Pee Kahan - 1 in Hindi Fiction Stories by Ratan Nath Sarshar books and stories PDF | पी कहाँ? - 1

Featured Books
Categories
Share

पी कहाँ? - 1

पी कहाँ?

रतननाथ सरशार

अनुवाद - शमशेर बहादुर सिंह

पहली हूक

'पी कहाँ! पी कहाँ! पी कहाँ! पी कहाँ!' मंगल का दिन और अँधेरी रात, बरसात की रात। दो बज के सत्‍ताईस मिनट हो आए थे। तीन का अमल। सब आराम में। सोता संसार, जागता पाक परवरदिगार। सन्‍नाटा पड़ा हुआ। अँधेरा घुप्‍प छाया हुआ। हाथ को हाथ नहीं सूझता था। दो चीजों से अलबत्‍ता अँधेरा जरा यों ही-सा कम हो जाता था, और वह भी पलक मारने तक को - एक तो कौंढे के लौंकने से बिजली चमकी और गायब, दूसरे जुगनू की रोशनी। नाखून के बराबर कीड़ा, मगर दामिनी की दमक से मुकाबला करने वाला। आसमान पर वह और जमीन पर यह। कोई मिनकता भी न था। अगर कोई आवाज आती थी तो पत्‍तों के खड़खड़ाने की। हवा के जन्‍नाटे के साथ चलने से दरख्‍तों पत्‍ते गोया तालियाँ बजाते थे। तारे सब गायब। जमीन से आसमान तक एक ही तरह का अँधेरा छाया हुआ - घटाटोप अँधेरा। अगर हवा तेजी के साथ न चलती तो मूसलाधार मेंह बरसता और खूब दूर-दूर तक बारिश होती।

इसी मंगल के दिन एक जंगल में एक बड़े लक्‍कदक्‍क महल की छत पर एक आलीशान कमरे में एक नाजुक-सा लड़का पड़ा हुआ मीठी नींद ले रहा था। बहुत ही खूबसूरत लड़का। सिन कोई सोलह बरस का, अभी मसें भी नहीं भीगी थीं। सर के बल कमर तक लंबे, सियाह जैसे भँवरा। लखनऊ के छोटे गांधी की दुकान का सोलह रुपएवाला हिना का तेल पड़ा हुआ। पट्टियाँ जमी हुईं, चोटी गुँधी हुई। प्‍यारे-प्‍यारे हाथों में मेहँदी रची हुई। गोरे-गोरे पाँव, रंगीन होंठ : मिस्‍सी के ऊपर पान का रंग चढ़ा हुआ। रसीली आँखों में सुर्मे की तहरीर।

- मीठी नींद सो रहा था, बिलकुल गाफिल। तीन कमसिन, कम-उम्र औरतें पलँग के इधर-उधर तकल्‍लुफ से बिछे हुए फर्श पर सो रही थीं। और एक नई नवेली एक चारपाई पर उस लड़के के पलँग के पास आराम करती थी। एकाएक ही बादल बहुत जोर से गरजा, और इस खूबसूरत गबरू की आँख खुल गई। देखा, तो अँधेरा घुप छाया हुआ। आराम करने के पहले ही से तबीअत परेशान थी, बहुत ही बेचैन। बड़ी दिक्‍कतों से आँख लगी थी। अब इस अँधेरे को देख कर और भी परेशान हुआ पलँग से उठ कर टहलने लगा। कायदा है कि जब इंसान अँधेरे का जरा देर तक आदी हो जाता है तो फिर अँधेरा कम मालूम होता है। देखा, कि फैजन, उनके कोका की लड़की, चारपाई पर सो रही है। उसको इस लड़के ने जगा दिया। वह फौरन उठ बैठी और काफूरी शमा जलाई, और कहा - ओफ्फोह, बड़ा अँधेरा है!

इतने में यह हसीन लड़का फिर टहलने लगा। थोड़ी देर में आवाज आई - 'पी कहाँ! पी कहाँ!'

जंगल के जिस बाग में यह इमलाक थी, उसमें एक सतखंडा बना था। इस सतखंडे के पास शीशम का एक बहुत बड़ा दरख्‍त था। उसकी एक शाख पर, जो सतखंडे की पाँचवीं मंजिल के पास थी, पपीहे ने झोंझ लगाया था, और इसी की 'पी कहाँ! पी कहाँ!' की आवाज सुन कर यह लड़का भी कहने लगा - 'पी कहाँ! पी कहाँ!' लड़कों का कायदा होता है कि कोयल को चिढ़ाने में उसके साथ-साथ उसकी बोली बोलते हैं या चिल्‍ला-चिल्‍ला कर कहते है है : 'काले कौवे की जोरू!'

