुदा के लिए बता दो कि यह बात क्‍या है।

लड़का - अरी बहन, मुझे खुद नहीं मालूम! तुम लोगों ने मुझे किस हालत में देखा। ढूँढ़ती हुई आई थी ना, और यह जानवर मेरे हाथ में पाया - उस वक्‍त यह बोलता था या नहीं?

फैजन - क्‍या आप सब भूल गईं! अरे! (अपने गालों पर थप्‍पड़ लगा कर) क्‍या आप सब भूल गए?

लड़का - (मुस्‍करा कर) वाह, फैजन, वाह!

फैजन - सरकार माफ करें! मगर अब... खुदा के वास्‍ते, सोच करके, गौर करके, इत्‍ता बता दीजिए कि यह पपीहा कहाँ से आया!

लड़का - अम्‍मीजान की कसम, मुझे नहीं मालूम।

फैजन - प्‍यारी! ओ प्‍यारी! जरी दुलारी और सितारन को बुला लो। और तुम भी आओ।

प्‍यारी ने सितारन और दुलारी को बुलाया और उनके पास गई। फैजन ने कहा - तुम सबको बड़ी से बड़ी कसम, सच-सच बताओ, यह पपीहा कहाँ से आया। पिंजड़ा तो हमने मँगवाया, यह तो खूब याद है। मगर रात को यह जानवर कहाँ से आया। या मेरे अल्‍लाह, यह क्‍या बात है। ...सरकार, कुछ तो बताइए।

लड़का - हाय, मैं किससे अपने दिल का हाल कहूँ। मुझे जो सबसे ज्‍यादा प्‍यारा है, उसी के मरने की कसम खा लूँ कि मुझे कुछ भी याद नहीं है। अम्‍मी-जान और अब्‍बा से बढ़के तो कोर्इ नहीं। उनकी कसम खा लूँ। और अगर अब भी यकीन न आए तो कहो - उसकी कसम खा लूँ।

फैजन - (मुस्‍करा कर) खूब समझी। कोई गँवारन मुकर्रर किया है! मुझे इस वक्‍त जरा हँसी आ गई। मगर डर लगा, कि कहीं आप खफा न हो जायँ। एक आँख से रोते हैं, एक आँख से कभी-कभी हँसते भी हैं।

लड़का - इसमें हम क्‍यों कर बुरा मान सकते हैं। हँसते भी है, रोते भी हैं। सभी कुछ करते हैं। अरी बहन, मर-मिटने की बात है!

इतने में इत्‍तफाक से एक सिक्‍ख आया। मालियों और मालिनों की गफलत से दर्राता हुआ चला आया। उसने जो इस लड़के और फैजन को देखा तो अश्-अश् करने लगा। ये सब तो उस अजनबी आदमी को देख कर नजर से ओझल हो गए, और वह दिल को मसोस-मसोसके रह गया, और वहीं खोया-खोया-सा खड़ा रह गया। इतने में एक आदमी ने आके कहा - सिंहजी, बाहर जाइए! बस, एकदम से बाहर जाइए। पराए मकान में, और जनाने मकान में घुस आना कोई दिल्‍लगी नहीं हैं।

सिक्‍ख ने कहा - हम बाग जान के आए। यह क्‍या मालूम था कि जनानखाना है। तुम्‍हारे देस की रसम यही है, जो अनजान आए उसको मार के हाँक दो।

उस सिपाही ने कहा - अच्‍छा, अब जो कुछ हुआ, वह हुआ। अब तो जाइए। आप तो डटे खड़े हैं।

सिक्‍ख चला गया। फैजन और प्‍यारी ने पहरे के सिपाही को बुलाके डाँटा कि हमारा मकान और बाग तमाशे की जगह नहीं हैं कि जिस ऐरे-गैर पचकल्‍यान का जी चाहे धँस आए। वाह, यह भी कोई बात है! तुम क्‍या ऊँघते थे? सिपाही वाकई ऊँघता ही था। जब फैजन और प्‍यारी से यह बात सुनी तो फौरन उठके आया।

जब सिक्‍ख चला गया तो एकाएक ही फिर 'पी कहाँ!' की आवाज आई और वह लड़का फिर बदस्‍तूर 'पी कहाँ! पी कहाँ!' पुकारने लगा। दिल में तरह-तरह के खयालात। हर दस-पंद्रह मिनट में 'पी कहाँ! पी कहाँ!' की आवाज दिल से निकलती थी। थोड़ी-थोड़ी देर के बाद फैजन ने कसमें दे-दे कर खाना खिलवाया। दो-चार नेवाले नूरमहली पुलाव के खाए, दो शामी कबाब, आधा पराठा मुर्ग के कोरमे के साथ खाया और दस्‍तरखान से उठा। फैजन जिसको दस्‍तरखान पर साथ खाने का शरफ हासिल था, वह भी उठ खड़ी हुई।

लड़का - वाह-वा, ए तुम क्‍यों उठ खड़ी हुईं? हमको रोए जो न खाए!

