Azad Katha - 2 - 87 in Hindi Fiction Stories by Munshi Premchand books and stories PDF | आजाद-कथा - खंड 2 - 87

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आजाद-कथा - खंड 2 - 87

आजाद-कथा

(खंड - 2)

रतननाथ सरशार

अनुवाद - प्रेमचंद

प्रकरण - 87

खाँ साहब पर मुकदमा तो दायर ही हो गया था; उस पर दारोगा जी दुश्मन थे। दो साल की सजा हो गई। तब दारोगा जी ने एक औरत को सुरैया बेगम के मकान पर भेजा। औरत ने आ कर सलाम किया और बैठ गई।

सुरैया - कौन हो? कुछ काम है यहाँ?

औरत - ऐ हुजूर, भला बगैर काम के कोई भी किसी के यहाँ जाता है? हुजूर से कुछ कहना है, आपके हुस्न का दूर-दूर तक शोहरा है। इसका क्या सबब है कि हुजूर इस उम्र में, इस हालत में जिंदगी बसर करती हैं?

सुरैया - बहन, मैं एक मुसीबत की मारी औरत हूँ ।

औरत - ऐ हुजूर, मुझे बहिन न कहें, मैं लौंडी, हुजूर शाहजादी हैं। हुजूर पर ऐसी क्या मुसीबत है? हुजूर तो इस काबिल हैं कि बादशाहों के महल में हों।

औरत - अल्लाह मालिक है। कोशिश यह करनी चाहिए कि दुनिया में इज्जत के साथ रहे और किसी का होके रहे।

सुरैया - मगर जब खुदा को भी मंजूर हो। हमने तो बहुत चाहा कि शादी कर लें, मगर खुदा को मंजूर ही न था। किस्मत का लिखा कौन मिटा सकता है?

औरत - हुजूर का हुक्म हो तो कहीं फिक्र करूँ?

सुरैया - हमको माफ कीजिए। हम अब शादी न करेंगे।

औरत - हुजूर से मैं अभी जवाब नहीं चाहती। खूब सोच लीजिए। दो-तीन दिन में जवाब दीजिएगा। यहाँ एक रईसजादे रहते हैं, बहुत ही खूबसूरत, खुशमिजाज और शौकीन। दिल बहलाने के लिए नौकरी कर ली है। हुकूमत की नौकरी है।

सुरैया - हुकूमत की नौकरी कैसी होती है?

औरत - ऐसी नौकरी, जिसमें सब पर हुकूमत करें। कोतवाल हैं।

अब्बासी - अच्छा, उन्हीं थानेदार का पैगाम लाई होगी!

औरत - ऐ, थानेदार काहे को हैं, बराय नाम नौकरी कर ली, वरना उनको नौकरी की क्य जरूरत है, वह ऐसे-ऐसे दस थानेदारों को नौकर रख सकते हें।

अब्बासी - हुजूर को तो शादी करना मंजूर ही नहीं है।

औरत - वाह! कैसी बातें करती हो।

सुरैया - तुम उनकी सिखाई-पढ़ाई आई हो, हम समझ गए। उनसे कह देना कि हम बेकस औरत हैं, हम पर रहम करो, क्यों हमारी जान के दुश्मन हुए हो, हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो पंजे झाड़ के हमारे पीछे पड़े हो?

औरत - हुजूर के कदमों की कसम, उन्होंने नहीं भेजा है।

सुरैया - अच्छा तो इसमें जबरदस्ती काहे की है।

औरत - आपके और उनके दोनों के हक में यही इच्छा है कि हुजूर इन्कार न करें। वह अफसर पुलिस हैं, जरा सी देर में बे-आबरू कर सकते हैं?

सुरैया - हमारा भी खुदा है।

औरत - खैर न मानो।

औरत दो-चार बातें सुना कर चली गई तो अब्बासी और सुरैया बेगम सलाह करने लगीं-

सुरैया - अब यहाँ से भी भागना पड़ा, और आज ही कल में।

अब्बासी - इस मुए को ऐसी जिद पड़ गई कि क्या कहें! मगर अब भाग के जायँगे कहाँ?