मगर इस लड़के की 'पी कहाँ!' की आवाज इतनी दर्द से भरी हुई थी कि सुन कर कोई यह न समझता कि चिढ़ाता है।

इतने में फिर बादल जोर से गरजा, और अबकी पहले से आवाज कहीं तेज थीं। जो तीन कमसिन औरतें फर्श पर सो रही थीं वह भी चौंक पड़ीं। देखा, तो काफूरी शमा जल रही है, 'पी कहाँ!' की आवाज बाग से आ रही है, और लड़का इधर से उसी की बोली 'पी कहाँ! पी कहाँ!' कह रहा है, और फैजन साथ है। ये तीनों भी उठ खड़ी हुईं :

प्‍यारी - महरी - सिन सत्रह बरस का, नमकीन, बड़ी नेक, बहू-बेटियों में रहने के काबिल। इसकी माँ जहेज में आई थी।

सितारन - नौकरानी की लड़की - अट्ठारह बरस की उम्र, बड़ी शोख और तेज।

दुलारी - मुगलानी की छोकरी - सोलहवाँ बरस, नाजुक बदन, खूबसूरत। अकाल के दिनों में मोल ली गई थी।

फैजन - कोका की लड़की - सत्रहवाँ साल, इस लड़के पर जान देती थी। और इस लड़के को भी उससे दिली मोहब्‍बत थी।

सितारन - ए हजूर उठ क्‍यों बैठे? मिजाज तो अच्‍छा है?

प्‍यारी - मेरी तो अभी-अभी आँख खुली। बादल जो गरजा तो एकाएकी चौंक पड़ी। देखा तो शमा जल रही है और हजूर कुछ कह रहे हैं।

फैजन - मुझे तो हजूर ने जगाया। सुनती हूँ, तो 'पी कहाँ!'

दुलारी - ले अब हजूर पलँग पर आराम करें!

उस लड़के ने दोबारा झूम-झूम के कहा - 'पी कहाँ! पी कहाँ!' और फैजन ने हाथ जोड़ कर अर्ज की, कि सरकार पलँग पर बैठें।

लड़का उसके कहने से पलँग पर बैठा और बैठने के बाद लेट गया। सितारन और दुलारी पाँव दबाने लगीं। सिरहाने बैठ कर पंखा झलने लगी। फैजन ने उस लड़के के गले में हाथ डाल कर चूमके कहा, अब सो रहो। रात बहुत भीगी है। पपीहा बोल रहा है। हलकान हो जाओगे।

सितारन - (दाँतों-तले उँगली दबा कर) क्‍या बकती हो!

प्‍यारी - उफ! कित्‍ती अँधेरी रात है!

इतने में बिजली चमकी और उसके साथ ही बादल गरजा। और बादल गरजने के बाद ही आवाज आई - पी कहाँ! पी कहाँ! और इधर परी से सुंदर लड़के ने पलँग से उठ कर कहा - 'पी कहाँ! पी कहाँ!' और फैजन ने फिर चूम कर कहा - 'ले आराम करो!

प्‍यारी - तुम तो, बी फैजन, अँधेर कर रही हो। हम सबके सामने ऐसे खूबसूरत, कमसिन कुँअर को गले लगा के चूमती हो, भला यह भी कोई बात है। आखिर हम भी तो नौजवान हैं। जो तुम्‍हारा सिन, वह हमारा सिन। हमसे यह क्‍यों कर देखा जायगा, और फिर हम शक्‍ल-सूरत में तुमसे कम नहीं।

फैजन - अच्‍छा, इन्‍हीं से पूछो। जो यह कहें वही ठीक है।

दुलारी - और क्‍या। 'जिसे पिया चाहे वही सुहागन, क्‍या सँवरा क्‍या गोरा रे!'

ये सब बातें उस लड़के के दिल बहलाने के मजाक की होती थीं। मगर दिल में सब को रंज था कि यह साहबजादा बेचैन है। उसकी बेचैनी दूर करने के लिए इन्‍होंने ये दिल्‍लगी की बातें शुरू कर दीं।

फैजन - हमारे अच्‍छे गोर-चिट्टे होने का सबसे सबूत यह है कि हम इनको प्‍यार करते हैं, - यह है, कि तुम इत्‍ती हो, मगर किसी को यह जुर्रत नहीं कि इनको चूम ले।

यह लड़का इस वक्‍त दुखी था। मगर ये बातें सुन कर जरा योंही-सा मुस्‍करा दिया, और फैजन ने तालियाँ बजा कर कहा - ए लो, अब कहो! कौन जीत गया - हम या तुम? हमने जो बात कही, वह सुनते ही हँस दीं!

