Azad Katha - 2 - 78 in Hindi Fiction Stories by Munshi Premchand books and stories PDF | आजाद-कथा - खंड 2 - 78

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आजाद-कथा - खंड 2 - 78

आजाद-कथा

(खंड - 2)

रतननाथ सरशार

अनुवाद - प्रेमचंद

प्रकरण - 78

खोजी थे तो मसखरे, मगर वफादार थे। उन्हें हमेशा आजाद की धुन सवार रहती थी। बराबर याद किया करते थे। जब उन्हें मालूम हुआ कि आजाद को पोलैंड की शाहजादी ने कैद कर दिया है तो वह आजाद को खोजने निकले। पूछते-पूछते किसी तरह आजाद के कैदखाने तक पहुँच ही तो गए। आजाद ने उन्हें देखते ही गोद में उठा लिया।

खोजी - आजाद, आजाद, अरे मियाँ, तुम कौन हो?

आजाद - ओ-हो-हो!

खोजी - भाईजान, तुम भूत हो या प्रेत, हमें छोड़ दो। मैं अपने आजाद को ढूँढ़ने जाता हूँ।

आजाद - पहले यह बताओ कि यहाँ कैसे पहुँचे?

खोजी - सब बतलाएँगे मगर पहले यह तो बताओ कि तुम्हारी यह गति कैसी हो गई?

आजाद ने सारी बातें खोजी को समझाईं, तो आपने कहा - वल्लाह, निरे गाउदी हो। अरे भाईआन, तुम्हारी जान के लाले पड़े हैं, तुमको चाहिए कि जिस तरह मुमकिन हो, शाहजादी को खुश करो, तुमको तो यह दिखाना चाहिए कि शाहजादी को छोड़ कर कहीं जाओगे ही नहीं। खूब इश्क जताओ, तब कहीं तुम्हारा ऐतबार होगा।

आजाद - हो सिड़ी तो क्या हुआ, मगर बात ठिकाने की करते हो, मगर यह तकरीर कौन करे?

खोजी - और हम आए क्या करने हैं?

यह कह कर आप शाहजादी के सामने आ कर खड़े हो गए। उसने इनकी सूरत देखी तो हँस पड़ी। मियाँ खोजी समझे कि हम पर रीझ गई। बोले - क्या लड़वाओगी क्या? आजाद सुनेगा तो बिगड़ उठेगा। मगर वाह रे मैं! जिसने देखा, वही रीझा और यहाँ यह हाल है कि किसी से बोलने तक नहीं। एक हो तो बोलूँ, दो हो तो बोलूँ, चार निकाह तक तो जायज हैं, मगर जब इंद्र का अखाड़ा पीछे पड़ जाय तो क्या करूँ?

शाहजादी - जरा बैठ तो जाइए। यह तो अच्छा नहीं मालूम होता कि मैं बैठी रहूँ और आप खड़े रहें।

खोजी - पहले यह बताओ कि दहेज क्या दोगी?

हबशिन - और अकड़ते किस बिरते पर हो। सूखी हड्डियों पर यह गरूर?

खोजी - तुम पहलवानों की बातें क्या जानो। यह चोर-बदन कहलाता है; मैं अखाड़े में उतर पड़ूँ तो फिर कैफियत देखो।

हबशिन - टेनी मुर्ग के बराबर तो आपका कद है और दावा इतना लंबा चौड़ा!

खोजी - तुम गँवारिन हो, ये बातें क्या जानो। तुम कद को देखा चाहो और यहाँ लंबे आदमी को लोग बेवकूफ कहते हैं। शेर को देखो और ऊँट को देखो। मिस्र में एक बड़े ग्रांडील जवान को पटकनी बताई। मारा,चारों खाने चित। उठ कर पानी भी न माँगा।

खैर; बहुत कहने-सुनने से आप कुरसी पर बैठे तो दोनों टाँगें कुरसी पर रख लीं और बोले - अब दहेज का हाल बताओ। लेकिन मैं एक शर्त से शादी करूँगा, इन सब लौंडियों को महल बनाऊँगा और इनके अच्छे-अच्छे नाम रखूँगा। ताऊस-महल, गुलाम-महल...।

शाहजादी - तो आप अपनी शादी के फेर में हैं, यह कहिए।

खोजी - हँसती आप क्या हैं, अगर हमारा करतब देखना हो किसी पहलवान को बुलाओ। अगर हम कुश्ती निकालें तो शादी मंजूर?