सुरैया - जिधर खुदा ले जाय। कहीं से लाला खुशवक्त राय को लाओ, बड़ा नमकहलाल बुड्ढा है। कोई ऐसी तदबीर करो कि वह कल सुबह तक यहाँ आ जाय।

अब्बासी - कहिए तो कल्लू को भेजूँ, बुला लाए।

कल्लू कौम का लोहार था। ऊपर से तो मिला हुआ था, मगर दिल में इनका दुश्मन था। अब्बासी ने उसको बुला के कहा, तुम जाके लाला खुशवक्त राय को लिवा लाओ। कल्लू ने कहा, तुम साथ चलो तो क्या मुजायका है, मगर अकेला तो मैं न जाऊँगा। आखिर यही तै हुआ कि अब्बासी भी साथ जाय। शाम के वक्त दोनों यहाँ से चले। अब्बासी मर्दाना भेष में थी। कुछ दूर चल कर कल्लू बोला, अब्बासी बुरा न मानो तो एक बात कहूँ! तुम इस बेगम के साथ क्यों अपनी जिंदगी खराब करती हो? उनकी जमा-जथा ले कर चली आओ और मेरे घर पर पड़ रहो।

अब्बासी - तुम मर्दों का ऐतबार क्या?

कल्लू - हम उन लोगों में नहीं हैं।

अब्बासी - भला अब लाला साहब का मकान कितनी दूर होगा?

कल्लू - यही कोई दो कोस, कहो तो सवारी केराया कर लूँ या गोद में ले चलूँ।

अब्बासी - ऐं, या तो घर बिठाते थे, या गोद बिठाने लगे।

कल्लू - भई, बहुत कही, ऐसी कही कि हमारी जबान बंद हो गई।

अब्बासी - ऐ, तुम ऐसे गँवारों को बंद करना कौन बात है।

थोड़ी देर में दोनों एक मकान में पहुँचे। यह कल्लू के दोस्त शिवदीन का मकान था। शिवदीन ने कहा, आओ यार, मिजाज अच्छे?

कल्लू - सब चैन ही चैन है। इनको ले आया हूँ, जो कुछ सलाह करनी हो, कर लो। सुनो अब्बासी, शिवदीन की और हमारी यह राय है कि तुमको अब यहाँ से न जाने दें। बस हमें अपनी बेगम के माल-टाल का पता बतला दो।

अब्बासी - बड़ी दगा दी कल्लू, बड़ी दगा दी तुमने।

कल्लू - अब तुम रात भर यहीं रहो, हम लोग जरा सुरैया बेगम से मुलाकात करने जायँगे।

अब्बासी - बड़ा धोखा दिया, कहीं के न रहे।

अब्बासी तो यहाँ रोती रही, उधर वह दोनों चोर कई आदमियों के साथ सुरैया बेगम के मकान पर जा पहुँचे और दरवाजा तोड़ कर अंदर दाखिल हुए। सुरैया बेगम की आँख खुल गई, बिचारी अकेली मकान में मारे डर के दबकी पड़ी थी। बोली - कौन है? अब्बासी?

कल्लू - अब्बासी नहीं है, हम है, अब्बासी के मियाँ।

सुरैया - हाय मेरे अल्लाह, गजब हो गया?

शिव. - चुप्पे-चुप्पे बोल, बताओ, रुपया कहाँ हैं? सच बता दो, नहीं मारी जाओगी

कल्लू - बताएँ तो अच्छा न बताएँ तो अच्छा, हम घर भर ढूँढ़ ही मरेंगे। सुना है कि तुम्हारे पास जवाहिर के ढेर हैं।

सुरैया - अमीर जब थी तब थी, अब तो मुसीबत की मारी हूँ।

कल्लू - तुम यों न बताओगी, हम कुछ और ही उपाय करेंगे, अब भी बताती है कि नहीं।

सुरैया बेगम ने मारे खौफ के एक-एक चीज का पता बतला दिया। जब सारी जमा-थमा ले कर वे सब चलने लगे, तो कल्लू सुरैया बेगम से बोला, चल हमारे साथ, उठ।

सुरेया - खुदा के लिए मुझे छोड़ दो! रहम करो।

शिव. - चल, चल उठ, रात जाती है।

सुरैया बेगम ने हाथ जोड़े, पाँव पड़ी, रो-रोक कर कहा,खुदा के वास्ते मेरी इज्जत न लो। मगर कल्लू ने एक न सुनी। कहने लगा, तुझे किसी रईस अमीर के हाथ बेचेंगे; तुम भी चैन करोगी, हम भी चैन करेंगे।

सुरैया - मेरा माल लिया, अब तो छोड़ो।

कल्लू - चलो, सीधे से चलो, नहीं तो धकियाई जाओगी। देखो मुँह से आवाज न निकले वरना हम छुरी भोंक देंगे।

सुरैया (रो कर) - या खुदा, मैंने कौन सा गुनाह किया था, जिसके एवज यह मुसीबत पड़ी!

कल्लू - चलती है कि बैठी रोती है?

आखिर सुरैया बेगम को अँधेरी रात में घर छोड़ कर उनके साथ जाना पड़ा।

***