प्‍यारी - 'हँस दीं' क्‍या मानी, फैजन! वह - तोबा! - 'हँस दिए' - 'हँस दीं' नहीं।

इतने में इस लड़के को नींद आ गई। और जो पाँव दबाती थी, वह आहिस्‍ता-आहिस्‍ता पाँव दबाने लगी, और जो पंखा झल रही थी, वह भी आहिस्‍ता-आहिस्‍ता झलने लगी। थोड़ी देर के बाद, ये चारों अपनी-अपनी जगह पर जा कर सो रहीं। कोई आध घंटे तक इस कमरे में सन्‍नाटा पड़ा रहा, और उसके बाद फिर यह लड़का जागा, और जागते ही सुना - 'पी कहाँ! पी कहाँ!' यह सुनते ही चुपके से उठा और नीचे उतरा, और सीधा उस सतखंडे की तरफ चला और पाँचवीं मंजिल पर जा कर पपीहे की झोंझ की तरफ हाथ बढ़ाया। दरख्‍त की शाख उसके पास तक आती थी। पहले हाथ वहाँ तक नहीं पहुँचा, फिर कोशिश की, और झोंझ से एक जानवर निकाल लिया, और फिर नीचे उतरा। दूसरा जो उस दरख्‍त से भाग गया था, उसको खबर भी नहीं कि झोंझ में क्‍या हो रहा है। जब यह लड़का उस जानवर को ले कर उतरा, उसी दम जानवर के चिल्‍लाने की आवाज सुनी और उसने उसके जवाब में आवाज दी - 'पी कहाँ! पी कहाँ!'

अब सुनिए कि पिछले पहर के बाद फैजन की आँख खुल गई। गो इस वक्‍त सुबह का धोखा-सा होने लगता था मगर आज बदली के सबब से अब तक अँधेरा छाया हुआ था। फैजन के उठते ही प्‍यारी की भी आँख खुल गई। उठके बैठी तो अंदाज से ही समझी कि फैजन हैं। पूछा - फैजन, सरकार आराम में हैं? उसने आहिस्‍ता से कहा, हाँ। अँधेरा होने से दोनों को नहीं मालूम हुआ कि सरकार का पलँग सूना पड़ा है। इतने में फैजन प्‍यारी के पास चली आई।

फैजन - अरी बहन, रात तो 'पी कहाँ! पी कहाँ!' कहते-कहते उन्‍होंने नाम में दम कर दिया।

प्‍यारी - एक बात मैं कहूँ! गोरा-गोरा मुखड़ा, लंबे-लंबे बाल, सत्रह अट्ठारह या सोलह-सत्रह बरस का सिन, और इत्‍ता खूबसूरत - जब तुमने लिपटा के गले में हाथ डालके चूमा तो, बस, मेरे कलेजे पर जैसे साँप लोटने लगा।

फैजन - वाह गधी! साँप लोटने की कौन बात है?

प्‍यारी - हाँ-हाँ, यह तो ठीक है, मगर उत्‍ती साइत तो एक अजीब समाँ बँध गया।

फैजन - सच कहूँ? मुझे खुद यही मालूम हुआ। उनकी सूरत और नख-सिख उस वक्‍त बिलकुल उससे मिलती थी - वह जो कत्‍थक का लौंडा नहीं है? - पार रहता है - वही लंबे-लंबे बाल, वही पतली कमर, वही गोर-गोरे गाल, वही रंग-रूप, वही लोच। 'पतली कमर बल खाय रे ननदिया!'

प्‍यारी (फैजन के गले में बाँहें डाल कर) - बस, बस, यही मैं भी कहने को थी! सच कहूँ, मेरा खुद जी चाहता था, कि जिस तरह तुमने गले लिपटाके चूम लिया था, उसी तरह मैं भी गले लिपटाके चूम लूँ। मगर हमसे तो यह जुर्रत हो नहीं सकती। तुहारे मरतबे बढ़े हुए हैं।

फैजन - हाँ, बस यह ठीक है। कभी जुर्रत ही न होती! कोई बात है भला! हमारी अम्‍मीजान सुनें तो जहर ही खा लें!

इतने में रोशनी जरा-जरा फैलने लगी, और प्‍यारी ने पलँग देख कर कहा - अरे!! ए बहन, वह हैं कहाँ? फैजन ने जो पलँग को देखा तो कहा - हाँय!! यह क्‍या बात! अरे! अब दुलारी और सितारन जाग उठी और उस साहबजादे की तलाश होने लगी।

सितारन - कहाँ, है कहाँ?

दुलारी - (घबरा कर) फैजन, ये कहाँ हैं?

फैजन - (इधर-उधर देख कर) मेरे तो जैसे हाथों के तोते उड़ गए। मैं बख्‍तों-जली सो क्‍यों रहीं?

चारों परेशान और हैरान हो कर इधर-उधर ढूँढ़ने लगीं। मगर कहीं पता न मिला।

अब बेंच पर साहबजादे आराम में है, और हाथ में कोई जानवर है। और एक जानवर जोर-जोर से ऊपर-ऊपर चिल्‍ला रहा है। ये चारों दौड़ीं और सब की सब हद से ज्‍यादा परेशान। फैजन ने कहा - अरे, यह क्‍या हो रहा है? प्‍यारी बोली कि बहन, यह तो गजब का सामना है! सितारन ने कहा, लोग हमको क्‍या कहेंगे कि इत्‍ती बड़ी वारदात हो गई और इन चारों के कान पर जूँ तक न रेंगी। बड़ी गजब है!

दुलारी - अरे ये यहाँ आए कब?

फैजन - यह हाथ में क्‍या है!

दुलारी - (बड़े अचंभे के साथ) अल्‍लाह करे नींद में हैं!

***