शाहजादी ने एक मोटी-ताजी हबशिन को बुलाया। खोजी ने आँख ऊपर उठाई तो देखते हैं कि एक काली-कलूटी देवनी हाथ में एक मोटा सोटा लिए चली आती हैं। देखते ही उनके होश उड़ गए। हबशिन ने आते ही इनके कंधे पर हाथ रखा तो इनकी जान निकल गई। बोले - हाथ हटाओ।

हबशिन - दम हो तो हाथ हटा दो।

खोजी - मेरे मुँह न लगना, खबरदार!

हबशिन ने उनका हाथ पकड़ लिया और मरोड़ने लगी। खोजी झल्ला-झल्ला कर कहते थे, हाथ छोड़ दे। हाथ टूटा तो बुरी तरह पेश आऊँगा, मुझसे बुरा कोई नहीं।

हबशिन ने हाथ छोड़ कर उनके दोनों कान पकड़े और उठाया तो जमीन से छः अंगुल ऊँचे!

हबशिन - कहो, शादी पर राजी हो या नहीं?

खोजी - औरत समझ कर छोड़ दिया। इसके मुँह कौन लगे!

इस पर हबसिन ने ख्वाजा साहब को गोद में उठाया और ले चली। उन्होंने सैकड़ों गालियाँ दीं - खुदा तेरा घर खराब करे, तुम पर आसमान टूट पड़े, देखो, मैं कहे देता हूँ कि पीस डालूँगा। मैं सिर्फ इस सबब से नहीं बोलता कि मर्द हो कर औरत जाति से क्या बोलूँ। कोई पहलवान होता तो मैं अभी समझ लेता, और समझता क्या? मारता चारों खाने चित।

हबशिन - खैर, दिल्लगी तो हो चुकी, अब यह बताओ कि आजाद से तुमने क्या कहा? वह तो आपके दोस्त हैं।

खोजी - ऊँह, तुमको किसी ने बहका दिया, वह दोस्त नहीं, लड़के हैं। मैंने उसके नाम एक खत लिखा है, ले जाओ और उसका जवाब लाओ!

हबशिन आपका खत ले कर आजाद के पास पहुँची और बोली - हुजूर, आपके वालिद ने इस खत का जवाब माँगा है।

आजाद - किसने माँगा है? तुमने यह कौन लफ्ज कहा?

हबशिन - हुजूर के वालिद ने...। वह जो ठेंगने से आदमी हैं।

आजाद - वह सुअर मेरे घर का गुलाम है। वह मसखरा है। हम उसके खत का जवाब नहीं देते।

हबशिन ने आ कर खोजी से कहा - आपका खत पढ़ कर आपके लड़के बहुत ही खफा हुए।

खोजी - नालायक है कपूत, जी चाहता है, अपना सिर पीट लूँ।

शाहजादी ने कहा - जा कर आजाद पाशा को बुला लाओ, इस झगड़े का फैसला हो जाय।

जरा देर में आजाद आ पहुँचे। खोजी ने उन्हें देख कर सिटपिटा गए।

इधर तो शाहजादी खोजी के साथ यों मजाक कर रही थी। उधर एक लौंडी ने आकर कहा - हुजूर, दो सवार आए हैं और कहते हैं कि शाहजादी को बुलाओ। हमने बहुत कहा कि शाहजादी साहब को आज फुरसत नहीं है, मगर वह नहीं सुनते।

शाहजादी ने खोजी से कहा कि बाहर जा कर इन सवारों से पूछो कि वह क्या चाहते हैं? खोजी ने जा कर उन दोनों को खूब गौर से देखा और आ कर बोले - हुजूर, मुझे तो रईसजादे मालूम होते हैं। शाहजादी ने जा कर शाहजादों को देखा तो आजाद भूल गए। उन्हें एक दूसरे महल में ठहराया और नौकरों को ताकीद कर दी कि इन मेहमानों को कोई तकलीफ न होने पाए। आजाद तो इस खयाल में बैठे थे कि शाहजादी आती होगी और शाहजादी नए मेहमानों की खातिरदारी का इंतजाम कर रही थी। लौंडियाँ भी चल दीं, खोजी और आजाद अकेले रह गए।

आजाद - मालूम होता है, उन दोनों लौंडों को देख कर लट्टू हो गई।

खोजी - तुमसे तो पहले ही कहते थे, मगर तुमने ने माना। अगर शादी हो गई होती तो मजाल थी कि गैरों को अपने घर में ठहराती।

आजाद - जी चाहता है, इसी वक्त चल कर दोनों के सिर उड़ा दूँ।

खोजी - यही तो तुममे बुरी आदत है। जरा सब्र से काम लो, देखो क्या होता है।

***