Azad Katha - 2 - 94 in Hindi Fiction Stories by Munshi Premchand books and stories PDF | आजाद-कथा - खंड 2 - 94

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आजाद-कथा - खंड 2 - 94

आजाद-कथा

(खंड - 2)

रतननाथ सरशार

अनुवाद - प्रेमचंद

प्रकरण - 94

आजाद पोलेंड की शाहजादी से रुखसत हो कर रातोंरात भागे। रास्ते में रूसियों की कई फौजें मिलीं। आजाद को गिरफ्तार करने की जोरों से कोशिश हो रही थी, मगर आजाद के साथ शाहजादी का जो आदमी था वह उन्हें सिपाहियों की नजरें बचा कर ऐसे अनजान रास्तों से ले गया कि किसी को खबर तक न हुई। दोनों आदमी रात को चलते थे और दिन को कहीं छिप कर पड़ रहते थे। एक हफ्ते तक भागा-भाग चलने के बाद आजाद पिलौना पहुँच गए। इस मुकाम को रूसी फौजों ने चारों तरफ से घेर लिया था। आजाद के आने की खबर सुनते ही पिलौने वालों ने कई हजार सवार रवाना किए कि आजाद को रूसी फौजों से बचा कर निकाल लाएँ। शाम होते-होते आजाद पिलौनावालों से जा मिले।

पिलौना की हालत यह थी कि किले के चारों तरफ रूस की फौज थी और इस फौज के पीछे तुर्कों की फौज थी। रात को किले से तोपें चलने लगीं। इधर रूसियों की फौज भी दोनों तरफ गोले उतार रही थी। किलेवाले चाहते थे कि रूसी फौज दो तरफ से घिर जाय, मगर यह कोशिश कारगर न हुई। रूसियों की फौज बहुत ज्यादा थी। गोली से काम न चलते देख कर आजाद ने तुर्की जनरल से कहा - अब तो तलवार से लड़ने का वक्त आ पहुँचा, अगर आप इजाजत दें तो मैं रूसियों पर हमला करूँ।

अफसर - जरा देर ठहरिए, अब मार लिया है। दुश्मन के छक्के छूट गए हैं।

आजाद - मुझे खौफ है कि रूसी तोपों से किले की दीवारें न टूट जायँ।

अफसर - हाँ, यह खौफ तो हैं। बेहतर है, अब हम लोग तलवार ले कर बढ़ें।

हुक्म की देर थी। आजाद ने फौरन तलवार निकाल ली। उनकी तलवार की चमक देखते ही हजारों तलवारें म्यान से निकल पड़ीं। तुर्की जवानों ने दाढ़ियाँ मुँह में दबाईं और अल्लाह-अकबर कहके रूसी फौज पर टूट पड़े। रूसी भी नंगी तलवारें ले कर मुकाबिले के लिए निकल आए। पहले दो तुर्की कंपनियाँ बढ़ीं, फिर कुछ फासले पर छह कंपनियाँ और थीं। सबसे पीछे खास फौज की चौदह कंपनियाँ थीं। तुर्कों ने यह चालाकी की थी कि सिर्फ फौज के एक हिस्से को आगे बढ़ाया था, बाकी कालमों को इस तरह आड़ में रखा कि रूसियों को खबर न हुई। करीब था कि रूसी भाग जायँ, मगर उनके तोपखाने ने उनकी आबरू रख ली। इसके सिवा तुर्की फौज मंजिलें मारे चली जाती थी और रूसी फौज ताजा थी। इत्तिफाक से रूसी फौज का सरदार एक गोली खा कर गिरा, उसके गिरते ही रूसी फौज में खलबली मच गई, आखिर रूसियों को भागने के सिवा कुछ न बन पड़ी। तुर्कों ने छह हजार रूसी गिरफ्तार कर लिए।

जिस वक्त तुर्की फौज पिलौना में दाखिल हुई, उस वक्त की खुशी बयान नहीं की जा सकती। बूढ़े और जवान सभी फूले न समाते थे। लेकिन यह खुशी देर तक कायम न रही। तुर्कों के पास न रसद का सामान काफी था, न गोला-बारूद। रूसी फौज ने फिर किले को घेर लिया। तुर्क हमलों का जवाब देते थे, मगर भूखे सिपाही कहाँ तक लड़ते। रूसी गालिब आते जाते थे और ऐसा मालूम होता था कि तुर्कों को पिलौना छोड़ना पड़ेगा। पचीस हजार रूसी तीन घंटे किले की दीवारों पर गोले बरसाते रहे। आखिर दीवार फट गई और तुर्कों के हाथ-पाँव फूल गए। आपस में सलाह होने लगी।

फौज का अफसर - अब हमारा कदम नहीं ठहर सकता, अब भाग चलना ही मुनासिब है।

आजाद - अभी नहीं, जरा और सब्र कीजिए, जल्दी क्या है।

अफसर - कोई नतीजा नहीं।

किले की दीवार फटते ही रूसियों ने तुर्की फौज के पास पैगाम भेजा, अब हथियार रख दो, वरना मुफ्त में मारे जाओगे।

लेकिन अब भी तुर्कों ने हथियार रखना मंजूर न किया। सारी फौज किले से निकल कर रूसी फौज पर टूट पड़ी। रूसियों के दिल बढ़े हुए थे कि अब मैदान हमारे हाथ रहेगा, और तुर्क तो जान पर खेल गए थे। मगर मजबूर हो कर तुर्कों को पीछे हटना पड़ा। इसी तरह तुर्कों ने तीन धावे किए और तीनों मरतबा पीछे हटने पर मजबूर हुए। तुर्की जेनरल फिर धावा करने की तैयारियाँ कर रहा था कि बादशाही हुक्म मिला - फौजें हटा लो, सुलह की बातचीत हो रही है। दूसरे दिन तुर्की फौजें हट गईं और लड़ाई खतम हो गई।

***