फैजन - (एक तली अरबी खा कर) ले, कसम हमने उतार दी : अब न जिद कीजिएगा। भला मैं क्‍यों कर खाऊँ! यह कहीं हो सकता है! सरकार तो दो नेवाले खा कर दस्‍तरखान से उठ जाएँ और मैं जबरदस्‍ती खाना जारी रक्‍खूँ।

प्‍यारी - तुम साथ खाती हो, ना, इसी से भूखी रहती हो। तुमसे तो हम लोग अच्‍छे कि अलग खाते हैं। बावर्चीखाने में बैठ गए, मनमाना खाना पेट भरके खाया : तुमसे तो, बी फैजन, हम लोग अच्‍छे!

फैजन - हाँ फिर यह तो है ही है -

हमसे अच्‍छे रहे सदके में उतरनेवाले!

लड़का - (दस्‍तरखान पर बैठ कर) अच्‍छा हम भी खाते हैं। एक कबाब ले लिया, मगर बेदिली से खाया, जैसे कोई जबरदस्‍ती मार-मार के खिलाता है! फैजन ने अदब का लिहाज करके खाना खाया, और भूखी भी थी। खाना खाने के बाद सितारन बेसनदानी और पानी ले कर आई। मुँह-हाथ धुला कर पानदान से गिलौरियाँ दीं। लड़के ने मसहरी पर आराम किया। दुलारी पाँव दबाने लगी। अगर कोई अजनबी नावाकिफ आदमी देखता तो जरूर दिल में कहता कि कितना खुशनसीब लड़का है कि चार-चार परीछम जवान-जवान लड़कियाँ खिदमत को हाजिर हैं। और किस तरह पर खिदमत करती हैं! बेधड़क, बेझिझक। यह कि - कोई तो चप्‍पी कर रही है, कोई गले में हाथ डाल देती है : मगर इन पाँचों में किसी को किसी तरह का ऐसा-वैसा खयाल दिल में था ही नहीं। सब पाकबाज, पाकनजर।

प्‍यारी - (लड़के से) आप तो एक जरी सो जायँ तो अच्‍छा होता। जरा आराम कर लीजिए।

लड़का - अरी मुई नींद ही आती तो रोना काहे का था। हाय, नींद ही तो नहीं आती! और आए क्‍यों कर! यह कह कर एक ठंडी साँस भरी और उसी गम और रंज की हालत में आहिस्‍ता-आहिस्‍ता यों गाने लगे -

जाय कहो कोउ श्‍यामसुंदर से!

तुमरे मिलन का जिया मोरा तरसे! जाय कहो कोउ श्‍यामसुंदर से!

निसि-दिन, बालम, तुम्‍हारे देखन को

नैनन से मोरे निरहन बरसे। जाय कहो कोउ...

कौन देस उन्‍हें ढूँढ़न जाऊँ

लाऊँ उनहैं कौन नगर से। जाय कहो कोउ...

उसके बाद फूट-फूटके रोना आया, और इस तरह रोया कि दुलारी और प्‍यारी और सितारन और फैजन सब मिलके ढाड़ैं मार-मार के रोने लगीं।

प्‍यारी - हाय, किसी तरह आप जरी सो जातीं।

फैजन - (प्‍यारी के काम में आहिस्‍ता से) अरे, तुम क्‍या बक रही हो! पहले भी तुमने कहा था!

प्‍यारी - (चुपके से फैजन के कान में) जबान से निकल जाता है। सरकार ने भी तो कहा था 'मुई नींद ही नहीं आती!' अच्‍छा अब इस बात ही को जाने दो : जो हुआ सो हुआ। अब खयाल रक्‍खूँगी। कोई कहाँ तक खयाल रखे।

