Azad Katha - 2 - 67 in Hindi Fiction Stories by Munshi Premchand books and stories PDF | आजाद-कथा - खंड 2 - 67

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आजाद-कथा - खंड 2 - 67

आजाद-कथा

(खंड - 2)

रतननाथ सरशार

अनुवाद - प्रेमचंद

प्रकरण - 67

सुरैया बेगम ने आजाद मिरजा के कैद होने की खबर सुनी तो दिल पर बिजली सी गिर पड़ी। पहले तो यकीन न आया, मगर जब खबर सच्ची निकली तो हाय-हाय करने लगी।

अब्बासी - हुजूर, कुछ समझ में नहीं आया। मगर उनके एक अजीज हैं। वह पैरवी करने वाले हैं। रुपए भी खर्च करेंगे।

सुरैया बेगम - रुपया निगोड़ा क्या चीज है। तुम जा कर कहो कि जितने रुपयों की जरुरत हो, हमसे लें।

अब्बासी आजाद मिरजा के चाचा के पास जा कर बोली - बेगम साहब ने मुझे आपके पास भेजा है और कहा है कि रुपए की जरूरत हो तो हम हाजिर हैं। जितने रुपए कहिए, भेज दें।

यह बड़े मिरजा आजाद से भी बढ़ कर बगड़ेबाज थे। सुरैया बेगम के पास आ कर बोले - क्या कहूँ बेगम साहब, मेरी तो इज्जत खाक में मिल गई।

सुरैया बेगम - या मेरे अल्लाह, क्या यह गजब हो गया?

बड़े मिरजा - क्या करूँ, सारा जमाना तो उनका दुश्मन है। पुलिस से अदावत, अमलों से तकरार। मेरे पास इतने रुपए कहाँ कि पैरवी करूँ। वकील बगैर लिए-दिए मानते नहीं। जान अजाब में है।

सुरैया बेगम - इसकी तो आप फिक्र ही न करें। सब बंदोबस्त हो जायगा। सौ दो सौ, जो कहिए, हाजिर है।

बड़े मिरजा - फौजदारी के मुकदमे में ऊँचे वकील जरा लेते बहुत हैं। मैं कल एक बैरिस्टर के पास गया था। उन्होंने कहा कि एक पेशी के दो सौ लूँगा। अगर आप चार सौ रुपए दे दें तो उम्मेद है कि शाम तक आजाद तुम्हारे पास आ जायँ।

बेगम साहब ने चार सौ रुपए दिलवा दिए। बड़े मिरजा रुपए ले कर बाहर गए और थोड़ी देर के बाद आ कर चारपाई पर धम से गिर पड़े और बोले - आज तो इज्जत ही गई थी, मगर खुदा ने बचा लिया। मैं जो यहाँ से गया तो एक साहब ने आ कर कहा - आजाद मिरजा को थानेदार हथकड़ी पहना कर चौक से ले जाएगा। बस, मैंने अपना सिर पीट लिया। इत्तिफाक से एक रिसालदार मिल गए। उन्होंने मेरी यह हालत देखी तो कहा - दो सौ रुपए दो तो पुलिसवालों को गाँठ लूँ। मैंने फौरन दो सौ रुपए निकाल कर उनके हाथ पर रखे। अब दो सौ और दिलवाइए तो वकीलों के पास जाऊँ। बेगम ने दो सौ रुपए और दिलवा दिए। बड़े मिरजा दिल में खुश हुए, अच्छा शिकार फँसा। रुपए ले कर चलते हुए।

इधर सुरैया बेगम रो रो कर आँखें फोड़े डालती थी। महरियाँ समझातीं, दिन-रात रोने से क्या फायदा, अल्लाह पर भरोसा रखिए; उसकी मर्जी हुई तो आजाद मिरजा दो-चार दिन में घर आएँगे। मगर ये नसीहतें बेगम साहब पर कुछ असर न करती थीं। एक दिन एक महरी ने आ कर कहा - हुजूर, एक औरत ड्योढ़ी पर खड़ी है। कहिए तो बुलाऊँ। बेगम ने कहा - बुला लो। वह औरत परदा उठा कर आँगन में दाखिल हुई और झुक कर बेगम को सलाम किया। उसकी सजधज सारी दुनिया की औरतों से निराली थी। गुलबदन का चुस्त पाजामा, बाँका अमामा, मखमल का दगला, उस पर हलमा कारचोबी का काम, हाथ में आबनूस का पिंजड़ा, उसमें एक चिड़िया बैठी हुई। सारा घर उसी की ओर देखने लगा। सब की सब दंग थीं कि या खुदा, यह उठती जवानी, गुलाब सा रंग और यों गली-कूचों की सैर करती फिरे! अब्बासी बोली - क्यों बीबी तुम्हारा मकान कहाँ है? और यह पहनावा किस मुल्क का है? तुम्हारा नाम क्या है बीबी?

औरत - हमारा घर मन-चले जवानों का दिल है और नाम माशूक।

यह कह कर उसने पिंजड़ा सामने रख दिया और यों चहकने लगी - हुजूर, आपको यकीन न आएगा। कल मैं परिस्तान में बैठी वहाँ की सैर देख रही थी कि पहाड़ पर बड़े जोरों की आँधी आई और इतनी गर्द उड़ी कि आसमान के नीचे एक और आसमान नजर आने लगा। इसके साथ ही घड़घड़ाहट की आवाज आई और एक उड़नखटोला आसमान से उतर पड़ा।

अब्बासी - अरे, उड़नखटोला! इसका जिक्र तो कहानियों में सुना करते थे।

औरत - बस हुजूर, उस उड़नखटोले में से एक सचमुच की परी उतरी और दम के दम में खटोला गायब हो गया। वह परी असल में परी न थी, वह एक इनसान था। मैं उसे देखते ही हजार जान से आशिक हो गई। अब सुना है कि वह बेचारा कहीं कैद हो गया है।

सुरैया बेगम - क्या, कैद है! भला, उस जवान का नाम भी तुम्हें मालूम है?

औरत - जी हाँ, हुजूर, मैंने पूछ लिया है। उसे आजाद कहते हैं।

सुरैया बेगम - अरे! यह तो कुछ और ही गुल खिला। किसी ने तुम्हें बहका तो नहीं दिया?

औरत - हुजूर, वह आपके यहाँ भी आए थे। आप भी उन पर रीझी हुई हैं।

सुरैया बेगम - मुझे तो तुम्हारी सब बातें दीवानों की बकझक मालूम होती हैं। कहाँ, परी, कहाँ आजाद, कहाँ उड़नखटोला! समझ में कोई बात नहीं आती।

औरत - इन बातों को समझने के लिए जरा अक्ल चाहिए।

यह कह कर उसने पिंजड़ा उठाया और चली गई।

थोड़ी देर में दारोगा साहब ने अंदर आ कर कहा - दरवाजे पर थानेदार और सिपाही खड़े हैं। मिरजा आजाद जेल से भाग निकले हैं। और वही आज औरत के भेस में आए थे। बेगम साहब के होश-हवास गायब हो गए! अरे, यह आजाद थे!

***