इतने में फैजन को इस साहबजादे ने बुलाया और कहा - जरा हमारे पास इस मसहरी पर बैठ जाओ। जब वह बैठी तो कहा - लेट जाओ! जब वह हुक्‍म के मुताबिक लेटी, तो कान में कहा - फैजन अब उम्र भर हम इसी लिबास में, इसी ढंग से रहेंगे। बस, यह धज हमें बहुत पसंद है। वह बोली - यह तो सब सच है। मगर सितारन और दुलारी और प्‍यारी तक तो खैरियत है, वह जानती है : और जो कोई नई औरत आएगी, तो वह क्‍या समझेगी? आपके बराबर जवान आदमी के बच्‍चा पैदा हो सकता है या नहीं? उसका अगर निकाह हो जाय और बीवी आए, तो बच्‍चा पैदा हो सकता है या नहीं। मैं मियाँवाली हूँ कि नहीं, मेरी बराबरवालियों की गोद में दो-दो खेलते हैं कि नहीं। अच्‍छा फिर नई अजनबी औरत जो इस तरह से हमको तुमको एक पलँग पर सोते देखेगी, तो मियाँ-बीवी समझेगी कि नहीं। मैं तो कहीं की भी न रहूँगी। मगर फिर यह भी सोचती हूँ, कि क्‍या किया जाय! हाय, हर तरह मजबूरी है। मैं हजूर के हुक्‍म से बाहर नहीं हूँ। लेकिन बदनामी को डरती हूँ। आप खुद गौर कर लें।

लड़का - अरी इन झूठी तोहमतों का न खयाल कर! दिल साफ रखना चाहिए। फैजन - मेरे पाकदिल होने का हाल आप पर और सारे शहर पर खुला हुआ है। सूबेदार के लड़के ने कितने पापड़ बेले। एक गाँव लिखे देता था। नोट देता था, मकान देता था, गहना बनाए देता था। पटरियाँ और कंगन की जोड़ी भेज ही दी थी। जान देता था। हर तरह मदद को तैयार था। घंटों हाथ जोड़ता था। बीस दफे से कम न टोपी सर से उतारके कदमों पर रखी होगी। मगर मैंने एक न मानी। हमेशा जूती की नोक पर मारा की। पटरियाँ और कंगन की जोड़ी, सोने की, फेर दीं। बहुत मुश्किल है। कहता था, मेरे मियाँ को हजार रुपया देके राजी कर लूँगा। मैंने कहा - जो हमके अमीर होके रहना किस्‍मत में है, तो अल्‍लाह बहुत कुछ दे निकलेगा! क्‍या सत्तर की बनके रही तो क्‍या! न आबरू, न इज्‍जत! जब तुम बिगड़ोगे तो यही ताने दोगे कि जब तूने एक कंगन की जोड़ी के पीछे एक मियाँ को छोड़ दिया तो मुझे छोड़ते क्‍या देर लगेगी। कोई दो जोड़ियाँ कंगन की दे देगा, उसके पलँग पर चली जाएगी,। और जब बिगड़ते तो यही कहते कि - हमने आदमी बना दिया; वही टके की औरत हो! जब हम खाने की कोई अपने शौक से ऐसी -वैसी फरमाइश करते, तो कहते - वही दो कौड़ी की औकात है ना! एक दफा एक औरत को सिखा-पढ़ा के भेजा कि सूबेदार के लड़के ने बुलाया है और यह पैगाम भेजा है कि वह यहाँ तक आ जायँ, या मुझे कहीं बुलाए : सौ रुपए फकत इस बात के देता है कि..., बस, और कुछ नहीं। सुनते ही मैं जल उठी। मैंने कहा - उससे मिलके झुलस दूँगी, और कहो : जाके अपनी अम्‍मा-भैना को देखें, और आज से जो हमसे कभी ऐसी बात की तो जहाँ की हो, वहाँ पहुँचा दूँगी - कुटनी मुर्दार! बहू-बेटियों को खराब करनेवाली! बस कान दबाए चली ही तो गई। काटो तो बदन में लहू ही नहीं।

लड़का - हाँ, हम सब सुन चुके हैं।

फैजन - एक दिन मलाई में जहर मिलाके खाने जाता था; आदमियों ने रोक लिया, नहीं तो जान ही जाती।

लड़का - हाय, लगी भी क्‍या बुरी होती है। तुमको मान लेना था। (मुस्‍करा कर) क्‍यों बेचारे को तरसाया!

फैजन - बहुत ठीक! जो ऐसा करती तो आज को तुम अपने पास खड़ा होने न देते, और अब बगल में लिए एक पलँग पर सो रहे हैं!

लड़ाका - उसको तुम्‍हारे साथ दिली मोहब्‍बत थी। सारा शहर जानता है।

फैजन - और एक बात तो सुनिए। हाय, सर पीटने को जी चाहता है। क्‍या कहूँ! जिस कमबख्त के मैं पाले पड़ी हूँ - जिस मूजी के घर बसी हूँ वह मेरे हाथ जोड़े कि अल्‍लाह के वास्‍ते तू उसका कहना मान ले, मजे़ से चैन कर, गाँव की रानी बन कर रह, और मुझे भी अपने गाँव का सिपाही मुकर्रर कर ले। मैं नौकर-सिपाही-गु़लाम का गु़लाम बनके रहूँगा। सच कहती हूँ, जी चाहता था, मुँह पकड़के झुलस दूँ, बस, और कुछ न करूँ!

लड़का - तुमने हमसे अब तक न कहा।

फैजन - अपनी लाज थी।

इतने में प्यारी ने कहा-फैजन बहन, तुम्‍हारी फूफी-अम्‍मा आती हैं। फैजन ने कहा - वहीं बिठाओ, मैं आती हूँ। यह कहके फूफी के पास गई। इधर-उधर की बातें करके कहा - हम आज मियाँ जोश की चढ़ाई गए थे। वहाँ पूछा, हमारी लड़की कहाँ है! वह मुटल्‍लो हरी बोली : फैजन तो उस दरोगावाले लौंडे के साथ निकल गई है। उसने चुपके से यहाँ का पता दिया। डोली करके आई। काले कोसों है। लड़की की शादी ठहर गई और जल्‍द निकाह होनेवाला है।

फैजन धक से रह गई। पूछा, निकाह किसके साथ होगा? कौन लड़का है? उसने कहा - कश्‍मीरी दरवाजे़ के पास जो वसीके़दार रहते हैं, उनके लड़के के साथ। शक्‍ल-सूरत कुछ बुरी नही है, मगर लुर है, पढ़ने-लिखने से जी चुराता है। अब दिन-रात सुबह-शाम या जुआ खेलता है, या कनकौवा उड़ाता है, या कबूतरबाजी। मैं तो नौकर रह चुकी हूँ। नूरजहाँ के काबिल नहीं है।

उसने अपनी फूफी से जरूरी बातें करके उसको बिदा किया और वापिस आई तो इस साहबजादे ने उसको उदास पाया।

लड़का - तुम्‍हारी फूफी क्‍या कहती थीं? उनको मेरा हाल मालूम है कि मैं यहाँ हूँ।

फैजन - (आहिस्‍ता से) क्‍या जाने।

लड़का - क्‍या करने आई थी।

फैजन - क्‍या बताऊँ क्‍या करने आई थी। सोचती हूँ, कि बताऊँ या न बताऊँ। न बताऊँ तो भी दिल नही मानता, और बताऊँ तो क्‍यों कर कहा जाए!

लड़का - (रंग फक हो गया) अरे, वह तो जिंदा है!

फैजन - जी हाँ। उसकी कोई खबर नहीं है। एक और बात है।

लड़का - तो बताती क्‍यों नहीं हो? (आँखों में आँसू ला कर)।

फैजन - अच्‍छा, सब से सलाह कर लूँ। अभी हाजिर हुई।

फैजन ने जाके इन तीनों से छिपे तौर से कह दिया।

प्‍यारी - अरे! इनके दुश्‍मन जहर खा लेंगे।

दुलारी - कहना नहीं!

सितारन - अरे, वो चाहे कहो या न कहो!

चारों मिलके उस साहबजादे के पास गईं तो देखा कि बुरी तरह रो रहा है, और रोते-रोते हिचकी बँध गई है। यह मालूम होता है जैसे कोई अपने किसी सगे की लाश पर रोता है - किसी अपने बहुत ही प्‍यारे सगे की लाश पर।

सितारन - ए सरकार, यह क्‍यों?

प्‍यारी - मुँह धो डालिए।

फैजन - कोई ऐसी बात नहीं है कि आप इतना रंज मनाएँ।

प्‍यारी - चलिए, जरी चमन की हवा खाइए।

लड़का - अरी प्‍यारी, किसकी हवा और कहाँ का चमन! हाय, हमारा बचना अब मुहाल है। हम आड़ में खड़े सब सुन रहे थे। हाय, यह क्‍या हुआ! यह कह कर गश आ गया। गश आते ही पिंजरे में से आवाज आई - 'पी कहाँ!' यह आवाज और सब तो सुनते ही थे, मगर बेहोशी में उस जवान के कानों तक उसकी भनक नहीं पहुँची। वर्ना वह भी जवाब देता, और दो आवाजें जंगल में गूँजती होतीं : 'पी कहाँ!'

***